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राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ

प्रश्न 1   किस प्राचीन ग्रंथ में बैराठ का उल्लेख मिलता हैं -
 (अ) रामायण
 (ब) अर्थशास्त्र
 (स) महाभारत
 (द) पुराण

उत्तर : महाभारत
व्याख्या :
पाण्डुओं ने अपने 1 वर्ष का अज्ञातवास विराटनगर के राजा विराट के यहां व्यतित किया था। विराटनगर - बैराठ का प्राचीन नाम है।

प्रश्न 2   पॉच सांस्कृतिक युगो के अवशेष कहां से प्राप्त हुए है -
 (अ) आहड़
 (ब) बागौर
 (स) नौह
 (द) गणेश्वर

उत्तर : नौह
व्याख्या :
पांच सांस्कृतिक युगों के अवशेष नोह स्थल से प्राप्त हुए है। नोह के काले एवं लाल मृद्पात्रों के स्तर से लोहे की उपस्थिति के कुछ प्रमाण मिले हैं। यद्यपि यह साक्ष्य लोहे के छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में हैं, तथापि यह भारत में लौह युग के प्रारम्भ की प्राचीनतम् सीमा रेखा निर्धारण का सूचक है।

प्रश्न 3   आहड़ की खोज किस विद्वान ने की -
 (अ) आर. सी. अग्रवाल ने
 (ब) कर्नल टॉड़ ने
 (स) दशरथ शर्मा ने
 (द) आर. डी. बनर्जी ने

उत्तर : आर. सी. अग्रवाल ने
व्याख्या :
अन्य नामताम्रवती नगरी, धूलकोट
उत्खननसर्वप्रथम
1953 में अक्षयकीर्ति व्यास एवं तत्पश्चात
1956 में रतनचंद्र अग्रवाल एवं
1961-62 में एच. डी. सांकलियाँ के निर्देशन में यहाँ उत्खनन कार्य हुआ।

प्रश्न 4   कालीबंगा का शाब्दिक अर्थ है -
 (अ) काले मृदभाण्ड
 (ब) काली चुड़िया
 (स) काली मिट्टी
 (द) काली मुर्तिया

उत्तर : काली चुड़िया
व्याख्या :
कालीबंगा प्राचीन सरस्वती नदी के बाएं तट पर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ से लगभग 25 किमी. दक्षिण में स्थित है। वर्तमान में यहाँ घग्घर नदी बहती है। कालीबंगा में पूर्व हड़प्पाकालीन, ‘हड़प्पाकालीन’ तथा ‘उत्तर हड़प्पाकालीन’ सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। खुदाई के दौरान मिली काली चूड़ियों के टुकड़ों के कारण इस स्थान को कालीबंगा कहा जाता है क्योंकि पंजाबी में बंगा का अर्थ चूड़ी होता है। इस स्थान का पता ‘पुरातत्व विभाग के निदेशक ए. एन. घोष’ ने सन् 1952 में लगाया था।

प्रश्न 5   बीजक डूंगरी पर सर्वप्रथम अशोक के शिलालेखों को किसने और कब खोजा-
 (अ) कैप्टन बर्ट,1837
 (ब) दयाराम साहनी, 1950
 (स) डॉ. लैशनी, 1953
 (द) नीलरत्न बनर्जी, 1977

उत्तर : कैप्टन बर्ट,1837
व्याख्या :
इस स्थल की प्रांरंभिक और सर्वप्रथम खोज का कार्य 1837 ई. में कैप्टन बर्ट द्वारा किया गया। इन्होंने विराटनगर में मौर्य सम्राट अशोक का प्रथम भाब्रू शिलालेख खोज निकाला और यह 1840 ई. से एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल, कलकत्ता संग्रहालय में सुरक्षित है। इसे ‘भाब्रू शिलालेख’ और ‘बैराठ-कलकत्ता शिलालेख’ कहा जाता है।

प्रश्न 6   किस पुरातात्विक स्थल का प्राचीन नाम मालव नगर था -
 (अ) नगर
 (ब) सुनारि
 (स) जोधपुरा
 (द) नलियासर

उत्तर : नगर
व्याख्या :
नगर की खुदाई पुरातत्त्ववेत्ता कृष्णदेव की देख-रेख में हुयी थी। नगर में के.वी. सौन्दरराजन ने पुनः उत्खनन करवाया था। ‘नगर’ की खुदाई में 6000 मालव सिक्के, एक हजार से अधिक पात्रों के टुकड़े तथा लगभग 500 अन्य छोटे-छोटे अवशेष प्राप्त हुए हैं। नगर से गुप्तोत्तरकालीन स्लेटी पत्थर से बनी महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा, पत्थर पर मोदक रूप में गणेश का अंकन, तीन फणधारी नाग का अंकन तथा कमल धारण किए हुए लक्ष्मी की खड़ी प्रतिमा मिली हैं। ये सभी सामग्री नगर को मालवों के अधीन एक क्षेत्र घोषित करती है।

प्रश्न 7   आहड़ सभ्यता के लोग किस खाद्य से अच्छी तरह परीचित थे-
 (अ) ज्वार
 (ब) मक्का
 (स) बाजरा
 (द) चावल

उत्तर : चावल
व्याख्या :
आहड़ के लोगो द्वारा चावल भी उगाया जाता था और वे मिट्टी के तवे पर रोटियाँ बनाते थे।

प्रश्न 8   गणेश्वर सभ्यता का सम्बन्ध किस नदी से है-
 (अ) कांतली
 (ब) सरस्वती
 (स) बनास
 (द) आयड़

उत्तर : कांतली
व्याख्या :
गणेश्वर का टीला, नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर अवस्थित है। गणेश्वर में रत्नचंद्र अग्रवाल ने 1977 में खुदाई कर इस सभ्यता पर प्रकाश डाला। इस क्षेत्र का विस्तृत उत्खनन कार्य 1978-89 के बीच विजय कुमार ने किया।

प्रश्न 9   कहाँ के अवशेष से यह पता चलता है कि विश्व विख्यात सैंधव सभ्यता का राजस्थान में विकास हुआ –
 (अ) कालीबंगा
 (ब) रंगमहल
 (स) पीलीबंगा
 (द) उपर्युक्त सभी

उत्तर : उपर्युक्त सभी
व्याख्या :
कालीबंगा, रंगमहल और पीलीबंगा के अवशेष से यह पता चलता है कि विश्व विख्यात सैंधव सभ्यता का राजस्थान में विकास हुआ। यदि हड़प्पा और मोहनजोदड़ों को सैंधव सभ्यता की दो राजधानियां माना जा सकता है तो दशरथ शर्मा के अनुसार कालीबंगा को सैंधव सभ्यता की तीसरी राजधानी कहा जा सकता है।

प्रश्न 10   प्रो. एच. डी. सांकलिया के निर्देशन मे जिस सभ्यता स्थल का उत्खनन हुआ, वह कौनसा है -
 (अ) कालीबंगा
 (ब) बैराठ
 (स) गणेश्वर
 (द) आहड

उत्तर : आहड
व्याख्या :
उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर 500 मीटर लम्बे धूलकोट के नीचे आहड़ का पुराना कस्बा दवा हुआ है जहाँ से ताम्रयुगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। इस स्थल के उत्खनन का कार्य सर्वप्रथम 1953 में अक्षय कीर्ति व्यास के नेतृत्व में हुआ। डॉ. एच.डी. सांकलिया, डेकन कॉलेज पूना, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, राजस्थान तथा मेलबोर्न विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त अभियान में वर्ष 1961-62 के दौरान इस स्थल का उत्खनन कार्य किया गया।

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