राजस्थान में परंपरागत जल प्रबंधन
प्रश्न 1 शेखावाटी भू-भाग में कूएं स्थानीय भाषा में किस नाम से जाने जाते हैं -
(अ) बावड़ी
(ब) जोहड़
(स) बेरा
(द) खूं
व्याख्या :
नाड़ी एक प्रकार का पोखर होता है। जल प्रबंधन की यह विधि पश्चिम राजस्थान प्रचलित हैं। अलवर एवं भरतपुर जिलों में इसे ‘जोहड़’ कहते है।
प्रश्न 2 निम्नलिखित में से कौन सी राजस्थान में जल संरक्षण की परम्परागत विधि नहीं है -
(अ) नाली
(ब) नाड़ी
(स) टोबा
(द) जोहड़
व्याख्या :
राजस्थान में नाली जल संरक्षण की पारंपरिक विधि नहीं है।
प्रश्न 3 ‘टांका’ और ‘खड़ीन’ प्रकार हैं -
(अ) आदिवासी युद्धकौशल
(ब) आदिवासी बोलियां
(स) परम्परागत कृषि पद्धतियां
(द) परम्परागत जल संरक्षण संरचनाएं
व्याख्या :
राजस्थान के मरुस्थलीय ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षाजल को संग्रहित करने के लिए कुंड निर्मित किये जाते है। जिन्हे टांका भी कहते हैं।
खड़ीन का प्रचलन 15वी शताब्दी में जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों ने किया था। यह ढाल युक्त भूमि पर दो तरफ मिट्टी की दीवार(पाल) और तीसरी तरफ पक्का अवरोध बनाकर निर्मित की जाती है।
इस प्रकार ‘टांका’ और ‘खड़ीन’ परम्परागत जल संरक्षण संरचनाएं हैं।
प्रश्न 4 निम्नलिखित में से कौन सी राजस्थान में परम्परागत जल संरक्षण की विधि नहीं है -
(अ) खड़ीन
(ब) टांका
(स) टोबा
(द) नाली
प्रश्न 5 राजस्थान में, टांका और खड़ीन प्रकार है -
(अ) परम्परागत युद्धकौशल के
(ब) परम्परागत लोकनृत्य के
(स) परम्परागत कृषि पद्धति के
(द) परम्परागत जल संरक्षण तकनीक के
प्रश्न 6 निम्नलिखित में से राजस्थान में कौन सी जल संरक्षण की परंपरागत विधि नहीं है -
(अ) नाड़ी
(ब) टोबा
(स) जोहड़
(द) नाली
प्रश्न 7 लेवा तालाब नामक वर्षाजल संग्रहण संरचना किस जिले में स्थित है -
(अ) कोटा
(ब) बारां
(स) बूंदी
(द) भीलवाड़ा
प्रश्न 8 राजस्थान के थार मरूस्थल की परम्परागत जल संग्रहण तकनीक है -
(अ) टांका
(ब) खडिन
(स) बावड़ी
(द) तालाब
प्रश्न 9 राजस्थान के शुष्क व अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में “पालर-पानी” शब्द किसके लिए प्रयक्त होता है -
(अ) नदी जल
(ब) भूमिगत जल
(स) नहरी जल
(द) वर्षा जल
प्रश्न 10 जैसलमेर जिले में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा शुरू की गई परम्परागत जल संरक्षण की विधि कहलाती है –
(अ) कुंडी
(ब) टांका
(स) खड़ीन
(द) जोहड़
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