तहसील - 6 संभाग - अजमेर
भीलवाड़ा जिले का पुनर्गठन कर नया जिला शाहपुरा गठित किया गया है जिसका मुख्यालय शाहपुरा होगा। नवगठित शाहपुरा जिले में 6 तहसील (शाहपुरा, जहाजपुर, काछोला, फूलियाकलां, बनेडा, कोटडी) हैं।
शाहपुरा शहर की स्थापना 1629 ई. में की गई। शाहपुरा रियासत की स्थापना 14 दिसम्बर, 1631 ई. को सुजानसिंह ने की।
मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह (1628-1652 ई.) के समय दिल्ली का बादशाह शाहजहाँ था। शाहजहाँ ने 1631 ई. में महाराणा अमरसिंह के पौत्र सुजानसिंह (सूरजमल के पुत्र) को राजा का खिताब दिया और अजमेर सूबे का परगना फूलिया चौरासी और शाहपुरा व मेवाड़ के कुछ गाँव दिये। सूरजमल ने 14 दिसम्बर, 1631 ई. को शाहपुरा को अपनी राजधानी बनाया तथा शाहपुरा की स्वतंत्र रियासत की स्थापना की।
बादशाह औरंगजेब ने भरतसिंह को शाहपुरा में सिक्के ढालने की अनुमति प्रदान की।
शाहपुरा के शासक उम्मेदसिंह के समय यहाँ विकास व जनसाधारण के कल्याण के अनेकानेक कार्य, कई विद्यालय, पुस्तकालयों, विधवाश्रमों एवं चिकित्सालयों की स्थापना आदि करवाए गए।
बारहठ परिवार का संबंध शाहपुरा से है।
केसरी सिंह बारहठ का जन्म देवखेड़ा गाँव, शाहपुरा में 1872 में हुआ था। मेवाड़ महाराणा फतेहसिंह को दिल्ली दरबार में जाने से रोकने के लिए चेतावनी रा चूगंटियाँ नामक 13 सोरठे लिखे थे। 1910 में वीर भारत सभा की स्थापना की। इन्हें राजस्थान का केसरी कहा जाता है।
जोरावरसिंह बारहठ केसरीसिंह बारहठ के छोटे भाई थे। 1912 ई. में दिल्ली के चाँदनी चौक नामक स्थान पर लॉर्ड हार्डिग्स पर बम फेंका था तथा अपना नाम अमरदास बैरागी रखा। इन्हें राजस्थान का चन्द्रशेखर आजाद कहा जाता है।
प्रतापसिंह बारहठ का जन्म श्यामलदास की हवेली उदयपुर हुआ और अपने चाचा जोरावर सिंह के साथ लॉर्ड हार्डिंग्स बम कांड में प्रमुख भूमिका निभाई। बनारस षड्यंत्र के तहत् इनको गिरफ्तार किया गया था। बरेली की जेल (UP) में क्लीवलैण्ड ने कठोर यातनाएं दी। प्रताप ने कहा कि मेरी माँ रोती है तो रोने दो, मै एक माँ को हँसाने के लिए हजारों माताओं को नहीं रूला सकता। सर चार्ल्स क्लीवलैण्ड ने कहा था कि मैंने ऐसा बहादुर बालक अपने जीवन में कभी नहीं देखा।
अप्रैल, 1938 में लादूराम व्यास, रमेश चन्द्र ओझा एवं अभयसिंह ने शाहपुरा प्रजामण्डल की स्थापना की।
राजस्थान में शाहपुरा की छोटी-सी रियासत के महाराजा उम्मेदसिंह द्वितीय ने 1946 ई. में प्रजामण्डल के नेता गोकुल लाल असावा के प्रधानमंत्रित्व में अंतरिम सरकार का गठन कर दिया। यह राज्य की पहली लोकप्रिय सरकार थी। 14 अगस्त, 1947 को महाराजा सुदर्शन देव ने गोकुल लाल असावा के प्रधानमंत्रित्व में यहाँ पूर्ण उत्तरदायी सरकार का गठन किया। शाहपुरा राजस्थान की पहली रियासत है जिसने सर्वप्रथम उत्तरदायी शासन की स्थापना की।
राजस्थान के एकीकरण के दूसरे चरण में 25 मार्च, 1948 को शाहपुरा राज्य की अन्य आठ रियासतों के साथ राजस्थान संघ में शामिल हो गया।
गोकुललाल असावा का जन्म शाहपुरा में हुआ था। जो एकीकरण के दूसरे चरण पूर्व राजस्थान संघ के प्रधानमंत्री (25 मार्च, 1948) को बनें।
क्षेत्रफल व जनसंख्या की दृष्टि से सबसे छोटी रियासत शाहपुरा थी।
शाहपुरा का फड़ चित्रण प्रसिद्ध है। फड़ चित्रण के जनक श्रीलाल जोशी को 2006 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
फड़ चित्रण के लिए जोशी परिवार प्रसिद्ध है। यहाँ के प्रसिद्ध फड़ चितेरे श्रीलाल जोशी, पार्वती जोशी (देश की पहली महिला फड़ चितेरी), कन्हैयालाल जोशी, दुर्गेश जोशी, अभिषेक जोशी, कल्याण जोशी आदि कलाकार प्रसिद्ध है।
रामस्नेही सम्प्रदाय की प्रधानपीठ शाहपुरा है। इस सम्प्रदाय का फूलडोल महोत्सव सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह महोत्सव चैत्र कृष्ण 1 से 5 तक भरता है। इस सम्प्रदाय के लोग गुलाबी वस्त्र पहनते है।
चारभुजा नाथ का मंदिर शहर के मध्य में स्थित है। साथ ही एक हनुमान मंदिर भी है जिसे बालाजी की छतरी कहा जाता है। चार श्वेताम्बर सम्प्रदाय और चार दिगम्बर सम्प्रदाय सहित आठ प्राचीन जैन मंदिर है।
जहाजपुर शाहपुरा जिले की प्रमुख तहसील है। किवंदति के अनुसार जहाजपुर किले का निर्माण सम्राट अशोक के पौत्र सम्प्रति ने करवाया था। सम्प्रति जैन धर्म का अनुयायी था। यह दुर्ग हाड़ौती-बूँदी और मेवाड़ के भू-भाग की एक गिरि दुर्ग की तरह रक्षा करता था। महाराणा कुम्भा ने जहाजपुर दुर्ग का पुनः निर्माण करवाया था।
यूरेनियम के भण्डार शाहपुरा जिले की जहाजपुर तहसील प्राप्त हुए हैं।
यहाँ का बड़ा देवरा, पुराना किला और गैबीपीर के नाम से प्रसिद्ध मस्जिद है और यहाँ प्रसिद्ध जैन मंदिर भी है जो स्वस्ति धाम के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर में मुनि सुवर्तनाथ की प्राकट्य प्रतिमा है। यह मंदिर जहाज की आकृति के समान है।
जहाजपुर से 12 किमी. दूर घाटारानी माताजी का मन्दिर स्थित है। इस मंदिर से 2 किमी. दूर पंचानपुर चारभुजा का प्राकट्य स्थान मंदिर है।
बनेड़ा दुर्ग का निर्माण 1681 ई. में उदयपुर के महाराणा राजसिंह प्रथम के चौथे पुत्र कुंवर भीमसिंह ने किया था। यह दुर्ग अपने निर्माण से लेकर अपने मूल रूप में आज तक यथावत है।
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