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राजस्थान की मध्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था

प्रश्न 17 मध्यकालीन मारवाड़ में शासक के बाद सर्वोच्च अधिकारी कौन था -
Protection Officer - 2022 (General Studies)
  • (अ) दीवान
  • (ब) प्रधान
  • (स) मुसाहिब
  • (द) अमात्य
उत्तर : प्रधान
व्याख्या :
राजा के बाद प्रधान प्रमुख होता था तथा राजा की अनुपस्थिति में राजकार्य देखता था।
प्रश्न 18 लाटा अथवा बटाई क्या था -
  • (अ) भू-राजस्व व्यवस्था, जिसमें भुगतान नकद होता था।
  • (ब) भू-राजस्व व्यवस्था, जिसमें भुगतान फसल के रूप में होता था।
  • (स) राज्य द्वारा ली जाने वाली एक प्रकार की बेगार।
  • (द) सामंत द्वारा अधिरोपित एक प्रकार का उपकर।
उत्तर : भू-राजस्व व्यवस्था, जिसमें भुगतान फसल के रूप में होता था।
व्याख्या :
लाटा या बटाई विधि में फसल कटने योग्य होने पर लगान वसूली के लिये नियुक्त अधिकारी की देखरेख में फसल की कटाई की जाती थी। धान साफ होने के बाद फसल में से राजस्व के लिये दिये जाने वाला भाग तोल कर अलग कर दिया जाता।
प्रश्न 19 राजस्थान के प्रत्येक राज्य में महकमा बकायत (Mahakma Bagoit) होता था, जो -
  • (अ) अच्छी फसल के समय शेष राजस्व वसूलता था।
  • (ब) सरकारी कर्मचारियों की बकाया संग्रह करता था।
  • (स) राजाओं के लिए ऋण संग्रह करता था।
  • (द) राजा के बकायों का भुगतान करता था।
उत्तर : अच्छी फसल के समय शेष राजस्व वसूलता था।
व्याख्या :
महकमा बकायत अच्छी फसल के समय शेष राजस्व वसूलता था।
प्रश्न 20 ईजारा जाना जाता है-
  • (अ) भूमि मूल्यांकन के लिए
  • (ब) मुद्रा परिवर्तन के लिए
  • (स) राजस्व की ठेका प्रणाली के लिए
  • (द) स्वर्ण की खरीद के लिए
उत्तर : राजस्व की ठेका प्रणाली के लिए
व्याख्या :
इसे ठेका (अनुबंध) या अंकबंदी के नाम से भी जाना जाता था। इस प्रणाली के तहत कुछ परगना या क्षेत्र का भू-राजस्व एकत्र करने का अधिकार सार्वजनिक नीलामी द्वारा उच्चतम बोली लगाने वाले को बेच दिया जाता था, जिसे राज्य को एकमुश्त राशि के भुगतान के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता था।
प्रश्न 21 निम्नलिखित में से असत्य कथन नहीं है -
  • (अ) एक राजा का दूसरे राजा के साथ किया जाने वाला पत्र व्यवहार रूक्का कहलाता था।
  • (ब) बादशाह की मौजूदगी में शहजादे द्वारा जारी किया गया शाही आदेश-मन्सूर कहलाता था।
  • (स) मुगल बादशाह द्वारा अपने अधीनस्थ को जागीर प्रदान करने की लिखित स्वीकृति वाक्य कहलाती थी।
  • (द) राजा द्वारा अपने अधीनस्थ को जारी किया जाने वाला आदेश फरमान कहलाता था।
उत्तर : बादशाह की मौजूदगी में शहजादे द्वारा जारी किया गया शाही आदेश-मन्सूर कहलाता था।
व्याख्या :
एक राजा का दूसरे राजा के साथ किया जाने वाला पत्र व्यवहार खरीता कहलाता था। मुगल बादशाह द्वारा अपने अधीनस्थ को जागीर प्रदान करने की लिखित स्वीकृति सनद कहलाती थी। राजा द्वारा अपने अधीनस्थ को जारी किया जाने वाला आदेश परवाना कहलाता था।
प्रश्न 22 मध्यकालीन शासन व्यवस्था में मारवाड़ में बापीदार व गैर-बापीदार किसके प्रकार थे -
  • (अ) सामन्तों के
  • (ब) जागीरदारों के
  • (स) घुड़सवारों के
  • (द) कास्तकारों के
उत्तर : कास्तकारों के
व्याख्या :
कृषक मुख्यतः दो प्रकार के होते थे- बापीदार और गैरबापीदार, बापीदार किसान को खुदकाश्तकार भी कहते थे, यह वह किसान होते थे जो खेती की जाने वाली भूमि का स्थाई स्वामी होता था।
प्रश्न 23 उच्च वर्ग के लोगों या विद्वानों को राजस्व मुक्त भूमि अनुदान के रूप में दी जाती थी, यह भूमि क्या कहलाती थी -
  • (अ) माफी
  • (ब) जूनी जागीर
  • (स) मदद-ए-माश
  • (द) जीविका
उत्तर : मदद-ए-माश
व्याख्या :
मुगल साम्राज्य में ‘मदद-ए-माश’ को ‘सयूरगल’ भूमि भी कहा जाता था।
प्रश्न 24 मुगल दरबार में राजा द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि, जो वहाँ की गतिविधियों से निरंतर राजा को अवगत करवाता रहता था वह क्या कहलाता था -
  • (अ) खुफिया नवीस
  • (ब) हाकिम खैरात
  • (स) पोतदार
  • (द) वकील
उत्तर : वकील
व्याख्या :
वकील रिपोर्ट : मनसबदार, जागीरदार एवं अन्य सरदार मुगल दरबार में अपने प्रतिनिधि नियुक्त करते थे, जिनको ‘वकील’ कहा जाता था। वे अपने रियासती स्वामी से संबंधित खबरों का संकलन कर दरबार की गतिविधियाँ अपनी रियासत को भेजा करते थे। उनके द्वारा भेजी गई इन सूचनाओं को ‘वकील रिपोर्ट’ कहा जाता था।
प्रश्न 25 निम्नलिखित में से असत्य विकल्प का चयन करें।
  • (अ) अमात्य - मुख्यमंत्री
  • (ब) बंदीपति - मुख्य भाट
  • (स) भीषगाधिराज - प्रधानमंत्री
  • (द) संधिविग्रहिक - संधि और युद्ध का मंत्री
उत्तर : भीषगाधिराज - प्रधानमंत्री
व्याख्या :
भीषगाधिराज-मुख्य वैद्य ।
प्रश्न 26 अधिकारी, जिसे मुगल काल में विद्वानों को गुजारा भत्ता (मदद-ए-माश) प्रदान करने की जिम्मेदारी दी गयी थी, को किस नाम से जाना जाता था -
  • (अ) वकील
  • (ब) वज़ीर
  • (स) सद्र
  • (द) मीर बक्शी
उत्तर : सद्र
व्याख्या :
अधिकारी, जिसे मुगल काल में विद्वानों को गुजारा भत्ता (मदद-ए-माश) प्रदान करने की जिम्मेदारी दी गयी थी, को 'सद्र' नाम से जाना जाता था।

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