भारत की संसद राष्ट्रपति, लोकसभा तथा राज्यसभा से मिलकर बनती है।
भारतीय संसद की प्रथम बैठक 13 मई 1952 में हुई।
लोकसभा | राज्यसभा |
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अनुच्छेद 81 | अनुच्छेद 80 |
प्रथम या निम्न सदन | द्वितिय या उच्च सदन |
अस्थायि सदन | स्थायी सदन |
हाउस आॅफ पिपल | काउन्सील आॅफ स्टेटस |
गठन 17 अप्रैल 1952 | गठन 3 अप्रैल 1952 |
सदस्य अधिकतम 552(530+20+2) | सदस्य अधिकतम 250(238+12) |
वर्तमान 545(530+13+2) | वर्तमान 245(233+12) |
अधिकतम 80(यू. पी.) | अधिकतम 31(यू. पी.) |
राजस्थान 25 | राजस्थान 10 |
गणापूर्ती 1/10 या 55 सदस्य | गणापूर्ती 1/10 या 25 सदस्य |
संसद -अभी तक तीन संयुक्त अधिवेशन हुए है।
1961 -दहेज निषेध अधिनियम पर।
1978 - बैकिंग संशोधन विधेयक पर।
2002 - पोटा आन्तकवादी विध्वंसक निरोधक कानून
लोकसभा में जनता का प्रतिनिधीत्व होता है राज्य सभा में भारत के संघ के राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है।
प्रत्येक राज्य की विधानसभा का निर्वाचन सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणिय मतद्वारा राज्य सभा के लिए अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन किया जाता है।
भारत में राज्यों को राज्य सभा में समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है।
संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधियों के निर्वाचन कि रिति संसद विधि द्वारा निश्चित कि जाति है।
लोकसभा के सदस्यों का निर्वाचन वयस्क मताधिकार(18 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों) के आधार पर राज्य की जनता द्वारा किया जाता है। 61 वें संविधान संशोधन के तहत 1989 में।
लोकसभा में केवल एस. सी. व एस. टी. को आरक्षण प्रदान किया गया है। किसी अन्य को नहीं।
लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का है। लेकिन इससे पुर्व भी इसका विघटन राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सिफारिश पर किया जाता है।
अनुच्छेद 352 के तहत घोषित राष्ट्रीय आपातकाल के समय लोकसभा का कार्यकाल एकबार में एक वर्ष के लिए बढाया जात सकता है। तथा आपातकाल में न रहने पर यह अवधि 6 माह से अधिक नहीं बढाई जा सकती।
राज्यसभा का सदस्य 6 वर्ष के लिए निर्वाचित किया जाता है। तथा 1/3 सदस्य प्रत्येक दो वर्ष बाद बदल दिये जाते है।
लोकसभा के लिए 25 वर्ष व राज्य सभा के लिए 30 वर्ष से कम उमर नहीं होनी चाहिए।
किसी संसद सदस्य कि योग्यता अथवा अयोग्यता से संबंधित विवाद का अन्तिम निश्चिय चुनाव आयोग के परामर्श से राष्ट्रपति करता है।
एक समय में एक व्यक्त् िकेवल एक ही सदन का सदस्य रह सकता है।
यदि कोई सदन की अनुमति के बिना 60 दिन की अवधि से अधिक समय के लिए सदन कके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसकी सदस्यता समाप्त कर सकता है।
संसद सदस्यों को दिए गए विशेषाधिकारों के अन्तर्गत किसी भी ससंद सदस्य को अधिवेशन के समय या समिति, जिसका वह सदस्य है, की बैठक के समय अथवा अधिवेशन या बैठक के पूर्व या पश्चात् 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ्तारीसे उन्मुक्ति प्रदान की गई है अगर फौजदारी मामला न हो।
लोकसभा नव निर्वाचन के पश्चात् अपनी पहली बैठक में जिसकी अध्यक्षता लोकसभा का वरिष्ठतम सदस्य(प्रोटेम स्पीकर- नियुक्त राष्ट्रपति करता है) करता है अपना अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष चुन लेती है।
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष संसद के जीवन काल तक अपना पद धारण करते हैं। अध्यक्ष दुसरी नव निर्वाचित लोक सभा की प्रथम बैठक के पूर्व तक अपने पद पर बना रहता है।
यदि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष लोक सभा के सदस्य नहीं रहते तो वह अपना पद त्याग करेंगे।
अध्यक्ष, उपाध्यक्ष को तथा उपाध्यक्ष अध्यक्ष को त्यागपत्र देता है।
चैदह दिन की पूर्व सूचना देकर लोक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को पद से हटाया जा सकता है।
अध्यक्ष को निर्णायक मत देने का अधिकार है।
कोई विधेयक धन विधेयक है इसका निश्चय लोकसभा अध्यक्ष करता है तथा उसका निश्चय अन्तिम होता है। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोक सभा अध्यक्ष करता है।
राज्य सभा का सभापतित्व भारत का उपराष्ट्रपति करता है तथा राज्य सभा अपना एक उपसभापति भी निर्वाचित करती है।
साधारण विधेयक तथा संविधान संशोधन विधेयक किसी भी सदन में प्रारम्भ किए जा सकते है।
धन विधेयक केवल लोक सभा में ही प्रारम्भ किया जा सकता है।
धन विधेयक में राज्य सभा कोई संशोधन नहीं कर सकती।
धन विधेयक को राज्य सभा 14 दिन में अपनी सिफारिशों के साथ वापस कर देती है।
साधारण विधेयक को दुसरा सदन 6 माह तक रोक सकता है।
साधारण विधेयक पर दोनों सदनों सदनों में मतभेद हो जाने पर राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन आयोजित करता है।
साधारण विधेयक पर दानों सदनों में पृथक रूप से तीन वाचन होते हैं।तदुपरान्त राष्ट्रपति के अनुमति हस्ताक्षर से अधिनियम बन जाता है।
भारत की संचित निधि पर राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, नियंत्रक महालेखा परीक्षक, लोकसभा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष , राज्य सभा के सभापति व उप सभापति के वेतन भत्ते आदि तथा उच्च न्यायालय के न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन भारित होती है।
कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना अधिनियम नहीं बनता है, भले ही वह संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया हो।
अनुच्छेद 111 के अनुसार जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष उनकी अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति -(अ) विधेयक पर अनुमति देता है, या (ब) वह अनुमति रोक लेता है, या (स) यदि वह धन विधयेक नहीं है तो अपने सुझाव के साथ या उसके बिना पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है।
यदि संसद संशोधन रहित या संशोधन सहित उस विधेयक को पुनः पारित कर देता है तो राष्ट्रपति उस पर अपनी अनुमति नहीं रोक सकता।
अनुच्छेद - 112 के अनुसार राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के सम्बन्ध में दोनों सदनों के समक्ष एक वार्षिक वित्तीय विवरण रखवाता है।जिसे सामान्य शब्दों में बजट कहा जाता है। इसमें भारत सरकार की प्राप्तियों और व्ययों का विवरण होता है।
भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से सम्बन्धित प्रंाक्कलन संसद में मतदान के लिए पेश नहीं किए जाते। किन्तु संसद में मतदान के लिए खर्चे की मद पर बहस का अधिकार होगा।
अन्य व्यय से सम्बन्धित खर्चे लोकसभा के समक्ष अनुदान की मांग के रूप में पेश किए जाते है। लोकसभा किसी मांग को स्वीकार कर सकती है,अस्वीकार कर सकती है। या कम कर सकती है।
जब तक विनियोग विधेयक पारित नहीे कर दिया जाता तब तक भारत की संचित निधि से कोई धन राशि नहीं निकाली जा सकती है।(अनुच्छेद 114)
विनियोग विधेयक के पारित होने से पहले यदि सरकार को रूपयों की आवश्यकता हो तो इसके अनुच्छेद 116(क) के अन्तर्गत लोकसभा लेखा - अनुदान पारित कर सरकार के लिए एक अग्रिम राशि मंजूर कर सकती है।
प्रश्नकाल से शुरू होती है।
सामान्यतः तिन प्रकार के प्रश्न पुछे जाते है।
इन प्रश्नों का सम्बन्ध लोक महत्व के किसी तात्कालिक मामले से होता है। प्रश्न के मौखिक उत्तर के लिए सुचना पूरे दस दिन से कम अवधि में दि जा सकती है।
ये वैसे प्रश्न होते हैं जिनका उत्तर सदन में मौखिक रूप से दिया जाता हैं। इन प्रश्नों पर तारांक लगाकर इन्हें विशेषांकित किया जाता हैं, अतः इन्हें तारांकित प्रश्न कहा जाता है। इसमें पूरक प्रश्न भी पूछे जा सकते हैं।
वैसे प्रश्न जिन्हें तारांक लगाकर विशेषांकित नहीं किया जाता है उन्हें अतारांकित प्रशन कहा जाता है। इन प्रशनों का उत्तर लिखित रूप में दिया जाता है, अतः इसमें कोई पूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता।
1961 में तत्कालिक लोकसभा अध्यक्ष रवि राय द्वारा लागु किया गया ।
जो प्रश्न प्रश्नकाल में नहीं पुछे जा सकते उनके लिए सम्बधित सदन का पीठासन अधिकारी लोकसभा में सोमवार बुधवार व शुक्रवार को तथा राज्य सभा में कभी भी चर्चा करवा सकता है।
लोकसभा पीठासीन - लोकसभा अध्यक्ष
राज्यसभा पीठासीन अधिकारी - उपराष्ट्रपति
संसद के कार्यो के संचालन देने हेतु संसदीय समितियों कि व्यवस्था कि गई है।
संसदीय समितियों को सामान्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है।
1.स्थायी समिति 2.तदर्थ समिति
ये समितियां स्थाई प्रकृति कि होती है तथा इनका गठन प्रतिवर्ष या एक निश्चित समय के लिए होता है। इन समितियों का कार्य अनवरत रूप से चलता है।
सदस्य संख्या - 22(15 लोकसभा से + 7 राज्य सभा से)
कोई भी मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है।
प्राक्कलन समीति की जुडवा बहन
अध्यक्ष - विपक्ष का कोई सदस्य।
सदस्य संख्या - 30 (केवल लोकसभा से)
अध्यक्ष्ज्ञ का चुनाव सदस्यों में से किया जाता है।
सदस्य संख्या - 15(लोकसभा)+7(राज्य सभा) = 22
अध्यक्ष - चुनाव किया जाता है सदस्यों में से किया जाता है।
कार्य - सार्वजनिक उपक्रमों में मितव्यता से संम्ब्धित सिफारिश सरकार से करना।
इन समितियों का गठन विशिष्ट उद्देश्यों के लिए किया जाता है तथा उन उद्देश्यों कि पूर्ति के उपरान्त ये समितियां समाप्त हो जाती है।
सरल - स + र + ल
स - संसद(अनुच्छेद - 79)
र - राज्य सभा(अनुच्छेद - 80)
ल - लोकसभा(अनुच्छेद - 81)
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