जन्तुओं का अध्ययन जीव विज्ञान की जिस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है। उसे जन्तु विज्ञान(Zoology) कहते है।
संसार में करोड़ों जिव जन्तु है। जिनमें से कुछ हमारे महत्व के है। जिनको मनुष्य प्राचिन काल से ही अपने उपयोग के लिए पालता आया है जो निम्न है -
गाय का पालन दुग्ध उत्पादन के लिए किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम "बोस इण्डिकस एवं बोस तोरस" है। इसका जिवन काल लगभग बीस वर्ष होता है।
गाय की मुख्य नस्लें - साहिवाल, सिन्धी, गिर(काठियावाड़ी), कांक्रेज, थारपारकर है, अन्य कुछ नस्लों में - हरियाणवी, देओनी आदि है।
विदेशी नस्लों में - जर्सी, रेडडेन, हाॅल्डटीन आदि।
भैंस का वैज्ञानिक नाम "बुवेलस बुवेलिस(Bubalus Bubalis)" है। इसका जिवनकाल भी लगभग 20-25 वर्ष का होता है।
भैंस कि मुख्य नस्लें - मुर्रा, भदावरी, जाफराबादी, सुरती, नागपुरी, मेहसाना व नीली रानी है।
कुछ क्षेत्रों में दुध कि कमी को दुर करने के लिए बकरी का पालन किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम "केप्रा हिरकस" है। बकरी का जीवन काल लगभग 13 वर्ष होता है।
बकरी की मुख्य नस्लें - जमनापारी, बारबारी, चम्बा, कश्मीरी पश्मीना, बीटल, मारवाड़ी आदि।
भेड़ को दुध एवं ऊन के लिए पाला जाता है। भेड़ का वैज्ञानिक नाम "ओवीस अराइज(Ovis aries)" है। भेड़ कि मुख्य नस्लें - लोही, नली, भाखरवाल, रामपुर-बुशायर आदि।
मुर्गीपालन मुख्य रूप से अंडा व मांस के लिए किया जाता है। मुर्गी का वैज्ञानिक नाम "गैलस डोमेस्टिकस" है। मुर्गी की देसी नस्ले - असील, घेघस, चिटगांव, बुस्त्रा, लाल जंगली मुर्गा आदि।
विदेशी नस्लें - रोडे आइलैण्ड रेड, ब्रह्मा, प्लाई माउथराॅक, लैम्सहान, कार्निश, व्हाइट लेगहार्न आदि।
मुर्गीयों में होने वाले मुख्य रोग - रानीखेत, चिकन पाॅक्स, काॅलेरा, फंग आदि।
अण्डों से सम्बधित क्रान्ति रजत क्रान्ति है।
मस्य पालन मुख्य रूप से मांस(भोजन) के लिए किया जाता है। क्योंकि जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा मछली को भोजन के रूप में खाता है। मछली पालन मुख्य रूप से मिठे जल में होता है।
मुख्य प्रजातियां -रोहु, कतला, मृगला आदि।
विदेशी प्रजातियां - कामन कार्प, गैंमबुसीया(Gambusia)।
मछली पालन को पीसी कल्चर कहा जाता है।
अण्डे से निकली छोटी मछलीयों को जीरा कहा जाता है।
थोड़ी बड़ी होने पर जीरा को अंगुलिका कहा जाता है जिन्हें बाद में तालाब में छोड़ दिया जाता है।
मछली के लिवर के तेल में विटामिन A पाया जाता है।
मलेरिया के जैविक नियंत्रण हेतु गैंमबुसीया मछली का प्रयोग किया जाता है।
मछली के तेल का उपयोग चमड़ा उद्योग में भी किया जाता है।
सुखी मछलीयों का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में तथा चाय, तम्बाकु की खेती में उर्वरक के रूप में किया जाता है।
रेशम कीट सर्वप्रथम चीन वासियों ने सीखा।
रेशम कीट की प्रमुख प्रजातियां - बाॅम्बिक्स मोराई, मुगा रेशम किट(रेन्थेरिया असाना), टसर रेशम कीट(एन्थेरिया पैफिया) आदि।
इनमें मुख्य रूप से बाॅम्बिक्स मोराई का पालन किया जाता है। यह सहतुत के पत्ते खाता है तथा इससे सर्वोत्तम किस्म का रेशम प्राप्त होता है। यह पुर्णतः पालतु है।
रेशम कीट में रेशम ग्रन्थि होती है जिससे तरल पदार्थ की धार निकलती है जो वायु के संम्पर्क में आते ही रेशम के धागे में बदल जाती है। रेशम का उपयोग वस्त्र निर्माण में किया जाता है।
रेशम कीट के मुख्य रोग - पेब्राइन, मस्कार्डिन, ग्रेसरी फलेचरी आदि।
रेशम कीट विपरित लिंग को आकर्षित करने के लिए बोम्बीकाॅल हार्मोन स्त्रावित करते है।
रेशम कीट पालन को सेरी कल्चर कहा जाता है।
मधुमखी को शहद, मोम के लिए पाला जाता है। एक सामान्य बड़े छत्ते में 40-50 हजार मधुमक्खीयां पायी जाती है। इनमें रानी, राजा व श्रमिक मक्खीयां होती है। रानी शाही जैली का भोजन करती है। रानी मक्खी दो प्रकार के अण्डे देती है। निषेचित अण्डों से श्रमिक व रानी मक्खियां बनती है। अनिषेचित अण्डों से नर बनते है।
मधुमक्खी की प्रमुख प्रजातियां - एपिस इन्डिका, एपिस डोरसेटा, एपिस फलोरिया, एपिस मैलीफेरा(सर्वाधिक उपयुक्त)।
मधुमक्खी का लार्वा मेगट कहलाता है।
मधुमक्खी में अनिषेक जनन होता है।
छतों से प्राप्त मोम से क्रिम, मुर्तियां, फर्श पालिश एवं बूट पाॅलिश व औषधियां बनाई जाति है।
शहद का उपयोग रूधिर में हिमोग्लोबिन की मात्रा बढाने में किया जाता है।
मोम की ग्रंन्थि श्रमिक मक्खी में पाई जाती है।
मधुमक्खी विपरित लिंग का आकर्षित करने के लिए जिरेडियोल हार्मोन स्त्रावित करती है।
मधुमक्खी पालन को एपी कल्चर कहा जाता है।
केंचुआ - केंचुओं का उपयोग वर्मीकम्पोस्ट खाद तैयार करने व भूमी को उपजाऊ बनाने में किया जाता है तथा मछलीयों को पकड़ने में भाजन के रूप में। केंचुआ पालन को वर्मीकल्चर कहते है।
प्रोटाजोआ - इनका उपयोग जल में हानिकारक जीवाणुओं के भक्षण एवं मल के विघटन में किया जाता है।
लाख किट(टैकार्डिया लैका) - इनका उपयोग लाख उद्योग में लाख उत्पादन में किया जाता है। लाख इनका रक्षात्मक कवच होता है।
व्यापारिक रेशम प्युमा(कोक्न) से प्राप्त होता है।
दरियाई घोड़े को धरती का रडार कहा जाता है।
जन्तु जगत का सबसे बड़ा संघ आथ्रौपोडा है।
भारत का दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान है।
शुद्ध शहद हजारों वर्ष तक खराब नहीं होता।
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