कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों का अधिकार
जहाजरानी निर्माण एवं नौ परिवहन में प्रगति
पुनर्जागरण की भूमिका
भारत में व्यापार कर अधिक धन कमाने की लालसा
यूरोप एवं एशिया के व्यापार पर वेनिस एवं जेनेवा के व्यापारियों का अधिकार
एशिया का अधिकांश व्यापार अरबवासियों के हाथ एवं भूमध्य सागर तथा यूरोपीय व्यापार इटली वालों के हाथ।
यह पुर्तगाल निवासी था।
यह केप ऑफ गुड होप होते हुए एक गुजराती पथ प्रर्दशक अब्दुल मुनीक की सहायता से कालीकट बन्दरगाह पर कप्पकडाबू नामक स्थान पर पहुंचा।(17 मई, 1498 ई. में)
कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया।
नोट - पेड्रो अल्बरेज केब्रल भारत पहुंचने वाला दूसरा पुर्तगाली था।(1500 ई. में)
1502 ई. में वास्कोडिगामा पुनः भारत आया था।
पुर्तगाली - डच - ब्रिटिश - डेनिस - फ्रांसीसी - स्वीडिश
1503 ई. में कोचीन (कोल्लम) में पुर्तगालियों ने अपनी प्रथम फैक्ट्री खोली।
यह भारत में प्रथम पुर्तगाली गवर्नर बनकर आया।
इसने 1509 ई. में मिस्त्र, तुर्की व गुजरात की संयुक्त सेना को पराजित कर दीव पर अधिकार कर लिया।
यह पाॅलिसी हिन्द महासागर के व्यापार पर पुर्तगीज नियंत्रण स्थापित करने के लिए अल्मेडा ने शुरू की थी।
भारत में पुर्तगीज शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
पुर्तगीज सेना में भारतीयों की भर्ती प्रांरभ की।
पुर्तगीजों को भारतीय स्त्रियों से विवाह के लिए प्रोत्साहित किया।
अपने क्षेत्र में सती प्रथा पर रोक लगायी।
बीजापुर के आदिल शाह से गोवा को जीता।
दक्षिण पूर्व एशिया की महत्वपूर्ण मंडी मलक्का पर नियंत्रण स्थापित किया।
फारस खाड़ी पर स्थित हरमुज पर अधिकार किया।
गोवा (1510) - मलक्का (1511) - हरमुज (1515)
इसने गोवा को राजनीतिक व सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में उभारा।
गोवा को पुर्तगीज राज्य की औपचारिक राजधानी बनाया
इसने सैन्थोमी (मद्रास), हुगली (बंगाल), दीव में पुर्तगीज बस्तियों की स्थापना की।
बंगाल के शासक मसूदशाह द्वारा पुर्तगालियों को चंटगांव और सतगांव में व्यापारिक कंपनियां खोजने की अनुमति दी गयी।
अकबर की अनुमति से हुगली में कंपनी स्थापना
शाहजहां ने पुर्तगालियों के अधिकार से हुगली को छीना
भारतीय स्त्रियों से विवाह एवं धर्मांतरण
व्यापारिक प्रशासन में अकुशलता
रिश्वतखोरी एवं शासकीय नियुक्तियों में भ्रष्टाचार
डचों का प्रवेश एवं सैन्य चुनौती
यह समुद्री व्यापार पर नियंत्रण व्यवस्था थी। इसके अंतर्गत कोई भी भारतीय या अरबी जहाज बिन परमिट लिए अरब सागर में नहीं जा सकता था। इन जहाजों में काली मिर्च व गोला बारूद ले जाना निषेध था।
भारत का जापान से व्यापार शुरू करने का श्रेय पुर्जगीजों को दिया जाता है।
भारत में प्रिटिंग प्रेस लाना
भारत में तम्बाकू की खेती का विकास
भारत में गोथिक स्थापत्य कला का आगमन।
विभिन्न प्रकार के फल पपीता, सन्तरा, लीची, अनन्नास, काजू, बादाम, शकरकन्द आदि विदेशों से भारत लाये।
पुर्तगीजों के बाद भारत आये। ये नीदरलैण्ड व हाॅलैण्ड के निवासी थे।
इनकी कंपनी का नाम यूनाइटेड ईस्ट इण्डिया कंपनी आॅफ नीदरलैण्ड था।
डचों ने भारत में प्रथम फैक्ट्री की स्थापना 1605 ई. में मुसलीपट्टम में की।
डचों का भारत में प्रथम दल कार्नेलियस हाउट मैन के नेतृत्व में भारत आया।
बंगाल में डचों ने प्रथम फैक्ट्री की स्थापना पीपली में की।
प्रथम: मुसलीपट्टनम
दूसरा: पत्तोपोली (निजामपत्तनम)
तीसरा: पुलीकट
अन्य: सूरत, विमलीपट्टनम, कराइकल, चिनसुरा, कोचीन, कासिम बाजार, बालासोर, नागपट्टनम
पुलीकट को डचों ने व्यापारिक केन्द्र व मुख्यालय बनाया।
1690 में पुलीकट के स्थान पर नागपट्टनम को मुख्यालय बनाया गया।
चिनसुरा में गुस्तावुस फोर्ट की स्थापना (1653 ई. में)
कोच्चि में फोर्ट विलियम की स्थापना (1663 ई. में)
डचों ने मसाला द्वीप (इण्डोनेशिया) पुर्तगीजों से जीता
डचों ने मलक्का तथा सिलोन (श्री लंका) को जीता।
डचों ने जकार्ता को जीतकर नए नगर बैटेविया की स्थापना की।
मुगल बादशाह औरंगजेब ने 3.5 प्रतिशत वार्षिक चुंगी पर बंगाल, बिहार और ओडिसा में व्यापार का अधिकार डचों को प्रदान किया।
डचों की व्यापारिक व्यवस्था सहकारिता/कार्टल पर आधारित थी।
नोट - भारत में डचों के आने से सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ एवं भारत से भारतीय वस्त्र को निर्यात की वस्तु बनाने का श्रेय डचों को जाता है।
डच कंपनी पर सरकार का सीधा नियंत्रण
कंपनी के आयोग्य प्रशासक एवं कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार
डचों की भारत से अधिक रूचि इण्डोनेशिया एवं मसाला द्वीपों में थी।
बेडरा (बंगाल) का युद्ध (1758 ई.) में अंग्रेजों ने डचों को बुरी तरह पराजित किया जिससे डचों की भारत में शक्ति समाप्त हो गयी।
1599 ई. में लंदन में व्यापारियों के एक समूह ने द गवर्नर एण्ड कंपनी आॅफ मर्चेंट्स आॅफ ट्रेडिंग इन टू द ईस्ट इंडीज नामक कंपनी की स्थापना पूर्व के देशों के साथ व्यापार करने हेतु की।
1599 ई. में जाॅन मिल्डेन हाल नामक अंग्रेज स्थल मार्ग से भारत आया।
इंग्लैण्ड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम ने दिसम्बर, 1600 ई. में 15 वर्षों के लिए पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया। यह अधिकार समुद्र मार्ग से व्यापार करने के लिए था।
1608 ई. में हैक्टर नामक पहला अंग्रेजी जहाज कैप्टन हाॅकिन्स के नेतृत्व में भारत आया जो सूरत बन्दरगाह पर पहुंचा।
समुद्र के रास्ते भारत पहुंचने वाला पहला व्यक्ति कैप्टन हाॅकिन्स था।
कैप्टन हाॅकिन्स बादशाह जहांगीर से मिलने आगरा पहुंचा।
जहांगीर ने पहले हाॅकिन्स को सूरत में व्यापार की अनुमति दी परन्तु स्थानीय सौदागर एवं पुर्तगीजों के विरोध के कारण अनुमति रद्द कर दी।
1612 ई. में सवाल्ली के युद्ध में अंग्रेज कैप्टन बेस्ट ने पुर्तगीज सेना को परास्त किया। इसकी वीरता के कारण 1613 ई. में जहांगीर ने अंग्रेजों को सूरत में स्थायी फैक्ट्री लगाने की अनुमति प्रदान की।
दक्षिण में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना पहला कारखाना 1611 ई. में मुसलीपत्तनम में स्थापित की।
1613 ई. में सूरत में अंग्रेजों ने प्रथम स्थायी फैक्ट्री की स्थापना की। इसका अध्यक्ष टाॅमस एल्डवर्थ बनाया गया।
1609 ई. में सम्राट जेम्स प्रथम ने कम्पनी के व्यापारिक अधिकार को अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया।
सर टाॅमस रो, जेम्स प्रथम के दूत के रूप में 18 सितम्बर, 1615 ई. में सूरत पहुंचा।
10 जनवरी, 1616 ई. में टाॅमस रो जहांगीर से मिलने अजमेर पहुंचा।
1632 ई. में अंग्रेजों ने गोलकुण्डा के बन्दरगाहों से व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया।
1633 ई. में पूर्वी तट पर अंग्रेजों ने अपना पहला कारखाना बालासोर और हरिहरपुरा में स्थापित किया।
1639 ई. में फ्रांसिस डे ने चन्द्रगिरी के राजा से मद्रास को पट्टे पर लेकर वहां फोर्ट सेंट जार्ज की स्थापना की।
1661 ई. में ब्रिटेन के राजा चाल्र्स द्वितीय से पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन से विवाह के उपलक्ष्य में अंग्रेजों को बम्बई दहेज में मिला।
राजा चाल्र्स ने 10 पौंड वार्षिक किराए पर बम्बई को ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सौप दिया।
गेराल्ड आंगियार को बम्बई का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
बंगाल के सूबेदार शाहशुजा ने 1651 ई. में एक फरमान जारी कर बंगाल में 3000 रू वार्षिक कर के बदले व्यापार का विशेषाधिकार अंग्रेजों को प्रदान किया।
1651 ई. में ब्रिजमैन के नेतृत्व में बंगाल के हुगली नामक स्थान पर प्रथम अंग्रेजी कारखाने की स्थापना हुई।
हुगली के बाद कासिम बाजार, पटना एवं राजमहल में अंग्रेजी कारखाने खोले।
1686 ई. में अंग्रेजों एवं औरंगजेब की भिडन्त हुई (कारण: हुगली में अंग्रेजों द्वारा लूट) लडाई में अंग्रेजों की हार हुई एवं अंग्रेजों को हुगली से भागना पड़ा।
औरंगजेब ने 1,50,000 रू हर्जाना लेकर पुनः व्यापार की छूट प्रदान कर दी।
1698 ई. में बंगाल के सूबेदार अजीम-उश-शान ने सूतानती, कोलिकाता व गोविन्दपुर की जमींदारी अंग्रेजों को सौंप दी। उस समय सूतानती, कोलिकाटा एवं गोविन्दपुर का जमींदार इब्राहिम खां था।
जाॅव चारनाॅक ने सूतानती, कोलिकाता एवं गोविन्दपुर को मिलाकर एक नए नगर कलकत्ता की नींव रखी। इसी कारण जाॅव चारनाॅक को कलकत्ता का संस्थापक कहा जाता है।
1700 ई. में कलकत्ता में फोर्ट विलियम की स्थापना की गयी। इसका गवर्नर चाल्र्स आयर को बनाया गया।
1700 ई. में कलकत्ता को पहला प्रेसीडेंसी नगर घोषित किया गया।
सर्जन हेमिल्टन ने बादशाह फर्रूखसियार को एक दर्दनाक बीमारी से मुक्ति दिलायी इससे प्रसन्न होकर बादशाह ने तीन फरमान जारी किए।
बंगाल में 3000 रू वार्षिक कर अदा करने पर कंपनी को उसके समस्त व्यापार में सीमा शुल्क से मुक्त कर दिया गया।
कलकत्ता के आसपास 38 गांव खरीदने का अधिकार मिला।
बम्बई में ढले सिक्कों को समूचे मुगल साम्राज्य में चलाने के लिए छूट मिली।
सूरत में 10,000 रू वार्षिक देने पर कंपनी के समस्त आयात निर्यात को कर से मुक्त कर दिया गया।
अंग्रजों के बाद डेन 1616 ई. में भारत आए।
डेन लोगों ने अपनी पहली फैक्ट्री की स्थापना 1620 ई. में त्रावनकोर (तंजौर) में की।
डेन लोगों ने दूसरी फैक्ट्री 1676 ई. में सेरामपुर (बंगाल) में स्थापित की।
1745 ई. में डेन लोगों ने अपनी सभी फैक्ट्री अंग्रेजों को बेच दी एवं भारत छोड़कर चले गए।
लुई चौदहवें के मंत्री कोलबर्ट ने 1664 ई. में फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना की इसका नाम कम्पने देस इण्दसे ओरियंटलेस रखा गया। यह कंपनी वित्तीय संसाधनों के लिए राज्य पर निर्भर थी।
1667 ई. में फ्रेंसिस कैरो के नेतृत्व में एक दल भारत के लिए रवाना हुआ।
फ्रांसीसियों ने अपना पहला व्यापारिक कारखाना 1668 ई. में सूरत में स्थापित किया। इसका नेतृत्व फे्रंसिस कैरो ने किया।
फ्रांसीसियों ने दूसरी फैक्ट्री मुसलीपट्टनम में स्थापित की।
1673 ई. में फ्रेंसिस भार्टिन ने सूबेदार (वलिकोण्डापुर) शेरखां लोदी से पर्दुचुरी नामक एक गांव प्राप्त किया जो बाद में पांडिचेरी नाम से जाना गया।
पांडिचेरी में ही फ्रेंसिस मार्टिन ने फोर्ट लुई का निर्माण किया।
1674 ई. में बंगाल के सूबेदार शाइस्ता खां ने एक स्थल फ्रांसीसियों को प्रादन किया जहां फ्रांसीसियों ने 1690-92 ई. में फ्रांसीसी कोठी चन्द्रनगर की स्थापना की।
1693 ई. में डचों ने अंग्रेजों की सहायता से पाॅण्डिचेरी को छीन लिया।
1697 ई. में रिजविक की संधि से फ्रांसीसियों को पाॅण्डिचेरी पुनः प्राप्त हुआ।
1721 ई. में फ्रांसीसियों ने माॅरीशस पर अधिकार कर लिया।
1724 ई. में फ्रांसीसियों ने मालाबार (माही) पर अधिकार कर लिया।
1739 ई. में फ्रांसीसियों ने करिकाल पर अधिकार कर लिया।
भारत में फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कंपनी एवं ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना व्यापारिक उद्देश्यों से की गयी थी। शीघ्र ही इन दोनों कंपनियों का उद्देश्य व्यापारिक के साथ राजनैतिक हितों से जुड़ गया। इस कारण दोनों कंपनियों में टकराव शुरू हो गया इससे एक लंबे संघर्ष का जन्म हुआ जिसे कर्नाटक युद्ध के नाम से जाना गया।
यह युद्ध 1740 ई. में आरंभ हुए आॅस्ट्रिया के उत्तराधिकार के युद्ध का विस्तार मात्र था। इसके तात्कालिक कारण थे -
यह फ्रांसीसी सेना एवं कर्नाटक के नवाब अनवरूद्दीन के बीच अड्यार नदी के किनारे लड़ा गया।
इस युद्ध में फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व कैप्टन पैराडाइज ने किया जिसमें फ्रांसीसी सेना की विजय हुई।
यूरोप में आॅस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध की समाप्ति ए-ला-शापल या एक्स ला शापेल की संधि (1748 ई.) से हुई। प्रभावस्वरूप भारत में भी युद्ध समाप्त हो गया।
दोनों दल बराबर रहे परन्तु स्थल पर फ्रांसीसी श्रेष्ठ रहे।
मद्रास पुनः अंग्रेजों को प्राप्त हो गया।
डूप्ले की ख्याती में वृद्धि हुई।
डूप्ले की राजनैतिक महत्वकांशा
कर्नाटक के बवाब के पद के लिए संघर्ष (मुख्य कारण)
दक्क के सुबेदार का पद
कर्नाटक के नवाब के लिए फ्रांसीसियों ने चांद साहब का समर्थन किया वहीं अंग्रेजों ने अनवरूद्दीन का समर्थन किया।
दक्कन के सूबेदार के लिए फ्रांसीसियों ने मुजफ्फर जंग का समर्थन किया वहीं अंग्रेजों ने नासिर जंग का समर्थन किया।
मुजफ्फर जंग, चन्दा साहिब एवं फ्रांसीसी सेना संयुक्त रूप से अनवरूद्दीन को हरा दिया एवं मार डाला।
चंदा साहिब/चांद साहब कर्नाटक का नवाब एवं मुजफ्फर जंग दक्कन का सूबेदार बन गया। चंदा साहिब ने अर्काट को अपनी राजधानी बनाया।
अम्बूर के युद्ध के बाद अर्काट को राजधानी बनाया गया शीघ्र ही अंग्रेजों ने अर्काट को जीत लिया।
त्रिचनापल्ली अंग्रेजों के अधिकार में था जिसे फ्रांसीसी जीतना चाहते थे। 1752 ई. में स्ट्रिंगर लाॅरेंस (अंग्रजी सेना नेतृत्व कर्ता) के सामने फ्रांसीसी सेना ने हथियार डाल दिये। फ्रांसीसी सेना की पराजय हुई।
चंदा साहिब की हत्या तंजौर के राजा ने कर दी।
डूप्ले को फ्रांस वापस बुला लिया गया।
1755 में पांडिचेरी की संधि के तहत दोनों दल राजाओं के आपसी झगड़ों से दूर रहने के लिए राजी हुए।
मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बना।
1756 ई. में यूरोप में सप्तवर्षीय संघर्ष के आरम्भ होते ही भारत में अंग्रेज एवं फ्रांसीसियों के बीच शांति समाप्त हो गयी।
युद्ध का तात्कालिक कारण क्लाइव और वाट्सन द्वारा बंगाल स्थित चन्द्रनगर पर अधिकार करना था।
1757 ई. में अंग्रेजों ने चन्द्रनगर/बालासोर/कासिमबाजार/पटना की फ्रांसीसी फैक्ट्रियों पर अधिकार कर लिया।
इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व आयरकूट ने एवं फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व काउंट द लाली ने किया।
इस युद्ध में अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों को पराजित किया।
इस युद्ध में हार के बाद भारत में फ्रांसीसियों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो गया।
फ्रांसीसी कंपनी सरकारी थी। इसके लाभ एवं हानि के प्रति कंपनी के डायरेक्टर उदासीन थे।
यूरोप में संघर्ष में फ्रांसीसियों का अलझे रहना। भारत में कंपनी की गतिविधियों पर अधिक ध्यान न देना।
अंग्रेजों का बंगाल पर अधिक था जहां से अंग्रेजों का अपार धन की प्राप्ति हुई। जबकि फ्रांसीसियों के पास पाण्डिचेरी एवं अन्य ऐसे स्थान थे जहां से सीमित सीमा में धन प्राप्त होता था।
फ्रांस की नौसेना शक्ति समाप्त हो जाना।
अंग्रेजी कम्पनी का राजनैतिक तथा सैनिक नेतृत्व फ्रांसीसी कंपनी की अपेक्षा अधिक उत्तम था।
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