एक पदार्थ के दुसरे पदार्थ में बदलने के कारण ही नए पदार्थ का निर्माण होता है।
जैसे - दुध का दही जमना, कांच का टुटना।
पदार्थ में होने वाले इन परिवर्तनों को दो भागों में बांटा जा सकता है।
1. भौतिक परिवर्तन 2. रासायनिक परिवर्तन
पदार्थ में होने वाला वह परिवर्तन जिसमें केवल उसकी भौतिक अवस्था में परिवर्तन होता है तथा उसके रासायनिक गुण व अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता है। भौतिक परिवर्तन कहलाता है।
जैसे - शक्कर का पानी में घुलना, कांच का टुटना, पानी का जमना आदि।
भौतिक परिवर्तन से पदार्थ के रंग, रूप, आकार, परिमाप में ही परिवर्तन होता है। इससे कोई नया पदार्थ नहीं बनता। अभिक्रिया को विपरित करने पर सामान्यतः पदार्थ की मुल अवस्था प्राप्त कि जा सकती है।
पदार्थ में होने वाला वह परिवर्तन जिसमें नया पदार्थ प्राप्त होता है जो मुल पदार्थ से रासायनिक व भौतिक गुणों में पूर्णतः भिन्न होता है। रासायनिक परिवर्तन कहलाता है।
जैसे - लोहे पर जंग लगना, दुध का दही जमना आदि।
इस प्रकार के परिवर्तन स्थायी होते हैं।
मोमबत्ती का जलना रासायनिक व भौतिक दोनों ही प्रकार के परिवर्तन है। क्योंकि जो मोम जल चुका है वह उष्मा व प्रकाश में परिवर्तीत हो चुका है उसे पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। यह परिवर्तन स्थाई है। लेकिन जो मोम निचे बच गया है उसका रासायनिक संघटन मोमबत्ती के समान है। तथा उससे पुनः मोमबत्ती बनाई जा सकती है। अतः यह भौतिक परिवर्तन है।
जब किसी पदार्थ में रासायनिक परिवर्तन होते हैं तो उसमें रासायनिक अभिक्रिया होती है। जिससे पदार्थ के रासायनिक गुण मुल पदार्थ से अलग हो जाते हैं लेकिन कुल द्रव्यमान में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
रासायनिक अभिक्रिया को रासायनिक समीकरण के द्वारा व्यक्त किया जाता है। जिस पदार्थ में रासायनिक परिर्तन होता है उसे अभिकारक या क्रियाकारक तथा बनने वाले पदार्थ को क्रियाफल कहते हैं।
वे अभिक्रियाएं जिनमें पदार्थ आक्सीजन/विधुत ऋणी तत्वों से संयोग करता है, आक्सीकरण कहलाती है।
C + O2 - CO2
जब अभिक्रिया में पदार्थ हाइड्रोजन/ विधुत धनी तत्वों का त्याग करता है
HCl + MnO2 - MnCl2 + H2O + Cl2
यह अभिक्रिया आक्सीकरण से विपरित है इसमें हाइड्रोजन या विधुत धनी तत्व का संयोग होता है।
Cl2 + H2 - 2HCl
इसमें आक्सीजन या विधुत ऋणी तत्वों का निष्कासन होता है।
ZnO + C - Zn + CO
ऐसी अभिक्रिया जिनमें आक्सीकरण एवं अपचयन दोनों साथ-साथ हों, रिडाॅक्स या आॅक्सीकरण-अपचयन अभिक्रिया कहलाती है।
CuO + H2 - Cu + H2O
वह पदार्थ जो अपनी बहुत कम मात्रा में उपस्थित होने से ही रासायनिक अभिक्रिया के वेग को परिवर्तित कर देता है। और स्वयं में कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है, उत्प्रेरक कहलाता है।
जब किसी रासायनिक अभिक्रिया की गति किसी पदार्थ की उपस्थिति मात्र से बढ़ जाती है। तो उसे उत्प्रेरण कहते है तथा जिस पदार्थ की उपस्थिति से अभिक्रिया की गति बढ़ जाती है उसे उत्प्रेरक कहते हैं। उत्प्रेरक अभिक्रिया में भाग नहीं लेता, केवल क्रिया की गति को प्रभावित करता है।
इक्षु शर्करा(केन शुगर) को अम्लों की उपस्थिति में गरम करें तो वह शीघ्रता से ग्लुकोस और फ्रुक्टोस में परिवर्तीत हो जाती है। इस क्रिया में अम्ल भाग नहीं लेते इन्हें पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। बर्जीलियस ने इस क्रिया को उत्प्रेरण की संज्ञा दी तथा उन पदार्थों को उत्प्रेरक नाम दिया।
जो उत्प्रेरक रासायनिक क्रिया की गति को बढ़ा देते हैं उन्हें धनात्मक उत्प्रेरक तथा जो उत्प्रेरक अभिक्रिया की गति को मंद कर देते हैं उन्हें ऋणात्मक उत्प्रेरक कहते हैं।
क्रिया के अन्त में उत्प्रेरक अपरिवर्तित रहता है इसके भौतिक गुण बदल सकते हैं रासायनिक गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उत्प्रेरक नई अभिक्रिया को प्रारम्भ कर सकता है यद्यपि ओस्टवाल्ड न सर्वप्रथम यह मत प्रकट किया कि उत्प्रेरक नई क्रिया प्रारंभ नहीं कर सकता।
प्रत्येक रासायनिक अभिक्रिया के लिए विशिष्ट उत्प्रेरकों की आवश्यकता होती है।
उत्प्रेरण क्रियाओं के प्रकार
इन क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल सभी एक ही अवस्था में होते हैं।
सल्फयूरिक अम्ल बनाने में सल्फरडाइ आक्साइड(SO2), भाप(H2O), तथा आक्सिजन(O2) का प्रयोग होता है तथा नाइट्रिक आक्साइड(NO) उत्प्रेरक का कार्य करती है। इसमें उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक व प्रतिफल तीनों ही गैंसीय अवस्था में है।
इन क्रियाओं में उत्प्रेरक, प्रतिकर्मक तथा प्रतिफल विभिन्न अवस्थाओं में होते हैं।
अमोनिया बनाने के लिए नाइट्रोजन तथा हाइड्रोजन कि क्रिया को फेरिक आक्साइड(Fe पाउडर) उत्प्रेरित करता है।
कुछ पदार्थ ऐसे भी होते है जो कि अभिक्रिया के वेग को तो परिवर्तित नहीं कर सकते लेकिन दुसरे उत्प्रेरकों की क्रिया को प्रभावित करते हैं। जो पदार्थ उत्प्रेरकों की क्रियाशीलता को बढ़ा देते हैं। उत्प्रेरक वर्धक तथा उन पदार्थों को जो उत्प्रेरकों की क्रिया शीलता कम कर देते हैं, उत्प्रेरक विष कहते हैं।
कुछ अभिक्रियाओं में उत्पाद/प्रतिफल ही उत्प्रेरक का कार्य करता है, उन्हें स्व-उत्प्रेरक या आत्म उत्प्रेरक कहते हैं। जीवों के शरीर में उपस्थि उत्प्रेरक को एंजाइम या जैव उत्पेरक कहते हैं जो जैव रासायनिक अभिक्रियाओं कि गति बढ़ाता है।
औद्योगिक रूप से महत्वपुर्ण रसायनों के निर्माण में उत्प्रेरकों की बड़ी भूमिका है। क्योंकि इनके प्रयोग से अभिक्रिया की गति बढ़ाकर कम समय में अधिक उत्पाद प्राप्त किये जा सकते हैं।
उत्प्रेरकों के द्वारा पेट्रोलियम के ऐसे बहुत से उत्पाद बनाये जा सकते हैं। जो ईंधन के रूप में काम में लिए जा सकते हैं।
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