निकट स्थित दो वर्णो के मेल से होने वाला परिवर्तन संधि कहलाता है।
जैसे: वाक् + ईश - वागीश, रमा + ईश - रमेश
संधि के मुख्यतः तीन भेद है।
नि + सिद्ध
यहां 'नि' में 'न्' व्यंजन है तथा ' ि' स्वर है। अतः नि स्वर है क्योंकि नि - न् + इ
इसी प्रकार 'सि' में 'स्' व्यंजन है तथा ' ि' स्वर है अतः सि - स् + इ
इस प्रकार नि + सि: न् + इ + स् + इ + द्ध: निषिद्ध
यहां यदि 'स' से पहले 'अ, आ' से भिन्न कोई स्वर आये तो स का ष हो जाता है।
+ से पहले स्वर सदैव मात्रा के रूप में पाया जाता है अर्थात + से पहले व्यंजन में जो मात्रा लगी हो + से पहले वही स्वर होगा।
+ से पहले व्यंजन तभी माने जब व्यंजन के निचे हल( ् ) का चिन्ह लगा हो।
जैसे: क् ख् ग्।
+ के बाद स्वर तभी माने जब स्वर अपने वास्तविक रूप में हो।
जैसे: अ आ इ ई उ ओ।
+ के बाद यदि मात्रा लगा व्यंजन आये तो व्यंजन ही माना जायेगा।
जैसे: क , की , कु इनमें व्यंजन क ही माना जायेगा क्योंकि 'क' : क्+अ ।
निकट स्थित दो स्वरों के मेल से होना वाला परिवर्तन स्वर संधि कहलाता है।
इसके पांच भेद है।
किसी भी शब्द का विच्छेद करें + से पहले तथा + के बाद सार्थक व शुद्ध शब्द होना अनिवार्य है। अन्यथा विच्छ्रेद गलत होगा।
विच्छेद करने का अभिप्राय संन्धि युक्त पद में विधमान शब्दों को पहचान कर उन्हें शुद्ध रूप में लिखते हुए उनके मध्य + का निशान लगाना(अयादि स्वर संधि को छोड़कर) है।
जैसे: महेन्द्र - महा + इन्द्र
यहां दोनों शब्द अर्थ पुर्ण है।
मुख्यतः' ा',' ी',' ू' ,' ृ' की मात्रा वाला शब्दों में दीर्घ संधि होती है।
अ/आ + अ/आ - आ/p>
इ/ई + इ/ई - ई
उ/ऊ + उ/ऊ - ऊ
ऋ + ऋ - ऋ
महाशय - मह् अ/आ + अ/आ शय - महा + आशय
यहां पर आपको ध्यान रखना है कि संधि विच्छेद से बने दोनों शब्द अर्थ पुर्ण है या नहीं
गिरीश्वर - गिर इ/ई + इ/ई - गिरि + ईश्वर
इसी प्रकार
भानूदय - भानु + उदय
पितृण - पितृ + ऋण
मातृण - मातृ + ऋण
होतृकार - होतृ + ऋकार
रत्नाकर - रत्न + आकर
गीत + अंजलि - गीतांजलि
परम + अर्थ - परमार्थ
रवि + इंद्र -रवींद्र
मुनि + इंद्र - मुनीद्र
अभि + ईप्सा - अभीप्सा(इच्छा)
संधि विच्छेद में समस्या इ/ई की मात्रा में आती है कि हम संधि विच्छेद के बाद कोनसी मात्रा लगाये इसके लिए
यदि + के बाद (इ/ई) के बाद श्, श, प्स, क्ष आये तो बड़ी ई आयेगी।
जैसे: परीक्षण - परि + ईक्षण
इसके अलावा इ/ई के बाद कोई भी व्यंजन हो छोटी इ आयेगी।
जैसे: महीन्द्र - मही + इन्द्र
+ से पहले यदि शब्द स्त्री लिंग होतो बड़ी ई आयेगी ।
जैसे: नदीव - नदी - इव
+ से पहले यदि पुलिंग हो तो छोटी इ आयेगी।
जैसे: देवीष्ट - देव - इष्ट
यहि नियम उ/ऊ के लिए भी होते हैं।
यदि + के बाद(उ/ऊ) के बाद ऊर्जा,ऊष्मा,ऊर्मि,ऊध्र्व,ऊढा, ऊरू, ऊह के अलावा कोई शब्द आये तो छोटा उ आयेगा।
जैसे: भूपरि - भू + उपरि
+ से पहले यदि शब्द स्त्री लिंग होतो बड़ा ऊ आयेगा।
जैसे: सरयूर्मि - सरयू + ऊर्मि
+ से पहले यदि पुलिंग हो तो छोटा उ आयेगा।
जैसे: अनुदित: अनु + उदित
यहां पर कुछ उदाहरण है जिन्हें आप करके देखें ध्यान रहे सबसे पहले इनके टुकड़े करें।
जैसे नगारि - नग् अ/आ + अ/आ रि - नग + अरि
यहां दोनों शब्द अर्थ पुर्ण है नग - पहाड़, अरि - शत्रु यानि पहाड़ों का शत्रु इन्द्र
मुख्यतः' े',' ो',' अर्' की मात्रा वाले शब्दों में गुण स्वर संधि होती है।
अ/आ + इ/ई - ए
अ/आ + उ/ऊ - ओ
अ/आ + ऋ - अर्
महेश्वर - मह् अ/आ + इ/ई श्वर - महा + ईश्वर
नवोदय - नव् अ/आ + उ/ऊ दय - नव + उदय
सप्तर्षि - सप्त् अ/आ + ऋ षि - सप्त + ऋषि
प्राप्त + उदक(जल) -प्राप्तोदक
पर + उपकार - परोपकार
सूर्य + उदय - सूर्योदय
महा + उदय - महोदय
महा + उत्सव - महोत्सव
देव + ऋषि - देवर्षि
मुख्यतः ै , ौ की मात्रा वाले शब्दों में वृद्धि स्वर संधि होती है।
अ/आ + ए/ऐ - ऐ
अ/आ + ओ/औ - औ
मतैक्य - मत् अ/आ + ए/ ऐ क्य - मत + ऐक्य
गंगौघ - गंग् अ/आ + ओ/औ घ - गंगा + ओघ
पुत्रैषणा - पुत्र् अ/आ + ए/ऐ षणा - पुत्र + एषणा
महौदार्य - मह् अ/आ + ओ/औ दार्य - महा + औदार्य
सदा + एव -सदैव
वसुधा + एव - वसुधैव
एक + एक - एकैक
महा + ऐश्वर्य - महैश्वर्य
+ के बाद वाले शब्द के अन्त में इक और य प्रत्यय आ जाये तो ऐ भी बड़ी और औ भी बड़ा अन्यता ए व ओ छोटा आयेगा। केवल एक शब्द औषधि में औ बड़ा आता है।
शब्दों में 'अय्' 'आय्' 'अव्' 'आव्' होगा।
य, व से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा होतो अयादि संधि हो सकती है। यदि और कोई विच्छेद नहीं होता हो।
+ के बाद वाले भाग को ज्यों का त्यों लिखना है चाहे शब्द जचे या न जचे।
अय् - े
आय् - ै
अव् - ो
आव् - ौ
अय्, आय्, अव्, आव् के बाद वाले भाग को ज्यों का त्यों लिखें।
+ से पुर्व अय् आय् अव् आव् को समाप्त करके इनकी जगह बनने वाली उपर्युक्त मात्राओं को इनसे पुर्व व्यंजन में लगाकर लिखे दें।
नयन - न् अय्( े) + अन - ने + अन
गायक - ग् + आय्( ै) + अक - गै + अक
पावन - प् + आव्( ौ) + अन - पौ + अन
गवीश - ग् + अव्( ो) + इश - गो + ईश
ष्, श्र, र + से पहले आये तो + के बाद ण का न हो जायेगा।
जैसे रावण - र् + आव् + अण - रौ + अन
तीन प्रकार के संधि युक्त पद
1. य से पुर्व आधा व्यंजन हो
2. व से पुर्व आधा व्यंजन हो
3. शब्द में त्र हो
य व त्र में स्वर हो उसी स्वर से सार्थक व शुब्द बने उसे + के बाद लिखें(य व त्र को समाप्त कर दें)।
1. य से पुर्व आधा व्यंजन हो उसमें इ/ई की मात्रा से शुद्ध शब्द बनाकर लिखें।
मत्यनुसार - मति + अनुसार
2 व से पुर्व आधा व्यंजन हो उसके उ/ऊ की मात्रा से शुद्ध शब्द बनाकर लिखें।
मध्वाचमन - मधु + आचमन(पिना)
3. शब्द में त्र हो तो उसका तृ बनाकर लिखें तृ से केवल मातृ, पितृ, भातृ, होतृ में से ही कोई शब्द बनेगा।
मात्रनुमति - मातृ + अनुमति
रित्यानुसार - रिति + अनुसार
देव्यालय - देवी + आलय
तन्वंगी - तनु + अंगी
प्र + एषक - प्रेषक
प्र + एषित - प्रेषित
प्र + एषण - प्रेषण
प्र + ऊढ़ - प्रौढ़
अक्ष + ऊहिणी - अक्षौहिणी
स्व + ईरिणी - स्वैरिणी
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