तहसील - 2 संभाग - जोधपुर
जोधपुर जिले का पुनर्गठन कर जोधपुर जिला गठित किया गया है जिसका मुख्यालय जोधपुर होगा। नवगठित जोधपुर जिले में 2 तहसील जोधपुर उत्तर (जोधपुर तहसील का नगर निगम जोधपुर के अन्तर्गत आने वाला समस्त भाग),जोधपुर दक्षिण (जोधपुर तहसील का नगर निगम जोधपुर के अन्तर्गत आने वाला समस्त भाग) हैं।
जोधपुर नगर की नींव 1459 ई. में राव जोधा द्वारा रखी गई। यहाँ राठौड़ राजवंश ने शासन किया। जोधपुर को मारवाड़ प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। जोधपुर को ‘जोधाजी की ढाणी’ और ‘जोधाजी का फलसा’ भी कहा जाता था। यह नगर घोड़े की नाल के आकार में निर्मित किया गया था। जोधपुर राजस्थान का दुसरा सबसे बड़ा शहर है। यह सुर्यनगरी एवं थार मरूस्थल का प्रवेश द्वार के नाम से प्रसिद्ध है। दुर्ग के आस पास नीले मकानों के कारण इसे “नीली नगरी” के नाम से भी जाना जाता है।
जोधाणा किला / मेहरानगढ़ दुर्ग जोधपुर में है, इसे मेहरानगढ़ अथवा ‘मोरध्वज दुर्ग’ के नाम से भी जाना जाता है। यह गिरी दुर्ग है जो चिड़ियाँटूक पहाड़ी पर बना हुआ है। इसकी स्थापना राव जोधा द्वारा 1459 ई. में की गई। इसमें फुलमहल, मोती महल, श्रंगार चैकी, चामुण्डा देवी का मदिर आदि प्रसिद्ध हैं।
जब मेहरानगढ़ का दुर्ग बन रहा था तो तांत्रिक के कहने पर अनुष्ठान में एक ब्राह्मण के कलेजे की आहुति दी। गई थी। उसी की स्मृति में पंचकुण्डा में ब्राह्मण देवता की छतरी का निर्माण करवाया गया था।
जुबली कोर्ट (कचहरी भवन) का निर्माण महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय के प्रधानमंत्री प्रतापसिंह के द्वारा 1886 ई. से 1897 ई. तक करवाया। रानी विक्टोरिया के शासनकाल के 25 वर्ष पूरे होने की स्मृति में बनने के कारण इसका नाम जुबली कोर्ट पड़ा।
जसवन्त थड़ा का निर्माण जसवन्तसिंह द्वितीय की स्मृति में उनके बेटे सरदारसिंह ने 1906 ई. में करवाया था। संगमरमर से बना खूबसूरत स्मारक जिसे अक्सर मारवाड़ का ताज महल कहा जाता है।
जोधपुर में पोकरण हवेली, आसोप हवेली, पाल हवेली, पुष्य नक्षत्र हवेली, बड़े मियाँ की हवेली, श्याम मनोहर प्रभ की हवेली, मोतीलाल अमरचन्द कोचर की हवेली, सांगीदास थानवी की हवेली, फूलचन्द गोलछा की हवेली, लालचन्द ढड्ढा की हवेली तथा बच्छावतों की हवेली प्रसिद्ध है।
तापी बावड़ी का निर्माण जोधपुर रियासत के दीवान वीर गिरधरजी व्यास के छोटे भाई नाथोजी व्यास ने अपने पिता तापोजी की स्मृति में कराया था। यह बावड़ी छह खण्डों में विभाजित है।
राव गंगा के द्वारा गंगश्याम मंदिर का निर्माण करवाया गया। 1679 ई. में औरंगजेब ने जब जोधपुर को खालसा घोषित किया तो इस समय मंदिर को तोड़ा गया, किन्तु मूर्ति को बचा लिया गया। बाद में अजीतसिंह ने पुन: इस मंदिर का निर्माण करवाया। 1760 ई. में विजयसिंह और 1929 ई. में उम्मेदसिंह के द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया और भव्य स्वरूप दिया गया।
कुंजबिहारी मंदिर का निर्माण विजयसिंह की पासवान गुलाबराय के द्वारा 1779 ई. में करवाया गया था। यह गंगश्याम मंदिर की अनुकृति है।
राजरणछोड़जी मंदिर का निर्माण जसवन्तसिंह की रानी राजकंवर ने राजा की मृत्यु के बाद करवाया था।
महामन्दिर का निर्माण महाराजा मानसिंह के द्वारा 1805 ई. में करवाया गया था। यह मन्दिर नाथ सम्पद्राय का केन्द्र है। मन्दिर के गर्भगृह में संगमरमर के सिंहासन पर जालंधर नाथ जी की मूर्ति लगी हुई है। स्पेन की संस्था और राजस्थान के बीच हुए समझौते के अनुसार यहाँ अंतर्राष्ट्रीय संगीत केन्द्र की स्थापना की गई है।
जोधपुर नगर से बाहर स्थित मण्डोर उद्यान परिसर में 33 करोड़ देवी देवताओं की साल नाम से एक अद्भुत मंदिर स्थित है।
देवताओं की साल के पास मंडोर में काला गोरा भैरू मन्दिर स्थित है। इसका निर्माण भी अजीतसिंह के समय हुआ था। विवाह के उपरान्त नवदम्पती यहाँ आते हैं। सन्तान प्राप्ति के लिए यहाँ आगिनी उत्सव मनाया जाता है।
कागा की छतरियाँ - यहाँ पर काग भुशुण्डि ने तपस्या की थी। उनके तप से यहाँ गंगा प्रकट हुई। बाद में यहाँ जोधपुर राजपरिवार के सदस्यों का अन्तिम संस्कार भी किया जाने लगा था। यहाँ शीतला माता का भव्य मंदिर भी स्थित है।
कागा की छतरियों के बीच जोधपुर राज्य के प्रधानमंत्री राजसिंह कूंपावत की छतरी (प्रधानमंत्री की छतरी) भी स्थित है। राजसिंह ने अपने स्वामी जसवन्तसिंह को भूत-प्रेत की बाधा से मुक्त करने के लिए स्वयं अपने सिर की बलि दे दी। उसकी स्मृति में ही प्रधानमंत्री की छतरी का निर्माण करवाया गया।
करोड़ों की कीर्ति के धनी की छतरी - यह छतरी ठाकुर कीरतसिंह की छतरी है जब बीकानेर और जयपुर की संयुक्त सेनाओं ने जोधपुर पर आक्रमण किया तो कीरतसिंह वीरतापूर्वक सेनाओं का सामना करते हुए मारा गया। राजा मानसिंह ने उसकी स्वामिभक्ति से प्रसन्न होकर उसकी छतरी का निर्माण करवाया।
मामा-भान्जा की छतरी- धन्ना गहलोत और भीया चौहान मामा भान्जे अजीतसिंह के प्रधानमंत्री व पाली के ठाकुर मुकुन्ददास चम्पावत के सेवादार थे। ठाकुर प्रतापसिंह उदावत ने मुकुन्ददास की छल से हत्या कर दी तो धन्ना और भींया ने अपनी स्वामी की हत्या का बदला लेने के लिए प्रतापसिंह पर आक्रमण किया और वीरगति को प्राप्त हुए। महाराजा अजीतसिंह ने धन्ना और भीयां की छतरी का निर्माण करवाया।
गोरा धाय की छतरियाँ - गोराधाय अजीतसिंह की धाय माँ थी। जब औरंगजेब ने जोधपुर रियासत को खालसा घोषित किया और बालक अजीतसिंह को कैद कर लिया तो वीर दुर्गादास और मुकुन्ददास खींची के साथ गोरा धाय ने भी उसे मुक्त करवाने में सहयोग किया था। 18 मई, 1704 ई. में अपने पति गोपी गहलोत की मृत्यु के बाद जब गोरा धाय सती हो गई तो अजीतसिंह ने अपनी धाय माँ की स्मृति में दो छतियों का निर्माण करवाया।
उम्मेद पैलेस - महाराजा उम्मेद सिंह द्वारा अकाल राहत कार्यो(1928-1940) के तहत बनवाया गया भवन, ‘छीतर‘ पत्थर के प्रयोग के कारण इसे छीतर पैलेस भी कहा जाता है।
नेहरू पार्क - इसका निर्माण 1966 ई. में हुआ। यह जोधपुर शहर के बीच स्थित है।
स्वरूप सागर - इसका निर्माण रानी मालदेव की रानी झाली स्वरूप दे ने संवत् 1597 में करवाया था। उसे बहु जी का तालाब भी कहा जाता है।
अरणा-झरणा-यह प्राकृतिक जल प्रपात एक तीर्थ के रूप में विख्यात है। यहाँ पूर्णिमा, अमावस्या, एकादशी और चैत्र तृतीया को यहाँ स्नान करने बड़ी मात्रा में लोग इकट्ठे होते हैं। कहते हैं कि मेनका इस स्थान पर स्नान करके ही अपने श्राप से मुक्त हुई थी। यहाँ पाण्डवों ने भी अज्ञातवास के समय अपना समय बिताया था। यहाँ पर 11 वीं शताब्दी में परमार राजा गंधर्वसेन ने मन्दिर का निर्माण करवाया था।
चैत्र शुक्ल अष्टमी को जोधपुर में घुड़ले का त्योहार मनाया जाता है। इसमें कुंवारी कन्याएँ छिद्रित मटके के भीतर दीपक जलाकर उसे सिर पर रखकर नृत्य करती हैं।
बेतमार गणगौर मेला जोधपुर का प्रसिद्ध है, इसे धींगा गवर भी कहते हैं। यह वैशाख कृष्णा तृतीया को लगता हैं। इसमें विधवा तथा विवाहित महिलाएँ भाग लेती हैं।
अजीत भवन - यह महल देश का पहला हैरीटेज(विरासत) होटल है।
जोधपुर में दशहरे के दिन राम की सवारी निकाली जाती है। इस दिन लोग खेजड़ी वृक्ष की पुजा करते हैं व लीलटांस पक्षी के दर्शन इस दिन शुभ मानते हैं।
राजस्थान में वनों की कटाई पर सर्वप्रथम प्रतिबन्ध जोधपुर रियासत ने लगाया था।
गोड़ावण के प्रजनन के लिए जोधपुर जन्तुआलय प्रसिद्ध है।
काजरी - केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान 1952 में स्थापित।
आफरी - शुष्क वन अनुसंधान संस्थान जोधपुर में स्थित एक अनुसंधान संस्थान है।
बंधेज का कार्य(चुनरी) जोधपुर का प्रसिद्ध है।
मोठड़े - कपड़े पर एक दुसरी की काटती हुई धारियां जोधपुर की प्रसिद्ध है।
बादला - जस्ते से निर्मित पानी को ठण्डा रखने का बर्तन।
राजस्थान का उच्च न्यायालय जोधपुर में है।
राजस्थान के सर्वाधिक मुख्यमंत्री जोधपुर से है।
राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी जोधपुर में स्थित है।
एक थम्बा महल का निर्माण महाराजा अजीत सिंह ने करवाया था। एक थम्बा महल को प्रहरी मीनार के नाम से भी जाना जाता है। एक थम्बा महल जोधपुर के मंडौर में स्थित तीन मंजिला भवन है।
गुलाब खां का मकबरा, गुलर कालुदान का मकबरा भी राजस्थान में है।
स्टोन पार्क मण्डोर(जोधपुर) में स्थित है।
जोधपुर में रावण का एकमात्र मंदिर स्थापित है।
जोधपुर के बंद गले का कोट राष्ट्रीय पोशाक है।
मारवाड़ चित्र शैली की उपशैलियों में जोधपुर शैली का विशेष स्थान है।
जोधपुर में देश का महत्त्वपूर्ण पाण्डुलिपि भण्डार ‘राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान’ स्थित है।
जोधपुर में 1957 से संस्थापित राजस्थान संगीत नाटक अकादमी स्थित है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद विश्वविद्यालय यह जोधपुर में स्थित हैं। यह देश का दूसरा आयुर्वेद विश्वविद्यालय है।
जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय-1962, राजस्थान विधि विश्वविद्यालय-2001, राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय-2002, सरदार पटेल पुलिस एवं नागरिक सुरक्षा विश्वविद्यालय-2012-13, कृषि विश्वविद्यालय-2013, मौलाना अबुल कलाम आजाद विश्वविद्यालय-2012-13 आदि जोधपुर में स्थित है।
राजस्थान में जोधपुर शहर की फीणी अपने आप में अनूठी स्वाद के लिए प्रसिद्ध है।
जोधपुर की मावे और प्याज की कचौरी प्रसिद्ध है।
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