गोमती नदी किनारे बसा हुआ
जौनपुर की स्थापना फिरोजशाह तुगलक ने अपने चचेरे भाई जौना खां/ जूना खां (मुहम्मद बिन तुगलक) की स्मृति में 1359 में की थी।
जौनपुर में स्वतंत्र सत्ता का संस्थापक मलिक सरवर नामक एक हिजड़ा था। इसने जौनपुर में शर्की राजवंश की स्थापना की।
शर्की राजवंश के शासक
मलिक सरवर (संस्थापक) |
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गुबारक शाह (सुल्तान की उपाधि ली) |
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इब्राहिम शाह |
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महमूद शाह |
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मुहम्मद शाह |
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हुसैन शाह (अंतिम शासक या स्वतंत्र सुल्तान) |
अटालादेवी की मस्जिद का निर्माण 1408 ईस्वी में शर्की सुल्तान इब्राहिम शाह द्वारा किया गया था।
अटाला देवी मस्जिद का निर्माण कन्नौज के राजा विजय चंद्र द्वारा निर्मित अटाला देवी के मंदिर को तोड़कर किया गया था।
जामी मस्जिद का निर्माण 1470 ई० में हुसैन शाह शर्की के द्वारा किया गया था।
झंझरी मस्जिद 1430 ईस्वी में इब्राहिम शर्की के द्वारा एवं लाल दरवाजा मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह के द्वारा 1450 ईस्वी में किया गया था।
शर्की शासन के अंतर्गत विशेषकर इब्राहिम शाह के समय में जौनपुर में साहित्य एवं स्थापत्य कला के क्षेत्र में हुए विकास के कारण जौनपुर को भारत के शिराज के नाम से जाना गया।
शर्की राजवंश के अंतिम स्वतंत्र सुल्तान हुसैन शाह शर्की को लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी ने पराजित कर सल्तनत में जौनपुर का विलय किया। जलाल खां को जौनपुर, इब्राहिम लोदी काल में मिला।
पद्मावत के लेखक मलिक मुहम्मद जायसी जौनपुर के रहने वाले थे।
राजधानी - लखनौती
12वीं सदी के अंतिम दशक में इख्तियारूद्दीन मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने बंगाल को दिल्ली सल्तनत में मिलाया।
बलवन के समय तुगरिल खां ने बंगाल में विद्रोह किया जिसे बलवन ने दबाया एवं अपने पुत्र बुगरा खां को वहां का शासक बनाया।
बलवन की मृत्यु के बाद बुगर खां ने बंगाल को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
1324 ई. में गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को जीता एवं नासिरूद्दीन को बंगाल में अपना अधीनस्थ नियुक्त किया सुल्तान की उपाधि धारण करने का अधिकार प्रदान किया।
गयासुद्दीन तुगलक ने बंगाल को 3 भागों में विभाजित किया। लखनौती (उत्तर बंगाल), सोनार गांव (पूर्वी बंगाल), तथा सतगांव (दक्षिण बंगाल)।
मोहम्मद बिन तुगलक के समय बंगाल दिल्ली सल्तनत से पूर्णतः स्वतंत्र हो गया। दिल्ली सल्तनत से अलग होने वाला यह प्रथम प्रांत था।
1345 ईस्वी में हाजी इलियास बंगाल के विभाजन को समाप्त कर शमसुद्दीन इलियास शाह के नाम से बंगाल का शासक बना।
फिरोजशाह तुगलक ने बंगाल पर दो बार आक्रमण किया परन्तु उसे दिल्ली में न मिला सका।
बंगाल 1340 ई. से 1576 ई. तक एक स्वतंत्र राज्य रहा। सन् 1576 ई. में अकबर के सेनापतियों ने अंतिम अफगान सुल्तान दाउदशाह को पराजित कर मार डाला एवं अकबर के राज्य में बंगाल को शामिल कर दिया।
संस्कृत रामायण का बांग्ला में अनुवाद कृत्तिवास ने किया एवं बंगला-रामायण की रचना की। इस ग्रंथ को बंगाल की बाइबिल कहा जाता है।
सन् 1297 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने इसे दिल्ली सल्तनत में मिलाया। बाद में दिल्ली सल्तनत के स्थायित्व तक दिल्ली से गुजरात में मुस्लिम सूबेदारों का नियुक्त होना जारी रहा।
सन् 1401 में अंतिम सूबेदार जफर खां ने औपचारिक तौर पर दिल्ली सल्तनत की अधीनता त्याग दी एवं अपने पुत्र तातार खां को नासिरूद्दीन मुहम्मद शाह की पदवी देकर सुल्तान के रूप में स्वतंत्र राज्य के सिंहासन पर बैठा दिया।
सन् 1407 ई. में जफर खां ने अपने पुत्र सुल्तान नासिरूद्दीन मुहम्मद शाह को जहर दे दिया एवं सुल्तान मुजफ्फर शाह के नाम से गद्दी पर बैठा बाद में इसके पौत्र अलय खां ने इसे जहर दे दिया एवं अहमद शाह के नाम से गद्दी पर बैठा।
अहमद शाह को स्वतंत्र गुजरात राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
अहमद शाह ने असावल के निकट साबरमती नदी के किनारे अहमदाबाद नामक नगर बसाया और पाटन से राजधानी हटाकर अहमदाबाद को राजधानी बनाया।
अहमद शाह ने प्रथम बार गुजरात में जजिया कर लगाया।
इसके समय मिस्र विद्वान बद्रुद्दीन दमामी ने गुजरात यात्रा की।
यह अपने वंश का सबसे प्रतापी राजा था।
इसके समय इटली के यात्री लुदौविको दि वार वारथेमा ने गुजरात की यात्रा की।
इसने मालवा के सुल्तान महमूद-II खिलजी को पराजित किया एवं मालवा को गुजरात में मिला लिया।
मुगल बादशाह हुमायुं ने इसे बुरी तरह पराजित किया एवं गुजरात को अपने राज्य में मिलाना चाहा परन्तु असफल रहा।
बाद में अकबर ने गुजरात को मुगल साम्राज्य में मिलाया।
परमार वंश की उत्पत्ति गुर्जर प्रतिहारों की भांति अग्निकुण्ड से बतायी जाती है परन्तु प्राचीन लेखों से सिद्ध होता है कि परमार शासकों का उद्भव राष्ट्रकूटों के कुल से हुआ था।
परमार वंश की स्थापना उपेन्द्र अथवा कृष्ण राज ने दसवीं शताब्दी के प्रारंभ में की थी। पहले परमार राष्ट्रकूटों के सामन्त थे।
वीरसिंह द्वितीय ने धार नगरी पर अधिकार किया।
सीयक द्वितीय ने मालवा के स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
मालवा के परमारों की वास्तविक शक्ति का विकास वाक्यपति मुंज ने किया। वाक्यपति मुंज ने उल्पलराज, अमोघवर्ष, श्री वल्लभ एवं पृथ्वी वल्लभ की उपाधि धारण की।
भोज ने चालुक्य नरेश जयसिंह द्वितीय को पराजित किया एवं मुंज की हार का बदला लिया। बाद में चालुक्य नरेश सोमेश्वर ने धार पर आक्रमण किया एवं जयसिंह द्वितीय की हार का बदला लिया।
भोज के बाद मालवा पर सोलंकियों ने अपना अधिकार कर लिया।
इल्तुतमिश एवं अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा को लूटा।
इसने राजधानी धार से मांडू स्थापित की। यह गुजरात में लड़े गये युद्ध में पराजित हुआ एवं बंदी बना लिया गया। बाद में गुजरात के शासकों के अनुग्रह से प्राप्त सत्ता पर वह 1432 ई. तक बना रहा।
मांडू के किले का निर्माण हूशंगशाह ने करवाया था। इस किले में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है - दिल्ली दरवाजा।
होशंगशाह के बाद उसका पुत्र सुल्तान महमूद गोरी गद्दी पर बैठा परन्तु 1436 ई. में उसके वजीर महमूद खां खिलजी ने महमूद गोरी को जहर दे दिया एवं मालवा में खिलजी वंश की स्थापना की।
चित्तौड़ के राणा एवं महमूद खिलजी के मध्य युद्ध हुआ संभवतः यह अनिर्णीत युद्ध था। राणा ने इस विजय के उपलक्ष में चित्तौड़ में विजय स्तंभ बनवाया। ठीक इसी प्रकार खिलजी ने भी विजय का दावा करते हुए माण्डू में एक मीनार बनवायी(बाद में यह गिर गयी)।
महमूद खिलजी के बाद सुल्तान गयासुद्दीन गद्दी पर बैठा परन्तु उसके पुत्र नासिरूद्दीन ने उसे जहर देकर मार दिया।
नासिरूद्दीन गद्दी पर बैठा परन्तु कुछ समय बाद वह बुखार से मर गया।
नासिरूद्दीन के बाद खिलजी वंश का अंतिम सुल्तान महमूद-II खिलजी गद्दी पर बैठा।
कुछ समय बाद गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने महमूद-II को पराजित कर मार डाला एवं 1531 ई. में मालवा को गुजरात में मिला लिया।
सुहा देव नामक एक हिंदू ने 1301 ईस्वी में कश्मीर में हिंदू राज्य की स्थापना की थी। चौदहवीं सदी के आरंभ में शाह मिर्जा अथवा मीर नामक मुसलमान ने कश्मीर पर अधिकार कर लिया एवं एक मुस्लिम वंश की स्थापना की। जो शमसुद्दीन शाहमीर के नाम से गद्दी पर बैठ गया। शमसुद्दीन शाहमीर ने अपनी राजधानी इंद्रकोर्ट में स्थापित किया। अलाउद्दीन ने राजधानी इंद्र कोर्ट से हटाकर अलाउद्दीनपुर (श्रीनगर) में स्थापित की।
इसके समय में तैमूर का आक्रमण हुआ था। तैमूर ने कश्मीर पर आक्रमण नहीं किया था।
इसने लंबे समय तक कश्मीर पर शासन किया।
यह धार्मिक रूप से सहिष्णु था। गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाया एवं स्वयं मांस नहीं खाता था। संतों का आद करता था। साहित्य, चित्रकला एवं संगीत को प्रोत्साहन दिया। इन गुणों के कारण यह कश्मीर का अकबर कहा जाता है।
मिर्जा हैदर दुगलत (हुमायुं का रिश्तेदार) ने कश्मीर पर विजय प्राप्त की एवं स्वतंत्र (व्यवहारिक), हुमायुं का सूबेदार बनकर राज्य करता था। जैनुलाब्दीन फारसी, संस्कृत, कश्मीर, तिब्बती, आदि भाषाओं का ज्ञाता था। इसने महाभारत एवं राजतरंगिणी का फारसी में अनुवाद कराया।
कुछ वर्षों बाद कश्मीर पर चाक वंश ने अधिकार कर लिया।
चाक वंश को 1586 में अकबर ने नष्ट कर दिया।
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