राजस्थान का इतिहास जानने के स्त्रोत
- प्रश्न 241 वीसलदेव रासो के लेखक कौन हैं -
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- (अ) गोपीनाथ
- (ब) सागरदान
- (स) किसनो
- (द) नरपति नाल्ह
उत्तर : नरपति नाल्ह
व्याख्या :
नरपति नाल्ह ने “गौडवाड़ी” में “बीसलदेव रासो” की रचना की थी। बीसलदेव रासौ में “बीसलदेव तथा राजमती” के प्रेम प्रसंगों का वर्णन हैं।
- प्रश्न 242 पृथ्वीराज विजय किसकी रचना है -
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- (अ) नयनचन्द्र सूरि
- (ब) जयानक
- (स) चन्द्रशेखर
- (द) मेरूतुंग
उत्तर : जयानक
व्याख्या :
जयानक, विद्यापति गौड़, वागीश्वर, जनार्दन तथा विश्वरूप पृथ्वीराज चौहान तृतीय के दरबारी लेखक और कवि थे, जिनकी कृतियाँ उसके समय को अमर बनाये हुए हैं। जयानक ने पृथ्वीराज विजय की रचना की थी।
- प्रश्न 243 ‘बुद्धिविलास’ पुस्तक के लेखक कौन हैं -
Rajasthan Police Constable Exam 2024 ( SHIFT - L1) -
- (अ) किसना अरहा
- (ब) बखत राम शाह
- (स) बांकी दास
- (द) नरोत्तम
उत्तर : बखत राम शाह
व्याख्या :
बुद्धिविलास पुस्तक के लेखक बख्ताराम शाह हैं। यह किताब जयपुर के कछवाहों के इतिहास के बारे में जानकारी देती है और इसमें जयपुर शहर की स्थापना से जुड़ी जानकारी भी मिलती है।
- प्रश्न 244 बेड़वास गाँव की प्रशस्ति के समय मेवाड़ का शासक कौन था -
Rajasthan Police Constable Exam 2024 ( SHIFT - L1) -
- (अ) महाराणा राज सिंह -I
- (ब) महाराणा राज सिंह-II
- (स) महाराणा अमर सिंह -I
- (द) महाराणा जैत्र सिंह
उत्तर : महाराणा राज सिंह -I
व्याख्या :
बेड़वास गाँव की प्रशस्ति (1668 ई.) : बेड़वास गाँव की बावड़ी में लगी यह प्रशस्ति महाराणा राजसिंह के समय की है जो मेवाड़ी भाषा में उत्कीर्ण है।
- प्रश्न 245 लेफ्टिनेंट कर्नल जेम्स टॉड ने अपना यात्रा वृतांत “पश्चिमी भारत में यात्रा” किसे समर्पित किया -
Rajasthan Police Constable Exam 2024 ( SHIFT - L2) -
- (अ) लॉर्ड विलियम बेंटिक
- (ब) लॉर्ड मिंटो
- (स) विलियम हंटर ब्लेयर
- (द) यति ज्ञानचंद्र
उत्तर : यति ज्ञानचंद्र
व्याख्या :
कर्नल जेम्स टॉड ने इस राज्य को “रायथान” कहा क्योंकि स्थानीय साहित्य एवं बोलचाल में राजाओं के निवास के प्रान्त को ‘रायथान’ कहते थे। 19 वी. सदी में कर्नल जम्स टाॅड ने अपनी पुस्तक “एनाॅल्स एंड एटीक्विटिज आॅफ राजस्थान” में राजस्थान शब्द का प्रयोग किया। इस पुस्तक का दूसरा नाम “द सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया” है। जेम्स टॉड ने अपनी पुस्तक “पश्चिमी भारत में यात्रा” को यति ज्ञानचंद्र को समर्पित किया।
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