तहसील -8 संभाग - अजमेर
नागौर जिले का पुनर्गठन कर नया जिला डीडवाना-कुचामन गठित किया गया है। मिनी सचिवालय भवन के तैयार होने तक मुख्यालय अस्थाई रूप से डीडवाना रहेगा। नवगठित डीडवाना-कुचामन जिले में 8 तहसील (डीडवाना, मौलासर, छोटी खाटू, लाडनूं, परबतसर, मकराना, नावां, कुचामनसिटी) हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र के प्रधानमंत्री शेषराम माहेश्वरी के पुत्र डीडूशाह ने डीडूवाणक नाम से नगर बसाया जो कालान्तर में डीडवाना कहलाया।
डीडवाना को मारवाड़ का सिंहद्वार, शेखावाटी का तोरणद्वार, आभानेरी और उपकाशी के नाम से जाना जाता है। यह नगर मारवाड़, शेखावाटी एवं बीकानेर रियासतों की संगम स्थली रहा है।
डीडवाना में खारे पानी की झील है इसका नमक खाने योग्य नहीं है। इस नमक में सोडियम सलफेट की मात्रा अधिक है। 1964 में यहां राजस्थान स्टेट केमिकल वर्क्स की स्थापना की गई।
महाराणा कुम्भा ने भी डीडवाना पर अधिकार कर नमक पर कर लगाया। इसका उल्लेख कीर्तिस्तम्भ शिलालेख में भी लिखा गया है।
जोधपुर के शासक राव मालदेव ने अपने सेनापति कुम्पा को डीडवाना की जागीर प्रदान की।
नावां झील डीडवाना के निकट स्थित है यहाँ मॉडल साल्ट फार्म की स्थापना की गई है।
कुचामन दुर्ग राजस्थान के प्राचीन दुर्गा में से एक है। इस दुर्ग का निर्माण 750 ई. मे चौबदार जालिमसिंह मेडतिया ने करवाया। यह दुर्ग पहाड़ी के उपरी हिस्से पर चील के घोंसले के समान दिखाई देता है। इसे जागीरी किलों का सिरमौर कहा जाता है।
कुचामन अपनी ख्याल गायकी के लिए भी प्रसिद्ध है। कुचामनी ख्याल के प्रवर्तक लच्छीराम थे। लच्छीराम ने मीरा मंगल राव रिणमल और गोगा चौहान ख्यालों की रचना की।
परबतसर में वीर तेजाजी पशुमेला, आयोजित किया जाता। है जो पूरे प्रदेश में विख्यात है। यह पशु मेला श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद अमावस्या तक लगता है। यह नागौरी बैलों की बिक्री के लिए प्रसिद्ध है। यह आमदनी की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा पशुमेला है। जोधपुर के तत्कालीन राजा अभयसिंह ने 1891 में परबतसर में तेजाजी महाराज की मूर्ति की स्थापना की और खारिया तालाब खुदवाया था।
मकराना में पाया जाने वाला मार्बल पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहां कैल्साइट प्रकार का संगमरमर पाया जाता है। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल मकराना के मार्बल से ही निर्मित है।
कर्माबाई कालवा गांव मकराना से थी। इन्हें शेखावाटी की मीरा बाई भी कहा जाता है।
संत हरिदास का जन्म डीडवाना के कापड़ोद में हुआ। इनका मूल का नाम हरिसिंह सांखला था। कहा जाता है कि हरिदास जी साधु बनने से पहले डकैत थे इसलिए उन्हें कलियुग का वाल्मिकी कहा जाता है। संत हरिदास जी ने निरंजनी सम्प्रदाय की स्थापना की।
निरंजनी संप्रदाय की पीठ गाडाधाम मकराना में है।
लाडनूँ जैन विश्व भारती विश्व विद्यालय के लिए भी विख्यात है। इसकी स्थापना 1991 ई. में आचार्य तुलसी द्वारा की गई थी। आचार्य तुलसी जैन धर्म के श्वेताम्बर तेरापंथ के नवें आचार्य थे। उन्होंने अणुव्रत आन्दोलन भी चलाया।
डाबड़ा कांड 13 मार्च 1947 को माेलासर गांव डीडवाना में हुआ।
कैवाय माता (दहीया वंश की कुल देवी) का मंदिर किणसरिया गांव परबतसर में है।
गोल्डन पेंटिंग कुचामन की प्रसिद्ध है।
गिंगोली का युद्ध 1807 में परबतसर के पास गिंगोली गांव में हुआ था। यह युद्ध मेवाड़ के महाराणा भीम सिंह की पुत्री राजकुमारी कृष्णा कुमारी के विवाह को लेकर जगत सिंह और मान सिंह के बीच हुआ था।
बालमुकुंद बिस्सा पीलवा गांव, परबतसर से थे। इन्हें राजस्थान का जतिन दास कहा जाता हैा।देश की आजादी की लड़ाई लड़ते हुए भूख हड़ताल से मात्र 34 साल की उम्र में ही 1942 में उनका निधन हो गया था।
कुराड़ा (परबतसर) ताम्रयुगीन सभ्यता स्थल है।
डीडवाना में 700 मीटर चौड़े और 300 मीटर चौड़े दो रेतीले टीले मानव विकास के साक्षी रहे हैं। डेक्कन कॉलेज पूणे के भूगर्भ शास्त्री प्रो. वी.एन. मिश्रा एवं एस.एन. राजगुरू ने यहाँ 80 के दशक में खुदाई का कार्य किया था।
परबतसर के वरुण गांव की बकरियां और बाजवास गांव के बकरे प्रसिद्ध हैं।
रानाबाई (परबतसर के हरनावा गांव) राजस्थान की दूसरी मीरा के रूप में जानी जाती हैं। वे संत चतुरदास जी की शिष्या थीं।
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