इस सभ्यता का उदय सिंधु नदी की घाटी में होने के कारण इसे सिंधु सभ्यता तथा इसके प्रथम उत्खनित एवं विकसित केन्द्र हड़प्पा के नाम पर हड़प्पा सभ्यता एवं आद्यैतिहासिक कालीन होने के कारण आद्यैतिहासिक भारतीय सभ्यता आदि नामों से जानते हैं।
इस सभ्यता के प्रथम अवशेष हड़प्पा नामक स्थल से प्राप्त हुए थे।
कार्बन डेटिंग पद्धति द्वारा हड़प्पा सभ्यता की तिथि 2500 ई.पू. से 1750 ई.पू. माना गया है।
हड़प्पा सभ्यता को भारतीय उप महाद्वीप की प्रथम नगरीय क्रांति माना जाता है।
भारतीय पुरातत्व विभाग के जन्मदाता अलेंक्जेंडर कनिंघम को मानते हैं।
भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना का श्रेय वायसराय ‘लार्ड कर्जन’ को प्राप्त है।
हड़प्पा सभ्यता कांस्य युगीन सभ्यता थी।
सभ्यता के केन्द्र-स्थल पंजाब तथा सिन्ध में था । तत्पश्चात इसका विस्तार दक्षिण और पूर्व की दिशा में हुआ । इस प्रकार हड़प्पा संस्कृति के अन्तर्गत पंजाब, सिन्ध और बलूचिस्तान के भाग ही नहीं, बल्कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमान्त भाग भी थे। इसका फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था । यह सम्पूर्ण क्षेत्र त्रिभुजाकार है और इसका क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर है । इस तरह यह क्षेत्र आधुनिक पाकिस्तान से तो बड़ा है ही, प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से भी बड़ा है । ईसा पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्त्राब्दी में संसार भार में किसी भी सभ्यता का क्षेत्र हड़प्पा संस्कृति से बड़ा नहीं था ।
अब तक भारतीय उपमहाद्वीप में इस संस्कृति के कुल 1000 स्थलों का पता चल चुका है । इनमें से कुछ आरंभिक अवस्था के हैं तो कुछ परिपक्व अवस्था के और कुछ उत्तरवर्ती अवस्था के । परिपक्व अवस्था वाले कम जगह ही हैं । इनमें से आधे दर्जनों को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है । इनमें से दो नगर बहुत ही महत्वपूर्ण हैं – पंजाब का हड़प्पा तथा सिन्ध का मोहें जो दड़ो(मोहनजोदडो) (शाब्दिक अर्थ – प्रेतों का टीला) । दोनो ही स्थल पाकिस्तान में हैं ।
यह जाल पद्धति पर आधारित है।
नगर में आयताकार या वर्गाकार चौड़ी गलियां होती थी जो एक - दूसरे को समकोण पर काटती थी।
भारत में वास्तुकला का आरंभ सिंधुवासियों ने किया था।
सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी।
सड़कें एक दुसरे को समकोण पर काटती थी।
भवन दो मंजिले भी थे।
दरवाजे सड़कों की ओर खुलते थे।
मोहनजोदडो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार है।
फर्श कच्चा होता था केवल कालीबंगा में पक्के फर्श के साक्ष्य मिले हैं।
विश्व में कपास का उत्पादन सर्वप्रथम सिन्धुवासियों ने किया।
सिन्धुवासी चावल(साक्ष्य-लोथल से), बाजरा(साक्ष्य - लोथल व सौराष्ट्र), रागी, सरसों(साक्ष्य-कालीबंगा) का उत्पादन करते थे।
सिन्धुवासी हल(साक्ष्य - बनावली) से परिचित थे।
कालीबंगा से जुते हुए खेत के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
गन्ना का कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ।
सिन्धुवासी हाथी व घोड़े से परिचित थे। किन्तु उन्हें पालतू बनाने में असफल रहे। घोड़े का साक्ष्य सुरकोटदा(अस्थि पंजर प्राप्त) से प्राप्त हुआ है।
सिन्धु वासियों को गैंडा, बंदर, भालू, खरहा आदि जंगली जानवरों का ज्ञान था।
शेर का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
सिन्धु सभ्यता में मुद्रा का प्रचलन नहीं था। क्रय-विक्रय वस्तु विनिमय पर आधारित था।
सिन्धु सभ्यता के लोग अन्य सभ्यता के लोगों के साथ व्यापार करते थे।
टिन - अफगानिस्तान, ईरान
तांबा - खेतड़ी(राजस्थान)
चांदी - अफगानिस्तान व ईरान
सोना - अफगानिस्तान एवं दक्षिण भारत
सीसा - ईरान, अफगानिस्तान एवं राजस्थान
लाजवर्द - मेसोपोटामिया एवं अफगानिस्तान
संभवतः हड़प्पा सभ्यता में शिल्पियों एवं व्यापारियों का शासन था।
हड़प्पा सभ्यता से मंदिर का कोई अवशेष प्राप्त नहीं हुआ है।
मोहनजोदडो की एक मोहर से स्वास्तिक चिन्ह प्राप्त हुआ है।
हड़प्पा सभ्यता में मुख्य रूप से कूबड वाले सांड की पूजा होती थी।
हड़प्पा सभ्यता में वृक्षपूजा के साक्ष्य भी मिले हैं, पीपल एवं बबूल की पूजा होती थी।
सिन्धु सभ्यता में प्रेतवाद, भक्ति और पुनर्जन्मवाद के बीज मिलते हैं।
हड़प्पा सभ्यता में अन्त्येष्टि 3 प्रकार से होती थी -
पूर्ण समाधिकरण
आंशिक समाधिकरण
दाह संस्कार
लोथल से युग्ल शवाधान का साक्ष्य मिला है।
नोट - विद्वान इसको सती प्रथा के रूप में देखते है।
रोपड से मालिक के साथ कुत्ता दफनाए जाने के साक्ष्य मिले हैं।
सिन्धु लिपि के बारे में सर्वप्रथम विचार करने वाला प्रथम व्यक्ति अलेक्जेंडर कनिंघम थे।
सिंधु लिपि को पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास एल.ए. वैंडल ने किया था।
सिंधु लिपि भाव चित्रात्मक थी।
सिंधु लिपि के चित्रों में मछली, चिडिया, मानवाकृति आदि चिन्ह मिलते हैं।
सिन्धु लिपि दाएं से बाएं लिखी जाती थी।
लिपि का ज्ञान हो जाने के कारण निजी सम्पत्ति का लेखा-जोखा आसान हो गया ।
बाट के तरह की कई वस्तुए मिली हैं । उनसे पता चलता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे – 16, 32, 48, 64, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था ।
दिलचस्प बात ये है कि आधुनिक काल तक भारत में 1 रूपया 16 आने का होता था । 1 किलो में 4 पाव होते थे और हर पाव में 4 कनवां यानि एक किलो में कुल 16 कनवां ।
सिन्धु सभ्यता को प्राक् एतिहासिक युग में रखा जा सकता है।
सिन्धु सभ्यता के मुख्य निवासी द्रविड और भूमध्य सागरीय थे।
सिन्धु सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात में खोजे गए हैं।
लोथल एवं सुत्कोतदा सिंधु सभ्यता के बंदरगाह थे।
मनके बनाने का कारखाना लोथल एवं चन्हूदडो से प्राप्त हुआ है।
सिन्घु सभ्यता की मुख्य फसलें गेहूं एवं जौ थी।
तौल की इकाई 16 के अनुपात में थी।
सिंधु सभ्यता के लोग धरती की पूजा उर्वरता की देवी के रूप में करते थे।
सिंधु सभ्यता में मातृ देवी की पूजा की जाती थी।
पर्दा प्रथा एवं वैश्यावृति सिंधु सभ्यता में प्रचलित थी।
रावी नदी के किनारे, 1921 में दयाराम साहनी द्वारा खोज।
शंख का बना हुआ बैल, नटराज की आकृति वाली मूर्ति प्राप्त।
पैर में सांप दबाए गरूड का चित्र, मछुआरे का चित्र प्राप्त।
सिर के बल खड़ी नग्न स्त्री का चित्र जिसके गर्भ से पौधा निकला दिखाई दे रहा है प्राप्त।
सिंधु नदी किनारे, 1922 में राखलदास बनर्जी द्वारा खोज।
भवन पक्की ईंटो द्वारा निर्मित - सीढ़ी का साक्ष्य मिला।
प्रवेश द्वार गली में - कांसे की एक नर्तकी की मूर्ति प्राप्त
एक श्रंृगी पशु आकृति वाली मोहर प्राप्त।
इसे मौत का टिला भी कहा जाता था।
भोगवा नदी के किनारे गुजरात में स्थित।
गोदीवाडा के साक्ष्य प्राप्त, चावल एवं बाजरा के साक्ष्य प्राप्त।
दो मुंह वाले राक्षस के अंकन वाली मुद्रा प्राप्त।
पंचतंत्र की चालाक लोमड़ी का अंकन प्राप्त।
ममी का उदाहरण प्राप्त।
बतख, बारह सिंगा, गोरिल्ला के अंकन वाली मुद्रा प्राप्त।
भारत और पुर्तगाल ने मिलकर गुजरात के लोथल में राष्ट्रीय समुद्री धरोहर संग्रहालय की स्थापना करने का निर्णय लिया है।
कालीबंगा
घग्घर नदी के किनारे राजस्थान में स्थित।
इसका शाब्दिक अर्थ ‘काली चूडियां’ है।
प्राक् हड़प्पा एवं विकसित हड़प्पा दोनों के साक्ष्य प्राप्त।
दोहरे जुते हुऐ खेत के साक्ष्य
यह नगर दो भागों में विभाजित है और दोनों भाग सुरक्षा दिवार(परकोटा) से घिरे हुए हैं।
अलंकृत ईटों, अलंकृत फर्श के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
लकड़ी से बनी नाली के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
यहां से ईटों से निर्मित चबुतरे पर सात अग्नि कुण्ड प्राप्त हुए है जिसमें राख एवम् पशुओं की हड्डियां प्राप्त हुई है। यहां से ऊंट की हड्डियां प्राप्त हुई है, ऊंट इनका पालतु पशु है।
यहां से सुती वस्त्र में लिपटा हुआ ‘उस्तरा‘ प्राप्त हुआ है।
यहां से कपास की खेती के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
जले हुए चावल के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
युगल समाधी के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
यहां से मिट्टी से निर्मिट स्केल(फुटा) प्राप्त हुआ है।
यहां से शल्य चिकित्सा के साक्ष्य प्राप्त हुआ है। एक बच्चे का कंकाल मिला है।
भूकम्प के साक्ष्य मिले हैं।
वाकणकर महोदय के अनुसार - सिंधु घाटी सभ्यता को सरस्वती नदी की सभ्यता कहना चाहिए क्योंकि सरस्वती नदी के किनारे 200 से अधिक नगर बसे थे।
एक सींग वाले देवता के साक्ष्य प्राप्त।
मनके बनाने का कारखाना प्राप्त।
ईंट पर बिल्ली का पीछा करते हुए कत्ते के पद चिन्ह प्राप्त।
हरियाणा के हिसार जिले में स्थित।
अच्छे किस्म के जौ की प्राप्ति।
हल की आकृति वाला खिलौना प्राप्त।
पंजाब में सतलज नदी के किनारे स्थित।
मानव के साथ कुत्ते के दफनाए जाने के साक्ष्य प्राप्त।
गुजरात के भरूच जिले में स्थित।
जल प्रबंधन के लिए 16 जलाशयों की प्राप्ति।
गुजरात के कच्छ में स्थित।
शाॅपिंग काॅम्पलेक्स के साक्ष्य प्राप्त।
घोडे की अस्थियां प्राप्त।
पारिस्थितिक असंतुलन
जल प्लावन
शुष्कता(घग्घर का सूखना)
बाह्य आक्रमण
नदी मार्ग में परिवर्तन
प्रशासनिक शिथिलता
बाढ़ का आना
जलवायु में परिवर्तन
मोहनजोदडो(सबसे बड़ा) > हड़प्पा > धौलावीरा > कालीबंगा
नोट - धौलावीरा भारत में स्थित सबसे बड़ा हड़प्पा कालीन स्थल है।
भारत सरकार ने वर्ष 2020 के लिए विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए दो नामांकन प्रस्तुत किए। वे हैं -
धोलावीरा: धोलावीरा गुजरात का एक पुरातात्विक स्थल(हड़प्पाकालीन शहर) है। इसमें प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता के खंडहर हैं।
दक्कन सल्तनत के स्मारक और किले : दक्कन सल्तनत में 5 प्रमुख राज्य थे। उन्होंने दक्कन के पठार में विंध्य श्रेणी और कृष्णा नदी के बीच के क्षेत्र पर शासन किया।
आर्य न तो विदेशी थे और न ही उन्होंने कभी भारत पर आक्रमण किया। आर्य भारत के मूल निवासी थे। हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में पुरातत्व विभाग की खोदाई में मिले दो मानव कंकालों (एक महिला व एक पुरुष) की डीएनए रिपोर्ट के अध्ययन और कई सैंपलों से जुटाए गए आर्कियोलॉजिकल और जेनेटिक डेटा के विश्लेषण से वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक आर्य और द्रविड़ एक ही थे। राखीगढ़ी हड़प्पा सभ्यता के सबसे बड़े केंद्रों में से एक है। करीब 300 एकड़ में वर्ष-2015 में पुरातत्वविदों ने यहां खोदाई शुरू की थी।
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