राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
- प्रश्न 211 बूढ़ा पुष्कर, होकरा, जायल पुरास्थल किस काल से संबधित है -
Sr. Computer Instructor 2022 Paper 1 -
- (अ) नवपाषाण काल से
- (ब) पुरापाषाण काल से
- (स) कांस्य काल से
- (द) ताम्रपाषाण काल से
उत्तर : पुरापाषाण काल से
व्याख्या :
बूढ़ा पुष्कर, होकरा, जायल पुरापाषाण काल से संबधित है।
- प्रश्न 212 बीकानेर संग्रहालय में प्रदर्शित महिषासुरमर्दिनी की लाल मिट्टी की मूर्ति मूलतः कहाँ से प्राप्त हुई -
Head Master (Sanskrit Edu.) - 20211 (PAPER-I) -
- (अ) सांभर
- (ब) तक्षकगढ़
- (स) भटनेर
- (द) आमेर
उत्तर : भटनेर
व्याख्या :
बीकानेर संग्रहालय में प्रदर्शित महिषासुरमर्दिनी की लाल मिट्टी की मूर्ति भटनेर से प्राप्त हुई।
- प्रश्न 213 राजस्थान की ‘बनास संस्कृति’ संबद्ध है।
Head Master (Sanskrit Edu.) - 20211 (PAPER-I) -
- (अ) नवपाषाण काल से
- (ब) पुरापाषाण काल से
- (स) मध्यपाषाण काल से
- (द) ताम्रपाषाण काल से
उत्तर : ताम्रपाषाण काल से
व्याख्या :
उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर 500 मीटर लम्बे धूलकोट के नीचे आहड़ का पुराना कस्बा दवा हुआ है जहाँ से ताम्रयुगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। यह सभ्यता बनास नदी पर स्थित है। ताम्र सभ्यता के रूप में प्रसिद्ध यह सभ्यता आयड़/बेड़च नदी के किनारे मौजूद थी।
- प्रश्न 214 निम्नलिखित में से कौनसा (पुरातात्विक स्थल – नदी) सुमेलित नहीं है –
Forest Guard Exam 2022 Shift 1 -
- (अ) जोधपुरा – साबी
- (ब) ओझियाना – खारी
- (स) कालीबंगा – घग्गर
- (द) बलाथल – कांतली
उत्तर : बलाथल – कांतली
व्याख्या :
सन् 1993 में वी.एन. मिश्र द्वारा ई.पू. 3000 से लेकर ई.पू. 2500 तक की ताम्रपाषाण युगीन संस्कृति के बारे में पता चला है। बालाथल उदयपुर जिले की वल्लभनगर तहसील में स्थित है।
गणेश्वर और सुनारी पुरातात्विक स्थल नीम का थाना में कांतली नदी के तट पर स्थित है।
- प्रश्न 215 ब्राह्मी लिपि युक्त एक मिट्टी की मुहर कहाँ से प्राप्त हुई है -
School Lecturer 2022 History (Group - C) -
- (अ) बैराठ से
- (ब) रैरह से
- (स) रंगमहल से
- (द) सांभर से
उत्तर : रैरह से
व्याख्या :
ब्राह्मी लिपि युक्त एक मिट्टी की मुहर रैरह (रैढ़, टोंक) से प्राप्त हुई है।
- प्रश्न 216 निम्न में से कौनसा एक युग्म सही सुमेलित नहीं है -
School Lecturer 2022 History (Group - C) -
- (अ) बागोर - सूक्ष्म पाषाण उपकरण
- (ब) कालीबंगा - दुर्गीकरण
- (स) गणेश्वर- काले चमकीले मृदभांड
- (द) बैराठ - बौद्ध विहार
उत्तर : गणेश्वर- काले चमकीले मृदभांड
व्याख्या :
गणेश्वर का टीला, नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर अवस्थित है। यहां से शुद्ध तांबे निर्मित तीर, भाले, तलवार, बर्तन, आभुषण, सुईयां मिले हैं। यहां से तांबे का निर्यात भी किया जाता था। सिंधु घाटी के लोगों को तांबे की आपूर्ति यहीं से होती थी।
- प्रश्न 217 राजस्थान में किस स्थल पर एक कंकाल के गले मैं पत्थर व हड्डियों का हार पाया गया था -
School Lecturer 2022 History (Group - C) -
- (अ) बागोर
- (ब) आहड़
- (स) तिलवाड़ा
- (द) धनेरी
उत्तर : बागोर
व्याख्या :
भीलवाड़ा कस्बे से 25 किलोमीटर दूर कोठारी नदी के किनारे वर्ष 1967-68 में डॉ. वीरेंद्रनाथ मिश्र, डॉ. एल.एस. लेश्निक व डेक्कन कॉलेज पूना और राजस्थान पुरातत्व विभाग के सहयोग से की गयी खुदाई में 3000 ई.पू. से लेकर 500 ई.पू. तक के काल की बागौर सभ्यता का पता लगा।
- प्रश्न 218 सात अग्नि वेदिकाओं की पंक्ति प्राप्त हुई है –
Forest Guard Exam 2022 Shift 3 -
- (अ) गणेश्वर से
- (ब) कालीबंगा से
- (स) बैराठ से
- (द) आहड़ से
उत्तर : कालीबंगा से
व्याख्या :
कालीबंगा से ईटों से निर्मित चबुतरे पर सात अग्नि कुण्ड प्राप्त हुए है जिसमें राख एवम् पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई है।
- प्रश्न 219 निम्नलिखित कथनों को पढ़िए –
(i) विराटनगर जिसे पहले बैराठ के नाम से जाना जात था, जोधपुर का एक शहर है।
(ii) बैराठ, मौर्य साम्राज्य का हिस्सा था।
सही कूट चुनिए –
Forest Guard Exam 2022 Shift 3 -
- (अ) केवल (i) सही है
- (ब) केवल (ii) सही है
- (स) न तो (i) ना ही (ii) सही है
- (द) दोनों कथन सही हैं
उत्तर : केवल (ii) सही है
व्याख्या :
प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (वर्तमान बैराठ) में ‘बीजक की पहाड़ी’, ‘भीमजी की डूँगरी’ मोती डूंगरी तथा ‘महादेवजी की डूँगरी’ आदि स्थानों पर उत्खनन कार्य दयाराम साहनी द्वारा 1936-37 में तथा पुनः 1962-63 में पुरातत्वविद् नीलरत्न बनर्जी तथा कैलाशनाथ दीक्षित द्वारा किया गया।
- प्रश्न 220 भीम की डूंगरी एवं बीजक की पहाड़ी राजस्थान की किस सभ्यता से संबंधित स्थल हैं -
Forest Guard Exam 2022 Shift 4 -
- (अ) आहड़ सभ्यता
- (ब) कालीबंगा सभ्यता
- (स) गणेश्वर सभ्यता
- (द) बैराठ सभ्यता
उत्तर : बैराठ सभ्यता
व्याख्या :
प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (वर्तमान बैराठ) में ‘बीजक की पहाड़ी’, ‘भीमजी की डूँगरी’ मोती डूंगरी तथा ‘महादेवजी की डूँगरी’ आदि स्थानों पर उत्खनन कार्य दयाराम साहनी द्वारा 1936-37 में तथा पुनः 1962-63 में पुरातत्वविद् नीलरत्न बनर्जी तथा कैलाशनाथ दीक्षित द्वारा किया गया।
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