परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहते हैं।
जैसे - राजपुत्र,जन-गण-मन-अधिनायक।
राजपुत्र - राजा का पुत्र
जन-गण-मन-अधिनायक - जन-गण-मन के अधिनायक
दो या अधिक पदों के मेल को समास नहीं कहते है।
समस्त सामासीक पद को अलग-2 करके उनके मध्य से लुप्त कारक चिन्ह आदि को प्रकट करके लिखना विग्रह कहलाता है।
विग्रह के लिए समस्त सामासीक पद के दो भाग किये जाते है।
यदि सामासीक पद दो से अधिक शब्दों के मेल से बना हो तो अन्तिम शब्द उत्तर पद तथा पहले के सभी शब्द पुर्व पद माने जाते हैं।
समास के मुख्यतः छः भेद होते है।
जिस समास में ...........लघुपरिभाषा....... हो उसे ........समास.... कहते हैं।
तिन प्रकार के पद अव्ययी भाव समास में आते हैं।
मुख्यतः निम्न उपसर्गो से बने पद अव्ययी भाव होंगे।
आ, निर्, प्रति, निस्, भर, खुश, बे, ला, यथा।
जैसे - आजीवन, आमरण, निर्दोष, निर्जन, प्रतिदिन, प्रत्येक, निस्तेज, निष्पाप, भरपेट, भरसक, खुशनसीब, खुशमिजाज, बेघर, बेवजह, लावारिस, लाजवाब, यथाशक्ति, यथासंभव।
आजीवन(आ+जीवन) - जीवन पर्यन्त
आमरण(आ+मरण) - मृत्यु पर्यन्त
निर्दोष(निर् + दोष) - दोष रहित
प्रतिदिन(प्रति + दिन) - प्रत्येक दिन
बेघर(बे + घर) - बिना घर के
लावारिस(ला + वारिस) - बिना वारिस के
यथाशक्ति(यथा + शक्ति) - शक्ति के अनुसार
जैसे - घर-घर, नगर-नगर, गांव-गांव, बार-बार।
घर-घर - घर के बाद घर
नगर-नगर - नगर के बाद नगर
जैसे - हाथों हाथ, दिनोंदिन, रातोरात, बारम्बार, बागोबाग, ठीकोठीक, भागमभाग, यकायक, एकाएक।
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
दिनोदिन - दिन ही दिन में
बागोबाग - बाग ही बाग में
विग्रह करने पर दोनों पद अपनी जगह रहें तथा दोनों के मध्य कोई कारक चिन्ह आ सके तो तत्पुरूष समास होगा। कर्ता तथा संबोधन कारक के चिन्ह तत्पुरूष समास में नहीं आते। शेष 6 कारकों(कर्म,कर्ण,सम्प्रदान,अपदान,संबंध,अधिकरण) के आधार पर तत्पुरूष के छः भेद माने जाते हैं।
दोनों पदों के मध्य जिस कारक का चिन्ह आये उस कारक के नाम पर या उसके क्रमांक अंक पर तत्पुरूष का नाम रखा जाता है।
1. कर्म(द्वितिय) तत्पुरूष - कारक चिन्ह 'को'
सिद्धिप्राप्त - सिद्धि को प्राप्त
नगरगत - नगर को गत
गिरहकट(गिरह-जेब) - गिरह को काटने वाला
2. कर्ण(तृतिय) तत्पुरूष - कारक चिन्ह: 'से, के द्वारा'
हस्तलिखित - हाथों से लिखित
तुलसी रचित - तुलसी के द्वारा रचित
स्वर्णसिहासन - स्वर्ण से निर्मित सिहासन(सिहासन सोने का नहीं होता है सोने से निर्मित होता है)
3. सम्प्रदान(चतुर्थी) तत्पुरूष - कारक चिन्ह 'के लिए'
रसोईघर - रसाई के लिए घर
जबखर्च - जेब के लिए खर्च
मार्गव्यय - मार्ग के लिए व्यय
4. अपदान(पंचम) तत्पुरूष - कारक चिन्ह 'से(अलग होने का भाव)'
पथभ्रष्ट - पथ से भ्रष्ट
5. संबंध(षष्टी) तत्पुरूष - कारक चिन्ह 'का, के, की'
राजपुत्र - राजा का पुत्र
घुड़दौड़ - घोड़ों की दोड़
मृगछौना - मृग का छोना(छौना - बच्चा)
6.अधिकर(सप्तमी) तत्पुरूष - कारक चिन्ह: में पर
आपबीति - आप पर बीति
विश्व प्रसिद्ध - विश्व में प्रसिद्ध
कुछ अन्य उदाहरण
देश निकाला - देश से निकाला(अपदान)
राजमहल - राज के लिए महल(सम्प्रदान)
घुड़सवार - घोड़े पर सवार(अधिकरण)
दही बड़ा - दही में डुबा बड़ा(अधिकरण)
वनवास - वन में वास(अधिकरण)
घुड़सवारी - घोड़े पर सवारी(अधिकरण)
वनगमन - वन को गमन(कर्म)
धर्मभ्रष्ट - धर्म से भ्रष्ट(अपदान)
पदच्युत - पद से हटा हुआ(अपदान)
जलमग्न - जल में मग्न(अधिकरण)
विग्रह करने पर दोनों पदों के मध्य और या शब्द आ सके तो द्वन्द समास होगा।
और का प्रयोग सामान्य पदों के मध्य करते है जैसे - दाल-रोटी: दाल और रोटी
या का प्रयोग प्रकृति से विलोम शब्दों के मध्य करते है जैसे - सुरासुर: सुर या असुर(यहां पर भी दो शब्दों को जोड़ा गया है परन्तु संधि नियम से)
जैसे - माता-पिता,गाय-भैस, दाल-रोटी, पच्चीस, द्वैताद्वैत,धर्माधर्म, धर्माधर्म, सुरासुर, शीतोष्ण।
माता-पिता: माता और पिता(माता और पिता दोनों की प्रकृति उनका स्वभाव समान है)
गाय -भैस: गाय और भैंस
पच्चीस: पांच और बिस
द्वैताद्वैत: द्वैत या अद्वैत(द्वैत व अद्वैत प्र्रकृति से एक दुसरे से भिन्न है)
धर्माधर्म: धर्म या अधर्म
विग्रह करने पर दोनों पदों से किसी अन्य वस्तु व्यक्ति या पदार्थ का बोध हो तो बहुब्रीहि समास होगा।
जैसे - दशानन,षड़ानन, पंचानन, चतुरानन, गजरानन, गजानन, चतुरानन, गजानन, वीणापाणि, चक्रपाणि, शूलपाणी, वज्रपाणि, द्विरद, चन्द्रशेखर, चन्द्रशेखर, चन्द्रचूड़, चन्द्रमौली।
दशानन: दस है आनन जिसके वह(रावणे)
षड़ानन: छः है आनन जिसके वह(कांतिकेय)
चतुरानन: चार है आनन जिसके वह(ब्रह्मा)
चन्द्रशेखर: चन्द्र है शिखर पर जिसके(शिव)
यहां पर यह आवश्यक नहीं है कि जिसके दस सिर हो वह रावण ही हो यहां पर अर्थ किसी विशेष के लिए है अर्थात जिसके दस सिर होंगे वह एक विशेष व्यक्ति ही होगा।
चन्द्र है शिखर पर जिसके वह विग्रह से बना समासिक पद है -
1. शिव 2. विष्णु 3. ब्रह्मा 4. चन्द्रशेखर
उत्तर
क्योंकि चन्द्र शिखर पर है जिसके वह से समासिक पद बनेगा चन्द्रशेखर जिसका अर्थ हम शिव निकालते है क्योंकि शिव इस के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि वह शिव ही हो।
विग्रह करने पर दुसरा पद बहुवचन बन जाये तथा अन्त में का समुह आ सके तो द्विगु समास होगा।
जैसे - सप्तर्षि, नवग्रह, नवरत्न, नवरात्र, अष्टधातु, सप्ताह, सतसई, शताब्दी, पंचवटी, पंचामृत, पंचपात्र, षड्रस, षड्ऋतु, चैराहा,दुपट्टा।
सप्तर्षि - सात ऋषियों का समुह
यहां दुसरा पद बहुवचन हो गया तथा का समुह का प्रयोग हुआ है।
नवग्रह - नौ ग्रहों का समुह
सतसई - सात सौ का समुह
पंचवटी - पांच वटों का समुह
इसके लिए एक वाक्य
कर्म धारय की यह पहचान।
है जो, रूपी, के समान।।
अर्थात विग्रह करने पर दोनों पद अपनी जगह रहें तथा दोनों पदों के मध्य है जो, रूपी या के समान आ सके तो कर्मधारय समास होगा।
जैसे - महापुरूष, नीलकमल, प्रवीर, उत्थान, सुपुत्र, दुस्साहस, मनमन्दिर, विद्याधन, नरसिंह, राजर्षि, मुखारविन्द, पिताम्बर, सिंहपुरूष, खंजननयन, काककृष्ण।
महापुरूष: महान है जो पुरूष
प्रवीर - श्रेष्ठ है जो वीर
उत्थान - ऊंचा है जो स्थान
मनमन्दिर - मन रूपी मंदिर
पिताम्बार - पिला है जो अंबर
काककृष्ण - काक के समान कृष्ण(कौवे के समान काला)
पितांबर सुख रहे है। वाक्य में पितांबर में समास है-
1. तत्पुरूष 2. बहुब्रीहि 3. द्विगु 4. कर्मधारय
उत्तर
क्योकि यहां पितांबर केवल पिले वस्त्रों के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है क्योकि हम यहां इसका अर्थ भगवान कृष्ण नहीं ले सकते अतः यहां पर कर्मधारय होगा।
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