राजस्थान का अधिकांश भाग रेगिस्तानी है अतः यहां नदियों का विशेष महत्व है। पश्चिम भाग में सिचाई के साधनों का अभाव है परिणाम स्वरूप यहां नदियों का महत्व ओर भी बढ़ जाता है।
एक नदी विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है जिसे ‘जलग्रहण’ क्षेत्र कहा जाता है। एक नदी एवं उसकी सहायक नदियों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को ‘अपवाह द्रोणी’ कहते हैं। एक अपवाह द्रोणी को दूसरे से अलग करने वाली सीमा को जल विभाजक या ‘जल-संभर’ कहते हैं। बड़ी नदियों के जलग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी जबकि छोटी नदियों व नालों द्वारा अपवाहित क्षेत्र को 'जल-संभर' हो कहा जाता है। नदी द्रोणी का आकार बड़ा होता है, जबकि जल-संभर का आकार छोटा होता है।
अपवाह तन्त्र से तात्पर्य नदियाँ एवं उनकी सहायक नदियों से है जो एक तन्त्र अथवा प्रारूप का निर्माण करती हैं। राजस्थान में वर्ष भर बहने वाली नदी केवल चम्बल है। राजस्थान के अपवाह तन्त्र को अरावली पर्वत श्रेणियाँ निर्धारित करती है। अरावली पर्वत श्रेणियाँ राजस्थान में एक जल विभाजक है और राज्य मे बहने वाली नदियों को दो भागों में विभक्त करती है। इसके अतरिक्त राज्य में अन्तः प्रवाहित नदियाँ भी हैं। इसी आधार पर राजस्थान की नदियों को निम्नलिखित तीन समूहों में विभक्त किया जाता है:
(i) बंगाल की खाड़ी का अपवाह तंत्र, (ii) अरब सागर का अपवाह तंत्र व (iii) आंतरिक अपवाह तंत्र।
राजस्थान की सबसे अधिक लम्बी नदी चम्बल नदी का उद्गम मध्य-प्रदेश में महु जिले में स्थित जानापाव की पहाडि़यों से होता है। यह नदी दक्षिण से उत्तर की ओर बहती हुई राजस्थान के चितौड़गढ़ जिले में चौरासीगढ़ नामक स्थान पर प्रवेश करती है और कोटा व बूंदी जिलों में होकर बहती हुई सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, जिलों में राजस्थान व मध्य-प्रदेश के मध्य सीमा बनाती है। अन्त में उत्तर-प्रदेश के इटावा जिले में मुरादगंज नामक स्थान पर यमुना नदी में विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई - 966 कि.मी. है जबकि राजस्थान में यह 135 कि.मी बहती है। यह 250 कि.मी. लम्बी राजस्थान की मध्यप्रदेश के साथ अन्तर्राज्यीय सीमा बनाती है। यह भारत की एकमात्र नदी है जो दक्षिण दिशा से उत्तर की ओर बहती है। यह नदी मध्यप्रदेश के 4 जिलों महु, मंन्दसौर, उज्जैन और रतलाम से होकर बहती है।
चम्बल राजस्थान की एकमात्र नदी है जो अन्तर्राज्यीय सीमा का निर्माण करती है। राजस्थान और मध्य-प्रदेश के मध्य चम्बल नदी पर चम्बल घाटी परियोजना बनाई गयी है और इस परियोजना में चार बांध भी बनाए गये है, जिनमें से तीन बांध राजस्थान में स्थित है तथा एक मध्यप्रदेश में स्थित है। राजस्थान में स्थित तीन बांध राणाप्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध और कोटा बैराज है। जबकि मध्यप्रदेश में स्थित बांध गांधीसागर बांध है।
चम्बल नदी चितौड़गढ़ के रावतभाटा में प्रवेश करने के बाद वहाँ इस नदी पर राणाप्रताप सागर बाँध का निर्माण किया गया है। इसके बाद कोटा जिले में इस नदी पर जवाहर सागर बांध और कोटा बैराज सिंचाई बांध का निर्माण किया गया है।
चम्बल नदी पर बने बांध का क्रम दक्षिण से उतर की ओर – गांधीसागर बांध, राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध और कोटा बैराज है। चम्बल नदी पर स्थित चारों बांधो में से तीन बांधो पर जल विद्युत पॉवर प्लांट है, जबकि कोटा बैराज बांध से केवल सिंचाई की जाती है। चंबल नदी पर सबसे बड़ा बांध गांधीसागर बांध है, जो की राजस्थान में स्थित नहीं है अर्थात यह मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में स्थित है। चम्बल नदी पर स्थित राजस्थान का सबसे बड़ा बांध राणाप्रताप सागर बांध है, जो की राजस्थान के चितौड़गढ़ जिले के रावतभाटा में स्थित है। गांधीसागर बांध की ऊंचाई 62.17 मीटर (204.0 फीट) है तथा इसकी भण्डारण क्षमता 7.322 अरब घन मीटर है। गाँधीसागर बांध की आधारशिला पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 7 मार्च 1954 को रखी थी, जिसके बाद यह बांध वर्ष 1960 में बनकर तैयार हुआ। इस बांध में कुल 19 गेट है। इस बांध का निर्माणकर्ता प्रमुख ठेकेदार द्वारका दास अग्रवाल था, जिसने एशिया का सबसे सस्ता बांध बनाया। इस बांध के निचले हिस्से में 115-मेगावाट पनबिजली स्टेशन है, जिसमें 23-23 मेगावाट की पाँच इकाइयां है।
चितौड़गढ़ में भैसरोडगढ़ के पास चम्बल नदी में बामनी नदी आकर मिलती है तो यह चूलिया जल प्रपात बनाती है, जो कि राजस्थान का सबसे ऊंचा जल प्रपात (18 मीटर ऊंचा) है। कोटा जिले के नौनेरा गांव में चम्बल में काली सिंध नदी आकर मिल जाती है। सवाईमाधोपुर के पालिया गांव में इस नदी में पार्वती नदी आकर मिल जाती है। सवाईमाधोपुर में ही चम्बल नदी में बनास व सीप नदियां आकर मिलती है और त्रिवेणी संगम बनाती है।
सहायक नदियां : कालीसिंध, आहू, पार्वती, परवन, बनास, अलनिया, बामणी, कुराल, मेज, सीप, कुनु और छोटी कालीसिंध है। चम्बल की सबसे बड़ी सहायक नदी बनास नदी है।
त्रिवेणी संगम स्थल | नदियां | जिला | विशेष |
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साबंला (बेणेश्वर) | सोम-माही-जाखम | डूंगरपुर | राजस्थान का कुंभ/ आदिवासियों का महाकुंभ |
मांडलगढ़ (बींगोद) | बनास -बेड़च-मेनाल | भीलवाड़ा | त्रिवेणी तीर्थ |
मानपुर (रामेश्वर घाट) | चम्बल-बनास-सीप | सवाई माधोपुर | वर्षो से अखण्ड संकीर्तन / श्रीजी मंदिर |
राजमहल | बनास-खारी-डोई | टोंक |
चम्बल नदी के बहाव क्षेत्र में गहरी गढ़े युक्त भूमि जहां वन क्षेत्रों /वृक्षों की अधिकता है। 30-35 वर्ष पूर्व ये बिहार डाकूओं की शरणस्थली थे इन क्षेत्रों को डांग क्षेत्र कहा जाता है इन्हे ‘दस्यू’ प्रभावित क्षेत्र भी कहा जाता है।
राजस्थान में सर्वाधिक सतही जल चंबल नदी में है, इसके बाद क्रमश: बनास, माही और लूनी नदी में है।
चंबल नदी कोटा और सवाई माधोपुर जिलों की सीमा बनाती है। चम्बल नदी कोटा और बूंदी जिलों की भी सीमा बनाती है।
चम्बल नदी गहरी घाटी में बहुत तीव्रता से बहने के कारण इसे वाटर सफारी भी कहते है।
सर्वाधिक अवनालिक अपवरदन इसी नदी का होता है।
चम्बल नदी बूँदी जिले में केशोरायपाटन के नजदीक सर्वाधिक गहरी है।
यूनेस्को की विश्व धरोहर के लिए नामित एकमात्र नदी चम्बल है।
चम्बल नदी राजस्थान में सर्वाधिक कंदराओं (गुफा) वाली नदी है।
चंबल की सहायक नदी कुनु का नाम एक राष्ट्रीय उद्यान का भी नाम है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित है।
चम्बल नदी में स्तनपायी जीव ‘गांगेय’ सूस पाया जाता है।
चम्बल नदी के पास मुख्य रूप से कोटा में स्थित गरडिया महादेव का मंदिर है। इसके अलावा धौलपुर में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर है।
भारत सरकार ने राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया। इस अभ्यारण्य में गंगा डॉल्फ़िन और गंभीर रूप से लुप्तप्राय घड़ियाल पाए जाते हैं। इको सेंसिटिव ज़ोन घोषित होने के कारण रिसॉर्ट्स, होटल या अन्य आवासीय और औद्योगिक गतिविधियों के निर्माण पर रोक होती है। यह अभ्यारण्य प्राकृतिक रूप से रहने वाले घड़ियालों का आवास है। 75% घड़ियाल इस अभ्यारण्य में रहते हैं।
यह नदी मध्यप्रदेश के बांगली गांव (देवास) से निकलती है। देवास, शाजापुर, राजगढ़ मे होती हुई झालावाड के रायपुर में राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड, कोटा में बहती हुई कोटा के नाैनेरा में यह चम्बल में मिल जाती है। आहु, परवन, निवाज, उजाड, चौली सहायक नदियां है। इस नदी पर कोटा में हरिशचन्द्र बांध बना है।
यह मध्यप्रदेश के मेंहदी गांव से निकलती है। झालावाड के नन्दपूूर में राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड़, कोटा की सीमा पर बहती हुई झालावाड़ के गागरोन में काली सिंध में मिल जाती है।
झालावाड़ के गागरोन में कालीसिंध आहु नदियों का संगम होता है। इस संगम पर गागरोन का प्रसिद्ध जल दुर्ग स्थित है।
पीपलाज नदी झालावाड़ के पंचपहाड़ तहसील की पहाड़ियों से निकलकर आहू नदी में बायीं ओर से झालावाड़ जिले में ही मिलती है।
यह मध्यप्रदेश के सिहोर से निकलती है बांरा के करियाहट में राजस्थान में प्रवेश करती है। बांरा, कोटा में बहती हुई सवाई माधोपुर और कोटा की सीमा पर पालिया गांव के निकट चम्बल में मिल जाती है। पार्वती की सहायक नदियां अंधेरी, रेतीली, अहेली, ल्हासी, बैथली, बिलास और कूल है।
रामगढ़ की गोलाकार पहाड़ियां बाराँ में पार्वती व उसकी सहायक नदी बार्बती के मध्य स्थित है।
पार्वती परियोजना धौलपुर जिले में है।
यह अजनार/घोड़ा पछाड की संयुक्त धारा है। यह मध्यप्रदेश के विध्याचल से निकलती है। झालावाड में मनोहर थाना में राजस्थान में प्रवेश करती है। झालावाड़ व बांरा में बहती हुई बांरा में पलायता (नक्से के अनुसार अटा गांव) गांव में काली सिंध में मिल जाती है। इसकी सहायक नदियां निमाज (नेवज), छापी, कालीखाड़ (घोड़ापछाड़) और धार है।
मनोहर थाना किला परवन और उसकी सहायक नदी कालीखाड़/कालीखोह (घोड़ा पछाड़) नदियों के संगम पर स्थित है। शेरगढ़ वन्य जीव अभ्यारण परवन नदी के बाएं किनारे बाराँ जिले में स्थित है। शेरगढ़ वन्य जीव अभ्यारण के पास में ही परवन नदी के बाएं किनारे शेरगढ़ किला (कोषवर्धन किला) स्थित है।
कुनु नदी मध्य प्रदेश के गुना से निकलकर बाराँ जिले के मुसेरी गाँव (शाहबाद) में प्रवेश करती है। बाराँ जिले से पुन: यह मध्यप्रदेश में बहकर करौली की सीमा पर चंबल में मिल जाती है। कराई और रेम्पी इसकी सहायक नदियां है।
चाकण नदी बूंदी जिले के कई छोटे नदी नालों से मिलकर बनती है, जो सवाई माधोपुर के करणपुरा गांव में चंबल नदी में मिल जाती है।
मेज नदी भीलवाड़ा के मांडलगढ़ से निकलकर बूंदी जिले में बहकर लाखेरी (बूंदी) के निकट चंबल नदी में मिलती है। बाजन, कुराल व मांगली मेज नदी की सहायक नदियां है। घोड़ा पछाड़ नदी मांगली की सहायक नदी है। उल्लेखनीय है कि भीमलत जलप्रपात बूंदी जिले में मांगली नदी पर स्थित है। कुराल नदी बूंदी जिले में बहती है।
राजस्थान में पूर्णतः प्रवाह की दृष्टि से सर्वाधिक लम्बी नदी बनास नदी का उद्गम खमनोर की पहाड़ी कुंभलगढ़ (राजसमंद) से होता है। राजसमंद से चितौड़गढ, भीलवाडा, शाहपुरा, केकडी, टोंक जिलों से होकर बहती हुई अन्त में सवाई माधोपुर जिले में रामेश्वरम् नामक स्थान पर चम्बल नदी में विलीन हो जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 480 कि.मी. है जो की पूर्णतः राजस्थान में है। बनास पूर्णतया राजस्थान में बहने वाली सबसे लंबी नदी है।
इस नदी पर दो बांध बनाए गए हैः-
इससे जयपुर जिले को पेयजल की आपूर्ति की जाती है।
बीगोंद (भीलवाडा) - भीलवाड़ा जिले में बीगौंद नामक स्थान पर बनास नदी में बेडच व मेनाल नदियां आकर मिलती हैं। केवल बेड़च व मेनाल नदीयां बनास में दायीं तरफ से मिलती है।
सहायक नदियां: बेड़च, गम्भीरी, कोठारी, मेनाल, खारी, डाई, माशी, मान्सी, बांड़ी, सोहादरा (सोडरा), मोरेल, ढूंढ, ढील और कालीसिल
बनास नदी का जल ग्रहण क्षेत्र सर्वाधिक (46,570 वर्ग किमी.) है उसके बाद लूनी (34,250 वर्ग किमी.), चंबल (29,110 वर्ग किमी.), माही (16,030 वर्ग किमी.) नदियां आती है।
राजस्थान में उदयपुर जिले में गोगुंदा की पहाडियां से इस नदी का उद्गम होता है। आरम्भ में इस नदी को आयड़ नदी कहा जाता है। किन्तु उदयसागर झील के पश्चात् यह नदी बेड़च नदी कहलाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 190 कि.मी. है। यह नदी उदयपुर, चितौड़ जिलों में होकर बहती हुई अन्त में भीलवाड़ा जिले के बिगोंद नामक स्थान पर बनास नदी में मिल जाती है। चितौड़गढ़ जिले में गम्भीरी नदी इसमें मिलती है।
लगभग 4000 वर्ष पूर्व उदयपुर जिले में इस नदी के तट पर आहड़ सभ्यता का विकास हुआ।
मध्यप्रदेश के जावरा की पहाडीयों (रतलाम) से निकलती है। चित्तौड़गढ़ में निम्बाहेडा में राजस्थान में प्रवेश करती है। चित्तौडगढ़ दुर्ग के पास यह बेडच में मिल जाती है।
यह राजसमंद में दिवेर से निकलती है। राजसमंद भिलवाड़ा में बहती हुई भिलवाड़ा के नन्दराय में बनास में मिल जाती है। भिलवाड़ा के मांडलगढ़ कस्बे में इस पर मेजा बांध बना है।
यह राजसमंद के बिजराल गांव से निकलती है। राजसमंद, भिलवाड़ा, शाहपुरा, केकडी, टोंक में बहती हुई टोंक के देवली में बनास में मिल जाती है। शाहपुरा में मानसी नदी आकर मिलती है। भिलवाडा का आसिंद कस्बा इसे के किनारे है।
नोट : बनास की सहायक नदी खारी का उद्गम राजसमंद जिले के देवगढ़ के बिजराल की पहाड़ी से होता है। इसके अलावा एक खारी नदी लूनी की सहायक नदी है, जो सिरोही जिले से निकलती है तथा दूसरी खारी नदी डीडवाना कुचामन से निकलकर सांभर झील में गिरती है।
मान्सी नदी भीलवाड़ा जिले के करेरा गांव के पास से निकलकर केकड़ी और शाहपुरा जिले की सीमा पर खारी नदी में मिल जाती है।
डाई नदी अजमेर जिले की नसीराबाद तहसील की अरावली पहाड़ियों से निकलकर अजमेर, केकडी और टोंक जिलों में बहकर बिसलपुर के निकट बनास में मिल जाती है।
बनास की सहायक नदी माशी अजमेर के किशनगढ़ की पहाड़ियों से निकलकर अजमेर-दूदू से बहती हुई टोंक के गलोद गांव में बनास नदी में मिल जाती है। जयपुर ग्रामीण के समोद पहाड़ियों से बांडी नदी निकलकर टोंक में माशी नदी में मिलती है। सोडरा (सोहादरा) नदी भी माशी की सहायक नदी है। बीसलपुर बांध के बाद बनास नदी में सबसे पहले माशी नदी टोंक में मिलती है, उसके बाद ढील और मोरेल नदियां सवाई माधोपुर में मिलती है।
ढील (धील) नदी टोंक के बावली गांव से निकलकर सवाई माधोपुर जिले में बनास में मिल जाती है। इसकी सहायक नदी गुडिया है।
यह जयपुर ग्रामीण के चैनपुरा(बस्सी) गांव से निकलती है। जयपुर ग्रामीण, दौसा, गंगापुर सिटी और सवाईमाधोपुर में बहती हुई सवाई माधोपुर में हाड़ौती गांव के निकट बनास में मिल जाती है। सवाईमाधोपुर के पिलुखेडा गांव में इस पर मोरेल बांध बना है।
कालीसिल मोरेल की सहायक नदी है, जो करौली से निकलकर सवाई माधोपुर में मोरेल नदी में मिलती है। कालीसिल नदी के किनारे कैला देवी का प्रसिद्ध मंदिर है।
कालीसिल मोरेल नदी की सहायक नदी है, जबकि कालीसिंध चंबल नदी की सहायक नदी है।
चंद्रभागा नदी राजसमंद के आमेट से निकलकर भीलवाड़ा में बनास नदी से मिल जाती है।
यह जयपुर ग्रामीण के अजरोल/अचरोल से निकलती है। जयपुर,दौसा में बहती हुई दौसा लालसोट में यह मोरेल में मिल जाती है। इस नदी के कारण जयपुर के आस-पास का क्षेत्र ढुंढाड कहलाता है।
एक मान्यता के अनुसार अर्जुन ने एक बाण से इसकी धारा निकाली थी अतः इसे अर्जुन की गंगा भी कहते है।
लगभग 380 कि.मी. लम्बी इस नदी का उद्गम कोटपूतली बहरोड जिले में बैराठ की पहाडियों से होता है। यह जयपुर ग्रामीण, दौसा, भरतपुर में बहने के पश्चात् उतरप्रदेश मे आगरा के समीप फतेहबाद नामक स्थान पर यमुना नदी में विलीन हो जाती है।
उपनाम: इसे खण्डित, रूण्डित व तालानदी भी कहते है। इस नदी के तट पर बैराठ सभ्यता विकसित हुई।
राजस्थान में बैराठ नामक स्थान पर ही मौर्य युग के अवशेष प्राप्त हुए है।
उंटगन नदी (गंभीर नदी) करौली जिले के महू के लांगरा गांव की पहाड़ियों से निकलकर भरतपुर जिले में बहती हुई उत्तर प्रदेश व राजस्थान की सीमा से लगती हुई फतेहाबाद (उत्तर प्रदेश) जिले के रिहोली गांव के पास यमुना नदी में मिल जाती है।
अरवारी नदी का उद्गम अलवर जिले की सरिस्का की पहाड़ियों में स्थित थानागाजी के पास सकरा बांध से होता है। यह नदी बिल्कुल मृत हो चुकी थी, लेकिन ‘तरुण भारत संघ’ और जल पुरुष ‘राजेंद्र सिंह’ के सामुदायिक प्रयासों के कारण इसे वापस पुनर्जीवित किया गया है। इस नदी की दो धाराएं अजबगढ़-प्रतापगढ़ के पास पलसाना के पहाड़ नामक स्थान पर मिलकर प्रवाहित होती है, जिसे अरवरी नदी के नाम से जाना जाता है। यह आगे जाकर उंटगन नदी (गंभीर नदी) में मिलती है।
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