भारत में मुगल चित्रकला 16वीं और 18वीं शताब्दी के बीच की अवधि का काल है। यह वह समय था जब मुगलों ने भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया था। मुगल चित्रकला का विकास सम्राट अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के शासनकाल में हुआ। मुगल चित्रकला का रूप फारसी और भारतीय शैली का मिश्रण के साथ ही विभिन्न सांस्कृतिक पहलुओं का संयोजन भी है।
कला की मुगल शैली का सबसे पूर्व उदाहरण ‘तूतीनामा पेंटिंग’ है। टेल्स ऑफ-ए-पैरट जो वर्तमान में कला के क्लीवलैंड संग्रहालय में है। एक और मुगल पेंटिंग है, जिसे ‘प्रिंसेज़ ऑफ द हाउस ऑफ तैमूर’ कहा जाता है। यह शुरुआत की मुगल चित्रकलाओं में से एक है जिसे कई बार फिर से बनाया गया।
मुगल चित्रकला में एक महान विविधता है, जिसमें चित्र, दृश्य और अदालत जीवन की घटनाएँ शामिल हैं, साथ ही अंतरंग स्थानों में प्रेमियों को चित्रित करने वाले चित्र आदि होते हैं।
मुगल चित्रकलाएँ अक्सर लड़ाई, पौराणिक कहानियों, शिफा के दृश्य वन्यजीव, शाही जीवन जैसे विषयों के आसपास घूमती हैं।
पौराणिक कथाओं आदि मुगल बादशाहों की लंबी कहानियों को बयान करने के लिए भी ये चित्रकला एक महत्त्वपूर्ण माध्यम बन गई हैं।
बिहजाद फारस का प्रसिद्ध चित्रकार था। यह बाबर का समकालीन था। ‘तुजुक ए बाबरी’ में बाबर ने बिहजाद को अग्रणी चित्रकार कहा है। बिहजाद को ‘पूर्व का राफेल’ कहा जाता है। तैमूरी चित्रकला शैली को चरमोत्कर्ष पर ले जाने का श्रेय बिहजाद को जाता है।
भारत की मुगल चित्रकला हुमायूँ के शासनकाल के दौरान विकसित हुई। जब वह अपने निर्वासन से भारत लौटा तो वह अपने साथ दो फारसी महान कलाकारों ख्वाज़ा अब्दुस्समद और मीर सैयद(सैय्यद अली) को लाया। इन दोनों कलाकारों ने स्थानीय कला कार्यों में अपनी स्थिति दर्ज कराई और धीरे-धीरे मुगल चित्रकला का विकास हुआ। मीर सैय्यद अली हेरात के प्रसिद्ध चित्रकार बिहजाद का शिष्य था। मीर सैय्यद ने जो कृतियाँ तैयार की उसमें से कुछ जहाँगीर द्वारा तैयार की गई गुलशन चित्रावली में संकलित है।
हुमायूँ ने इन दोनों को दास्तान-ए-अमीर-हम्जा (हम्ज़ानामा) की चित्रकारी का कार्य सौंपा।
दास्तान ए अमीर हम्जा : यह एक चित्रित पाण्डुलिपि ग्रंथ है। हम्ज़ानामा मुगल चित्रशाला की प्रथम महत्त्वपूर्ण कृति है। यह पैगंबर के चाचा अमीर हम्ज़ा के वीरतापूर्ण कारनामों का चित्रणीय संग्रह है। यह 1200 चित्रों का एक संग्रह है। मौलिक ग्रंथ अरबी भाषा में था जिसे मीर सैय्यद अली एवं अब्दुस्समद के नेतृत्व में फारसी भाषा में अनुदित करवाया गया था।
मुल्ला अलाउद्दीन कजवीनी ने अपने ग्रंथ ‘नफाई-सुल-मासिरे में हम्ज़ानामा को हुमायूँ के मस्तिष्क की उपज बताया।
अकबर ने अब्दुस्समद को सिरीकलम की उपाधि दी थी। हुमायुं ने मीर सैय्यद अली को नादिर-उल-अस की उपाधि दी थी।
अकबर के समय के प्रमुख चित्रकार मीर सैय्यद अली, दसवंत, बसावन, ख्वाज़ा अब्दुस्समद, मुकुंद आदि थे। आइने अकबरी में कुल 17 चित्रकारों का उल्लेख है।
चूँकि अकबर महाकाव्यों, कथाओं में रुचि रखता था इसलिए उसके काल के चित्र रामायण, महाभारत और फारसी महाकाव्य पर आधारित है।
अकबर द्वारा शुरू की गई सबसे प्रारंभिक पेंटिंग परियोजनाओं में से तूतीनामा महत्त्वपूर्ण थी। यह 52 भागों में विभाजित थी।
रज्मनामा: यह अकबर के काल में शुरू किया गया महाभारत ग्रंथ का फारसी अनुवाद ग्रंथ था। रज्मनामा के चित्रों को दसवन्त ने बनाया था एवं अब्दुस्समद के राजदरबारी पुत्र मोहम्मद शरीफ ने रज़्मनामा के चित्रण कार्य का पर्यवेक्षण किया था।
बसावन, अकबर के समय का सर्वोत्कृष्ट चित्रकार था। वह चित्रकला में सभी क्षेत्रों, रंगों का प्रयोग, रेखांकन, छवि चित्रकारी तथा भू-दृश्यों के चित्रण का सिद्धहस्त था। उसकी सर्वोत्कृष्ट कृति है- एक मृतकाय (दुबले-पतले) घोड़े के साथ एक मजनू का निर्जन क्षेत्र में भटकता हुआ चित्र।
अकबर के समय में पहली बार ‘भित्ति चित्रकारी’ की शुरुआत हुई।
अकबर के समय छवि चित्रकारी की शुरूआत हुई।
आइन-ए-अकबरी में 17 चित्रकारों के नाम दिए हैं जिनमें प्रमुख चित्रकार थे - दसवन्त, बसावन, केशव, महेश, लाल, मुकुन्द, माधव, सैय्यद अली, अब्दुल समद (अब्दुस्समद), खेमकरण, हरिवंश, जगन एवं राम।
मुगल सम्राट जहाँगीर के समय में चित्रकारी अपने चरमोत्कर्ष पर थी। उसने ‘हेरात’ के ‘आगारज़ा’ नेतृत्त्व में आगरा में एक ‘चित्रशाला’ की स्थापना की।
मोरक्का (एलबम) के रूप में चित्र बनने लगे
अलंकृत हाशिए वाले चित्र बनने लगे
चौड़े हाशिए को फुल-पत्ति, पेड़, पौधों व मनुष्य की आकृतियों से अलंकृत किया जाता था।
छवि चित्र पर अधिक बल दिया गया।
जहांगीर दरबार के प्रमुख चित्रकार
जहाँगीर के समय के प्रमुख चित्रकारों में ‘फारुख बेग’, ‘दौलत’, ‘मनोहर’, ‘बिशनदास’, ‘मंसूर’ एवं अबुल हसन थे। ‘फारुख बेग’ ने बीजापुर के शासक सुल्तान ‘आदिल शाह’ का चित्र बनाया था।
जहांगीर ने बिशनदास को अपने दूत खान आलम के साथ फारस के शाह के दरबार में चित्र बनाने के लिए भेजा था।
जहांगीर के समय के सर्वोत्कृष्ट चित्रकार उस्ताद मंसूर एवं अबुल हसन थे।
‘उस्ताद मंसूर’ एवं अबुल हसन जहाँगीर के श्रेष्ठ कलाकारों में से थे। उन्हें बादशाह ने क्रमशः ‘नादिर-उल-अस्र’ एवं ‘नादिरुज्जमा’’ की उपाधि प्रदान की थी।
उस्ताद मंसूर: पक्षियों की चित्रकारी, फुल चित्रकारी विशेषज्ञ था।
साइबेरिया का बिरला सारस व बंगाल का अनोखा पुष्प उस्ताद मंसूर द्वारा बनाए गए प्रसिद्ध चित्र थे।
अबुल हसन: ये व्यक्ति के चित्रों के विशेषत थे।
इनकी प्रमुख विशेषता रंग योजना थी।
अबुल हसन ने ‘तुजुके जहाँगीर’ में मुख्य पृष्ठ के लिए चित्र बनाया था।
शाहजहां के काल में चित्रकला की अवनति हुई। शाहजहां के काल में स्थापत्य कला को अधिक महत्व दिया गया था।
शाहजहां काल के चित्रकार: अनूप, मीर हासिम, मुहम्मद फकीर उल्ला, हुनर मुहम्मद नादिर, चिंतामणि।
औरंगजेब ने चित्रकला को इस्लाम विरूद्ध मानकर बंद करवा दिया था। किन्तु शासन काल के अंतिम वर्षों में उसने चित्रकारी में कुछ रूचि ली थी।
मुगलकालीन स्थापत्य इस्लामी एंव भारतीय कला का मिश्रित रूप है।
पेत्रादुला (संगमरमर पर जवाहरात से की गयी सजावट) मुगलकालीन स्थापत्य कला की अनूठी विशेषता है।
बाबर ने आगरा के निकट आरामबाग/रामबाग बगीचे बनवाए।
बाबर ने पानीपत में काबुली बाग में एक मस्जिद बनवायी।
हुमायुं ने दिल्ली में दीन पनाह नामक किले की स्थापना की। ये पुराना किला नाम से जाना जाता है।
शेरशाह ने दीनपनाह के अन्दर किला ए कुहना मस्जिद का निर्माण किया।
शेरशाह ने सासाराम (बिहार) में शेरशाह के मकबरे का निर्माण करवाया।
यह मकबरा अष्टकोणीय लोदी शैली पर आधारित था।
मुख्य रूप से बलुआ पत्थर का उपयोग हुआ था।
शहतीरों का अधिक उपयोग हुआ था।
मेहराबों के संरचनात्मक स्वरूप के स्थान पर अलंकरणों के लिए अधिक उपयोग हुआ था।
गुम्बद लोदी शैली से प्रभावित थे।
कुछ भवनों में संगमरमर का प्रयोग हुआ था।
अकबर कालीन स्थापत्य को 2 चरणों में बांटा जा सकता है।
प्रथम चरण: आगरा, इलाहबाद एवं लाहौर के किले
द्वितीय चरण: फतेहपुर सीकरी का निर्माण
इसका निर्माण हुमायुं की विधवा बेगम बेगा बेगम (हाजी बेगम) ने शुरू करवाया। इसका वास्तुकार मीरक मिर्जा गयास था।
यह दोहरी गुंबद वाला भारत का पहला मकबरा है।
चार बाग पद्धति का प्रयोग इसी मकबरे में किया गया था।
यह अष्टभुजीय आकार का मकबरा है। इसे ‘ताजमहल का पूर्वगामी’ माना जाता है।
इसका निर्माण अकबर काल में हुआ परन्तु जहांगीर महल को छोड़कर अन्य सभी संरचनाओं को शाहजहां ने तुडवा दिया था। आगरा के किले का वास्तुकार कासिम खां था।
अकबर ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। यह आगरा से 26 किमी. पश्चिम में स्थित है।
फग्र्यूसन कहता है - ‘फतेहपुर सीकरी किसी महान व्यक्ति के मस्तिष्क का प्रतिबिम्ब है।’
फतेहपुर सीकरी का मुख्य वास्तुकार बहाउद्दीन था।
दीवान-ए-आम एवं दीवान-ए-खास
जोधाबाई का महल: फतेहपुर के भवनों में सबसे बड़ी इमारत
बीरबल का महल
अबुल फजल का महल
इबादत खाना
शेख सलीम चिश्ती का मकबरा: जहांगीर ने इसमें संगमरमर लगवाया था।
बुलन्द दरवाजा: गुजरात विजय की स्मृति में
मरियम की कोठी: जोधाबाई महल के सामने स्थित
इस्लाम शाह का मकबरा: वर्गाकार मेहराब का प्रयोग
जामा मस्जिद: ‘फतेहपुर का गौरव’, पत्थर में रूमानी कथा’ उपनाम
पांच महल/हवा महल: पिरामिड आकार में पांच मंजिला भवन
तुर्की-सुल्ताना का महल: पर्सी ब्राउन ने इसे ‘स्थापत्य कला का मोती’ कहा
जहांगीर के समय स्थापत्य पर अधिक बल नहीं दिया गया।
अकबर का मकबरा
यह आगरा के निकट सिकन्दरा में स्थित है। इसके निर्माण की योजना अकबर ने बनायी थी परन्तु निर्माण जहांगीर ने करवाया। यह गुंबद विहीन मकबरा है।
ऐत्मादुद्लौला का मकबरा
यह आगरा में स्थित है। इसका निर्माण नूरजहां ने करवाया था। यह संगमरमर का प्रथम स्थापत्य भवन है।
शाहजहां का काल मुगल ‘वास्तुकला का स्वर्णयुग’ माना जाता है।
शाहजहां काल में संगमरमर का सर्वाधिक प्रयोग किया गया।
दीवान-ए-आम: आगरे के किले में शाहजहां द्वारा बनवाया गया था। इसमें बादशाह का ‘तख्त-ए-ताउस (मयूर सिंहासन)’ स्थापित था।
दीवान-ए-खास: आगरा में बनवाया
मोती मस्जिद (आगरा): शाहजहां ने बनवायी
मुसम्मन बुर्ज (आगरा): शाहजहां ने बनवाया
जामा मस्जिद (आगरा): जहांआरा ने बनवाया
लाल किला (दिल्ली): इसका निर्माण शाहजहां ने नए बसाए गए नगर शाहजहांनाबाद में किया था। यह दिल्ली में स्थित, लाल बलुआ पत्थर से बना है।
जामा मस्जिद (दिल्ली): इसका निर्माण शाहजहां ने करवाया था।
दीवान ए आम (दिल्ली): यह लाल किले में बनवाया गया जहां मयूर सिंहासन रखा जाता था। (राजधानी परिवर्तन के बाद)
दीवान ए खास (दिल्ली): लाल किले में निर्मित
ताजमहल: यमुना के तट पर आगरा में शाहजहां ने बनवाया। इसके नक्सानवीस (मिस्त्री) उस्ताद इंसा खां थे एवं मकबरे की योजना (स्थापत्यकार) उस्ताद अहमद लाहौरी ने बनायी थी। ताजमहल में मुमताज एवं शाहजहां की कब्रें हैं।
तुजुक-ए-बाबरी (बाबरनामा): यह स्वंय बाबर ने तुर्की भाषा में लिखी थी। इस पुस्तक का 4 बार फारसी में अनुवाद (शाहजहां काल तक) हुआ था।
बाबर के समय फारसी अनुवाद - शेख तैजुद्दीन ख्वाजा ने किया।
अकबर के समय इसका फारसी अनुवाद अब्दुर्रहीम खाने खाना ने किया।
हुमायुनामा: इसकी रचना गुलबदन बेगम ने की
अकबर नामा: इसकी रचना अबुल फजल ने की
मुन्तख्वाब-उल-तवारिख: अब्दुल कादिर बदायुंनी
आलमगीर नामा: मोहम्मद काजिम सिराजी
मासीर-ए-आलमगीरी: साकी मुस्तैद खां, इसे मुगल राज्य का गजेटियर जादुनाथ सरकार ने कहा था।
अकबर ने फैजी के अधीन एक अनुवाद विभाग की स्थापना की।
1. पंचतंत्र: इसका फारसी में अनुवाद अबुल फजल ने किया।
2. तुजुक-ए-बाबरी (बाबर नामा): फारसी अनुवाद अब्दुर्रहीम खाने खाना
3. रामायण: बदायुनी
4. लीलावती: फैजी
अकबर काल में आने वाले: फादर एक्वाविवा, फादर ऐंथाना मोंसेरात, राॅल्फफिच, जेरोम जेवियर एवं इमैन्युल पिनहोरो।
जहांगीर काल में आने वाले: विलियम हाॅकिंस (ब्रिटिश जेम्स का राजदूत), सर टाॅमस राॅ, पियेत्रो देला वोल, विलियम फिंच, एडवर्ड टैरी, पेलसार्ट।
शाहजहां काल में आने वाले: पीटर मुण्डी (इटालवी), जीन बैपटिस्ट ट्रैवर्नियर, फ्रांसिस वर्नियर, मैनडेस्लो, निकोलाओ मनूची।
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