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राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ

प्रश्न 81 पुरास्थल आहड़ को किस वंश ने अपनी राजधानी के रूप में अपनाया -
  • (अ) परमार वंश
  • (ब) गुर्जर-प्रतिहार वंश
  • (स) चौहान वंश
  • (द) गुहिल वंश
उत्तर : गुहिल वंश
व्याख्या :
मेवाड़ के प्राचीन गुहिल वंश के शासकों ने आहड़ को अपनी राजधानी के रूप में प्रयुक्त किया।
प्रश्न 82 आहड़ सभ्यता के सन्दर्भ में गलत कथन है -
  • (अ) यहां से अनाज भरने के मृद्भाण्ड(पात्र) गौर-कोट मिले हैं।
  • (ब) इस स्थल से यूनानी देवता अपोलो की आकृति प्राप्त हुई।
  • (स) इस सभ्यता से गांधार शैली के प्रमाण मिले हैं।
  • (द) आहड़वासी उल्टी तपाई शैली को अपनाते थे।
उत्तर : इस सभ्यता से गांधार शैली के प्रमाण मिले हैं।
व्याख्या :
हनुमानगढ़ जिले में स्थित रंगमहल सभ्यता से गांधार शैली के प्रमाण मिले हैं।
प्रश्न 83 इतिहासकार दयाराम साहनी के अनुसार हूण शासक मिहिरकुल ने किस सभ्यता का विध्वंस किया -
  • (अ) कालहबंगा
  • (ब) आहड़
  • (स) बैराठ
  • (द) बागोर
उत्तर : बैराठ
व्याख्या :
प्रसिद्ध इतिहासकार दयाराम साहनी के अनुसार हूण शसक मिहिरकुल ने बैराठ सभ्यता का विध्वंस कर दिया था।
प्रश्न 84 तरखानवाला डेरा जहां आर्य सभ्यता के प्रमाण मिले हैं, स्थित है -
  • (अ) बीकानेर
  • (ब) जोधपुर
  • (स) नागौर
  • (द) श्रीगंगानगर
उत्तर : श्रीगंगानगर
व्याख्या :
डेरा तरखानवाला श्रीगंगानगर में है।
प्रश्न 85 प्राचीन पुरातात्विक स्थल ‘गरदड़ा’ किस नदी के किनारे विकसित हुआ -
  • (अ) परवन
  • (ब) जाखम
  • (स) छाजा
  • (द) घोड़ा पछाड़
उत्तर : छाजा
व्याख्या :
बूंदी जिले की छाजा नदी के तट पर स्थित गरदड़ा अपने शैल चित्रों के लिए विख्यात है। यहां से प्राप्त बर्ड राइडर राॅक पेन्टिंग्स को ‘भारत की प्राचीनतम बर्ड राइडर राॅक पेन्टिंग्स’ माना गया है।
प्रश्न 86 राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य सर्वप्रथम(1871 ई.) प्रारम्भ करने का श्रेय किसे जाता है -
  • (अ) ए.सी.एल. कार्लाइल
  • (ब) एच.डी. सांकलिया
  • (स) बी.बी. लाल
  • (द) ए. कनिंघम
उत्तर : ए.सी.एल. कार्लाइल
व्याख्या :
राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य सर्वप्रथम 1871 ई. में प्रारम्भ करने का श्रेय ए.सी.एल. कार्लाइल को दिया जाता है। उन्होंने दौसा क्षेत्र से कठोर पाषाण व मानव अस्थियों की प्राप्ति की सूचना दी।
प्रश्न 87 साबी नदी के तट पर प्राचीन राजस्थान की सभ्यता का कौनसा स्थल बसा हुआ था -
  • (अ) गिलुंड
  • (ब) जोधपुरा
  • (स) नगरी
  • (द) बरोर
उत्तर : जोधपुरा
व्याख्या :
जयपुर जिले में साबी नदी तट पर जोधपुरा गाँव में 1972-75 ई. में उत्खनन में जोधपुर सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए। यह सभ्यता 2500 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के मध्य फली फूली।
प्रश्न 88 आहड़ में खुदाई से काले व लाल रंग के मृदभाण्ड जो उपलब्ध हुए हैं, उन्हें किस शैली से पकाया जाता था -
  • (अ) खुली तपाई शैली
  • (ब) बन्द भट्ट तपाई शैली
  • (स) उल्टी तपाई शैली
  • (द) उपर्युक्त सभी
उत्तर : उल्टी तपाई शैली
व्याख्या :
उत्खनन में मृदभांड सर्वाधिक मिले है। यहाँ मिले बर्तनो में भोजन के बर्तन की पाश्र्वभूमि काली है, किनारा लाल तथा कुछ बर्तनो में सफेदी से चित्रकारी भी की गई है। यह मृदभांड आहड़ को लाल-काले मृदभांड वाली संस्कृति का प्रमुख केंद्र सिद्ध करते है। आहड़ में खुदाई से मिले काले और लाल रंग के मृदभांडों को उल्टी तपाई शैली से पकाया जाता था
प्रश्न 89 कालीबंगा के संदर्भ में असत्य कथन है -
  • (अ) यहां पत्थर के बने तौलने के बाट मिले हैं।
  • (ब) यहां बैलगाड़ी के खिलौने मिले हैं।
  • (स) यहां विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं।
  • (द) यहां लोहे के बने उपकरण मिले हैं।
उत्तर : यहां लोहे के बने उपकरण मिले हैं।
व्याख्या :
कालीबंगा प्राचीन सरस्वती नदी के बाएं तट पर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ से लगभग 25 किमी. दक्षिण में स्थित है। वर्तमान में यहाँ घग्घर नदी बहती है। कालीबंगा में पूर्व हड़प्पाकालीन, ‘हड़प्पाकालीन’ तथा ‘उत्तर हड़प्पाकालीन’ सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां से लोहे के बने उपकरण नहीं मिले हैं। यह कांस्ययुगीन सभ्‍यता थी।
प्रश्न 90 आहड़ सभ्यता की सर्वप्रथम खुदाई किसने की थी -
Junior Instructor(copa)
  • (अ) वी.एन. मिश्रा
  • (ब) अक्षय कीर्ती व्यास
  • (स) ललित पांडे
  • (द) वी.एस.सिंधे
उत्तर : अक्षय कीर्ती व्यास
व्याख्या :
उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर 500 मीटर लम्बे धूलकोट के नीचे आहड़ का पुराना कस्बा दवा हुआ है जहाँ से ताम्रयुगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। यह सभ्यता बनास नदी पर स्थित है। इस स्थल के उत्खनन का कार्य सर्वप्रथम 1953 में अक्षय कीर्ति व्यास के नेतृत्व में हुआ। 1956 ई. में श्री रतचंद्र अग्रवाल की देखरेख में खनन कार्य हुआ। इसके उपरांत डॉ. एच.डी. सांकलिया, डेकन कॉलेज पूना, पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग, राजस्थान तथा मेलबोर्न विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के संयुक्त अभियान में वर्ष 1961-62 के दौरान इस स्थल का उत्खनन कार्य किया गया।

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