तहसील -5 संभाग - उदयपुर
उदयपुर जिले का पुनर्गठन कर नया जिला सलूम्बर गठित किया गया है जिसका मुख्यालय सलूम्बर होगा। नवगठित सलूम्बर जिले में 5 तहसील (सराड़ा, सेमारी, लसाड़ियााटी, सलूम्बर, झल्लारा) हैं।
पूर्व में सलूम्बर भीलों के अधीन रहा। यहाँ का अन्तिम भील राजा सोनारा था। बाद में यह क्षेत्र राठौड़ों व तदन्तर सिसोदियाओं के अधिकार में आ गया। सलूम्बर चूड़ावत शाखा के अधीन रहा। यह प्रथम श्रेणी का ठिकाना था और यहाँ के ठिकानेदारों को रावत की पदवी प्राप्त थी। रावत भीमसिंह चुंडावत ने सलूम्बर को जयपुर के नक्शे के आधार पर बसाया था।
सलूम्बर के ठाकुर मेवाड़ी सेना के हरावल दस्ते का नेतृत्व करते थे।
1857 ई. की क्रान्ति के समय सलूम्बर के ठाकुर केसरीसिंह (द्वितीय) ने महाराणा के आदेश को मानने से मना कर दिया और क्रांतिकारियों को अपने ठिकाने में शरण दी।
हाड़ी रानी (सलह कँवर) का स्मारक सलूम्बर में है और बावड़ी टोंक जिले में है। सलूम्बर के सामंत रावत रतनसिंह के युद्ध पर जाने से पहले निशानी मांगने पर सहल कँवर ने निशानी स्वरूप अपना सिर काटकर ही अर्पित कर दिया था। राजस्थान की प्रथम महिला बटालियन हाड़ी रानी बटालियन है, जिसका मुख्यालय अजमेर में है।
सलूम्बर में स्थित जयसमंद झील का निर्माण 1691 ई. में महाराणा जयसिंह के द्वारा गोमती नदी का जल रोककर करवाया गया। इस झील को ढेबर झील के नाम से जाना जाता है। झील में सात टापू है। सबसे बड़े टापू का नाम ‘बाबा का भांगडा’ एवं सबसे छोटे टापू का नाम ‘प्यारी’ है। यह राजस्थान की सबसे बड़ी मीठे पानी की कृत्रिम झील है। इसके किनारे आइसलैण्ड रिसोर्ट, चित्रित हवामहल, रूठी रानी का महल स्थित है।
रूठी रानी का महल को सलूम्बर का हवामहल भी कहा जाता है।
जयसमंद अभ्यारण भी सलूम्बर में है इसे जलचरों की बस्ती कहते हैं।
सलूम्बर जिले में स्थित सराडा तहसील में स्थित चांवड में महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध के बाद अपना समय बिताया था। उन्होंने चावंड को अपनी राजधानी बनाया।
चावंड में ही 1597 ई. में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई। यहीं बाडोली में उनकी छतरी (आठ खंभों की छतरी) भी है। यह छतरी केजड़ बाँध के पास स्थित है।
सराड़ा के किले में ही स्वतंत्रता सेनानी भूरेलाल बया को कैद किया गया था। सराडा को ‘मेवाड़ का कालापानी’ कहा जाता है।
सराडा में कथौड़ी जनजाति भी निवास करती है। यह जनजाति खैर के पेड़ों से कत्था तैयार करती है।
अग्नी वाली देवी इडाणा माता का मंदिर सराड़ा में है।
गोसण बाबा मंदिर सराड़ा में है।
लसाड़िया तहसील में लसाड़िया का पठार जयसमंद झील के उत्तर-पूर्व में विस्तृत है। इसकी ऊँचाई 360 से 620 मीटर तक है। यह विच्छेदित एवं खंडित पठार है।
मेवाड, बांगड और आसपास के क्षेत्रो के भीलो मे सामाजिक सुधार के लिए लसाड़िया आन्दोलन का सूत्रपात संत माव जी द्वारा किया गया।
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