आवेश प्रवाह की दर को विधुत धारा कहते है।
I = Q/t Q = आवेश
मात्रक - एम्पियर
यदि इलेक्ट्राॅन पर आवेश e है तथा t समय में n इलेक्ट्रान किसी बिन्दु से गुजरते हैं तो t समय में उस बिन्दु से गुजरने वाला कुल आवेश
Q = ne e = 1.6*10-19
यानि यदि किसी बिन्दु से 1 सेकण्ड में गुजरने वाले आवेश का मान एक कुलाम हो तो विधुत धारा 1 एम्पियर होगी।
आवेश का मात्रक - कुलाम
विधुत परिपथ में विधुत धारा मापने के लिए ऐमीटर का प्रयोग किया जाता है।
विधुत धारा के प्रकार
जब विधुत धारा का परिमाण व दिशा दोनों समय के साथ बदलते हो तो उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं।
उदाहरण - घरों में आने वाली विधुत धारा।
जब विधुत धारा का परिमाण व दिशा दोनों समय के साथ स्थिर रहते है तो उसे दिष्ट धारा या स्थिर दिष्ट धारा कहते है।
जब विधुत धारा का परिमाण स्थिर रहे व दिशा बदले तो इसे परिवर्ती दिष्ट धारा कहते है।
दिष्ट धारा का उदाहरण - सेल व बैटरीयों से प्राप्त विधुत धारा।
घरों में लगे इन्वर्टर प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में व दिष्ट धारा को प्रत्यावर्ती धारा में बदलने का कार्य करते हैं।
जब हम किसी चालक को विधुत ऊर्जा देते हैं तो ऊर्जा का कुछ भाग उष्मा में बदल जाता है और वह चालक गर्म हो जाता है। इसे विधुत धारा का तापीय प्रभाव कहते है।
बल्ब, हिटर, प्रेस, निमजन छड़, केतली आदि।
विधुत बल्ब का फिलामेन्ट टंगस्टन धातु का बना होता है।
H ∝ I2
H ∝ R
H ∝ t
H ∝ I2 R t
किसी चालक तार में विधुत धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसे विधुत धारा का चुम्बकीय प्रभाव कहते है।
घन्टी, टेलीफोन, विधुत के्रन आदि।
चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के नियम
1. दाहिने हाथ के अंगुठे का नियम/दक्षिणी हस्त नियम
यदि चालक तार को दाहिने(Right) हाथ से इस प्रकार पकड़े की अंगुठा धारा की दिशा में रहे तो मुड़ी हुई अंगुलियां चुम्बकिय बल रेखाओं की दिशा/ चुम्बकिय बल की दिशा को बतायेगी।
2. दक्षिणी पेच नियम/ मैक्सवेल स्क्रु नियम
पेच को इस प्रकार घुमाया या कसा जाता है कि पेच की नोक विधुत धारा की दिशा में आगे बढ़े तो पेच घुमाने की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र को व्यक्त करेगी।
चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक - टेसला
किसी चुम्बकिय क्षेत्र (B)में लम्बवत् रखे बन्द पृष्ट(A) से गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या चुम्बकीय फलक्स कहलाती है।
मात्रक - वेबर
φ = BA
चुम्बकीय पदार्थ
1. प्रतिचुम्बकीय - इनमें प्रतिकर्षण होता है। चुम्बकिय क्षेत्र में रखने पर लम्बवत होता है।
2. अनुचुम्बकीय - आकर्षण समान्तर
3. लौह चुम्बकीय - अत्यधिक आकर्षण तेजी से समान्तर
क्युरी ताप
वह ताप जिससे कम ताप पर पदार्थ लौह - चुम्बकीय की तरह तथा अधिक ताप पर अनुचुम्बकीय पदार्थ की तरह व्यवहार करेगा।
जब किसी कुण्डली व चुम्बक के बीच सापेक्ष गति कराई जाती है तो कुण्डली में विधुत धारा बहने लगती है इसे विधुत चुम्बकीय प्रेरण कहते है।
विधुत चुम्बकीय प्रेरण के कारण उत्पन्न विधुत वाहक बल, प्रेरित वि. वा. बल तथा उत्पन्न धारा प्रेरित विधुत धारा कहलाती है।
फैराडे का प्रथम नियम
जब कुण्डली व चुम्बक के मध्य सापेक्ष गति करवाई जाती है तो कुण्डली में से गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या(चुम्बकीय फलक्स) में परिवर्तन होता है जिसके कारण प्रेरित विधुत धारा उत्पन्न होती है।
फैराडे का दुसरा नियम
कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित वि. वा. बल फलक्स में परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है। अर्थात कुण्डली व चुम्बक के मध्य सापेक्ष गति तेज या मन्द गति से करवाने पर कुण्डली से गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन भी तेज या मन्द गति से होता है।
प्रेरित वि. वा. बल की दिशा लेन्ज के नियम से ज्ञात करते हैं।
लेन्ज का नियम
वि. चुम्बकीय प्रेरण की प्रत्येक अवस्था में प्रेरित वि. वा. बल व प्रेरित धारा कि दिशा इस प्रकार होती है कि उन कारणों का विरोध करती है जिनके कारण इनकी उत्पति हुई है।
लेन्ज का नियम ऊर्जा संरक्षण पर आधारित है।
ऐसा साधन जो यान्त्रिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित कर दे यह वि. चु. प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
उपयोग
विधुत धारा उत्पन्न करने में।
विधुत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में रूपान्तरित करती है।
उपयोग
पंखों में, मिक्सी में, कारखानों में, खेतों में पानी निकालने में आदि।
जब किसी विलयन में विधुत धारा प्रवाहित होती है। तो उसका विधुत अपघटन हो जाता है। यह विधुत धारा का रासायनिक प्रभाव कहलाता है।
धातु के शुद्धिकरण में।
विधुत लेपन में।
विधुत मुद्रण में।
जिस उपकरण में यह रासायनिक प्रभाव होता है उसे वोल्टामीटर कहा जाता है।
एकांक धनावेश को अन्नत से विधुत क्षेत्र में किसी बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य उस बिन्दु पर विधुत विभव कहलाता है।
एकांक धनावेश को विधुत क्षेत्र में एक बिन्दु से दुसरे बिन्दु तक ले जाने में किया गया कार्य विभान्तर कहलाता है।
मात्रक
विभव और विभान्तर - वोल्ट
v = W/q जुल/कुलाम
विभव को मापने के लिए वोल्ट मीटर का प्रयोग किया जाता है। आदर्श वोल्ट मिटर का प्रतिरोध अन्नत होता है। इसे परिपथ में समान्तर क्रम में लगाया जाता है।
ओम का नियम
किसी चालक तार की भौतिक अवस्थाएं स्थिर रहती है तो उसके सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।
V ∝ I
V = IR
R = नियतांक(प्रतिरोध)
मात्रक
R = V/I =वोल्ट/ऐम्पियर (ओम Ω)
if V =1 volt I = 1 amp. then R = 1 ohm(Ω)
प्रतिरोध के व्युत्क्रम को चालकता कहते है।
प्रतिरोध की निर्भरता
अतः
R ∝ l/A
R = Kl/A
K= विशिष्ट प्रतिरोध
विशिष्ट प्रतिरोध का मात्रक ओम*मिटर
विशिष्ट प्रतिरोध की निर्भरता
विशिष्ट प्रतिरोध का व्युत्क्रम विशिष्ट चालकता कहलाता है।
प्रतिरोधों का संयोजन
श्रेणी क्रम
R = R1 + R2 + R3 + R4
समान्तर क्रम
1/R = 1/R1 + 1/R2 + 1/R3 + 1/R4
घरों में लाईट के उपकरण समान्तर क्रम में लगे होते हैं।
घरों में लड़ीयों के बल्ब, प्युज तार श्रेणी क्रम में लगे होते हैं।
प्युज तार का गलनांक व प्रतिरोध दोनों कम होते हैं यह टिन व रांगा(सीसा) का बना होता है।
विधुत सेल एक ऐसा साधन है जो रासायनिक ऊर्जा को वैधुत ऊर्जा में परिवर्तित करने का कार्य करता है। सेल दो प्रकार के होते हैं -
1. प्राथमिक सेल 2. द्वितियक सेल
ऐसे सेल जिनको एक बार ही उपयोग में लिया जा सके और पुनः चार्ज नहीं किया जा सके, उन्हें प्राथमिक सेल कहते हैं। प्राथमिक सेल में होने वाली क्रियाएं अनुत्क्रमणीय होती है।
जैसे - शुष्क सेल, लेक्लांशी सेल, डेनियल सेल आदि।
शुष्क सेल
इसमें जस्ते के पात्र में |NH4Cl(अमोनियम क्लोराइड) भरा होता है। इसमें एक मलमल की थैली होती है जिसमें MnO2 (मैंगनीज डाईआक्साइड) भरा होता है। तथा कार्बन की छड़ इसमें बिचों बिच सिधी खड़ी रखी होती है। जिस पर पितल की टोपी लगी होती है जो धनाग्र (+) का कार्य करती है तथा जस्ते का पात्र ऋणाग्र(-) का कार्य करता है। रासायनिक अभिक्रिया के कारण इनसे विधुत धारा प्रवाहित होती है।
टार्च, रेडियो, विधुत घण्टी, दीवार घड़ी आदि।
ऐसे सेल जिनको बार-बार उपयोग में लिया जा सकता है तथा चार्ज किया जा सके, द्वितियक सेल कहते है।
द्वितियक सेल में होने वाली क्रियाएं उत्क्रमणीय होती है। अर्थात सेल में बाहर से विधुत प्रवाहित कर विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदला जाता है तथा आवश्यकता होने पर संग्रहित रासायनिक ऊर्जा को पुनः विधुत ऊर्जा में बदला जाता है।
जैसे - सीसा संचायक सेल, क्षारीय संचायक सेल।
इस प्रकार के सेल में प्लास्टिक के पात्र में H2SO4(सल्फ्यूरिक अम्ल) भर कर उसमें लेड मोनोआॅक्साइड (PbO) लेपित दो कांच की पट्टियां रखते है, जिससे निम्न अभिक्रिया होती है।
PbO + H2SO4 - PbSO4 + H2O
सेल में विधुत धारा प्रवाहित करने पर एक पट्टि पर लेड डाईआक्साइड PbO तथा दुसरी प स्पंजी लेड Pb बनता है। यह सेल विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित करता है अतः इसे संचायक सेल कहते है।
क्षारीय संचायक सेल - लोह निकल संचायक सेल व निकल कैडमियम सेल है।
सौर सेल
सौर सेल में सिलिकन का उपयोग किया जाता है। दो या दो से अधिक सौर सेल को जोड़ने पर सौर पैनल बनता है जो सुर्य के प्रकाश को विधुत ऊर्जा में बदलता है जिसका उपयोग दुर दराज के क्षेत्र में प्रकाश करने के लिए, खेतों में पानी निकालने हेतु पम्प चलाने में किया जाता है।
मोटर गाड़ीयों के इंजन चालु करने में।
पनडुब्बियों में।
आजकल घरों में इन्वर्टर के साथ।
विधुत द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को विधुत ऊर्जा कहते है। एवं किसी विधुत परिपथ में धारा प्रवाहित करने पर प्रति सैकण्ड किये गये कार्य की दर को विधुत शक्ति कहते है।
P = W/t V= W/q
ऊर्जा का मात्रक - किलो वाट घंटा या वाट सैकण्ड जिसे हम युनिट कहते है।
शक्ति का मात्रक - वाट
1000 वाट का बल्ब एक घण्टे जलने पर 1 युनिट विधुत ऊर्जा खर्च करता है।
1 हार्स पावर - 746 वाॅट
घरों में विधुत 220 वोल्ट, 5 एम्पियर व 50 हर्टज पर होती है।
विधुत बल्ब का आविष्कार थाॅमस अल्वा एडीसन ने किया था।
डायनेमो यांत्रिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
1 हार्स पॅावर - 746 वॅाट
विधुत धारा का मापन अमीटर द्वारा किया जाता है।
विधुत आवेश का मात्रक कूलाम है।
बिजली के हीटर में नाइक्रोम के तार का प्रयोग किया जाता है।
बिजली के बल्ब में आर्गन गैस भरी होती है।
अल्यूमिनियम व निकल को मिला कर चुम्बक बनाया जाता है।
Here you can find current affairs, daily updates of educational news and notification about upcoming posts.
Check This© 2024 RajasthanGyan All Rights Reserved.