सुल्तान की उपाधि तुर्की शासकों के द्वारा प्रारंभ की गयी। महमूद गजनवी सुल्तान की उपाधि धारण करने वाला पहला शासक था। राज्य की सम्पूर्ण शक्ति सुल्तान के हाथ में थी।
सुल्तान की शक्ति पर अमीर वर्ग का प्रभाव रहा। अमीरों के दो वर्ग तुर्क तथा गैर तुर्क थे। इल्तुतमिश के काल में चालीस अमीरों का समूह चहलगानी कहलाता था।
प्रशासनिक ईकाइ | प्रमुख | |
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↓ ↓ ↓ ↓ ↓ | साम्राज्य | सुल्तान |
इक्ता | इक्तेदार | |
शिक | सिकदार | |
परगना | आमिल | |
ग्राम | मुकद्दम/चौधरी |
बलबन ने 1279 ई. में शिक नामक ईकाई का गठन किया
इब्नबतूता ने बताया की परगना तथा गांव के बीच 100 गावों का समूह होता था जिसे सादी कहा जाता था।
केद्रीय शासन संस्था मजलिस ए खलवत मंत्री परिषद् की तरह होती थी। वजरी, आरिजे मुमालिक, दीवाने इंशा, दीवाने रिसालत इसके चार स्तंभ थे।
वजीर का कार्यालय दीवाने ए विजारत कहलाता था। इसे वित्त विभाग कहा जा सकता है। मुस्तौफी(महालेखा परीक्षक), खजीन(खजांची), मजमआदार(हिसाब संग्रहकर्ता) इस विभाग के कर्मचारी थे।
जलालुद्दीन खिलजी ने दीवाने वकूफ एवं अलाउद्दीन ने दीवान ए मुस्तखराज विभाग की स्थापन की थी। ये वित्त विभाग के अंतर्गत ही आते थे। मुहम्मद तुगलक ने भूमि को कृषि योग्य बनाने हेतु दीवाने-अमीर-कोही की स्थापना की।
आरिज ए मुमालिक | सैन्य विभाग का प्रधान |
इंशा ए मुमालिक | पत्राचार विभाग का प्रधान |
रसालत ए मुमालिक | विदेश विभाग का प्रधान |
मुस्तौफी ए मुमालिक | राज्य व्यय की जांच करना |
मुशरिफ ए मुमालिक | राज्य आय की जांच करना |
बारीद ए मुमालिक | गुप्तचर विभाग का प्रधान |
काजी-उल-कुजात | न्याय विभाग का प्रधान |
सद्र उस सुदुर | धार्मिक विभाग |
दीवान ए खैरात | निःशुल्क कार्य करने वाला विभाग |
शर ए जहांदार | शाही अंगरक्षक |
अमीर ए हाजिब | विशेषज्ञ सचिव या शाही गृहस्थी का रख-रखाव करने वाला |
अमरी ए दर | महल का व्यवस्थापक |
मुफ्ती | धर्म की व्याख्या करने वाला |
मुशरिफ | किसानों से भूमि कर लेने वाला |
वफ्फ | वह भमि जो धार्मिक कार्यों के लिए सुरक्षित कर दी गयी हो |
मैमार | इमारतों का निर्माण करने वाला |
सल्तनत कालीन सेना दो वर्गो में विभक्त थी।
शाही सेना की घुड़सवार टुकड़ी सवार-ए-कल्ब कहलाती थी।
सैन्य विभाग को दीवान-ए-आरिज कहा जाता था। इसका प्रमुख आरिज-ए-मुमालिक होता था। सेना की सबसे छोटी टुकड़ी सर-ए-खेल 10 घुड़सवार सैनिकों का एक दस्ता होता था। दस सर-ए-खेल के ऊपर एक सिपहसालार; दस सिपहसालार के ऊपर एक अमीर; दस अमीर के ऊपर एक मलिक और दस मलिक के ऊपर एक खान होता था। इस प्रकार सल्तनत काल में सेना का गठन दशमलव प्रणाली पर आधारित थी।
↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ | सुल्तान | 10 खान | |
खान | 10 मलिक | ||
मलिक | 10 अमीर | ||
अमीर | 10 सिपहसालार | ||
सिपहसालार | 10 सर-ए-खेल | ||
सर-ए-खेल | 10 अश्वारोही |
नोट - सभी खानों पर सुल्तान का नियन्त्रण होता था।
खराज कर - गैर मुस्लिम कर था जो पैदावार का 1/3 भाग लिया जाता था
खुम्स कर - युद्ध में लुटे गये माल पर लगने वाला कर। शरियत के अनुसार इस धन का 1/5 सुल्तान के पास तथा 4/5 भाग सैनिकों का होता था किन्तु
उश्र कर - मुस्लिमों पर लागू भूमिकर जो उत्पादन का 1/10 भाग था।
जकात कर - यह एक धार्मिक कर था जो 2.5 प्रतिशत या 1/40 भाग था।
जजिया कर - गैर मुस्लिम कर(ब्राह्मणों से लिया जाता था)। यह 10 टका, 20 टका, 30 टका तक लिया जाता था।
हक-ए-शर्ब - यह सिंचाई कर था। इस कर को लगाने वाला फिरोजशाह तुगलक था यह उपज का 1/10 भाग लिया जाता था।
चरी कर व घरों कर - अलाउद्दीन खिलजी ने चारागाहों पर व घरों पर कर लगाया था परन्तु फिरोजशाह तुगलक ने इसे समाप्त कर दिया था।
मो. बिन तुगलक को ‘प्रिंस आॅफ मेनिरियस’ की उपाधि मिली थी।
फिरोज शाह तुगलक एकमात्र ऐसा शासक था जिसने स्वंय को खलीफा का नायब कहा।
फिरोजशाह तुगलक ने सर्वप्रथम अपनी कुल आय का ब्यौरा तैयार करवाया था जो 6 करोड़ 75 लाख थी।
मोहम्मद गोरी ने कहा था, ‘ अन्य मुसलमानों के एक बेटा हो सकता है या दो मेरे अनेक हजार बेटे हैं।’
‘विश्वासघात में उसका आरंभ हुआ, दान शीलता पर वह विकसित हुआ और आतंक में उसका अंत हुआ’ यह कथन डा. आर. एस. शर्मा ने अलाउद्दीन खिलजी के लिए कहा है।
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