राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
- प्रश्न 101 प्राचीन ताम्रवती नगरी को वर्तमान में कहा जाता है-
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- (अ) काठी
- (ब) आहड
- (स) जालौर
- (द) धौलपुर
उत्तर : आहड
व्याख्या :
उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर 500 मीटर लम्बे धूलकोट के नीचे आहड़ का पुराना कस्बा दवा हुआ है जहाँ से ताम्रयुगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। यह सभ्यता बनास नदी पर स्थित है। ताम्र सभ्यता के रूप में प्रसिद्ध यह सभ्यता आयड़/बेड़च नदी के किनारे मौजूद थी। प्राचीन शिलालेखों में आहड़ का पुराना नाम ‘ताम्रवती’ अंकित है। दसवीं व ग्याहरवीं शताब्दी में इसे ‘आघाटपुर’ अथवा ‘आघट दुर्ग’ के नाम से जाना जाता था। इसे ‘धूलकोट’ भी कहा जाता है।
- प्रश्न 102 ‘जुते हुए खेत के साक्ष्य’ किस सम्भता से सम्बन्धित है -
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- (अ) आहड़
- (ब) बागोर
- (स) कालीबंगा
- (द) बालाथल
उत्तर : कालीबंगा
व्याख्या :
कालीबंगा प्राचीन सरस्वती नदी के बाएं तट पर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ से लगभग 25 किमी. दक्षिण में स्थित है। संसार भर में उत्खनन से प्राप्त खेतों में यह पहला है। इस खेत में दो तरह की फसलों को एक साथ उगाया जाता था, कम दूरी के सांचों में चना व अधिक दूरी के सांचों में सरसों बोई जाती थी। खेत में ‘ग्रिड पैटर्न’ की गर्तधारियों के निशान है और ये दो तरह के निशान एक दूसरे के समकोण पर बने हुए है।
- प्रश्न 103 गणेश्वर सभ्यता का उत्खनन कार्य किसकी देखरेख में किया गया -
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- (अ) एच. डी. सांकलिया
- (ब) ए. एन. घोष
- (स) वी. एन. मिश्रा
- (द) आर. सी. अग्रवाल
उत्तर : आर. सी. अग्रवाल
व्याख्या :
गणेश्वर का टीला, नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर अवस्थित है। गणेश्वर में रत्नचंद्र अग्रवाल ने 1977 में खुदाई कर इस सभ्यता पर प्रकाश डाला। इस क्षेत्र का विस्तृत उत्खनन कार्य 1978-89 के बीच विजय कुमार ने किया।
- प्रश्न 104 कालीबंगा का उत्खनन कार्य किसके नेतृत्व में निष्पादित हुआ था -
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- (अ) वी. एस. वाकणकर
- (ब) वी. एन. मिश्रा
- (स) एच. डी. सांकलिया
- (द) बी. बी. लाल
उत्तर : बी. बी. लाल
व्याख्या :
कालीबंगा का पता ‘पुरातत्व विभाग के निदेशक ए. एन. घोष’ ने सन् 1952 में लगाया था। सन् 1961-69 तक नौ सत्रों में बी. के. थापर, जे. वी. जोशी तथा बी. बी. लाल के निर्देशन में इस स्थल की खुदाई की गयी। कालीबंगा स्वतंत्र भारत का वह पहला पुरातात्विक स्थल है जिसका स्वतंत्रता के बाद पहली बार उत्खनन किया गया तत्पश्चात् रोपड़ का उत्खनन किया गया।
- प्रश्न 105 गिलुण्ड सभ्यता के अवशेष किस युग के हैं -
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- (अ) तांबा प्रस्तर युग
- (ब) लौह युग
- (स) प्रस्तर युग
- (द) मृद्भाण्ड युग
उत्तर : तांबा प्रस्तर युग
व्याख्या :
सन् 1957-58 में प्रो. बी.बी. लाल ने गिलूण्ड (राजसमन्द) पुरास्थल का उत्खनन किया। यह ताम्रयुगीन सभ्यता है।
- प्रश्न 106 दुर्गीकरण के पुरावशेष किस ताम्रपाषाण युगीन पुरास्थल से प्राप्त हुए हैं -
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- (अ) अहाड़
- (ब) बालाथल
- (स) गणेश्वर
- (द) गिलूण्ड
उत्तर : बालाथल
व्याख्या :
सन् 1993 में वी.एन. मिश्र द्वारा ई.पू. 3000 से लेकर ई.पू. 2500 तक की ताम्रपाषाण युगीन संस्कृति के बारे में पता चला है। बालाथल उदयपुर जिले की वल्लभनगर तहसील में स्थित है। यहाँ से एक दुर्गनुमा भवन भी मिला है तथा ग्यारह कमरों वाला विशाल भवन भी प्राप्त हुआ है।
- प्रश्न 107 प्राचीनतम जुते हुए खेत के पुरातात्विक अवशेष किस सांस्कृतिक स्तर से प्राप्त हुए हैं -
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- (अ) प्राक्हड़प्पा युगीन संस्कृति
- (ब) हड़प्पा युगीन संस्कृति
- (स) ताम्रपाषाण युगीन संस्कृति
- (द) नवपाषाण युगीन संस्कृति
उत्तर : प्राक्हड़प्पा युगीन संस्कृति
व्याख्या :
कालीबगा में प्राक्-हड़प्पा संस्कृति के अनेक स्थल पाए गए हैं। घग्गर नदी के बायें किनारे पर स्थित खेत तीसरी सहस्त्राब्दी ई. पू. के हैं। संसार भर में उत्खनन से प्राप्त खेतों में यह पहला है। इस खेत में दो तरह की फसलों को एक साथ उगाया जाता था, कम दूरी के सांचों में चना व अधिक दूरी के सांचों में सरसों बोई जाती थी।
- प्रश्न 108 राजस्थान के किस जिले में डडीकर शैलकला पुरास्थल स्थित है -
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- (अ) अलवर
- (ब) जयपुर
- (स) सीकर
- (द) बूंदी
उत्तर : अलवर
व्याख्या :
डडीकर - अलवर से पांच से सात हजार साल पुराने शैल चित्र मिले हैं।
- प्रश्न 109 मौर्ययुगीन बौद्ध स्तूप के पुरावशेष कहां से प्राप्त हुए हैं -
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- (अ) दौसा
- (ब) भानगढ़
- (स) बैराठ
- (द) सांभर
उत्तर : बैराठ
व्याख्या :
वर्ष 1999 में बीजक की पहाड़ी (बैराठ) से अशोककालीन ‘गोल बौद्ध मंदिर’, ‘स्तूप’ एवं ‘बौद्ध मठ’ के अवशेष मिले हैं जो हीनयान संप्रदाय से संबंधित हैं, ये भारत के प्राचीनतम् मंदिर माने जा सकते हैं।
- प्रश्न 110 कालीबंगा क्षेत्र से कितनी अग्निवेदिकाएं प्राप्त हुई है -
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- (अ) पांच
- (ब) सात
- (स) आठ
- (द) नौ
उत्तर : सात
व्याख्या :
कालीबंगा प्राचीन सरस्वती नदी के बाएं तट पर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ से लगभग 25 किमी. दक्षिण में स्थित है। यहां से ईटों से निर्मित चबुतरे पर सात अग्नि कुण्ड प्राप्त हुए है जिसमें राख एवम् पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई है।
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