तहसील - 18 संभाग - जयपुर
जयपुर जिले का पुनर्गठन कर जयपुर (ग्रामीण) जिला गठित किया गया है जिसका मुख्यालय जयपुर होगा। नवगठित जयपुर (ग्रामीण) जिले में 18 तहसील (जयपुर तहसील (जयपुर का नगर निगम जयपुर (हेरीटेज) एवं नगर निगम जयपुर (ग्रेटर) के अन्तर्गत आने वाले भाग को छोडकर शेष समस्त भाग) , तहसील कालवाड का नगर निगम जयपुर (ग्रेटर) के अन्तर्गत आने वाले भाग को छोडकर शेष समस्त भाग, तहसील सांगानेर का नगर निगम जयपुर (ग्रेटर) के अन्तर्गत आने वाले भाग को छोडकर शेष समस्त भाग, तहसील आमेर का नगर निगम जयपुर (हेरीटेज) के अन्तर्गत आने वाले भाग को छोडकर शेष समस्त भाग, जालसू, बस्सी, तुंगा, चाकसू, कोटखावदा, जमवारामगढ, आंधी, चौमू, फुलेरा (मु.-सांभरलेक), माधोराजपुरा, रामपुरा डाबडी, किशनगढ रेनवाल, जोबनेर, शाहपुरा) हैं।
जयपुर ग्रामीण जिले की स्थापना 7 अगस्त 2023 को हुई थी। जयपुर शहर के बसने से पहले जयपुर(ढुंढाड) राज्य था जिसकी राजधानी आमेर थी।
नालियासर(लौह युगिन) सभ्यता - सांभर।
जमवारामगढ़ किला, जिसे 1612 ई. में मानसिंह प्रथम ने बनवाया था, भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया।
जमवारामगढ़ - जयपुर शहर को इस बांध से पीने का पानी मिलता है। इस बांध में पानी बाणगंगा नदी से आता है।
जमवारामगढ़ अभयारण्य - 31 मई, 1982 को इस अभयारण्य की स्थापना की गई है। बघेरा, चीतल, साम्भर, जंगली सूअर, नीलगाय आदि यहाँ पाए जाते हैं।
ढुढ नदी - जयपुर के अचरोल से निकलती है तथा जयपुर व दौसा में बहती हुई दौसा के लालसोट में यह मोरेल में मिल जाती है।
मोरेल नदी की एक शाखा जयपुर की बस्सी तहसील के धारला व चैनपुरा गांव के निकट पहाडियों से निकलती है तथा दूसरी शाखा दौसा जिले के पपलाज माताजी पर्वत की तलहटी के जलग्रहण क्षेत्र से पानी प्राप्त करके बनती है।
मैन्था नदी - जयपुर के मनोहरथाना से निकलती है, सांभर के उतर में विलिन हो जाती है।
साबी - जयपुर में सेवर की पहाड़ीयों से निकलती है।
सांभर - जयपुर शहर से पश्चिम की ओर 94 किमी. दूर स्थित सांभर नामक स्थान पर खारे पानी की झील स्थित है, जो भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील मानी जाती है। इतिहासकारों के अनुसार इस झील का निर्माण वासुदेव चौहान द्वारा करवाया गया। इस झील में मेन्था, रूपनगढ़, खारी, खण्डेला नदियाँ आकर गिरती हैं। हिन्दुस्तान सांभर साल्ट लिमिटेड की स्थापना केन्द्र सरकार द्वारा 1964 ई. में इसी झील में की गई। प्राचीन काल में इसे शाकम्भरी के नाम से जाना जाता था, चौहान वंशीय शासकों की प्रथम राजधानी था। सांभर में ही भारमल ने अपनी पुत्री जोधाबाई/हरकाबाई का विवाह अकबर के साथ किया था। सिक्खों के दसवें गुरू गोविन्दसिंह ने सांभर में एक रात विश्राम किया था।
एयर कारगो काम्पलेक्स - सांभर जयपुर।
हिमकृत वीर्य (सीमन) बैंक - बस्सी (जयपुर ग्रामीण) में राजस्थान कोपरेटिव डेयरी फेडरेशन द्वारा सीमन बैंक स्थापित किया गया हैं। इसका मुख्य उद्देश्य गाय और भैंस वंश की नस्लें सुधारना हैं।
मृगवन - अशोक विहार मृगवन 1986 और संजय उद्यान मृगवन 1986।
हीरालाल शास्त्री का जन्म जोबनेर, जयपुर ग्रामीण में हुआ।
1929 में हीरालाल शास्त्री द्वारा वनस्थली में जीवन कुटीर की स्थापना की गई।
संभागीय व्यवस्था की शुरूआत 1949 ई. में हीरालाल शास्त्री ने की थी।
लूणियावास का गधों का मेला- जयपुर ग्रामीण की सांगानेर तहसील की पंचायत समिति लूणियावास में भावगढ़ बन्धे के किनारे उत्तरी भारत का गधों का सबसे बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। यह मेला दशहरे पर आसोज बदी सप्तमी से ग्यारस तक भरता है।
सांगानेर - एक शिलालेख में इस नगर का नाम संग्रामपुरा और संस्थापक महाराजा पृथ्वीराज का पुत्र सांगा को बताया गया है।
यहां स्थित सांगा बाबा का मंदिर दर्शनीय है, जिसका वास्तविक नाम सांगेश्वर महादेव है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में कछवाहा राजकुमार सांगा के द्वारा करवाया गया था।
यहां स्थित संघी मंदिर स्थापत्य एवं वास्तुकला में भारत भर में अपनी पहचान रखता है। मंदिर में 24 शिखर बने हुए हैं जिनमें 8 शिखर बड़े तथा 16 शिखर छोटे देवरियों पर बने हुए है। मंदिर के शिखरों में पद्मासन एवं खड्गासन दिगम्बर जैन प्रतिमाएँ है।
सांगानेर हाथ से बनाये जाने वाले कागज व वस्तुओं की रंगाई-छपाई व सांगानेरी प्रिंट के लिए विख्यात है।
सांगानेर में राजस्थान का पहला अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा स्थित है।
गोनेर सांगानेर तहसील में स्थित है। इसे जयपुर का मथुरा कहा जाता है। यहाँ लक्ष्मी जगदीश का मंदिर स्थित है। भगवान लक्ष्मीनारायण की मूर्ति को देवादास नामक ब्राह्मण ने दैवीय प्रेरणा से खेत में से खोदकर निकाला था। अकबर ने आठ सौ बीघा जमीन मंदिर को खेती के लिए दी थी। द्रव्यवती नदी गोनेर से होकर गुजरती है।
चाकसू का पुराना नाम ‘चम्पावती’ था। यह नगर छठी शताब्दी ई. का बताया जाता है। इसके पूर्व में ढूंढ नदी तथा पश्चिम में बागडी नदी बहती है। 1871 ई. में कनिंघम के सहयोगी कार्लाइल ने चाकूस का सर्वेक्षण किया था। यहां से एक शिलालेख प्राप्त हुआ था जिसे डॉ. भण्डारकर ने एपीग्राफिका इंडिका में प्रकाशित करवाया।
चाकसू में प्राचीन सूर्य मंदिर स्थित है, जिसका निर्माण गुहिलवंशीय शासकों के द्वारा करवाया गया था। मंदिर में सात घोड़ों पर सवार भगवान सूर्य और उनकी पत्नी की भव्य प्रतिमा स्थापित है।
सामोद शीशमहल (चौमूं) और भित्ति चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। सामोद महल का निर्माण बिहारी दास कच्छवाहा ने करवाया। इसमें सिथत माधोनिवास महल का निर्माण माधोसिंह द्वितीय ने करवाया।
सामोद में बूढ़े बालाजी का मंदिर स्थित है।
चौमू का किला को धाराधारगढ़, रघुनाथगढ़ भी कहते है। इसका निर्माण चौमूं के ठाकुर कर्णसिंह द्वारा करवाया गया।
बगरू - परम्परागत शैली के वस्त्रों के लिए विख्यात है। यहां वस्त्रों की रंगाई और छपाई का काम होता है।
तुंगा जयपुर से 45 किमी. दक्षिण-पूर्व में जयपुर-लालसोट मार्ग पर स्थित है। यह बांकावत कछवाहों के अधीन था। तुंगा से बिसाऊ के ठाकुर सूरजमल शेखावत का 1787 ई. का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है। शिलालेख मराठों और कछवाहों के मध्य युद्ध से सम्बन्धित । इस युद्ध में सूरजमल शेखावत ने वीरगति प्राप्त की थी।
रामगढ़ बाँध परियोजना - यह बाँध बाणगंगा नदी पर बनाया गया है। इससे जयपुर ग्रामीण को पेयजल आपूर्ति की जाती थी। यह बाँध सूख गया है। इस बाँध को जलापूर्ति टोंक-सवाईमाधोपुर जिले में स्थित ईसरदा बाँध से की जाएगी। बनास नदी पर स्थित बीसलपुर बाँध से भी जयपुर को पेयजल की आपूर्ति हो रही है।
दुर्गापुरा (जयपुर ग्रामीण) में एककृषि अनुसंधान केन्द्र स्थापित किया गया है।
राज्य की पहली आँवला मण्डी चौमूं में, टमाटर मंडी बस्सी में और टिण्डा मंडी शाहपुरा (जयपुर ग्रामीण ) में है।
सीतापुरा में C-DOS नामक केन्द्र की स्थापना की गई है, जहाँ पत्थर प्रदर्शनी का आयोजन होता है।
जयपुर ग्रामीण के सीतापुरा में निर्यात संवर्द्धन औद्योगिक पार्क और सूचना पार्क, अचरोल में लेजर सिटी कॉम्पलेक्स, मानपुर-माचेड़ी में लेदर कॉम्पलेक्स स्थित हैं।
संत रज्जब जी का जन्म सांगानेर में हुआ उनके गुरु दादू दयाल जी थे।
शीतला माता मंदिर शील की डूंगरी, चाकसु (जयपुर ग्रामीण) में स्थित है। इसका निर्माण सवाई माधोसिंह प्रथम ने करवाया था। शीतला माता को चेचक रोग निवारक देवी, बच्चों की संरक्षिका, महामाई माता, ढल माता, पश्चिमी भारत में माई अनामा के नाम से जाना जाता है। शीतला माता का वाहन गधा व पुजारी कुम्हार जाति का होता है। यह एकमात्र देवी हैं जिनकी खंडित मूर्ति की पूजा होती हैं। चैत्र कृष्ण सप्तमी व अष्टमी को इनका मेला भरता है। बांझ महिलाएँ पुत्र प्राप्ति के लिए शीतला माता की पूजा करती हैं।
27 नवम्बर, 2010 को राज्य के प्रथम ग्राम न्यायालय का बस्सी में उद्घाटन हुआ।
दुल्हा राय ने जमवा रामगढ़ में जमवाय माता मंदिर का निर्माण करवाया। यह कच्छवाहा शासकों की कुल देवी है। जमवा रामगढ़ को ढूंढाड़ का पुष्कर कहते हैं।
जगत शिरोमणी मन्दिर आमेर में स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण मानसिंह की रानी कनकावती ने अपने पुत्र जगतसिंह की स्मृति में करवाया था।इसमें लगी श्रीकृष्ण की काले रंग की मूर्ति मानसिंह चित्तौड़ से लाये थे, जिसकी मीरा बाई आराधना किया करती थी।
ज्वाला माता ( जोबनेर) खंगारोत राजपूतों की कुल देवी है। लालबेग ने यहाँ पर आक्रमण किया था, तो मधुमक्खियाँ प्रकट हो गई और भागती हुई सेना का नौबत यहीं पर रह गया जो मंदिर में आज भी है।
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