भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान की गतिविधियों की शुरुआत 1960 के दौरान हुई थी। अमेरिका में भी उपग्रहों का इस्तेमाल करने वाले अनुप्रयोग परीक्षणात्मक चरणों पर थे। अमेरिकी उपग्रह ‘सिनकॉम-3’ द्वारा प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में तोक्यो ओलिंपिक खेलों के सीधे प्रसारण ने संचार उपग्रहों की क्षमता को प्रदर्शित किया, जिससे वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक ने तत्काल भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के फायदों को पहचाना। इसके बाद 16 फरवरी 1962 को परमाणु ऊर्जा विभाग ने अंतरिक्ष अनुसंधान राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) का गठन किया और तुंबा भूमध्यरेखीय रॉकेट लॉन्चिंग सेंटर (टर्ल्स) ने काम करना शुरू किया।
उस समय तिरुअनंतपुरम के बाहरी इलाके में स्थित तुंबा के भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन (टर्ल्स) में इमारत नाम की कोई चीज नहीं थी। वहां के सेंट मैरी मैगदालेने गिरजाघर के बिशप का घर ही परियोजना-निदेशक का कार्यालय बन गया था और चर्च की इमारत में कंट्रोल रूम खोल दिया गया था। पहला रॉकेट, नैकी-अपाची, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से प्राप्त किया गया था, जिसे 21 नवंबर, 1963 को प्रमोचित किया गया। 21 नवंबर, 1963 को यहीं से रॉकेट के प्रक्षेपण के बाद धुएं की लकीर के सहारे खाली आंखों से रॉकेट की ट्रैकिंग की जा रही थी। रॉकेट के हिस्सों और पेलोड को बैलगाड़ियों और साइकिलों पर लाद कर लॉन्च पैड तक पहुंचाया गया।
भारत का पहला स्वदेशी परिज्ञापी राकेट, आरएच-75, 20 नवंबर, 1967 में प्रमोचित किया गया। इसरो(भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) का गठन 15 अगस्त, 1969 को हुआ था। अंतरिक्ष विभाग (अं.वि.) और अंतरिक्ष आयोग को सन् 1972 में स्थापित किया गया। 01 जून, 1972 में इसरो को अंतरिक्ष विभाग के अंदर शामिल किया गया। 19 अप्रैल 1975 में भारत ने पहली बार अपना परीक्षण उपग्रह आर्यभट्ट एक रूसी रॉकेट के जरिए आसमान में छोड़ा।
भारत के सैटेलाइट प्रोग्राम को नई दिशा देने के कारण डॉक्टर यूआर राव को 'सैटेलाइट मैन ऑफ़ इंडिया' के नाम से भी जाना जाता है। भारत ने उनके नेतृत्व में ही साल 1975 में अपने पहले उपग्रह 'आर्यभट्ट' का अंतरिक्ष में सफल प्रक्षेपण किया था।
बुनियादी ढांचे के न होने से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन बेंगलुरू के वैज्ञानिकों ने उस समय एक शौचालय को आंकड़े प्राप्त करने के केंद्र में बदल दिया था। आज हमारा देश अपने लिए और दूसरे देशों के लिए उपग्रहों का निर्माण करने के साथ-साथ उनक प्रक्षेपण भी कर रहा है।
18 जुलाई 1980 को भारत ने पहले स्वदेशी सैटलाइट वीइकल SLV-3 के जरिए रोहिणी सैटलाइट को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया। आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से यह सैटलाइट लॉन्च किया गया था। इसके बाद भारत अंतरिक्ष में दबदबा बनाने वाले 6 देशों के क्लब में शामिल हो गया था।
1984 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और सोवियत संघ के इंटरकॉसमॉस कार्यक्रम के एक संयुक्त अंतरिक्ष अभियान के तहत राकेश शर्मा 8 दिन तक अंतरिक्ष में रहे। वह उस समय भारतीय वायुसेना के स्क्वॉड्रन लीडर और विमानचालक थे। 2 अप्रैल 1984 को दो अन्य सोवियत अंतरिक्षयात्रियों के साथ सोयूज टी-11 में राकेश शर्मा को लॉन्च किया गया था। उनकी अंतरिक्ष उड़ान के दौरान भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राकेश शर्मा से पूछा था कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है। राकेश शर्मा ने उत्तर दिया था, 'सारे जहां से अच्छा'।
SLV-3 की तुलना में ज्यादा पेलोड ले जाने में सक्षण ASLV प्रोग्राम की शुरुआत मार्च 1987 से हुई। यह पहले यान की तुलना में सस्ता भी था। 24 मार्च 1987 को एएसएलवी केऑनबोर्ड पर स्रोस-1 ने पहली उड़ान भरी लेकिन इसे कक्षा में नहीं रखा जा सका।
भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को अपना पहला चंद्र मिशन चंद्रयान-1 श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया। यह 2009 तक काम कर रहा था। खास बात यह है कि इस मिशन की घोषणा भी पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 2003 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में की थी। ISRO अब इसी साल चंद्रयान 2 को लॉन्च करने की भी योजना बना रहा है।
भारत ने 5 नवंबर 2013 को मंगल ग्रह की परिक्रमा के लिए आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से पहला मंगल मिशन मंगलयान लॉन्च किया। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया है जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं। खास बात यह है कि एशिया में इसरो ही ऐसी स्पेस एजेंसी है जिसका मंगल मिशन सफल रहा हो। यह यान 24 सितंबर 2014 को मंगल पर सफलतापूर्वक पहुंच गया था।
साल 2018 फरवरी में भारत ने पीएसएलवी सी-37 के जरिए एकसाथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में नया अध्याय लिखा। इनमें कार्टोसैट श्रृंखला का कार्टोसैट-2 उपग्रह भी शामिल था। यह रॉकेट 6 अलग-अलग देशों के पेलोड लेकर रवाना हुआ था। इस शानदार कामयाबी ने भारत को दुनिया में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की सुविधा प्रदान करने वाले देश के रूप में स्थापित कर दिया।
भारत के नए संचार उपग्रह जीसैट-17 को 28 जून को फ्रेंच गियाना से एरियन-5 रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। इससे मौसम संबंधी और उपग्रह आधारित खोज व बचाव सेवाओं में मदद मिलेगी जो अब तक भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इनसैट) के जरिए संचालित की जाती थीं।
इसरो ने पीएसएलवी सी-38 का प्रक्षेपण किया। इसके जरिए पृथ्वी के प्रेक्षण के लिए 712 किलोग्राम वजन के कार्टोसेट-2 के साथ-साथ छोटे-छोटे 30 अन्य उपग्रह भी आकाश में भेजे गए जिनमें से कई यूरोप के देशों के थे। पीएसएलवी का यह एक के बाद दूसरी लगातार सफलता प्राप्त करने वाला 39वां मिशन था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 72वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐलान किया कि भारत 2022 तक यानी अगले 4 साल के अंदर अंतरिक्ष में अपना मानव मिशन पहुंचाएगा। अगर यह मिशन हकीकत में तब्दील हुआ, तो हर साल नए कीर्तिमान गढ़ रहे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के लिए यह सबसे स्वर्णिम पल होगा। भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद ऐसा चौथा मुल्क बन जाएगा, जिसने अपने नागरिक को अंतरिक्ष में भेजा है। पीएम की इस घोषणा पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपनी प्रतिबद्धता जताई है। इसरो के चेयरमैन ने कहा है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्राथमिकता के आधार पर जुट जाने की जरूरत है। इसरो ने एक कैप्सूल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिसे अंतरिक्ष यात्री अपने साथ ले जा सकेंगे। श्रीहरिकोटा में यह परीक्षण किया गया। कैप्सूल का प्रयोग अतंरिक्ष यात्री स्पेस में किसी दुर्घटना के वक्त अपनी सुरक्षा के लिए कर सकेंगे।
यह अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र त्रिवेन्द्रम (तिरुअनंतपुरम) के थुम्बा नामक स्थान पर स्थित है. इसके दो और केंद्र हैं – – i) वालियामाला ii) वोटीयूरकावू. अलवई में अमोनियम परकोलेट एक्सपेरीमेंट संयत्र हैं. VSSC इसरो (ISRO – भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान) का सबसे बड़ा केंद्र है. केंद्र देशी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से Satellite Launch Vehicle विकास कार्य को समर्पित है. VSSC के तहत स्पेस Physics Laboratory भी है.
यह केंद्र बंगलौर में स्थित है. वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी व अन्य उद्देश्यों के लिए तैयार होने वाले सैटेलाइट से सम्बंधित डिजाइन, परीक्षण व अन्य कार्यों को यहाँ अंजाम दिया जाता है. आर्यभट्ट, भास्कर, एप्पल और IRS-1A सैटेलाइट इसी केंद्र में तैयार किए गए थे. IRS और INSAT शृंखला के satellites यहाँ बनाए जाते हैं.
यह केंद्र आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा आइलैंड पर स्थित है. Sattelite Launch Vehicle (SLV) और rockets को अंतरिक्ष में छोड़े जाने का यही मुख्य केंद्र है. देश का सबसे बड़ा, Solid Propellant Booster Plant (SPROB) भी यहीं स्थित है. यह केंद्र पूरी तरह से computerized है.
इस केंद्र के तहत अंतरिक्षयानों को छोड़े जाने से सम्बंधित प्रणाली विकसित की जाती है. इसके लिए बंगलौर में एक केंद्र है. दूसरा केंद्र तिरुअंतपुरम में है जहाँ Launch Vehicle Propalsan System से सम्बंधित कार्य किये जाते हैं. मुख्य परीक्षण व अनुसंधान केंद्र तमिलनाडु के महेंद्रगिरी नामक स्थान पर है.
यह केंद्र अहमदाबाद में स्थित है. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से सबंधित तमाम तरह के अनुसंधान कार्य यहीं संचालित होते हैं. यह केंद्र नयी परियोजनाओं की रुपरेखा तैयार करती है. TV, दूरसंचार से सबंधित प्रौद्योगिकी पर भी अनुसंधान व विकास कार्य चलते रहते हैं.
यह केंद्र अहमदाबाद में स्थित है. यह अंतरिक्ष व दूरसंचार से सबंधित विभिन्न सॉफ्टवेयरों के अनुसंधान व विकास को समर्पित है. दूरदर्शन के कर्मचारियों को प्रशिक्षण व अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से सबंधित अध्ययन के लिए भी यह केंद्र जाना जाता है.
इसके अतिरिक्त ये संस्थान भी हैं:—
इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियों की स्थापना की है, संचार, दूरदर्शन प्रसारण तथा मौसम-विज्ञान सेवाओं के लिए इन्सैट, और संसाधन मॉनिटरन और प्रबंधन के लिए भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) प्रणाली। इसरो ने अभीष्ट कक्ष में इन्सैट और आईआरएस की स्थापना के लिए दो उपग्रह प्रमोचन यान, पीएसएलवी और जीएसएलवी विकसित किए हैं।
उपग्रहों को इसरो उपग्रह केंद्र (आईजैक) में बनाया जाता है।
राकेट/ प्रमोचन यान विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी), तिरुवनंतपुरम में बनाए जाते हैं।
इसरो की प्रमोचन सुविधा एसडीएससी शार में स्थित है, जहाँ से प्रमोचन यानों और परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है। तिरुवनंतपुरम स्थित टर्ल्स से भी परिज्ञापीराकेटों का प्रमोचन किया जाता है।
आप राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद से आँकड़े प्राप्त कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट: www.nrsc.gov.in देखें।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बाभूमध्यरेखीयराकेट प्रमोचन केंद्र (टर्ल्स) में हुआ।
राकेट प्रमोचन केंद्र के रूप में थुम्बा का चुनाव क्यों किया गया ? -पृथ्वी की भू-चुंबकीय भूमध्यरेखा थुम्बा से हो कर गुज़रती है।
देश भर में इसरो छह प्रमुख केंद्र(विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) तिरुवनंतपुरम में;इसरो उपग्रह केंद्र (आईएसएसी) बेंगलूर में;सतीशधवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी-शार) श्रीहरिकोटा में; द्रव नोदन प्रणाली केंद्र (एलपीएससी) तिरुवनंतपुरम, बेंगलूर और महेंद्रगिरी में, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (सैक), अहमदाबाद में और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), हैदराबाद में स्थित हैं।) तथा कई अन्य इकाइयाँ, एजेंसी, सुविधाएँ और प्रयोगशालाएँ स्थापित हैं।
वीएसएससी, तिरुवनंतपुरम में प्रमोचन यान का निर्माण किया जाता है; आइजैक, बेंगलूर में उपग्रहों को अभिकल्पित और विकसित किया जाता है;एसडीएससी, श्रीहरिकोटा में उपग्रहों और प्रमोचन यानों का एकीकरण और प्रमोचन किया जाता है; एलपीएससी में निम्नतापीय चरण सहित द्रव चरणों का विकास किया जाता है, सैक, अहमदाबाद में संचार और सुदूर संवेदन उपग्रहों के लिए संवेदकों तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग संवंधित का कार्य किए जाते हैं तथा; एनआरएससी, हैदराबाद द्वारा सुदूर संवेदन आँकड़ा अभिग्रहण, संसाधन और वितरण का कार्य सँभाला जाता है।
उपग्रहों को मोटे तौर पर दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है, यथा संचार उपग्रह और सुदूर संवेदन उपग्रह।
एनएनआरएमएस राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली के लिए परिवर्णी शब्द है। एनएनआरएमएस एकीकृत संसाधन प्रबंधन प्रणाली है जिसका लक्ष्य परंपरागत प्रौद्योगिकी के साथ सुदूर संवेदन आंकड़ों के प्रयोग द्वारा देश के प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग तथा उपलब्ध संसाधनों का सुव्यवस्थित सूचीकरण करना है।
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