राजनीतिक दल एक संगठन होता है जो विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने समर्थकों के साथ समान विचारधारा रखता है और शासन शक्ति प्राप्त करने की दृष्टि से गठित होता है।
सच्चे लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दलों का होना अति आवश्यक है। इसलिए आइवर जेनिग्स कहा है कि, “राजनीतिक दल लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी होते हैं।”
आधुनिक रूप में राजनीतिक दलों की शुरूआत ब्रिटेन से हुई। सबसे पहले 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन में केवेलियर्स (टोरी दल) और राउण्ड हैडस (व्हिंग दल) का उदय हुआ। इसलिए अर्नेस्ट बाकर ने ब्रिटिश प्रणाली को ‘पार्टीयों की जननी’ कहा है।
दलों के महत्व को बताते हुए ह्यूवर ने प्रजातंत्र यंत्र के परिचालन के लिए राजनीतिक दलों को तेल के तुल्य माना है।
लार्ड ब्राईस ने कहा है कि “लोकतन्त्रीय शासन का संचालन राजनीतिक दलों के अभाव में संभव नहीं है।”
हरमन फाइनर ने राजनीतिक दलों को ‘सिंहासन के पीछे की 4 शक्ति’ कहा है।
एडमंड बर्क के अनुसार राजनीतिक दल ऐसे लोगों का एक समूह होता है जो किसी सिद्धान्त पर एकमत होकर अपने सामूहिक प्रयत्नों द्वारा जनता के हित में काम करना चाहते हैं।
मैकाइवर के शब्दों में राजनीतिक दल एक ऐसा समुदाय है जिसका निर्माण किसी सिद्धान्त अथवा नीति के समर्थन के लिए किया जाता है और जो संवैधानिक उपायों द्वारा सरकार का संचालन करने का प्रयत्न करता है।
राजनीतिक दलों के तत्व है-
वर्तमान समय में शासन के विविध रूपों में प्रजातन्त्र सर्वाधिक लोकप्रिय शासन प्रणाली है।
प्रजातन्त्र के दो प्रकार होते हैं- (i) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र, और (ii) अप्रत्यक्ष या प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्र ।
(i) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र : प्रत्यक्ष प्रजातंत्र ही प्रजातंत्र का वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते हैं। यह अपनी शक्तियों को किसी अन्य व्यक्ति या प्रतिनिधियों को नहीं सौंपता है। प्राचीन यूनानी शहर-राज्यों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र था। आधुनिक समय में, स्विट्ज़रलैंड के केवल कुछ कैंटों में ऐसी प्रत्यक्ष लोकप्रिय सभा होती है, जिसे लैंडस्गेमिएंडे के नाम से जाना जाता है।
(ii) अप्रत्यक्ष या प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्र : राज्यों की वृहत् जनसंख्या और क्षेत्र की विशालता के कारण वर्तमान समय में विश्व के लगभग सभी राज्यों में प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्रीय शासन व्यवस्था प्रचलित है। इस शासन व्यवस्था के अन्तर्गत जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और इन प्रतिनिधियों द्वारा शासन कार्य किया जाता है। जनता द्वारा अपने प्रतिनिधियों के निर्वाचन और प्रतिनिधियों द्वारा शासन व्यवस्था के संचालन की इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए राजनीतिक दलों का अस्तित्व अनिवार्य है।
उल्लेखनीय है कि प्रजातन्त्रीय शासन के अन्तर्गत न केवल शासक दल का वरन विरोधी दल का भी महत्व होता है। विरोधी दल शासन करने वाले राजनीतिक दल को मर्यादित तथा नियन्त्रित रखने का कार्य करता है। इस प्रकार आधुनिक राजनीतिक जीवन के लिए दलीय संगठनों का अत्यधिक महत्व है। इसके बिना लोकतन्त्र की सफलता सम्भव नहीं है। बर्क ने कहा है कि ‘दल प्रणाली लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था के लिए अपरिहार्य है।’
आधुनिक लोकतांत्रिक राज्यों में दलों के चार प्रकार पाये जाते हैं-
1. प्रतिक्रियावादी : ऐसे राजनीतिक दल जो पुरानी सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक संस्थाओं से चिपके रहना चाहते हैं।
2. रूढ़िवादी दल : ऐसे दल जो यथास्थिति में विश्वास रखते हैं, उन्हें रूढ़िवादी दल कहते हैं।
3. उदारवादी दल : ऐसे राजनीतिक दल जिनका लक्ष्य विद्यमान संस्थाओं में सुधार करना है।
4. सुधारवादी: वे राजनीतिक दल जिनका उद्देश्य विद्यमान व्यवस्थाओं को हटाकर नई व्यवस्थाएं स्थापित करना होता है। विचारधारा के आधार पर सुधारवादी दलों को बांयी ओर के दल (वामपंथी) भी कहते हैं।
प्रतिक्रियावादी व रूढ़िवादी दलों को दांयी ओर के दल (दक्षिणपंथी) कहते हैं।
भारत में कांग्रेस को केन्द्रीय दल, भाजपा को दक्षिणपंथी तथा सीपीआई (CPI) तथा CPI (M) को वामपंथी दल कहा जाता है।
राजनीतिक दलों की संख्या व प्रकृति के आधार पर राजनीतिक दल प्रणाली का निर्धारण होता है।
विश्व में प्रमुख दलीय प्रणालियाँ निम्नलिखित हैं-
1. एक दलीय प्रणाली : एक दलीय व्यवस्था में एक ही राजनीतिक दल (सत्तारूढ़ दल) होता है। विपक्षी दल की व्यवस्था नहीं होती, लेकिन उस राजनीतिक दल में गुटबंदी हो सकती है। यह पद्धति रूस, चीन आदि में पायी जाती है।
2. द्विदलीय प्रणाली : इस प्रणाली में विचारधारा पर आधारित दो राजनीतिक दल होते है उनमें परस्पर वैचारिक संघर्ष रहता है। जैसे अमेरिका में डेमोक्रेट व रिपब्लिक तथा ब्रिटेन में लेबर पार्टी व कंजरवेटिव पार्टी। द्वि-दलीय प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ दलीय प्रणाली के रूप में स्वीकार किया जाता है।
3. बहुदलीय प्रणाली : इस प्रणाली में अनेक राजनीतिक दल होते हैं। जिसमें कई दल एक साझा सरकार बनाते हैं जैसे भारत, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, इटली, जर्मनी आदि।
4. एकदल वर्चस्व प्रणाली : इसमें एक से अधिक दल अस्तित्व में होते हैं किन्तु एक दल अन्य दलों की तुलना में अधिक प्रभावी होने के कारण वर्चस्व बनाए रखता है तथा अधिकांशतः वही दल सरकार बनाता है। 1967 तक भारत में कांग्रेस इसका अच्छा उदाहरण रहा है।
1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व राष्ट्रीय आंदोलन का माध्यम होने के कारण कांग्रेस एक सशक्त राजनीतिक दल के रूप में उभर कर आई। स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान कई राजनीतिक दलों का गठन हुआ था, लेकिन उनका आस्तित्व न के बराबर रहा। 1959 में सर्वप्रथम गैरकांग्रेसी सरकार केरल में बनी थी तथा 1977 में पांच दलों के विलय से गठित जनता पार्टी ने कांग्रेस को केन्द्र से भी सत्ता से हटा दिया। 1980 में लोकसभा के लगभग दो-तिहाई स्थान इन्दिरा कांग्रेस के द्वारा प्राप्त किये गये और शेष स्थान विभिन्न विपक्षी दलों में बंट गये। तत्पश्चात् 1980 से 1989 तक केन्द्र में सक्रिय कांग्रेस एवं राज्यों में कांग्रेस तथा क्षेत्रीय दलों के अशांतिपूर्व तनाव का युग रहा। 1989 से 1991 तक बहुदलीय स्थिति से संभावित केन्द्र में मिश्रित व्यवस्था का संक्रमण काल माना जा सकता है। जबकि 1991-96 तक केन्द्र में कांग्रेस की सक्रियता और तनावपूर्ण राजनीतिक युग रहा। 1996 के चुनावों के बाद केन्द्र और राज्यों में एकदलीय प्रभुत्व का अन्त हुआ।
राजनीतिक दलों का पंजीकरण निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए में निर्वाचन आयोग द्वारा राजनीतिक दलों के पंजीकरण की व्यवस्था है। पंजीकृत राजनीतिक दलों, चाहे राष्ट्रीय स्तर के हों या राज्य स्तर के हों, को आरक्षित चुनाव चिन्ह आवंटित किया जाता है। 1952 में निर्वाचन आयोग द्वारा 14 दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में तथा 60 दलों को राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता दी गयी थी। अप्रैल 2023 में निर्वाचन आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्रदान किया, जबकि तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया है। निर्वाचन आयोग ने अपने आदेश में कहा कि गुजरात में राज्य स्तरीय पार्टी के रूप में मान्यता मिलने के बाद आम आदमी पार्टी चार राज्यों - दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात में मान्यता प्राप्त राज्य स्तरीय पार्टी बन गई है।
इस प्रकार वर्तमान में अधोलिखित कुल 6 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।
क्र.सं. | नाम | संक्षेपाक्षर | स्थापना तिथि |
---|---|---|---|
1. | भारतीय जनता पार्टी | बीजेपी | 6 अप्रैल 1980 |
2. | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस | कांग्रेस | 28 दिसंबर 1885 |
3. | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) | माकपा | 7 नवंबर 1964 |
4. | आम आदमी पार्टी | एएपी | 26 नवंबर 2012 |
5. | बहुजन समाज पार्टी | बसपा | 14 अप्रैल 1984 |
6. | नेशनल पीपुल्स पार्टी | एनपीपी | 6 जनवरी 2013 |
इससे पहले, भारत में आठ राष्ट्रीय दल थे, लेकिन अब छह हैं।
राजनीतिक दलों को मान्यता निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदान की जाती है। किसी राजनीतिक दल को राज्य-स्तर के दल की मान्यता दी जाती है यदि वह लोकसभा अथवा सम्बन्धित राज्य की विधानसभा में पिछले आम चुनाव के दौरान राज्य में पड़े कुल वैध मतों में से कम से कम 6% मत हासिल करने के साथ- साथ कम से कम उसके 2 सदस्य विधानसभा के लिए चुने गए हों; अथवा राज्य की विधानसभा की कुल सीटों की संख्या में कम से कम उसे 3% सीटें (कोई भी भिन्न आधा से अधिक होने पर एक माना जाएगा) या कम से कम 3 सीटें (जो भी अधिक हो) उसे जीतना आवश्यक है।
राष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्राप्त करने के लिए किसी भी राजनीतिक दल को लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में 4 या अधिक राज्यों द्वारा कुल डाले गये वैध मतों का 6% प्राप्त करने के साथ किसी राज्य या राज्यों मे लोकसभा की कम से कम 4 सीटों पर विजय पाना आवश्यक होता है या लोकसभा में उसे कम से कम 2% सीटें (लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 11 सीटें) जीतना आवश्यक होता है। ये सीटें कम से कम तीन राज्यों से होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि यह स्थिति निर्वाचन आयोग द्वारा, दिसम्बर, 2000 में मान्यता सम्बन्धी नियमों में किये गये परिवर्तन पश्चात् की है। इससे पूर्व कोई दल यदि 4 राज्यों में राजनैतिक दल के रूप में निर्वाचन आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त होता, तो उसे राष्ट्रीय दल के रूप में आयोग द्वारा मान्यता प्रदान कर दिये जाने की व्यवस्था थी। उस दल को भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता कर दी जाती थी जिसने राज्य में लोकसभा के असाधारण निर्वाचन में कुल पड़े वैध मतों का 4 प्रतिशत प्राप्त किया हो।
ध्यातव्य है कि यदि कोई राजनीतिक दल राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल के रूप में अपनी मान्यता खो देता है तो उसे 6 वर्ष तक अपने पुराने चुनाव चिन्ह को रखने की छूट होती है मान्यता प्राप्त दल को प्राप्त होने वाली विशेष सुविधाएं, यथा - चुनाव के समय आकाशवाणी या दूरदर्शन पर निःशुल्क चुना प्रचार आदि समाप्त हो जाती हैं।
ऑल इंडिया तृणमूल काँग्रेस (एआईटीसी) : यह 1 जनवरी 1998 को ममता बनर्जी के नेतृत्व में बनी। इसे 2016 में राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई । पुष्प और तृण पार्टी का प्रतीक है।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) : स्व. कांशीराम के नेतृत्व में 1984 में गठन। बहुजन समाज जिसमें दलित, आदिवासी पिछड़ी जातियाँ और धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं, के लिए राजनीतिक सत्ता पाने का प्रयास और उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा। पार्टी साहू महाराज, महात्मा फुले, पेरियार रामास्वामी नायकर और बाबा साहब आंबेडकर के विचारों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेती है। 25 नवम्बर, 1997 को चुनाव आयोग ने बसपा को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की और पार्टी को ‘हाथी’ चुनाव चिन्ह आवंटित किया। इसके प्रारम्भिक अध्यक्ष काशीराम बने।
भारतीय जनता पार्टी (बी.जे.पी.) : भाजपा मूल रूप से 1951 में श्याम प्रसाद मुखर्जी के द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ से सम्बन्धित है। 1977 में यह पार्टी गठबंधन के रूप में सत्ता में शामिल हुई। यह सरकार जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी। 5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन बुलाया और एक नये दल की स्थापना करने का निश्चिय किया। यह नया दल ही भाजपा कहलाया। इस आधार पर 6 अप्रैल, 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की गई। 24 अप्रैल, 1980 को भाजपा को चुनाव आयोग द्वारा मान्यता दी गई और भाजपा को कमल का फूल चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया। भारतीय जनता पार्टी का प्रथम अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी को बनाया गया। 13 अक्टूबर, 1999 को भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में शपथ ग्रहण की। 16वीं लोकसभा के चुनावों में अप्रैल-मई 2014 को भाजपा नेतृत्व वाले एन.डी.ए. को 336 सीटों पर शानदार सफलता मिली जिसमें भाजपा की 282 सीटें थीं और भाजपा प्रथम गैर कांग्रेसी स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी।
आम आदमी पार्टी (आप) : इसका गठन भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत आंदोलन के परिणामस्वरूप हुआ था। यह अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में 2012 में स्थापित की गई थी। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘झाड़ू’ है। 10 अप्रैल 2023 को निर्वाचन आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्रदान किया।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) : 1925 में गठित। मार्क्सवाद-लेनिनवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र में आस्था। अलगाववादी और सांप्रदायिक ताकतों की विरोधी। 1964 की फूट (जिसमें माकपा इससे अलग हुई) के बाद इसका जनाधार सिकुड़ता चला गया। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘हसिया तथा बाली’ है।
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्ससिस्ट (सीपीआई-एम) : 1964 में स्थापित; मार्क्सवाद-लेनिनवाद में आस्था। समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की समर्थक तथा साम्राज्यवाद और सांप्रदायिकता की विरोधी। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘हथौड़ा, हसिया तथा तारा’ है।
इंडियन नेशनल काँग्रेस (कांग्रेस) : भारत में दलीय व्यवस्था की शुरूआत 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से हुई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत का सबसे पुराना राजनीतिक दल है जिसकी स्थापना एक ब्रिटिश अधिकारी सर ए. ओ. हयूम द्वारा 1885 में की गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में ‘राष्ट्रीय’ शब्द ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिक्रिया से प्रभावित था। कांग्रेस भारत में 'एक दलीय प्रणाली' का संस्थापक दल रहा है। कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमकेश चंद्र बनर्जी थे। यह 1952 से 1967 तक पूर्ण शासक दल रहा है इसके अलावा 1980, 1984, 1991, 2004 व 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस ने सरकार बनाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘हाथ का पंजा’ है।
नेशनलिस्ट काँग्रेस पार्टी : काँग्रेस पार्टी में विभाजन के बाद 1999 में यह पार्टी बनी। लोकतंत्र, गांधीवादी धर्मनिरपेक्षता, समता, सामाजिक न्याय और संघवाद में आस्था। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘घड़ी’ है।
नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) : नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन पी.के. संगमा द्वारा किया गया था। यह पार्टी मुख्य रूप से मेघालय राज्य में सक्रिय है। जुलाई 2012 में पी.ए. संगमा को राष्ट्रीवादी काग्रेंस पार्टी से निकाल दिया गया। पी.ए. संगमा ने एक अलग दल के रूप में 2013 में इस पार्टी का गठन किया। वर्ष 2019 के चुनावों के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा नेशनल पीपुल्स पार्टी को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी। यह पार्टी पूवोत्तर क्षेत्र से पहली पार्टी है जिसे राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई। पार्टी का चुनाव चिन्ह ‘पुस्तक’ है।
एक ही प्रकार के हित रखने वाले व्यक्ति जब समूह में संगठित होकर अपने हितों के लिए सरकार पर दबाव का प्रयोग करते हैं तो उसे दबाव समूह (Pressure Groups ) कहा जाता है। अध्यापकों का संघ, श्रमिक संगठन, व्यापारिक व धार्मिक समूह आदि को दबाव समूह माना जा सकता है। सरकार पर दबाव बनाने के लिए दबाव गुट परिस्थिति के अनुसार सांविधानिक और संविधानेत्तर साधनों को अपनाते हैं।
भारत में दबाव गुटों का निर्माण स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले ही प्रारंभ हो चुका था। 1885 में कांग्रेस की तथा 1906 में मुस्लिम लीग स्थापना एक ऐसी संस्था के रूप में हुई थी जिसका उद्देश्य राजनीतिक तथा सामाजिक क्षेत्र में ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सुविधाएं प्राप्त करना था।
भारत में क्रियाशील दबाव समूहों को अधोलिखित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1. संस्थानात्मक दबाव समूह : संस्थानात्मक दबाव समूह का अर्थ है कि यह समूह सरकार या राजनीतिक दलों की नीतियों पर अपना प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार के दबाव समूह राजनीतिक दलों, विधानमण्डलों, सेना तथा नौकरशाही में सक्रिय रहते हैं। ये दबाव समूह राजनीतिक दलों के अपने आन्तरिक संगठन होते हैं, जैसे राजनीतिक दलों की कार्य समिति संसदीय बोर्ड, चुनाव समिति, युवा संगठन, महिला संगठन, किसान संगठन, अनुसूचित जाति तथा जनजाति संगठन, छात्र संगठन आदि। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों के संगठन को भी संस्थानात्मक समूहों में रखा जा सकता है।
2. सामुदायात्मक दबाव समूह : सामुदायिक दबाव समूह वे संघ होते हैं, जो हितों की अभिव्यक्ति के लिए बनाए गए होते हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य विशिष्ट हितों की पूर्ति करना होता है। ये समूह सरकार की नीतियों को अपने हित के संरक्षण के लिए प्रभावित करते हैं। ऐसे समूह के उदाहरण श्रमिक संघ, व्यवसायिक संघ तथा कृषक संघ हैं।
वर्तमान समय में लगभग प्रत्येक राजनीतिक दलों के श्रमिक संघ हैं, यथा-भारतीय जनता पार्टी का भारतीय मजदूर संघ, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस, कांग्रेस का इण्डियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का आल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस सक्रिय श्रमिक संघ हैं।
व्यापारिक हितों की पूर्ति के लिए व्यापारिक दबाव समूह सर्वाधिक शक्तिशाली और सक्रिय दबाव समूह हैं। वर्तमान समय में व्यापारियों के संगठनों में 'फेडरेशन ऑफ इण्डियन चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री' (F.I.C.C.I.) अत्यन्त आधुनिक और प्रभावशाली दबाव समूह माना जाता है। वर्ष 1936 में ही अखिल भारतीय किसान सभा का गठन किया गया था, जो किसानों के हितों के लिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करती रही है। वर्तमान समय में सभी राजनीतिक दलों के अपने कृषक संगठन हैं।
सरकारी कर्मचारियों के संगठन में आल इण्डिया रेलवे मैन एसोसिएशन, आल इण्डिया पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ वर्कर्स यूनियन, आल इण्डिया टीचर्स एसोसिएशन आदि प्रमुख है।
छात्र संगठनों में भाजपा का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, साम्यवादी दलों का स्टूडेन्ट्स फेडरेशन आफ इण्डिया, आल इण्डिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन, कांग्रेस का नेशनल स्टूडेन्ट्स यूनियन आफ इण्डिया तथा समाजवादियों का समता युवजन सभा आदि प्रमुख है।
3. असामुदायात्मक दबाव समूह : असमुदायात्मक दबाव समूह अनौपचारिक रूप से अपने हितों की अभिव्यक्ति करते हैं। इनके संगठित संघ नहीं होते हैं और इन परम्परावादी दबाव समूहों में साम्प्रदायिक और धार्मिक समुदाय, जातीय समुदाय, गांधीवादी समुदाय, भाषागत समुदाय, सिण्डीकेट और युवा तुर्क आदि प्रमुख हैं। साम्प्रदायिक आधार पर गठित समुदायों में मुस्लिम मजलिस, विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल, बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (BMAC), जमायत-ए-इस्लाम ए हिन्दी जैन समाज, वैष्णव समाज, नय्यर सेवा समाज इनकी अपनी पृथक् पाठशालाएं, महाविद्यालय, छात्रावास, इत्यादि हैं।
जातीय समुदायों में तमिलनाडु में नाडार जाति संघ, आन्ध्र प्रदेश में काम्मा तथा रेड्डी जातीय समुदाय, कर्नाटक में लिंगायत और ओक्कालिंगा, राजस्थान में जाट एवं राजपूत गुट तथा गुजरात में क्षत्रिय महासभा ऐसे संगठन है, जो अपने-अपने राज्यों के राजनीतिक दलों पर काफी प्रभाव रखते हैं।
भारतीय राजनीति में 1960-70 के दौरान ‘सिण्डीकेट’ नामक दबाव गुट ने कांग्रेस और समूचे देश की राज-व्यवस्था को प्रभावित करने का कार्य किया। ‘सिण्डीकेट’ शब्द का प्रयोग कांग्रेस दल के कतिपय प्रभावशाली नेताओं के लिए किया जाता है जिन्होंने मिल-जुलकर निर्णय प्रक्रिया को प्रभावित करने का निर्णय लिया था।
इन सभी के अतिरिक्त युर्वा तुर्क भी सरकार की नीतियों को प्रभावित किये हैं। युवा तुर्क का प्रयोग 1970 के दशक में कांग्रेस के उन युवा नेताओं के लिए किया जाता या जो वामपन्थी विचार धारा और त्वरित आर्थिक परिवर्तन में विश्वास रखते थे। अनेक क्रान्तिकारी निर्णयः यथा— बैंकों का राष्ट्रीयकरण, नरेशों के शाही विशेषाधिकारों एवं शाही थैलीयों का उन्मूलन, सामान्य बीमे का राष्ट्रीयकरण अधिकतम जोत की सीमा निर्धारित करना शहरी सम्पत्ति सीमा निर्धारण, गेहूँ के व्यापार का राष्ट्रीयकरण आदि युवा तुर्की के प्रभाव का ही परिणाम कहा जा सकता है।
4. प्रदर्शनकारी दबाव समूह : प्रदर्शनकारी दबाव समूह वे हैं जो अपनी मांगों को लेकर अवैधानिक उपायों का प्रयोग करते हुए हिंसा, राजनीतिक हत्या, दंगे और अन्य आक्रामक रवैया अपना लेते हैं। इनके द्वारा संगठित गुट न केवल अपना असन्तोष व्यक्त करते हैं अपितु सरकार के निवेश (Inputs) तथा निर्गत (Outputs) ढांचे को प्रभावित करते हुए नियम-निर्माण (Rule mak- ing), नियम प्रयुक्त (Rule application) एवं नियम- अधिनिर्णयन (Rule adjudication) के स्वरूप को भी छू लेते हैं। ये गुट किसी विशेष नीति को बनवाने अथवा बदलने के लिए सरकार पर दबाव डालते हैं।
प्रदर्शनकारी दबाव गुटों में आजकल जम्मू एण्ड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (कश्मीर), खालिस्तान कमांडो फोर्स, बब्बर खालसा, सिख स्टूडेण्ट्स फेडरेशन (पंजाब), उल्फा (असोम), रणवीर सेना (बिहार) के नाम उल्लेखनीय हैं।
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