राजस्थान की मध्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था
- प्रश्न 27 राजपूत सेना में पैदल सैनिक अधिक होते थे, इनके दल को क्या कहा जाता था -
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- (अ) अहदी
- (ब) भाकसी
- (स) प्यादे
- (द) शरीअत
उत्तर : प्यादे
व्याख्या :
पैदल सैनिक दल को प्यादे कहा जाता था।
- प्रश्न 28 दीवान के पद पर सामान्यतः गैर राजपूत जाति के व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था। दीवान को निम्न में से किस पदाधिकारी को नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त नहीं था -
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- (अ) आमिल
- (ब) फौजदार
- (स) कोतवाल
- (द) पोतदार
उत्तर : पोतदार
व्याख्या :
दीवान को आमिल, कोतवाल, अमीन, दरोगा मुशरिफ, वाकयानवीस व फौजदार आदि पदाधिकारी को नियुक्त करने का अधिकार था।
- प्रश्न 29 न्याय व्यवस्था के बारे में विचार करें -
(i) न्याय और दण्ड का आधार प्राचीन धर्मशास्त्र थे।
(ii) प्राचीन साहित्यिक स्त्रोतों ‘वृहत्कथा कोष व समराइच्छकहा’ से भी न्याय व्यवस्था का वर्णन मिलता है।
(iii) शासन की सबसे छोटी इकाई गाँव था, जहाँ न्याय का अधिकारी ग्राम चौधरी या पटेल हुआ करता था।
(iv) परगनों में न्याय का कार्य, हाकिम या आमिल या हवलगिर करता था।
सही कूट का चयन कर उत्तर दीजिए- -
- (अ) i, ii व iv
- (ब) i, ii, iii व iv
- (स) i, ii व iii
- (द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर : i, ii, iii व iv
व्याख्या :
न्याय का आधार परम्परागत सामाजिक एवं धार्मिक व्यवस्था थी। मुकदमों का कोई लिखित रिकार्ड नहीं रखा जाता था। गवाही सम्बन्धित कोई पृथक अधिनियम नहीं था।
- प्रश्न 30 निम्नलिखित में से असत्य विकल्प का चयन करें।
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- (अ) प्रत्येक किसान के परिवार के प्रत्येक सदस्य से 1 रु. की दर से वसूला जाने वाला कर अंगा कर या अंग लाग कहलाता था।
- (ब) राज्याभिषेक, जन्मदिन तथा त्योहारों के अवसर पर लगने वाले दरबारों के समय सामन्तों, जागीरदारों, मुत्सद्दी व अधिकारियों द्वारा राजा को दी जाने वाली भेंट ‘नजराना’ कहलाती थी।
- (स) पशुओं की बिक्री पर लिया जाने वाला कर लाटा कहलाता था।
- (द) खेत में खड़ी फसल का अनुमान लगाकर भूस्वामी अपना हिस्सा तय कर देते थे, जिसे कूंता कहते थे।
उत्तर : पशुओं की बिक्री पर लिया जाने वाला कर लाटा कहलाता था।
व्याख्या :
पशुओं की बिक्री पर लिया जाने वाला कर सिंगोटी कहलाता था।
- प्रश्न 31 भूमि के उर्वरा व पैदावार के आधार पर जब बीघे पर लगे कर से राजस्व वसूल होता था, तब मारवाड़ व बीकानेर में इसे क्या कहा जाता था -
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- (अ) बीघोड़ी
- (ब) लंक बंटाई
- (स) खेतबंटाई
- (द) गल्ला बक्शी
उत्तर : बीघोड़ी
व्याख्या :
मारवाड़ व बीकानेर में इसे बीघोड़ी कहा जाता था।
- प्रश्न 32 सेना का दूसरा प्रमुख अंग घुड़सवार था, किस राज्य में घुड़सवार सेना माधव रिसाला और राज्य रिसाला में विभाजित थी -
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- (अ) कोटा
- (ब) जोधपुर
- (स) बीकानेर
- (द) जयपुर
उत्तर : कोटा
व्याख्या :
कोटा में घुड़सवार सेना माधव रिसाला और राज्य रिसाला में विभाजित थी।
- प्रश्न 33 निम्नलिखित में से ग्राम प्रशासन के बारे में कौनसा कथन सत्य नहीं है -
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- (अ) ग्राम पंचायत ग्रामों ने न्याय, झगड़े निपटाना, धार्मिक व सामाजिक कार्य करवाती थी।
- (ब) जाति सम्बन्धी समस्याओं का समाधान जाति पंचायत द्वारा किया जाता था।
- (स) गांव में प्रशासनिक स्तर पर स्थायी रूप में स्थानीय अधिकारी ‘पटवारी’ होता था।
- (द) पंचायतों के निर्णय की अपील परगना पदाधिकारी, दीवान व शासक के पास की जा सकती थी।
उत्तर : गांव में प्रशासनिक स्तर पर स्थायी रूप में स्थानीय अधिकारी ‘पटवारी’ होता था।
व्याख्या :
गांव में प्रशासनिक स्तर पर स्थायी रूप में स्थानीय अधिकारी ‘चौधरी या पटेल’ होता था।
- प्रश्न 34 बख्शी के बारे में निम्न कथनों पर विचार करें।
(i) दीवान के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पदाधिकारी बख्शी होता था, जो प्रधानतः सेना विभाग का अध्यक्ष होता था।
(ii) जयपुर में बख्शी को बख्शी देश, बख्शी परगना और बख्शी जागीर सहायता करते थे।
(iii) जोधपुर राज्य में इसे ‘मौज बख्शी’ भी कहते थे।
(iv) मारवाड़ में महाराजा बख्तसिंह के काल में सर्वप्रथम ‘प्याद बख्शी’ नामक एक नवीन पद का सर्जन किया गया।
सही विकल्प का चयन करें। -
- (अ) i, ii व iv
- (ब) i,iii व iv
- (स) iii व iv
- (द) i,ii, iii व iv
उत्तर : i, ii व iv
व्याख्या :
जोधपुर राज्य में इसे ‘फौज बख्शी’ कहा जाता था।
- प्रश्न 35 जोधपुर राज्य में विधवा के पुनर्विवाह पर प्रति विवाह 1 रु. की दर से कर लिया जाता था, जिसे ‘कागली या नाता’ कहा जाता था इसी प्रकार का कर जयपुर राज्य में क्या कहलाता था -
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- (अ) छेली राशि
- (ब) नाता बराड़
- (स) नाता कागली
- (द) नाता
उत्तर : छेली राशि
व्याख्या :
कागली या नाता कर को मेवाड़ में ‘नाता बराड़’, कोटा राज्य में ‘नाता कागली’ व बीकानेर राज्य में ‘नाता’ कहा जाता था।
- प्रश्न 36 निम्नलिखित में से असंगत कथन की पहचान करें।
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- (अ) पटेल, कानूनगो, तहसीलदार, पटवारी आदि जो किसान से अवैध रकम वसुलते थे, उसे दस्तुर कहते थे
- (ब) राम-राम लाग या मुजरा लाग जिसे प्रति व्यक्ति 1 रुपया लिया जाता था।
- (स) किसान के घर कन्या की शादी होने पर जागीरदार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता ‘बदोले री लाग’ कहलाता है।
- (द) श्रमजीवी जातियों जैसे मोची, धोबी, छीपा व कुम्हार आदि से वसूला जाने वाला कर खरड़ा लाग कहलाता था।
उत्तर : किसान के घर कन्या की शादी होने पर जागीरदार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता ‘बदोले री लाग’ कहलाता है।
व्याख्या :
जागीरदार के घर पर विवाह होने पर जागीर क्षेत्र से वसूल की जाने वाली लाग बंदोले री लाग/कर कहलाती थी।
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