राजस्थान में परंपरागत जल प्रबंधन
- प्रश्न 1 निम्नांकित में से कौन-सा जल संरक्षण प्रणाली से संबंधित नहीं है -
Junior Instructor (ED) Exam 2024 -
- (अ) एनीकट
- (ब) रिसाव टैंक
- (स) भूतल बंध
- (द) ऊँचे टैंक
उत्तर : ऊँचे टैंक
व्याख्या :
ऊँचे टैंक जल संरक्षण प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं, जबकि एनीकट, रिसाव टैंक और भूतल बंध जल संरक्षण से संबंधित हैं।
- प्रश्न 2 खडीन मिलते हैं-
Junior Instructor(CLIT) Exam 2024 -
- (अ) पूर्वी राजस्थान में
- (ब) दिल्ली प्रदेश में
- (स) हरियाणा में
- (द) पश्चिमी राजस्थान में
उत्तर : पश्चिमी राजस्थान में
व्याख्या :
खड़ीन का प्रचलन 15वी शताब्दी में पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। यह ढाल युक्त भूमि पर दो तरफ मिट्टी की दीवार(पाल) और तीसरी तरफ पक्का अवरोध बनाकर निर्मित की जाती है। पाल 2 से 4 मीटर लंबी होती है। खड़ीन का विस्तार 5 से 7 किलोमीटर तक होता है।
- प्रश्न 3 राजस्थान के थार रेगिस्तानी क्षेत्र में सामान्यतया _______के लिए ‘टान्का’ एक परंपरागत तकनीक है।
CET 2024 (Graduate) 28 September 2024 Shift-1 -
- (अ) पशु पालन
- (ब) कृषि औद्योगिक कार्य प्रणाली
- (स) कृषि
- (द) वर्षा जल संग्रहण
उत्तर : वर्षा जल संग्रहण
व्याख्या :
राजस्थान के मरुस्थलीय ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षाजल को संग्रहित करने के लिए कुंड निर्मित किये जाते है। जिन्हे टांका भी कहते हैं। इसमें संग्रहीत जल का उपयोग मुख्य रूप से पेयजल के लिये किया जाता हैं। यह एक प्रकार का छोटा भूमिगत सरोवर होता है। जिसको ऊपर से ढँक दिया जाता है।
- प्रश्न 4 _____ राजस्थान की ‘चौका प्रणाली’ का मुख्य उद्देश्य है।
CET 2024 (Graduate) 28 September 2024 Shift-1 -
- (अ) पानी की कम उपलब्धता वाले क्षेत्रों में पानी के संसाधनों का प्रबंधन करना
- (ब) राजस्थान में भोजन प्रणाली का प्रबंधन करना
- (स) मधुमक्खी पालकों को सहयोग करना
- (द) पशु पालन को बढ़ाना
उत्तर : पानी की कम उपलब्धता वाले क्षेत्रों में पानी के संसाधनों का प्रबंधन करना
व्याख्या :
राजस्थान की चौका प्रणाली का उद्देश्य पानी की कम उपलब्धता वाले क्षेत्रों में जल संसाधनों का प्रबंधन करना है।
- प्रश्न 5 वर्षा जल संरक्षण के लिए रानीसर टांका कहाँ स्थित है -
Rajasthan Police Constable Exam 2024 ( SHIFT - L1) -
- (अ) जैसलमेर
- (ब) जोधपुर
- (स) बाडमेर
- (द) बीकानेर
उत्तर : जोधपुर
व्याख्या :
रानीसर टांका जोधपुर में स्थित एक ऐतिहासिक जल संरचना है। इसका निर्माण वर्षा जल को संग्रहित करने के लिए किया गया था। यह जोधपुर के पुराने जल संरक्षण उपायों में से एक है। जोधपुर में रानीसर और पदमसर, रणथंभौर के वन तालाब, सुखसागर टैंक और पद्मिनी टैंक कुछ प्रसिद्ध हैं।
- प्रश्न 6 निम्न में से कौन सी परम्परागत जल संरक्षण की विधि नहीं है -
Lect. College Edu. EXAM 2014(GK) -
- (अ) नाड़ी
- (ब) खड़ीन
- (स) तालाब
- (द) टोबा
उत्तर : तालाब
व्याख्या :
राजस्थान में तालाब जल संरक्षण की पारंपरिक विधि नहीं है। जल संसाधन संरक्षण प्राचीन काल से किया जा रहा है इन परम्परागत विधियों में नाड़ी, बावड़ी, जोहड़, झालरा, टांका, टोबा, एनिकट आदि प्रमुख हैं।
- प्रश्न 7 कथन (अ) वर्षा जल संग्रहण जल संरक्षण की एक प्रभावशील विधि है।
कारण (ब) पश्चिमी राजस्थान में परम्परागत जल संरक्षण की विधियां अभी भी प्रभावशील हैं। -
- (अ) अ और ब दोनों सही हैं और ब, अ का सही स्पष्टीकरण है।
- (ब) अ और ब दोनों सहीं हैं। किन्तु ब, अ का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
- (स) अ सही है ब गलत है।
- (द) अ गलत है ब सही है।
उत्तर : अ और ब दोनों सहीं हैं। किन्तु ब, अ का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
व्याख्या :
वर्षा जल संग्रहण जल संरक्षण की एक प्रभावशाली विधि है।
पश्चिमी राजस्थान में परम्परागत जल संरक्षण की विधियां अभी भी प्रभावशील हैं।
ये दोनों ही कथन सत्य हैं लेकिन इनका आपस में कोई संबंध नहीं है।
- प्रश्न 8 शेखावाटी भू-भाग में कूएं स्थानीय भाषा में किस नाम से जाने जाते हैं -
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- (अ) बावड़ी
- (ब) जोहड़
- (स) बेरा
- (द) खूं
उत्तर : जोहड़
व्याख्या :
नाड़ी एक प्रकार का पोखर होता है। जल प्रबंधन की यह विधि पश्चिम राजस्थान प्रचलित हैं। अलवर एवं भरतपुर जिलों में इसे ‘जोहड़’ कहते है।
- प्रश्न 9 निम्नलिखित में से कौन सी राजस्थान में जल संरक्षण की परम्परागत विधि नहीं है -
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- (अ) नाली
- (ब) नाड़ी
- (स) टोबा
- (द) जोहड़
उत्तर : नाली
व्याख्या :
राजस्थान में नाली जल संरक्षण की पारंपरिक विधि नहीं है।
- प्रश्न 10 ‘टांका’ और ‘खड़ीन’ प्रकार हैं -
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- (अ) आदिवासी युद्धकौशल
- (ब) आदिवासी बोलियां
- (स) परम्परागत कृषि पद्धतियां
- (द) परम्परागत जल संरक्षण संरचनाएं
उत्तर : परम्परागत जल संरक्षण संरचनाएं
व्याख्या :
राजस्थान के मरुस्थलीय ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षाजल को संग्रहित करने के लिए कुंड निर्मित किये जाते है। जिन्हे टांका भी कहते हैं।
खड़ीन का प्रचलन 15वी शताब्दी में जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। यह ढाल युक्त भूमि पर दो तरफ मिट्टी की दीवार(पाल) और तीसरी तरफ पक्का अवरोध बनाकर निर्मित की जाती है।
इस प्रकार ‘टांका’ और ‘खड़ीन’ परम्परागत जल संरक्षण संरचनाएं हैं।
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