क्षेत्रीय परिषदें वैधानिक (संवैधानिक नहीं) निकाय हैं।
ये संसद के एक अधिनियम, यानी राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 द्वारा स्थापित किये गए हैं।
इस अधिनियम ने देश को पाँच क्षेत्रों- उत्तरी, मध्य, पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी में विभाजित किया तथा प्रत्येक क्षेत्र के लिये एक क्षेत्रीय परिषद प्रदान की।
इन क्षेत्रों का निर्माण करते समय कई कारकों को ध्यान में रखा गया है जिनमें शामिल हैं:
उपर्युक्त क्षेत्रीय परिषदों के अलावा, संसद के एक अलग अधिनियम वर्ष 1971 के उत्तर-पूर्वी परिषद अधिनियम द्वारा एक उत्तर-पूर्वी परिषद बनाई गई थी।
इसके सदस्यों में असम, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल हैं।
ये सलाहकार निकाय हैं जो केंद्र और राज्यों के सीमा विवादों, भाषाई अल्पसंख्यकों, अंतर-राज्यीय परिवहन या राज्यों के पुनर्गठन से जुड़े मामलों के बीच आर्थिक और सामाजिक योजना के क्षेत्र में सामान्य हित के किसी भी मामले के संबंध में सिफारिशें करते हैं।
उत्तरी क्षेत्रीय परिषद: इसमें हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान राज्य, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़, जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख शामिल हैं।
मध्य क्षेत्रीय परिषद: इसमें छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश राज्य शामिल हैं।
पूर्वी क्षेत्रीय परिषद: इसमें बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्य शामिल हैं।
पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद: इसमें गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य और संघ राज्य क्षेत्र दमन-दीव तथा दादरा एवं नगर हवेली शामिल है।
दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद: इसमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, राज्य और संघ राज्य क्षेत्र पुद्दुचेरी शामिल हैं।
अध्यक्षः केन्द्रीय गृह मंत्री इन सभी परिषदों के अध्यक्ष होता है।
उपाध्यक्ष: प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में शामिल किये गए राज्यों के मुख्यमंत्री, रोटेशन से एक समय में एक वर्ष की अवधि के लिये उस अंचल के आंचलिक परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
सदस्य: मुख्यमंत्री और प्रत्येक राज्य से राज्यपाल द्वारा यथा नामित दो अन्य मंत्री और परिषद में शामिल किये गए संघ राज्य क्षेत्रों से दो सदस्य।
सलाहकार: प्रत्येक क्षेत्रीय परिषदों के लिये योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा नामित एक, मुख्य सचिव और जोन में शामिल प्रत्येक राज्य द्वारा नामित एक अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त होते हैं।
राष्ट्रीय एकीकरण को साकार करना।
तीव्र राज्यक संचेतना, क्षेत्रवाद तथा विशेष प्रकार की प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
केंद्र एवं राज्यों को विचारों एवं अनुभवों का आदान-प्रदान करने तथा सहयोग करने के लिये सक्षम बनाना।
विकास परियोजनाओं के सफल एवं तीव्र निष्पादन के लिये राज्यों के बीच सहयोग के वातावरण की स्थापना करना।
आर्थिक और सामाजिक नियोजन के क्षेत्र में सामान्य हित का कोई भी मामला;
सीमा विवाद, भाषाई अल्पसंख्यकों या अंतर-राज्यीय परिवहन से संबंधित कोई भी मामला;
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित या उससे उत्पन्न कोई भी मामला।
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