तहसील - 4 संभाग - जयपुर
जयपुर जिले का पुनर्गठन कर जयपुर जिला गठित किया गया है जिसका मुख्यालय जयपुर होगा। नवगठित जयपुर जिले में 4 तहसील (जयपुर तहसील का नगर निगम जयपुर (हेरीटेज) एवं नगर निगम जयपुर (ग्रेटर) के अन्तर्गत आने वाला समस्त भाग, तहसील कालवाड का नगर निगम जयपुर (ग्रेटर) के अन्तर्गत आने वाला समस्त भाग, तहसील आमेर का नगर निगम जयपुर (हेरीटेज) के अन्तर्गत आने वाला समस्त भाग,तहसील सांगानेर का नगर निगम जयपुर (ग्रेटर) के अन्तर्गत आने वाला समस्त भाग) हैं।
जयपुर राजस्थान की राजस्थानी है। इसे गुलाबी नगर, भारत का पेरिस व रंग श्री द्वीप भी कहा जाता है। जयपुर के इतिहास के अनुसार यह देश का पहला योजनाबद्ध रूप से बसाया गया शहर है।
जयपुर की स्थापना कच्छवाह वंश के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा की गई। जयपुर के वास्तुकार श्री विद्याधर थे। 1876 में महाराजा सवाई रामसिंह ने इंग्लैड की महारानी एलिजाबेथ के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा। जयपुर के बसने से पहले जयपुर(ढुंढाड) राज्य था जिसकी राजधानी आमेर थी।
अजरबैजान की राजधानी बाकू में आयोजित यूनेस्को विश्व हेरिटेज समिति के 43वें सत्र के दौरान भारत के गुलाबी शहर जयपुर को यूनेस्को की विश्व हेरिटेज सूची में शामिल कर लिया गया। इससे पहले जयपुर स्थित आमेर किले और जंतर-मंतर को इस सूची में स्थान मिल चुका है।
जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ी रियासत - जयपुर।
ढाक टिकट एवं पोस्ट कार्ड जारी करने वाली प्रथम रियासत - जयपुर।
जंतर मंतर - 1718 ईस्वी में सवाई जयसिंह द्वारा बनाई गई पांच वेधशालाओं में सबसे बड़ी वेधशाला है। इसका निर्माण समय की जानकारी तथा ग्रह नक्षत्रों की जानकारी के लिए किया गया था।
हवा महल - हवामहल का निर्माण 1799 ईस्वी में सवाई प्रतापसिंह ने करवाया था। यह पांच मंजिला अर्धअष्टभूजाकार महल है। इसका निर्माण उद्देश्य राज परिवार की स्त्रियां शहर के जुलूस तथा चहल पहल देख सकें।
जल महल - जल महल का निमार्ण सवाई जयसिंह ने गर्भावति नदि पर बने बांध रामसागर में अश्वमेध यज्ञ के बाद अपनी रानियों और पंडितों के साथ स्नान करने के लिए बनवाया था।
जयगढ़ किला - इसका निर्माण जयसिंह द्वितीय 1726 ने आमेर दुर्ग की सुरक्षा हेतु करवाया था। प्राचिन भारत कि सैनिक इमारतों में से एक।अन्य भन्डार, तोप ढलाई घर तथा विशायकाय तोप जयबाण के लिए प्रसिद्ध।
आमेर के महल - आमेर के महलों का निर्माण 1592 में राजा मानसिंह ने करवाया। इसमें शिला माता मंदिर का मंदिर है। जो कच्छवाह राज परिवार की कुल देवी थी।
सिटी पैलेस(राजमहल) - जयपुर राज परिवार का निवास स्थान। राजस्थानी मुगल शैली एवं स्थापत्य कला पर बना हुआ है।
नाहरगढ़ का किला - नाहरगढ़ के किले का निर्माण 1734 में सवाई जयसिंह ने करवाया है। परन्तु इसका वर्तमान स्वरूप 1868 में सवाई रामसिंह ने दिया।
गलता जी - शहर के पूर्व में पहाडि़यों के बीच स्थित प्राचीन पवित्र कुण्ड धार्मिक स्थल है। संत कृष्णदास जी ने यहां रामानन्दी सम्प्रदाय की पीठ रखी।
गणेश मंदिर - यहां पर गणेश जी का मंदिर है जो राजा माधोसिंह प्रथम के काल में बनाया गया।
बिड़ला मंदिर - इसका निर्माण गंगाप्रसाद बिड़ला के ट्रस्ट ने करवाया। इसमें भारत के औद्योगिक विकास की क्रमबद्ध सजीव झांकी देखने को मिलती है।
अल्बर्ट हाल - इसका शिलान्यास प्रिंस अल्र्बट द्वारा किया गया।यह ईरान के बहुमूल्य गलीचे के लिए प्रसिद्ध है।
गैटोर की छतरियां - जयपुर के शासकों का शाही शमशान घाट।
गणगौर - जयपुर का गणगौर भारत भर में प्रसिद्ध है। यह त्यौहार चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है इसमें गौरी माता(शिव जी की पत्नी) की सवारी निकाली जाती है।
नाहरगढ़ जैविक उद्यान - नाहरगढ़ अभयारण्य के 7.2 वर्ग किमी. क्षेत्र को नाहरगढ़ जैविक उद्यान के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहाँ जैविक निधि को संरक्षण दिया जायेगा। यहाँ वन्य जीवों को उनकी स्वाभाविक जीवन शैली के अनुसार स्वच्छंद वातावरण उपलब्ध करवाया गया है। यह राज्य का प्रथम जैविक उद्यान है।
जयपुर चिड़ीयाघर - यह राजस्थान का प्रथम तथा सबसे बड़ा चिड़ीयाघर है, यह घडि़यालों के प्रजनन के लिए भारत वर्ष में प्रसिद्ध है। इस चिड़ीयाघर को विश्व बैंक से अनुदान प्राप्त होता है।
स्वर्ण चांदी के आभुषण, कुदन कला(जयपुर), कोफ्तगिरी, मार्बल की मुर्तियां, लाख की चुडि़यां, हाथि दांत एवं चंदन की खुदाई, घिसाई एवं पेंटिग्स, धनक, लहरियो, बल्यू पोटरी, पेपर मेसी(कुट्टी मिट्टी), नागरी व मोजड़ीयां आदि के लिए जयपुर प्रसिद्ध है।
अर्जुनलाल सेठी का जन्म जयपुर के जैन परिवार में हुआ। इन्हें राजस्थान का दधिचि कहा जाता है। इन्हें राज्य में जनजागृति का जनक भी कहते हैं। 1907 में अर्जुनलालजी सेठी द्वारा जयपुर में वर्द्धमान विद्यालय की स्थापना की गई।
1931 में कर्पूरचन्द पाटनी द्वारा जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना की गई। यह राज्य का प्रथम प्रजामण्डल था।
गोविन्ददेवजी का मंदिर-जय निवास उद्यान में यह मंदिर स्थित है। गोविन्ददेवजी की प्रतिमा को वृन्दावन से लाया गया था। यह जयपुर शासकों के कुल देवता माने जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण सवाई जयसिंह ने करवाया था।
रामबाग पैलेस - रामसिंह द्वितीय ने रामबाग पैलेस का निर्माण अति विशिष्ट एवं सम्मानीय व्यक्तियों के लिए करवाया था।
सरगासूली (ईसरलाट ) - जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में स्थित इस इमारत का निर्माण सवाई ईश्वरी सिंह ने 1749 ई. में टोंक के निकट राजमहल के युद्ध में कोटा, बूँदी व मराठों की संयुक्त सेनाओं को पराजित करने के उपलक्ष में कराया। यह 7 मंजिला इमारत है।
रामनिवास बाग - इसका निर्माण सवाई रामसिंह द्वितीय ने 1868 ई. में करवाया। इसी बाग में रवीन्द्र रंगमंच, अलबर्ट हॉल म्यूजियम व जयपुर का प्रसिद्ध चिड़ियाघर स्थित है।
बी.एम. बिड़ला प्लेनोटोरियम - 17 मार्च, 1989 से प्रारम्भ। यहाँ आधुनिकतम प्रोजेक्टों के माध्यम से तारों एवं ग्रहों की गति को दर्शकों के सामने जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
सिसोदिया रानी का महल व उद्यान - जयपुर से 8 किमी. दूर पहाड़ियों के मध्य यह महल व उद्यान मैसूर के वृंदावन गार्डन के समान लगते हैं। इसका निर्माण सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1728 ई. में सिसोदिया रानी चन्द्रकुँवरी के लिए करवाया था।
मुबारक महल- इसका निर्माण सवाई माधोसिंह द्वितीय के द्वारा करवाया गया। राजप्रासाद की इमारतों में यह सबसे नया है। इसका निर्माण अतिथियों के ठहरने के लिए करवाया गया था। बाद में इसमें महकमा खास खोला गया।
सर्वतोभद्र- सर्वतोभद्र को दीवान-ए-खास भी कहा जाता है। यह भव्य सभा भवन वर्गाकार आकृति में बना है। ईश्वरीसिंह से लेकर अन्तिम नरेश मानसिंह तक का राजतिलक इसी सर्वतोभद्र महल में हुआ। इसे स्थानीय भाषा में सरबता महल कहते हैं।
दीवान-ए-आम - दीवान-ए-आम को बड़ा दीवान खाना भी कहा जाता है। यह राजा प्रतापसिंह के समय बनकर तैयार हुआ था। कुछ विद्वान इसे माधोसिंह प्रथम के समय का मानते है। बांदरवाल के दरवाजे से उदयपोल, विजयपोल, जयपोल तथा गंगापोल आदि दरवाजे पार कर दीवान-ए-आम तक पहुँचा जाता है।
रामबाग - इसे केसर बडारण का बाग भी कहा जाता है जो 1836 ई. में बनवाया गया। रामसिंह द्वारा इसे शाही मेहमानों, अतिथि राजाओं के ठहराने तथा बाद में स्वयं निवास करने के कारण यह रामबाग कहलाया।
मांजी का बाग- वर्तमान में राजमहल पैलेस होटल परिसर वस्तुत: माधोसिंह की माँ सिसोदिया रानी का आवास था। अपनी प्रिय रानी के लिए महाराजा जयसिंह ने 1729 ई. में सुरम्य उद्यान एवं निवास बनवाया था।
नाटाणी का बाग - इसका निर्माण जयपुर रियासत के प्रधानमंत्री हरगोविन्द नाटाणी द्वारा ईश्वरीसिंह के कार्यकाल में 1745 ई. में करवाया गया। वर्तमान में यह जयमहल पैलेस होटल में परिवर्तित हो गया है।
जवाहर कला केन्द्र (1993) - कलाओं, नृत्य, संगीत एवं नाट्य विधाओं के साथ चित्र, मूर्ति एवं अन्य कलाओं से जुड़ा हुआ जयपुर स्थित करौली के लाल पत्थरों से निर्मित जवाहर कला केन्द्र कला संरक्षण, विकास एवं विस्तार की दृष्टि से अत्यन्त उल्लेखनीय है। प्रशासनिक दृष्टि से यह केन्द्र सामान्य प्रशासन, संगीत-नृत्य, नाट्य, प्रलेखन एवं दृश्य कला विभाग में बँटा हुआ है। इसका वास्तुकार चार्ल्स कौरिया रहा।
जयपुर कथक केन्द्र- इसकी स्थापना 1978 में की गई थी। यह केन्द्र जयपुर घराने के कथक नृत्य का पारम्परिक प्रशिक्षण देने तथा नृत्य कला के प्रति अभिरुचि पैदा करने के लिए विख्यात है। कत्थक का जयपुर घराना सबसे प्राचीन घराना है जिसके प्रवर्तक भानूजी थे । यह राजस्थान का एकमात्र शास्त्रीय नृत्य है। कत्थक का प्रचलित घराना लखनऊ है। कत्थक के जयपुर घराने का आरम्भ सवाई जयसिंह के समय हुआ ।
आमेर में जलेब चौक में शिलादेवी का मन्दिर बना हुआ है।
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