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आमेर का कछवाह वंश

संस्थापक - धौलाराय (दूल्हेराय तेजकरण)

राजधानी -दौसा

कोकिलदेव - आमेर राजधानी 1207 ई. में

नरवर (नरूका) ,शेखा (शेखावत) शेखावाटी की स्थापना की।

राजस्थान के पूर्वी भाग में जहां ढूढ नदी बहती थी उस क्षेत्र को ढूढाड़ के नाम से जाना जाता है। यहीं पर 1137 ई. में दुल्हाराय ने कछवाह वंश की स्थापना की। 1612 ई. में आमेर लेख मे इस वंश को रधुवंश तिलक कहा गया है। 1170 ई. में मीणो से एक युद्ध में दुल्हाराय मारा गया तब इसका पुत्र कोकिल देव अगला शासक बना। 1207 ई. में कोकिल देव ने मीणों से आमेर छीन लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया जो अगले 520 वर्षो तक कुछवाह वंश की राजधानी रही।

1527 ई. के खानवा युद्ध में पृथ्वीराज कछवाहा ने बाबर के विरूद्ध राणा सांगा का साथ दिया। अकबर के समकालीन कछवाह वंश का शासक भारमल था।

भारमल

जनवरी 1562 ई. मे भारमल अकबर से मिला और अकबर की अधीनता स्वीकार की। अकबर ने इस समय सुलहकुल की नीति अपनाई। इस नीति के तहत् राजपूतों के साथ मित्रता स्थापित कर उन्हें अधीन करना व उनके प्रतिरोध करने पर उन्हे समाप्त कर देना था। भारमल ने 6 जनवरी 1562 को अपनी पुत्री हरखाबाई का विवाह सांभर में अकबर के साथ कर दिया। हरखा बाई ने सलीम (जहांगीर) को जन्म दिया। सलीम ने हरखाबाई को मरियम-उज्जयमानी की उपाधी प्रदान की। मूगलों से वैवाहिक संबंध स्थापित करने वाला प्रथम राजपूत शासक था। भारमल के पश्चात् उसके पुत्र भगवानदास व पौत्र मानसिं ने मूगलों की सेवा की। अकबर ने भारमल को अमीर उल उमारा की उपाधि पदान की भगवानदास को 5000 का मनसब (पद) प्रदान किया।

1562 से 1707 तक मुगलों और राजपूतों के बीच हुए प्रमुख वैवाहिक संबंध

1- जनवरी 1562, अकबर ने राजा भारमल की बेटी से शादी की. (कछवाहा-अंबेर)

2-15 नवंबर 1570, राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह अकबर से किया (राठौर-बीकानेर)

3- 1570, मालदेव ने अपनी पुत्री रुक्मावती का अकबर से विवाह किया. (राठौर-जोधपुर)

4- 1573, नगरकोट के राजा जयचंद की पुत्री से अकबर का विवाह (नगरकोट)

5-मार्च 1577, डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)

6-1581, केशवदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर से किया (राठौर-मोरता)

7-16 फरवरी, 1584, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का भगवंत दास की बेटी से विवाह (कछवाहा-आंबेर)

8-1587, राजकुमार सलीम (जहांगीर) का जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से विवाह (राठौर-जोधपुर)

9-2 अक्टूबर 1595, रायमल की बेटी से दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)

10- 28 मई 1608, जहांगीर ने राजा जगत सिंह की बेटी से विवाह किया (कछवाहा-आंबेर)

11-पहली फरवरी, 1609, जहांगीर ने राम चंद्र बुंदेला की बेटी से विवाह किया (बुंदेला, ओर्छा)

12-अप्रैल 1624, राजकुमार परवेज का विवाह राजा गज सिंह की बहन से (राठौर-जोधपुर)

13-1654, राजकुमार सुलेमान शिकोह से राजा अमर सिंह की बेटी का विवाह(राठौर-नागौर)

14-17 नवंबर 1661, मोहम्मद मुअज्जम का विवाह किशनगढ़ के राजा रूप सिंह राठौर की बेटी से(राठौर-किशनगढ़)

15-5 जुलाई 1678, औरंगजेब के पुत्र मोहम्मद आजाम का विवाह कीरत सिंह की बेटी से हुआ. कीरत सिंह मशहूर राजा जय सिंह के पुत्र थे. (कछवाहा-आंबेर)

16-30 जुलाई 1681, औरंगजेब के पुत्र काम बख्श की शादी अमरचंद की बेटी से हुए(शेखावत-मनोहरपुर)

मानसिंह (1589-1614)

जन्म- 6 दिसम्बर 1550 मूगलों से सहयोग की नीति

मृत्यु - 6 जुलाई 1614 अकबर ने फर्जन्द नाम दिया

इलचपुर में अकबर के नवरतनों में से एक था।

अकबर के समय 7000 का मनसब मिला 18 जून 1576 को हल्दीघाटी युद्ध में मुगलों का सेनापति था। बंगाल की सूबेदारी के समय केदारराय से शीलादेवी की मूर्ति प्राप्त की आमेर क्षेत्र में स्थापित कर श्शीलामाता मंदिर का निर्माण करवाया। आमेर में जमवारामगढ़ दुर्ग की स्थापना की। इसके पुत्र जगतसिंह की मृत्यु होने पर मानसिंह की पत्नी कनकावती ने आमेर में जगतशिरामणि मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर में वही कृष्ण की मूर्ति है। जिसकी मीरा बाई पूजा करती थी। मानसिंह की बहन मानबाई का विवाह जहांगीर के साथ हुआ जिसने खुसरों को जन्म दिया।

खुसरो व जहांगीर के मध्य विवाद व जहांगीर के अल्यधिक मदिरा पान के कारण मानबाई ने आत्महत्या कर ली। मानसिंह का दरबारी कवि - हाया बारहठ मानसिंह के प्रसिद्ध साहित्यकार पुण्डरिक बिट्ठल ने - रागमंजरी रागचन्द्रोदय, नर्तन निर्णय, चूनी प्रकाश की रचना की।

मुरारीदास - मानप्रकाश

जगन्नाथ - मानसिंह कीर्ति मुक्तावली

दलपत राज- पत्र प्रशस्ति व पवन पश्चिम

बिहार में मानुपर नगर व बंगाल में अकबर नगर की स्थापना।

मानसिंह का अकबर से परिचय 1562 ई. में हुआ।

1562-1614 तक अकबर की सेवा मे रहा।

अकबर नें मानसिंह को जून 1573 को महाराणा प्रताप के पास भेजा।

1585 में मानसिंह काबुल का सुबेदार बना।

1587 में बिहार का सुबेदार

जयसिंह प्रथम

मिर्जाराजा जयसिंह -1621-1666

जहांगीर, शाहंजहा,ं औरंगजेब इन तीनों मुगल बादशाहों की सेवा की।

मानसिंह के पश्चात् कुछ समय के लिए उनका भाई भावसिंह शासक बना। 1621 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। तब मानसिंह प्रथम का पुत्र जयसिंह प्रथम आमेर की गद्दी पर बैठा। वह जब 11 वर्ष का था उसने तीन मुगल शासको की सेवा की। शाहजहां ने जयसिंह को मिर्जा राजा की उपाधि प्रदान की 1658 ई. में श्शाहजहां के चारों पुत्रों में उत्तराधिकार का संघर्ष हुआ। जयसिंह ने औरंगजेब का साथ दिया।

1664 ई. में जयसिंह को शिवाजी के विरूद्ध भेजा। 1665 ई. में जयसिंह ने शिवाजी को पराजित कर पुरन्दर की संधि की। इस संधि में शिवाजी को अपने 35 में से 23 दुर्ग मुगलों को सौपने पडे़।

1666 ई. में औरंगजेब के कहने पर जयसिंह प्रथम को उसके पुत्र रामसिंह प्रथम ने जहर दे दिया जिससे बुरहानपुर नामक स्थान पर जयसिंह की मृत्यु हो गई।

आमेर का पितृहन्ता- रामसिंह प्रथम

बिहारी लाल- बिहारी सतसई (713 दोहो का संकलन)

राम कवि - जयसिंह चरित्र

आमेर में जयगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया।

उपनाम-चिल्ह का टीला

जयबाण तोप- एशिया की सबसे बडी तोप

जयसिंह द्वितीय

बचपन का नाम - चिमना जी

औरंगजेब ने सवाई की उपाधि प्रदान की 1727 में जयपुर की स्थापना।

जयपुर का वास्तुकार - विद्याधर भट्टाचार्य 1857 रामसिंह द्वितीय गुलाबी रंग में जयपुर रंगवाया।

जयपुर- प्रीस अलर्बट के आगमन पर।

पांच वैद्यशालाएं स्थापित की

जंतर-मंतर के नाम से इन्हे जाना जाता है।

  1. दिल्ली -1724
  2. जयपुर-1728 (सबसे बडी) 2010 में यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची मे रखा गया।
  3. मथुरा
  4. उज्जैन
  5. बनारस (वारणसी)

सवाई जयसिंह - जयसिंह कारिका, फारसी अनुवाद- जिज्जे मुहम्मदशाही।

आधुनिक समय में सवाई जयसिंह ने प्राचीन समय के अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया।

भारतीय इतिहास में सर्वाधिक अश्वमेघ यज्ञ कदबवंश के शासक मयूर शर्मन ने किया। 1743 ई. में सवाई जयसिंह की मृत्यु ।

ईश्वरी सिंह

सवाई जयसिंह (पत्नी)
सूरज कुंवरी मारवाड़चन्द्रकुवंरी मेवाड़

देवारी समझोते के अनुसार चंद्रकुंवरी से उत्पन्न पुत्र को ही आमेर का शासक बनाया जाना था किन्तु सूरज कुवंरी से ईश्वरी सिंह का जन्म पहले हुआ। चंद्रकुवंरी ने माधोसिंह को जन्म दिया।

अतः बडा हाने के नाते 1743 में ईश्वरी सिंह शासक बना किन्तु माधोसिंह ने अपना दावा प्रस्तुत किया। परिणाम स्वरूप दोनो के मध्य 1743 में राजमहल का युद्ध हुआ।

माधोंसिंह के साथ मराठे थे। ईश्वरी सिंह की विजय हुई। ईश्वरी सिंह ने जयपुर में ईसरलाट/सरगासूली का निर्माण करवाया। यह एक विजय सतम्भ के रूप में है। यहां अपराधियों को मृत्यु दण्ड दिया जाता था। यही पर चित्रकार साहबराम द्वारा बनाया गया ईश्वरी सिंह का आदमकद चित्र है। 1750 ई. में माधोंसिंह से परेशान होकर ईश्वरी सिंह ने आत्महत्या कर ली।

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