तहसील -8 संभाग - जोधपुर
जयपुर एवं अलवर जिलों का पुनर्गठन कर नया जिला कोटपूतली-बहरोड़ गठित किया गया है जिसका मुख्यालय कोटपूतली-बहरोड़ होगा। नवगठित कोटपूतली-बहरोड़ जिले में 8 तहसील (बहरोड़, बानसूर, नीमराना, मांढण, नारायणपुर, कोटपूतली, विराटनगर, पावटा) हैं। कोटपूतली, विराटनगर, पावटा को जयपुर से जोड़ा गया है बाकी सभी को अलवर से जोड़ा गया है।
कोटपूतली शब्द कोट बस्ती और पास के पूतली गांव के विलय से बना है। वहीं बहरोड़ नाम मोहल्ला भैरूनपुरा नाम से भैरून शब्द के अपभ्रंश से लिया गया है। मोहल्ला भैरूनपुरा का नाम राजा शालिवाहन द्वारा स्थापित शहर में भैरून मंदिर के नाम पर रखा गया था। इस जिले के क्षेत्रों को आमतौर पर राठ क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। इसे सांबी कांठा अर्थात जो साबी नदी के तट के इर्द-र्गिद स्थित है।
कोटपूतली महाभारत काल में मत्स्य राज्य की राजधानी विराटनगर (बैराठ) के अधीन था।
कोटपूतली में सीमेंट उत्पादन के मामले में एशिया की सबसे बड़ी कम्पनी अल्ट्राटेक सीमेंट (आदित्य बिरला ग्रुप) स्थित है।
कोटपूतली के बरखाना गाँव (रायकरणपुरा पंचायत) में 600 वर्ष पुराना ठाकुर जी का मन्दिर है।
बानसूर तहसील गुर्जवाटी सांस्कृतिक क्षेत्र का हिस्सा है।
बानसूर का किला ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें कई बुर्ज और एक बावड़ी है। बानसूर किला अलवर क्षेत्र का सीमा प्रहरी कहलाता था।
हाजीपुर किला बानसूर में स्थित है।
नारायणपुर गाँव में काली बावड़ी स्थित है और इसकी बनावट आभानेरी की चाँदबावड़ी की तरह है। किंवंदति के अनुसार इस बावड़ी का निर्माण पांडवों के द्वारा एक रात्रि में ही किया गया था। इस बावड़ी के तीन ओर नीचें उतरने की सीढ़ीयाँ बनाई गई है।
नारायणपुर गाँव में ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थल धामेड़ा धाम है।
राजा शालीवाहन द्वारा बहरोड़ में भैरून मन्दिर का निर्माण करवाया गया था। शालीवाहन राजा मौरध्वज का उत्तराधिकारी था, जिसन 1300 वर्ष पूर्व साहिली नदी के आसपास शासन किया था।
बहरोड़ में साहिली नदी के तट के आसपास हड़प्पाकाल के मिट्टी के बर्तन और पुरातात्विक कलाकृतियाँ मिली है।
बहरोड़ के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी प्राणसुख यादव थे। इन्होनें भारत के प्रथत स्वतंत्रता संग्राम 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ राव तुलाराम के साथ मिलकर नारनौल में लड़ाई में भाग लिया था।
राज्य में सर्वाधिक अन्तर्राष्ट्रीय औद्योगिक इकाईयाँ नीमराना में है।
राज्य का तीसरा निर्यात ओद्योगिक संवर्द्धन पार्क नीमराना में है। प्रथम निर्यात औद्योगिक संवर्द्धन पार्क सीतापुरा (जयपुर)। और दूसरा निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क बोरानाड़ा (जोधपुर) स्थित है।
जापान की जेट्रो कम्पनी द्वारा विकसित जापानी पार्क नीमराना में स्थित है। यहाँ कई जापानी कम्पनीयाँ अपने कारखाने लगा चुकी है। इसी कारण इस क्षेत्र को जापानी जोन भी कहा जाता है।
जापानी जोन के अलावा नीमराणा में दक्षिणी कोरियाई जोन की स्थापना की गई।
नीमराणा में कम्पनी निप्पोन समूह की निप्पोन पाइप इंडिया प्रा. लि. स्थित है।
नीमराणा में डाइकिन एसी, हैवेल्स, हीरो, पारले जी बिस्किट, रिचलाईट बिस्किट सहित 1500 छोटे-बड़े उद्योग हैं।
नीमराणा में सिरेमिक हब विकसित किया जा रहा है।
अरावली की पहाडिय़ों पर स्थित 552 साल पुराना नीमराना किला भारत की सबसे एतिहासिक इमारतों में से एक है।
नीमराणा बावड़ी जिसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है। यह 9 मंजिला बावड़ी है।
एकीकरण के समय नीमराणा का ठिकानेदार राजेन्द्र सिंह था । नीमराणा का एकीकरण मत्स्य संघ (प्रथम चरण) में किया गया।
बाबा खेतानाथ मंदिर नीमराना में स्थित है।
स्लेटी पत्थर के लिए नीमराणा एवं झखराणा क्षेत्र प्रसिद्ध है।
पावटा अपने हस्तशिल्प के लिए विख्यात है। पावटा का कपड़ा बाजार राजस्थानी पोशाक के लिए प्रसिद्ध है।
बुचारा तेंदुआ अभ्यारण कोठपूतली बहरोड़ की पावटा तहसिल में स्थित है।
साबी जिले की मुख्य और सबसे बड़ी नदी है। यह जिले के एक छोर से प्रवेश कर पूरे जिले को पार कर खैरथल जिले में मुण्डावर के पास प्रवेश करती है। मसानी बैराज साबी नदी पर बना बाँध है।
जिलाणी माता का मंदिर बहरोड़ में स्थित है। जिलाणी माता ने हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम बनने से बचाया था।
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (C.I.S.F.) का ट्रेनिंग सेंटर बहरोड़ में स्थित है।
बहरोड़ पशु मेला मुर्राह नस्ल की भैंसों के लिए प्रसिद्ध है।
नीमूचणा हत्याकांड 14 मई, 1925 को बानसूर में हुआ थानेदार छाजूसिंह के द्वारा निहत्थे किसानों पर गोलियाँ चलवाई गई। जिसकी तुलना महात्मा गाँधी ने यंग इंडिया समाचार पत्र में “जलियाँवाला हत्याकाण्ड” से की है।
कोटपूतली में साबी नदी तट पर जोधपुरा गाँव में 1972-75 ई. में उत्खनन में जोधपुरा सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए।
विराटनगर मत्स्य महाजनपद की राजधानी थी। यह महाभारत कालीन युद्ध का मुख्य षड्यंत्र स्थल था।
पांडवों ने अपना अज्ञातवास विराटनगर नगर में बिताया था।
बाणगंगा नदी का उद्गम बैराठ / विराटनगर की पहाड़ियों से होता है। बैराठ सभ्यता मौर्यकालीन सभ्यता है। यहाँ की बीजक डूँगरी से कैप्टन बर्ट ने अशोक का ‘भाब्रू शिलालेख’ खोजा था। इनके अतिरिक्त यहाँ से बौद्ध स्तूप, बौद्ध मंदिर (गोल मंदिर) और अशोक स्तंभ के साक्ष्य मिले हैं। ये सभी अवशेष मौर्ययुगीन हैं। ऐसा माना जाता है कि हूण आक्रान्ता मिहिरकुल ने बैराठ का विध्वंस कर दिया था। चीनी यात्री युवानच्वांग ने भी अपने यात्रा वृत्तान्त में बैराठ का उल्लेख किया है।
बैराठ सभ्यता की खोज रायबहादुर, दयाराम साहनी द्वारा की गई। पुनः उत्खनन का कार्य कैलाशनाथ दीक्षित व नीलरत्न बनर्जी ने किया। यहाँ से शंख लिपि के प्रमाण, 16 इण्डो ग्रीक यूनानी सिक्के, बुद्ध की मथुरा शैली में बनी प्रतिमा मिली है। ह्वेनसांग ने बैराठ को पारयात्र नाम दिया। अकबर ने यहाँ सिक्के ढालने की टकसाल खोली थी।
बहरोड़ कस्बे से 5-7 किमी दूर अरावली पहाड़ियों में स्थित तसींग किला आकर्षण का एक और स्थान है। लेकिन अब उपेक्षा के कारण खराब स्थिति में है।
बहरोड़ के दहमी-हमजापुर में मनसा देवी मंदिर में नवरात्रि के दौरान दूर-दूर से भक्तों की भीड़ लगी रहती है। यह मंदिर 637 ई. का मंदिर है।
सबसे सुंदर बकरी जखराना, कोटपुतली बहरोड़ में पाई-जाती है।
कोटपूतली तहसील का ग्राम भैंसलाना काले मार्बल (संगमरमर) के लिए पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध है।
यहां आप राजस्थान के मानचित्र से जिला चुन कर उस जिले से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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