Ask Question | login | Register
Notes
Question
Quiz
Tricks
Facts

प्रस्तावना

इसे "संविधान की आत्मा" कहा गया है।- ठाकुर दास भार्गव ।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है।

संविधान की प्रस्तावना संविधान का दर्शन है।

उद्देश्य प्रस्तावों को के. एम. मुंशी ने संविधान सभा की जन्मकुण्डली कहा।

हम भारत के लोग- शब्द अमेरिका के संविधान से लिया गया है जिसका अर्थ अन्तिम सत्ता भारतीय जनता में निहित की गई है।

सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न(सम्प्रभुता) का अर्थ भारत आन्तरिक और बाहरी रूप से निर्णय लेने के लिए स्वतन्त्रत है। क्रमशः समाजवादी, पथंनिरपेक्ष(धर्म निरपेक्ष), अखण्डता शब्दों को 42 वें सविधान संशोधन 1976 से जोड़ा गया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में एक बार संशोधन किया गया है।

समाजवादी - राज्य के सभी आर्थिक और भौतिक या अभौतिक संसाधनों पर अन्तिम रूप से राज्य का अधिकार होगा। ये किसी एक व्यक्ति के हाथ में केन्द्रित नहीं होगा।

पंथ निरपेक्षता/धर्म निरपेक्षता- राज्य का कोई अपना धर्म नहीं होगा सभी धर्मो का समान आदर किया जायेगा।

लोकतंन्त्र-गणराज्य - समाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय भाग-4 में वर्णित किये गये है। ये "सर्वे भुवन्त सुखिन सर्वे सुन्त निराभया" के आदर्श वाक्य पर बनाया गया।

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता भाग-3 में वर्णित किये गये है।

प्रतिष्ठा और अवसर की समानता भाग-3 में वर्णित है।

व्यक्त् िकी गरिमा(गरिमा पूर्ण जीवन)

राष्ट्र की एकता और अखण्डता

संविधान सभा द्वारा संविधान को 26 जनवरी 1949 के दिन अंगीकृत ,अधिनियमित, आत्मापित(आत्मा से अपनाया) है।

संविधान की प्रस्तावना को न्यायलय में प्रविर्तित नहीं किया जा सकता।

1952 को शंकरी प्रसाद बनाम बिहार राज्य में कहा गया कि संविधान की प्रस्तावना इसका अंग नहीं है। तथा ऐसा ही निर्णय 1965 में सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य में आया।

1967 के गोलक नाथ बनाम पंजाब राज्य विवाद में न्याययलय ने कहा कि संसद प्रस्तावना सहित मौलिक अधिकारो को परिवर्तीत नहीं किया जा सकता।

इसके विरोध में 24 वां व 25 वां संविधान संशोधन 1971 लाया गया जिसके कारण न्यायपालिका व कार्यपालिका में विवाद उत्पन्न हुआ।

समन्वय करने हेतु 1973 में केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य वाद में न्यायलय में कहा कि प्रस्तावना संविधान का अंग है। संसद संविधान में संशोधन कर सकती है। लेकिन ऐसा संशोधन मान्य नहीं होगा जो संविधान की मुल आत्मा को नष्ट करता है। इसे मुल ढांचे का सिद्धान्त कहा जाता है।

मुल ढांचे में -

सम्प्रभुता

पंथनिरपेक्षता

गरिमा पूर्ण जीवन

संसदीय शासन प्रणाली

मौलिक अधिकार

राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्वति को रखा गया।

1980 का मिनर्वा मिल्क केस(वाद) में भी सर्वोच्च न्यायलय में मुल ढांचे को प्रतिस्थापित(व्याख्या) की।

आधारभूत विशेषताएँ भारतीय संविधान के प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्प्रुभता,सम्पन्न,समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य है।

सम्प्रुभता - सम्प्रुभता शब्द का अर्थ है सर्वोच्च या स्वतंत्र. भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्तसम्प्रुभता सम्पन्न राष्ट्र है। यह सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार कानून बनाकर लोगों पर शासन करती है।

भारतीय संविधान की प्रकृति संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने इसको संघात्मक संविधान माना है, परन्तु विद्वानों में मतभेद है। अमेरीकी विद्वान इस को 'छद्म-संघात्मक- संविधान' कहते हैं, हालांकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते हैं कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता। संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किन्तु माननीय सर्वोच्च न्यायालय (पी कन्नादासनवाद) ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है।

समाजवाद - समाजवादी शब्द संविधान के १९७६ में हुए ४२वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है। सरकार केवल कुछ लोगों के हाथों में धन जमा होने से रोकेगी तथा सभी नागरिकों को एक अच्छा जीवन स्तर प्रदान करने कीकोशिश करेगी।

भारत ने एक मिश्रित आर्थिक मॉडल को अपनाया है। सरकार ने समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई कानूनों जैसे अस्पृश्यता उन्मूलन, जमींदारी अधिनियम, समान वेतन अधिनियम और बाल श्रम निषेध अधिनियम आदि बनाया है।

शक्ति विभाजन यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है, राज्य की शक्तियां केंद्रीय तथा राज्य सरकारों मे विभाजित होती हैं। दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नही होती है, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं।

धर्मनिरपेक्षता - धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान के १९७६ में हुए ४२वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है। भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। यह ना तो किसी धर्म को बढावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है। यह सभी धर्मों का सम्मान करता है व एक समान व्यवहारकरता है। हर व्यक्ति को अपने पसन्द केकिसी भी धर्म का उपासना, पालन औरप्रचार का अधिकार है। सभी नागरिकों,चाहे उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो कानून की नजर में बराबर होते हैं। सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई धार्मिक अनुदेश लागू नहीं होता।

संविधान की सर्वोचता संविधान के उपबंध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते हैं। केन्द्र तथा राज्य शक्ति विभाजित करने वाले अनुच्छेद निम्न दिए गए हैं|

1. अनुच्छेद 54,55,73,162,241।

2. भाग -5 सर्वोच्च न्यायालय उच्चन्यायालय राज्य तथा केन्द्र के मध्य वैधानिक संबंध।

3. अनुच्छेद 7 के अंतर्गत कोई भी सूची।

4. राज्यो का संसद मे प्रतिनिधित्व।

5. संविधान मे संशोधन की शक्ति अनु 368इन सभी अनुच्छेदो मे संसद अकेले संशोधन नही ला सकती है उसे राज्यो की सहमति भी चाहिए।

अन्य अनुच्छेद शक्ति विभाजन से सम्बन्धितनहीं हैं

1. लिखित संविधान अनिवार्य रूप सेलिखित रूप मे होगा क्योंकि उसमे शक्ति विभाजन का स्पषट वर्णन आवश्यक है। अतः संघ मे लिखित संविधान अवश्यहोगा।

2. संविधान की कठोरता इसका अर्थ हैसंविधान संशोधन मे राज्य केन्द्र दोनोभाग लेंगे।

3. न्यायालयो की अधिकारिता - इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य कानून कीव्याख्या हेतु एक निष्पक्ष तथा स्वतंत्र सत्ता पर निर्भर करेंगे।

विधि द्वारा स्थापित

1. न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियो केविभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे।

2. न्यायालय संिधान के अंतिम व्याख्याकर्ता होंगे भारत मे यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है।ये पांच शर्ते किसी संविधान को संघात्मकबनाने हेतु अनिवार्य है। भारत मे ये पांचों लक्षण संविधान मे मौजूद है अत्ः यह संघात्मक हैं। परंतु भारतीय संविधान मे कुछ विभेदकारी विशेषताए भी है।

लोकतंत्र - भारत एक स्वतंत्र देश है, किसी भी जगह से वोट देने की आजादी, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचितजनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई है। स्थानीय निकाय चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिए एक निश्चित अनुपात में सीटें आरक्षित की जाती है। सभी चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का एक विधेयक लम्बित है। हांलाकि इसकीक्रियांनवयन कैसे होगा, यह निश्चित नहीं हैं। भारत का चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए जिम्मेदारहै।

गणराज्य - राजशाही, जिसमें राज्य के प्रमुख वंशानुगत आधार पर एक जीवन भर या पदत्याग करने तक के लिए नियुक्त कियाजाता है, के विपरित एक गणतांत्रिक राष्ट्र के प्रमुख एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होते है। भारत के राष्ट्रपति पांच वर्ष की अवधि के लिए एक चुनावी कॉलेज द्वारा चुने जाते हैं।

Start Quiz!

« Previous Next Chapter »

Exam

Here You can find previous year question paper and model test for practice.

Start Exam

Tricks

Find Tricks That helps You in Remember complicated things on finger Tips.

Learn More

Current Affairs

Here you can find current affairs, daily updates of educational news and notification about upcoming posts.

Check This

Share

Join

Join a family of Rajasthangyan on


Contact Us Cancellation & Refund About Write Us Privacy Policy About Copyright

© 2024 RajasthanGyan All Rights Reserved.