अलीगढ़ आन्दोलन के प्रवर्तक सर सैयद अहमद खां थे। यह आन्दोलन अंग्रेजी शिक्षा एवं ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग के पक्ष में था।
इस आन्दोलन का उद्देश्य मुसलमानों को अंग्रेजी शिक्षा देकर उन्हें अंग्रेजी राज का भक्त बनाकर नौकरियों में अधिकाधिक आरक्षण प्राप्त करना था।
इस आन्दोलन में सैयद हमद के मुख्य सहयोगी चिराग अली, नजीर हमद, अल्ताफ हुसैन एवं मौ. शिबली नोमानी थे।
सैय्यद अहमद खां का जन्म 1817 ई. में दिल्ली में हुआ था। 1839 ई. में आगरा के कमिश्नर दफ्तर में क्लर्क बने।
1857 के विद्रोह के समय ये कम्पनी के न्यायिक सेवा में थे।
सर सैय्यद अहमद खां कम्पनी के प्रति पूर्ण राजभक्त थे।
तहजी-उल-अखलाख(फारसी में) एक पत्रिका निकाली।
1864 ई. में कलकत्ता में साइंटिफिक सोसायटी की स्थापना की।
1864 ई. में ही गाजीपुर में अंग्रेजी शिक्षा के स्कूल की स्थापना की।
1875 ई. में अलीगढ़ में मुहम्डन एंग्लोे-ओरिएन्ट स्कूल की स्थापना की। यह 1878 ई. में काॅलेज बना और 1920 ई. में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में परिवर्तित हुआ।
कांग्रेस के विरोध में 1888 ई. में यूनाइटेड इंडियन पैट्रियाटिक एसोसिएशन की स्थापना की।
पीरी मुरीदी प्रथा को समाप्त करने का प्रयत्न किया।
दास प्रथा को इस्लाम के विरूद्ध बताया।
इन्होंने कुरान पर टीका लिखी।
अन्य नाम: कादियानी आन्दोलन
अहमदिया आन्दोलन की शुरूआत 1889 ई. में मिर्जा गुलाम अहमद ने पंजाब के गुरदासपुर जिले में कादियान नामक स्थान से की।
यह उदारवादी सिद्धांतों पर आधारित धर्म सुधार आन्दोलन था।
इसका उद्देश्य इस्लाम के सच्चे स्वरूप की पुनः स्थापना करना था।
इस आन्दोलन में जेहाद का विरोध किया गया है।
बहरीन ए अहमदिया पुस्तक में इस आन्दोलन के सिद्धांत बताए हैं। इस पुस्तक को गुलाम अहमद ने लिखा है।
गुलाम अहमद ने स्वयं को पुनर्जागरण का ध्वजधारी, मसीह-उल-मौऊद(मसीहा), एवं श्री कृष्णा का अवतार माना था।
इस आन्दोलन का प्रारंभ करने का श्रेय मुसलमान उल्मा मु. कासिम ननौतवी तथा रशीद अहमद गंगोही को जाता है।
यह एक पुनर्जागरणवादी आन्दोलन था इसके उद्देश्य:
1. मुसलमानों में कुरान एवं हदीस की शुद्ध शिक्षा का प्रसार करना
2. विदेशी शासकों के विरूद्ध जिहाद की भावना जीवित रखना।
मुहम्मद कासिम ननौत्वी एवं रशीद अहमद गंगोही के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में देवबंद नामक स्थान पर एक विद्यालय की स्थापना सन् 1866 ई. में की गयी।
अंग्रेजी शिक्षा एवं पाश्चात्य संस्कृति पूर्ण वर्जीत थी।
विद्यालय में शिक्षा इस्लाम धर्म की दी जाती थी। जिसका उद्देश्य मुस्लिम धर्म का नैतिक एवं धार्मिक पुनरूद्धार करना था।
विद्यार्थियों को सरकारी सेवा अथवा सांसारिक सुख के लिए नहीं बल्कि इस्लाम धर्म को फैलाने के लिए धार्मिक नेता के रूप में प्रशिक्षित करना।
देवबंद आंदोलन ने कांग्रेस स्थापना का स्वागत किया था।
देवबंद उल्मा ने सर सैय्यद अहमद द्वारा स्थापित संयुक्त भारतीय राजभक्त सभा एवं मुस्लिम एग्लो ओरिएण्टल सभा के विरूद्ध फतवा जारी किया था।
बहावी आन्दोलन का प्रमुख केन्द्र पटना था।
मुसलमानों की पाश्चात्य प्रभावों के विरूद्ध सर्वप्रथम प्रतिक्रिया इसी आन्दोलन के रूप में हुई। यह एक पुनर्जागरणवादी आन्दोलन था।
इस आन्दोलन के प्रेरणास्त्रोत संत अब्दुल वहाब थे एवं प्रभाव वली उल्लाह का था।
19वीं सदी में मिर्जा अजीज एवं सैय्यद अहमद बरेलवी ने इसे आन्दोलन में परिवर्तित किया। इन्होंने आन्दोलन को राजनीतिक रंग दिया।
इस आन्दोलन का उद्देश्य ‘दार-उल-हर्ब’ को ‘दार-उल’इस्लाम’ में परिवर्तित करना था। यह पूर्णतः साम्प्रदायिक आन्दोलन था।
इस आन्दोलन में पंजाब के सिखों के विरूद्ध जेहाद छेड़ा।
सैय्यद अहमद बरेलवी ने अनुयायियों को शस्त्र धारण करने के लिए प्रशिक्षित कर सैनिक के रूप में परिवर्तित किया।
1849 ई. में अंग्रेजों द्वारा पंजाब के विलय के उपरान्त यह अभियान अंग्रेजों के विरूद्ध बदल गया।
यह मुसलमानों का मुसलमानों द्वारा मुसलमानों के लिए आन्दोलन था।
रहनुमाए मजदयासन सभा की स्थापना 1851 ई. में दादा भाई नौरोजी, नौरोजी फरदोन जी, एस. एस. बंगाली एवं आर. के कामा आदि के योगदान से बम्बई में हुई।
इसका उद्देश्य पारसियों की सामाजिक अवस्था का पुनरूद्धार करना और पारसी धर्म की प्राचीन शुद्धता को प्राप्त करना था।
इस सभा ने स्त्रियों की दशा में सुधार, पर्दा प्रथा की समाप्ति और विवाह की आयु बढ़ाने पर बल दिया।
सभा के सन्देशवाहन हेतु दादा भाई नौरोजी ने पत्रिका रास्त गोफ्तार(सत्यवादी) गुजराती भाषा में निकाली।
1829 ई. में लार्ड बिलियम बैंटिक के समय बन्द किया गया।
राजा राम मोहन राय का महत्वपूर्ण योगदान था।
अकबर एवं पेशवाओं ने भी कुछ रोक लगायी थी।
कार्नवालिस, लार्ड मिन्टो एवं लार्ड हेस्टिंग्ज ने भी सती प्रथा को सीमित करने के प्रयत्न किए थे।
1829 ई. में यह बंगाल में बंद किया गया एवं सती प्रथा को मानव हत्या के रूप में मानते हुए न्यायालयों को दण्ड देने का आदेश दिया।
1870 ई. में यह बम्बई एवं मद्रास में भी लागू कर दिया।
चार व्यक्तियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा -
1. ईश्वर चन्द विद्यासागर: विधवा विवाह को मान्यता दिलवाने में।
विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित करने के लिए एक सहस्त्र हस्ताक्षरों से अनुमोदित प्रार्थना पत्र भारत सरकार(लार्ड डलहौजी के समय ) को भेजा।
2. डी. के. कर्वे: 1899 ई. में पूना में विधवा आश्रम की स्थापना
1906 ई. में बम्बई में प्रथम भारतीय महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की।
3. वीरेशलिंगम पुन्तुलू: दक्षिण भारत में विधवा पुनर्विवाह से संबंधित
4. विष्णु शास्त्री पंडित: 1850 ई. में विधवा पुनर्विवाह सभा की स्थापना।
1856 का विधवा पुनर्विवाह अधिनियम: ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयास से लार्ड कैनिंग के समय पारित हुआ।
1872 का ब्रह्म मैरिज एक्ट: नार्थब्रुक के समय पारित(अंतर्जातीय विवाह भी शामिल)
ठगी प्रथा: लार्ड बिलियम बैंटिक के समय 1830 तक ठगों का दमन
शिशु वध: गवर्नर जनरल जाॅन शोर एवं वेलेजली का योगदान
नरबलि प्रथा: लार्ड हार्डिग प्रथम के समय 1844-45 ई. तक समाप्त
दास प्रथा: गवर्नर जनरल एलनबरो ने 1843 ई. में समाप्त किया।
बाल विवाह से संबंधित अधिनियम -
1. सिविल मैरिज एक्ट, 1872: लडकियों की विवाह की उम्र 14 वर्ष एवं लड़कों के विवाह की उम्र 18 वर्ष निर्धारित।
बहु पत्नी प्रथा को भी समाप्त किया।
2. सम्मति आयु अधिनियम, 1892: बहराम जी मालाबारी के प्रयत्नों से पारित(19 मार्च, 1891 में पारित)
लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 12 वर्ष कर दी गयी।
बाल गंगाधर तिलक ने इस अधिनियम का विरोध किया।
3. शारदा अधिनियम, 1929 : डा. हरविलास के प्रयत्नों से पारित।
लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष
लड़कों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष
सर सैय्यद अहमद खां को जवाद उद्दौला और आरिफ जंग की उपाधि दी गयी थी।
सर सैय्यद अहमद खां मैनपुरी(उ.प्र.) के न्यायाधीश के पद पर रहे थे।
सर सैय्यद अहमद खां द्वारा लिखित पुस्तकें - अतहर असनादीद, आसारूस्सनादीद, लाॅयल मुहम्डन्स आॅफ इंडिया, असबाब-ए-बगावत-ए-हिन्द, हिस्ट्री आॅफ रिवोल्ट इन बिजनौर।
गोपाल हरि देशमुख को लोकहितवादी के नाम से भी जाना जाता है।
अब्दुल लतीफ को बंगाल के मुस्लिम पुनर्जागरण का पिता माना जाता है।
अंग्रेजी के प्रथम भारतीय दैनिक इंडियन मिरर का संपादन केशव चन्द्र सेन ने किया।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ‘स्वराज’ शब्द का प्रयोग करने वाले प्रथम भारतीय थे।
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