वह भौतिक साधन जो वस्तुओं को देखने में काम आता है।
प्रकाश विधुत चुम्बकीय तरंगों का ही भाग है। जिसे हम देख सकते है। प्रकाश की सम्पुर्ण गुणों की व्याख्या के लिए प्रकाश के फोटाॅन सिद्धान्त का सहारा लेना पड़ता है। क्योंकि विधुत चुम्बकीय प्रकृति के आधार पर प्रकाश के कुछ गुणों जैसे परावर्तन, अपवर्तन, विवर्तन, व्यतिकरण एवं ध्रुवण की तो व्याख्या कि जा सकती है। जो प्रकाश को तरंग रूप में मानते है। लेकिन प्रकाश विधुत प्रभाव तथा क्राॅम्पटन प्रभाव के लिए आइन्स्टीन के फोटाॅन सिद्धान्त का उपयोग किया जाता है। फोटाॅन सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोट- छोटे पैकेटों के रूप में है जिन्हें फोटाॅन कहते है।
प्रकाश किरण का किसी सतह से टकराकर पुनः उसी माध्यम में लौट आना परावर्तन कहलाता है।
आपतीत किरण, अभिलम्ब एवं परावर्तीत किरण तीनों एक ही तल में होने चाहिए। परावर्तन कोण एवं आपतन कोण का मान बराबर होना चाहिए।
जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में परिवर्तीत होती है। तो कला में कोई परिवर्तन नहीं होता। लेकिन विरल से सघन माध्यम में जाते हुए परिवर्तीत होती है तो कला में पाई π का अन्तर आ जाता है।
आपतित किरण - सतह पर पड़ने वाली किरण
परावर्तित किरण - टकराने के पश्चात लौटने वाली किरण
आपतन कोण - अभिलम्ब व आपतित किरण के बिच का कोण
परावर्तन कोण - अभिलम्ब व परावर्तित किरण के बिच का कोण।
दर्पण में प्रतिबिम्ब का दिखाई देना।
ग्रहों का चमकना।
वस्तुओं के रंग का निर्धारण।
जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है। तो एक विशिष्ट आपतन कोण पर किरण समकोण पर अपवर्तित होती है। इस कोण को क्रान्तिक कोण कहते है। यदि आपतन कोण क्रान्तिक कोण से अधिक हो जाये तो प्रकाश किरण वापस उसी माध्यम में लौट आती है। इसे पुर्ण आन्तरिक परावर्तन कहते है।
परावर्तन में प्रकाश किरण की आवृति परावर्तन के बाद कम हो जाती है। पूर्ण आन्तरिक परावर्तन में प्रकाश किरण की आवृति नहीं बदलती है।
हिरे का चमकना।
मृग मरीचिका।
पानी में डुबी परखनली का चमकीला दिखाई देना।
कांच का चटका हुआ भाग चमकीला दिखाई देना।
एक माध्यम से दुसरे माध्यम में प्रवेश करते समय प्रकाश किरण का मार्ग से विचलित हो जाना प्रकाश का अपवर्तन कहलाता है।
जब प्रकाश किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम की ओर जाती है। तो अभिलम्ब की ओर झुक जाती है। जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में आती है तो अभिलम्ब से दुर हट जाती है।
अपवर्तन में प्रकाश का तरंग दैध्र्य व प्रकाश का वेग बदलते हैं। जबकि आवर्ती नहीं बदलती।
μ = sin i/sin r = sin θ
μ = निर्वात में प्रकाश का वेग/माध्यम में प्रकाश का वेग
पानी में सिक्का ऊपर उठा हुआ दिखाई देता है।
तारों का टिमटिमाना
पानी में रखी झड़ का मुड़ा हुआ दिखाई देना।
सूर्य उदय से पहले सूर्य का दिखाई देना।
जब श्वेत प्रकाश को प्रिज्म में से गुजारा जाता है तो वह सात रंगों में विभक्त हो जाता है। इस घटना को वर्ण विक्षेपण कहते है तथा प्राप्त रंगों के समुह को वर्ण क्रम कहते है। अधिक तरंग दैध्र्य वाले प्रकाश अर्थात लाल रंग का विचलन कम तथा कम तरंगदैध्र्य वाले प्रकाश अर्थात बैंगनी का विचलन अधिक होता है।
ये सात रंग है - बैंगनी(Voilet) ,जामुनी(Indigo), आसमानी(Blue), हरा(Green), पीला(Yellow), नारंगी(Orange), तथा लाल(Red) निचे से ऊपर तक क्योंकि बैंगनी रंग में विक्षेपण सबसे अधिक व लाल रंग में सबसे कम होता है।
इसे आप ट्रिक
रोय(ROY) जी(G) की बीवी(BIV) से याद रख सकते हैं जो कि ऊपर से निचे है।
आपतित किरण को आगे बढ़ाने पर तथा निर्गत किरण को पीछे बढ़ाने पर उनके मध्य जो कोण बनता है उसे प्रिज्म कोण कहते है।
यह परावर्तन, अपवर्तन, पूर्ण आन्तरिक परावर्तन और वर्ण विक्षेपण की घटना होती है।
प्रथम - लाल - हरा - बैंगनी
द्वितिय - बैंगनी - हरा - लाल
वस्तुओं का अपना कोई रंग नहीं होता। प्रकाश का कुछ भाग वस्तुएं अवशोषित कर लेती हैं। जबकि कुछ भाग परावर्तित करती है। परावर्तित भाग ही वस्तु का रंग निर्धारित करता है। सफेद प्रकाश में कोई वस्तु लाल इसलिए दिखाई देती है क्योंकि वह प्रकाश के लाल भाग को परावर्तित करती है। जबकि अन्य सभी को अवशोषित करती है। अपादर्शी वस्तुओं का रंग परावर्तित प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है। जबकि पारदर्शी वस्तु का रंग उनसे पार होने वाले प्रकाश के रंग पर निर्भर करता है।
जो वस्तु सभी प्रकाशीय रंगों को परावर्तित करती है सफेद दिखती है तथा जो सभी रंगों को अवशोषित कर लेती है काली दिखती है।
लाल, हरा, नीला रंग प्रथम रंग कहलाते है। बाकि सभी रंग इनसे ही बने है।
गौण रंग - दो प्राथमिक रंगों के संयोग से बना रंग
लाल + हरा - पीला
जिन दो रंगों के मेल से श्वेत रंग प्राप्त होता है वह पुरक रंग कहलाते हैं।
सर्वप्रथम रोमर नामक वैज्ञानिक प्रकाश का वेग ज्ञात किया।
प्रकाश का वेग निर्वात में सर्वाधिक3*108 मीटर/सैकण्ड होता है।
प्रकाश को सुर्य से धरती तक आने में लगभग 8 मिनट 19 सैकण्ड का समय लगता है।
चन्द्रमा से पृथ्वी तक आने में 1.28 सेकण्ड का समय लगता है।
हीरा पुर्ण आंतरिक परार्वतन के कारण चमकता है।
प्रकाश वर्ष दुरी का मात्रक है।
दृश्य प्रकाश की तरंग देध्र्य 4000-8000 Ao होता है।
सूर्य का श्वेत प्रकाश सात रंगों का मिश्रण है।
प्रकाश का रंग निला प्रकिर्णन के कारण दिखाई देता है।
जल की सतह फैले कैरोसीन की परत सूर्य के प्रकाश में रंगीन व्यतिकरण के कारण दिखाई देती है।
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