राठौड़ वंश
- प्रश्न 137 राव जोधा ने किस वर्ष मंडोर को विजित किया था -
Asstt. Agriculture Officer Exam 2015 Paper 1 -
- (अ) 1453
- (ब) 1438
- (स) 1440
- (द) 1458
उत्तर : 1453
व्याख्या :
शासन संभालते ही जोधा को मेवाड़ के आक्रमण का सामना करना पड़ा। राघव देव के भाई चूड़ा द्वारा उस पर आक्रमण किया गया। 1453 ई. में उसने मण्डौर पर धावा बोल दिया जिसमें उसकी विजय हुई। राव जोधा ने मेवाड़ से संधि (आवल-बावल की संधि) हेतु अपनी पुत्री श्रृंगार देवी का विवाह महाराणा कुंभा के पुत्र रायमल से कर दिया।
- प्रश्न 138 रूपाधाय का संबंध जोधपुर के किस महाराजा से है-
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- (अ) अजीत सिंह
- (ब) जसवंत सिंह
- (स) उदयसिंह
- (द) मानसिंह
उत्तर : जसवंत सिंह
व्याख्या :
रूपा धाय जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह की धाय थी। उनके नाम से एक बावड़ी मेड़ती दरवाजा के अंदर बनायी गयी हैं।
- प्रश्न 139 निम्न में से कौन जोधपुर राज्य का शासक नहीं था-
RPSC Clerk GR-II Exam 2016 Paper I -
- (अ) जसवंत सिंह
- (ब) अजित सिंह
- (स) अनूप सिंह
- (द) मोटा राजा उदय सिंह
उत्तर : अनूप सिंह
व्याख्या :
महाराजा अनूपसिंह (1669-98 ई.) बीकानेर के शासक थे।
- प्रश्न 140 ‘मारवाड़ का प्रताप’ नाम से प्रसिद्ध था -
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- (अ) राव बीका
- (ब) राव चन्द्रसेन
- (स) राव जोधा
- (द) राव मालदेव
उत्तर : राव चन्द्रसेन
व्याख्या :
राव चंद्रसेन ऐसा प्रथम राजपूत शासक था जिसने अपनी रणनीति में दुर्ग के स्थान पर जंगल और पहाड़ी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया था। खुले युद्ध के स्थान पर छापामार युद्ध प्रणाली का महत्त्व स्थापित करने में मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह के बाद चंद्रसेन राजपूताने का दूसरा शासक था। इस प्रणाली का अनुसरण महाराणा प्रताप ने भी किया था। राव चंद्रसेन को महाराणा प्रताप का पथ प्रदर्शक माना जाता है। इसलिए राव चन्द्रसेन को ‘मारवाड़ का प्रताप’ कहा जाता है।
- प्रश्न 141 निम्न में से किस रियासत के उम्मेदसिंह अंतिम शासक थे -
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- (अ) जैसलमेर
- (ब) जोधपुर
- (स) बीकानेर
- (द) जालौर
उत्तर : जोधपुर
व्याख्या :
महाराजा उम्मेदसिंह को ‘मारवाड़ का निर्माता या मारवाड़ का कर्णधार’ कहते हैं।
- प्रश्न 142 बीकानेर के किस शासक को सामाजिक कुप्रथाओं का अन्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है -
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- (अ) सूरजसिंह
- (ब) रतनसिंह
- (स) डूंगरसिंह
- (द) रायसिंह
उत्तर : रतनसिंह
व्याख्या :
रतनसिंह को अकबर द्वितीय ने माहीमरातिब की उपाधि दी। मथुरा, वृंदावन, प्रयाग, काशी आदि होते हुए महाराजा गया पहुँचे वहाँ महाराजा ने अपने सरदारों से 1837 में पुत्रियों को न मारने की प्रतिज्ञा करवायी। इसके बाद बीकानेर पहुँचकर 1844 में अंग्रेजों से भी इस प्रथा को रोकने का निवेदन किया व नियम बनाया कि सभी सरदार अपनी हैसियत के अनुसार विवाह करेंगे, जिसके पास भूमि नहीं है वह विवाह में 100 रुपये खर्च करेगा जिसमें से त्याग के 10 रुपये होंगे।
- प्रश्न 143 किसने बीकानेर के नरेश रायसिंह को ‘राजेन्द्र’ के नाम से संबोधित किया -
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- (अ) मुंशीदेवी प्रसाद
- (ब) जयसोम
- (स) दुरसा आढ़ा
- (द) मुहणोत नैणसी
उत्तर : जयसोम
व्याख्या :
कर्मचन्द्र वंशोत्कीर्तककात्यम राजस्थान के इतिहास से सम्बंधित एक ऐतिहासिक रचना है। इसकी रचना जयसोम ने की थी। ‘कर्मचन्द्रवंशोत्कीर्तनकं काव्यं’ में रायसिंह को 'राजेन्द्र' कहा गया है।
- प्रश्न 144 विजयसिंह की प्रेयसी गुलाबराय को किसने मारवाड़ की नूरजहां कहा -
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- (अ) कविराज श्यामलदास
- (ब) मुंशी देवी प्रसाद
- (स) डा. ओझा
- (द) मुहणौत नैणसी
उत्तर : कविराज श्यामलदास
व्याख्या :
विजयसिंह पर अपनी पासवान गुलाबराय का अत्यधिक प्रभाव था, राजकार्य उसके इशारे से ही चलता था। अतः वीर विनोद के रचनाकार श्यामलदास ने विजयसिंह को ‘जहाँगीर का नमूना’ कहा है।
- प्रश्न 145 निम्न में से किस महिला का संबंध खेजड़ी के वृक्षों की रक्षा से था -
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- (अ) अमृता देवी
- (ब) करमा देवी
- (स) गोरा देवी
- (द) उपर्युक्त सभी
उत्तर : उपर्युक्त सभी
व्याख्या :
1730 ई. में जोधपुर के खेजड़ली गाँव में अमृता देवी के नेतृत्व में बारी-बारी से 363 लोग पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए और महाराजा के कारिन्दों ने सभी को काट दिया। इस तरह पेड़ों की रक्षा करते हुए 363 लोग शहीद हो गए। गौरा देवी को 1986 ई. में वृक्ष मित्र पुरस्कार प्राप्त हुआ। गौरा देवी का जन्म 1925 में लता गांव (टिहरी) में हुआ था। वह चमोली में चिपको आंदोलन की संस्थापक महिला थीं।
- प्रश्न 146 किसके शासनकाल में खेजड़ली आन्दोलन चला -
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- (अ) विजयसिंह
- (ब) अभयसिंह
- (स) डूंगरसिंह
- (द) तख्तसिंह
उत्तर : अभयसिंह
व्याख्या :
अभयसिंह महाराजा अजीतसिंह का पुत्र था जो 1724 ई. में मारवाड़ का शासक बना। अभयसिंह ने बख्तसिंह को ‘राजाधिराज’ की उपाधि व नागौर का ठिकाना दिया। इसी के काल में 1730 ई. में जोधपुर के खेजड़ली गाँव में अमृता देवी के नेतृत्व में बारी-बारी से 363 लोग पेड़ों को पकड़ कर खड़े हो गए और महाराजा के कारिन्दों ने सभी को काट दिया। इस तरह पेड़ों की रक्षा करते हुए 363 लोग शहीद हो गए।
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