राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ
प्रश्न 11 ताम्रवती नगरी के रूप में जाना जाता है -
(अ) गणेश्वर
(ब) आहड़
(स) बेराठ
(द) बागौर
व्याख्या :
उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर 500 मीटर लम्बे धूलकोट के नीचे आहड़ का पुराना कस्बा दवा हुआ है जहाँ से ताम्रयुगीन सभ्यता प्राप्त हुई है। यह सभ्यता बनास नदी पर स्थित है। ताम्र सभ्यता के रूप में प्रसिद्ध यह सभ्यता आयड़/बेड़च नदी के किनारे मौजूद थी। प्राचीन शिलालेखों में आहड़ का पुराना नाम ‘ताम्रवती’ अंकित है। दसवीं व ग्याहरवीं शताब्दी में इसे ‘आघाटपुर’ अथवा ‘आघट दुर्ग’ के नाम से जाना जाता था। इसे ‘धूलकोट’ भी कहा जाता है।
प्रश्न 12 कालीबंगा सभ्यता के लोग किस लिपि का प्रयोग करते थे -
(अ) पाली
(ब) सैन्धव
(स) खरोष्ठी
(द) प्राकृत
व्याख्या :
कालीबंगा स्वतंत्र भारत का वह पहला पुरातात्विक स्थल है जिसका स्वतंत्रता के बाद पहली बार उत्खनन किया गया तत्पश्चात् रोपड़ का उत्खनन किया गया। कालीबंगा सभ्यता के लोग सैंधव लिपि का इस्तेमाल करते थे।
प्रश्न 13 कालीबंगा संस्कृति की खोज 1953 में सर्वप्रथम किसके द्वारा की गई थी -
(अ) अमलांद घोष
(ब) बी. वी. लाल
(स) थापर
(द) उपरोक्त सभी
व्याख्या :
कालीबंगा प्राचीन सरस्वती नदी के बाएं तट पर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ से लगभग 25 किमी. दक्षिण में स्थित है। वर्तमान में यहाँ घग्घर नदी बहती है। कालीबंगा में पूर्व हड़प्पाकालीन, ‘हड़प्पाकालीन’ तथा ‘उत्तर हड़प्पाकालीन’ सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। खुदाई के दौरान मिली काली चूड़ियों के टुकड़ों के कारण इस स्थान को कालीबंगा कहा जाता है क्योंकि पंजाबी में बंगा का अर्थ चूड़ी होता है। इस स्थान का पता ‘पुरातत्व विभाग के निदेशक ए. एन. घोष’ ने सन् 1952 में लगाया था। सन् 1961-69 तक नौ सत्रों में बी. के. थापर, जे. वी. जोशी तथा बी. बी. लाल के निर्देशन में इस स्थल की खुदाई की गयी।
प्रश्न 14 राजस्थान में कालीबंगा किस जिले में हैं -
(अ) बीकानेर
(ब) हनुमानगढ़
(स) उदयपुर
(द) जयपुर
व्याख्या :
कालीबंगा प्राचीन सरस्वती नदी के बाएं तट पर जिला मुख्यालय हनुमानगढ़ से लगभग 25 किमी. दक्षिण में स्थित है। वर्तमान में यहाँ घग्घर नदी बहती है। कालीबंगा में पूर्व हड़प्पाकालीन, ‘हड़प्पाकालीन’ तथा ‘उत्तर हड़प्पाकालीन’ सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 15 राजस्थान की किस सभ्यता में अलंकृत ईंटों से निर्मित फर्श का अवशेष मिला हैं -
(अ) आहड़
(ब) कालीबंगा
(स) बालाथल
(द) बैराठ
व्याख्या :
कालीबंगा का एक फर्श पूरे हड़प्पा काल का एकमात्र ऐसा उदाहरण है जहां अलंकृत ईटों का प्रयोग हुआ है। इस पर प्रतिच्छेदी वृत्त का अलंकरण है।
प्रश्न 16 महाभारत काल के अवशेष कहां मिले हैं -
(अ) श्रीगंगानगर में
(ब) बैराठ व नोह में
(स) माउण्ट आबू में
(द) नलियासर में
व्याख्या :
पाण्डुओं ने अपने 1 वर्ष का अज्ञातवास विराटनगर के राजा विराट के यहां व्यतित किया था। भरतपुर जिले में स्थित नोह गाँव में 1963-64 ई. में श्री रतनचन्द्र अग्रवाल के निर्देशन में की गई खुदाई में लौह युगीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं। यहाँ महाभारतकालीन, कुषाणकालीन और मौर्यकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 17 मौर्यकाल के अवशेष राजस्थान में कहां मिले हैं -
(अ) बैराठ एवं कणसवा गांव में
(ब) जालौर जिले के भीनमाल में
(स) नलियासर में
(द) नोह में
व्याख्या :
बैराठ एवं कणसवा गांव (कोटा) में मौर्यकाल के अवशेष मिले हैं। बैराठ की प्रांरंभिक और सर्वप्रथम खोज का कार्य 1837 ई. में कैप्टन बर्ट द्वारा किया गया। इन्होंने विराटनगर में मौर्य सम्राट अशोक का प्रथम भाब्रू शिलालेख खोज निकाला और यह 1840 ई. से एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल, कलकत्ता संग्रहालय में सुरक्षित है। कणसवा का लेख (738 ई.) में मौर्य राजा धवल का उल्लेख मिलता हैं।
प्रश्न 18 राज्य में शंख लिपि के प्रमाण बहुतायत में किस स्थान पर मिले हैं -
(अ) दिलवाड़ा
(ब) रणकपुर
(स) विराट नगर
(द) नगरी
व्याख्या :
शंख लिपि को विराटनगर से संबंधित माना जाता है।
प्रश्न 19 राजस्थान में ताम्र युगीन सभ्यताओं की जननी कहा जाता है।
(अ) बैराठ
(ब) आहड़
(स) गणेश्वर
(द) रैढ़
व्याख्या :
गणेश्वर का टीला, नीम का थाना में कांतली नदी के उद्गम स्थल पर अवस्थित है। गणेश्वर में रत्नचंद्र अग्रवाल ने 1977 में खुदाई कर इस सभ्यता पर प्रकाश डाला। डी.पी. अग्रवाल ने रेडियो कार्बन विधि एवं तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर इस स्थल की तिथि 2800 ईसा पूर्व निर्धारित की है अर्थात् गणेश्वर सभ्यता पूर्व-हड़प्पा कालीन सभ्यता है। ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में से प्राप्त तिथियों में यह प्राचीनतम् है। इस प्रकार गणेश्वर संस्कृति को निर्विवाद रूप से ‘भारत में ताम्रयुगीन सभ्यताओं की जननी’ माना जा सकता है।
प्रश्न 20 सैन्धव लिपि किस प्रकार प्रयोग में ली जाती थी -
(अ) ऊपर से नीचे की ओर
(ब) बायीं से दायीं ओर
(स) दायीं से बायीं ओर
(द) नीचे से ऊपर की ओर
व्याख्या :
सिंधु घाटी की लिपि लघु चित्रात्मक अभिलेख के रूप में थी। ऐसा प्रतीत होता है कि लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाता थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौड़ा अंतराल है और बाईं ओर संकुचित होती थी, जिससे यह प्रतीत होता उत्कीर्णक ने दाई ओर से लिखना प्रारंभ किया और बाद में बाई ओर स्थान कम पड़ गया।
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