भारत अत्यधिक विविधतापूर्ण जलवायु एवं मृदा का देश है। इसीलिए यहां उष्णकटिबंधीय वनों से लेकर टुंड्रा प्रदेश तक की वनस्पतियां पायी जाती हैं। भारत की प्राकृतिक वनस्पतियों को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है।
ये वन सालभर हरे-भरे रहते हैं। 200 सेमी. से अधिक वर्षा के क्षेत्रों में ये मिलते हैं।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र -
सह्याद्रि (पश्चिमी घाट) में महाराष्ट्र से केरल
पूर्वोत्तर भारत का शिलांग पठार
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप
उत्तरी सह्याद्रि में इन वनों को ‘शोलास वन’ कहा जाता है।
इन वनों की लकड़ियां कठोर होती हैं एवं पेड़ों की ऊंचाई 60 मीटर से भी अधिक होती है।
इन वनों के प्रमुख वृक्ष -
महोगनी, आबनूस, बांस, बेंत, जारूल, एबोनी, नारियल, ताड़।
सिनकोना और रबर दक्षिणी सह्याद्रि और अंडमान-निकोबार में मिलते हैं।
इन्हें पतझड़ या पर्णपाती वन भी कहा जाता है। ये मुख्य रूप से मानसूनी वन हैं। ये 100 से 200 सेमी. वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र -
सह्याद्रि के पूर्वी ढलान
प्रायद्वीप के उत्तर पूर्वी पठारी भाग
शिवालिक श्रेणी के सहारे भाबर व तराई प्रदेश
मानसूनी वर्षा होने के कारण यहां पर साल भर वर्षा नहीं प्राप्त होती इस कारण यहां पाये जाने वाले वृक्ष सर्दियां बीत जाने के बाद या गर्मी आने से पहले पानी बचाने के लिए अपनी पत्तियां गिरा देते हैं।
इन वनों की लकड़ियां मुलायम एवं मजबूत होती है।
इन वनों के प्रमुख वृक्ष -
सागवान, सखुआ, शीशम, आम, महुआ, बांस, खैर, खैर, त्रिफला व चंदन।
चंदन मुख्य रूप से कर्नाटक तथा नीलगिरी पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है।
ये सभी आर्थिक दृष्टिकोण से मूल्यवान हैं।
ये वनस्पतियां 70 से 100 सेमी. वर्षा क्षेत्र में मिलती है। इन वनों में ऊंचे पेड़ों का अभाव मिलता है।
ये वन उन भागों में मिलते हैं जहां वर्षा 70 सेमी. से कम होती है।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र -
गुजरात से लेकर राजस्थान व पंजाब
मध्य प्रदेश के इंदौर से आंध्रप्रदेश के कुर्नूल तक अर्ध चंद्राकार पेटी में
इन वनों में वाष्पीकरण कम करने और जानवरों से सुरक्षा के लिए पत्तों की जगह कांटों ने ले ली है।
इन वनों के प्रमुख वृक्ष -
बबूल, खैर, खजूर, नागफनी, कैक्टस
पर्वतों पर पाये जाने वाले वन वर्षा का अनुसरण न करके ढ़ाल का अनुसरण करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में तेज गिरावट आती है।
ऊंचाई के साथ तापमान में तेज गिरावट के कारण सीमित क्षेत्र में ही जलवायु में परिवर्तन दिखाई पड़ता है।
ऊंचाई जलवायु में संशोधन ला सकती है। इसी कारण पर्वत जलवायु में संशोधन कर देते है।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र -
भारत में दो जगह पाये जाते है –
हिमालय पर पर्वतीय वन
दक्षिण भारत में पाये जाने वाले पर्वतीय वन
दक्षिण भारत की ये पहाड़यां हिमालय पर्वत की पहाड़ियों जीतनी ऊंची नहीं है। अतः यहां कोणधारी वन नहीं पाये जाते।
ये छोटे पेड़ या झाड़ी होते हैं जो समुद्र तटों, नदियों के मुहानों पर स्थित ज्वारीय, दलदली भूमि पर पाए जाते हैं। मुख्यतः खारे पानी में इनका विकास होता है।
मैंग्रोव वन मुख्यतः 25 डिग्री उत्तर और 25 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
इन वनों के प्रमुख क्षेत्र -
गंगा नदी का डेल्टा, महानदी का डेल्टा, ब्रह्मपुत्र नदी का डेल्टा, गोदावरी का डेल्टा, कृष्णा का डेल्टा, कावेरी का डेल्टा तथा गुजरात में कुछ भाग में पाये जाते हैं।
ये वन समुद्र के खारे पानी में डूबे रहते है। इन वनों की जड़े पानी के बाहर दिखाई देती है। लकड़ी कठोर होती है तथा छाल क्षारीय होती है।
वनस्पति- मैंग्रोव, सुंदरी, कैसुरिना, फॉनिकस, केवड़ा, बेंदी
ब्रह्मपुत्र के डेल्टा में सुंदरी नामक वृक्ष पाया जाता है। इसी वन में बंगाल टाइगर पाया जाता है।
मैंग्रोव वन सुनामी और चक्रवात से तटों की सुरक्षा करता है।
जलीय जीवों की प्रारंभिक नर्सरी का कार्य करता है।
भारत में सबसे पहले 1894 ई. में वन नीति का निर्माण हुआ जिसको 1952 ई. में तथा 1988 ई. में संशोधित किया गया।
1988 ई. की संशोधित नीति वनों की सुरक्षा, संरक्षण तथा विकास पर जोर देती है। ‘राष्ट्रीय वन नीति-1988’ के अनुसार भारत में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र की प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया है। इसके अनुसार मैदानी भागों में 20 प्रतिशत तथा पर्वतीय भागों में 60 प्रतिशत क्षेत्र को वनाच्छदित करने की आवश्यकता है।
प्रशासनिक आधार पर वनों को तीन भागों में बांटा जाता है -
1. आरक्षित (स्थाई) वन - ये वे वन है, जिन्हें इमारती लकड़ी या अन्य वन उत्पाद उत्पादित करने के लिए आरक्षित कर लिया गया है।
इनमें पशुओं को चराने व खेती की अनुमति नहीं होती है।
भारत का आधे से अधिक वन क्षेत्र आरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया गया है।
2. संरक्षित वन - इन वनों को और अधिक नष्ट होने से बचाने के लिए उनकी सुरक्षा की जाती है।
इनमें पशु चराने व खेती करने की अनुमति विशेष प्रतिबंधों के साथ दी जाती है।
देश के कुल वन क्षेत्र का एक-तिहाई हिस्सा संरक्षित है।
3. अवर्गीकृत वन - अन्य सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि जो सरकार, व्यक्तियों और समुदायों के स्वामित्व में होते हैं, अवर्गीकृत वन कहलाते हैं।
इनमें लकड़ी काटने व पशुचारण पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है।
यह रिपोर्ट भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) - देहरादून द्वारा प्रत्येक 2 वर्ष में तैयार की जाती है।
FSI, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अधीन आता है।
जारीकर्ता - पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
अक्तूबर, 2021 में भारत के वन शासन में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाने के लिये MoEFCC द्वारा वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में एक संशोधन प्रस्तावित किया गया था।
वर्ष 1987 से भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट को द्विवार्षिक रूप से ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
13 जनवरी 2022 को 17वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट जारी की गई।
इस रिपोर्ट में वन एवं वन संसाधनों के आकलन के लिये भारतीय दूरसंवेदी उपग्रह रिसोर्स सेट-2 से प्राप्त आँकड़ों का प्रयोग किया गया है। रिपोर्ट में सटीकता लाने के लिये आँकड़ों की जाँच हेतु वैज्ञानिक पद्धति अपनाई गई है।
वनों की तीन श्रेणियों का सर्वेक्षण किया गया है जिनमें शामिल हैं- अत्यधिक सघन वन (70% से अधिक चंदवा घनत्व), मध्यम सघन वन (40-70%) और खुले वन (10-40%)।
स्क्रबस (चंदवा घनत्व 10% से कम) का भी सर्वेक्षण किया गया लेकिन उन्हें वनों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया।
‘वनों के प्रकार एवं जैव विविधता’ नामक एक नए अध्याय के अंतर्गत वृक्षों की प्रजातियों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित करके उनका ‘चैंपियन एवं सेठ वर्गीकरण’ (Champion & Seth Classification) के आधार पर आकलन किया जाता है।
वर्ष 1936 में हैरी जॉर्ज चैंपियन (Harry George Champion) ने भारत की वनस्पति का सबसे लोकप्रिय एवं मान्य वर्गीकरण किया था।
वर्ष 1968 में चैंपियन एवं एस.के. सेठ (S.K Seth) ने मिलकर स्वतंत्र भारत के लिये इसे पुनः प्रकाशित किया।
यह वर्गीकरण पौधों की संरचना, आकृति विज्ञान और पादपी स्वरुप पर आधारित है।
इस वर्गीकरण में वनों को 16 मुख्य वर्गों में विभाजित कर उन्हें 221 उपवर्गों में बाँटा गया है।
इसने पहली बार टाइगर रिज़र्व, टाइगर कॉरिडोर और गिर के जंगल जिसमें एशियाई शेर रहते हैं में वन आवरण का आकलन किया है।
वर्ष 2011-2021 के मध्य बाघ गलियारों में वन क्षेत्र में 37.15 वर्ग किमी (0.32%) की वृद्धि हुई है, लेकिन बाघ अभयारण्यों में 22.6 वर्ग किमी (0.04%) की कमी आई है।
इन 10 वर्षों में 20 बाघ अभयारण्यों में वनावरण में वृद्धि हुई है, साथ ही 32 बाघ अभयारण्यों के वनावरण क्षेत्र में कमी आई।
बक्सा (पश्चिम बंगाल), अनामलाई (तमिलनाडु) और इंद्रावती रिज़र्व (छत्तीसगढ़) के वन क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है जबकि कवल (तेलंगाना), भद्रा (कर्नाटक) और सुंदरबन रिज़र्व (पश्चिम बंगाल) में हुई है।
अरुणाचल प्रदेश के पक्के टाइगर रिज़र्व में सबसे अधिक लगभग 97% वन आवरण है।
वनावरण
वह सभी भूमि जिसका क्षेत्रफल 1 हेक्टेयर से अधिक हो और वृक्ष घनत्व 10 % से अधिक हो वनावरण कहलाता है। भूमि का स्वामित्व व कानूनी दर्जा इसे प्रभावित नहीं करता है। यह आवश्यक नहीं है कि इस प्रकार की भूमि अभिलेखित वन में सम्मिलित हो।
वृक्षावरण या वृक्षों से आच्छादित क्षेत्र
इसमें अभिलेखित वन क्षेत्र के बाहर 1 हेक्टेयर से कम आकार के वृक्ष खंड आते हैं।
वृक्ष आवरण में सभी प्रकार के वृक्ष आते हैं, जिनमें छितरे हुए वृक्ष भी सम्मिलित हैं।
शब्द 'वन क्षेत्र' '(Forest Area) सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार भूमि की कानूनी स्थिति को दर्शाता है, जबकि 'वन आवरण' (Forest Cover) शब्द किसी भी भूमि पर पेड़ों की उपस्थिति को दर्शाता है।
भारत का वन क्षेत्र अब 7,13,789 वर्ग किलोमीटर है, यह देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है जो वर्ष 2019 में 21.67% से अधिक है।
वृक्षों के आवरण में 721 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
वर्ग | क्षेत्रफल (वर्ग किमी) | भौगोलिक क्षेत्रफल का % |
---|---|---|
अति सघन वन (VDF) | 99,779 | 3.04% |
मध्यम सघन वन (MDF) | 3,06,890 | 9.33% |
खुले वन (OF) | 3,07,120 | 9.34% |
कुल वनावरण क्षेत्र | 7,13,789 | 21.71% |
झाड़ियां | 46,539 | 1.42% |
गैर-वन क्षेत्र | 25,27,141 | 76.87% |
कुल वृक्षावरण क्षेत्र | 95,748 | 2.91% |
वनों एवं वृक्षों से आच्छादित कुल क्षेत्रफल | 8,09,537 | 24.62% |
2019 के आकलन की तुलना में देश के कुल वन और वृक्षों से भरे क्षेत्र में 2,261 वर्ग किमी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें से वनावरण में 1,540 वर्ग किमी और वृक्षों से भरे क्षेत्र में 721 वर्ग किमी की वृद्धि पाई गई है। वन आवरण में सबसे ज्यादा वृद्धि खुले जंगल में देखी गई है, उसके बाद यह बहुत घने जंगल में देखी गई है।
सर्वाधिक वनावरण प्रतिशत वाले राज्य:
राज्य | भौगोलिक क्षेत्रफल का % |
---|---|
मिज़ोरम | 84.53% |
अरुणाचल प्रदेश | 79.33% |
मेघालय | 76.00% |
मणिपुर | 74.34% |
नगालैंड | 73.90% |
सर्वाधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्य:
राज्य | क्षेत्रफल (वर्ग किमी) |
---|---|
मध्य प्रदेश | 77,493 |
अरुणाचल प्रदेश | 66,431 |
छत्तीसगढ़ | 55,717 |
ओडिशा | 52,156 |
महाराष्ट्र | 50,798 |
वन क्षेत्रफल में वृद्धि वाले शीर्ष राज्य:
राज्य | क्षेत्रफल (वर्ग किमी) (वृद्धि %) |
---|---|
आंध्र प्रदेश | 647 (2.22%) |
तेलंगाना | 632 (3.07%) |
ओडिशा | 537 (1.04%) |
कर्नाटक | 155 (0.40%) |
झारखंड | 109 (0.52%) |
वनावरण में सबसे अधिक कमी पूर्वोत्तर के पाँच राज्यों- अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड में हुई है।
17 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 33% से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वन आच्छादित है।
इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से पांच राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों जैसे लक्षद्वीप, मिजोरम, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में 75% से अधिक वन क्षेत्र हैं, जबकि 12 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात् मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा, गोवा, केरल, सिक्किम, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव,असम,ओडिशा में वन क्षेत्र 33 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच है।
भारत के वनों में बढ़ता हुआ कार्बन स्टॉक:
देश के जंगल में कुल कार्बन स्टॉक 7,204 मिलियन टन होने का अनुमान है और 2019 के अंतिम आकलन की तुलना में देश के कार्बन स्टॉक में 79.4 मिलियन टन की वृद्धि हुई है। कार्बन स्टॉक में वार्षिक वृद्धि 39.7 मिलियन टन है।
देश में सर्वाधिक कार्बन स्टॉक:- अरूणाचल प्रदेश।
बाँस क्षेत्र:
वर्ष 2019 में वनों में मौजूद बाँस की संख्या 13,882 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2021 में 53,336 मिलियन हो गई है।
कुल क्षेत्र:- 15 मिलियन हेक्टेयर।
सर्वाधिक बांस क्षेत्र वाला राज्य:- मध्य प्रदेश।
मैंग्रोव वनों की स्थिति:
देश में कुल मैंग्रोव क्षेत्र 4,992 वर्ग किमी (देश के भौगोलिक क्षेत्रफल का 0.15%) है, इसमें 17 वर्ग किमी क्षेत्र की वृद्धि दर्ज की गई है।
मैंग्रोव क्षेत्र में वृद्धि दिखाने वाले शीर्ष तीन राज्य ओडिशा (8 वर्ग किमी), इसके बाद महाराष्ट्र (4 वर्ग किमी) और कर्नाटक (3 वर्ग किमी) हैं।
जंगल में आग लगने की आशंका :
35.46% वन क्षेत्र जंगल की आग से ग्रस्त है। इसमें से 2.81% अत्यंत अग्नि प्रवण है, 7.85% अति उच्च अग्नि प्रवण है और 11.51% उच्च अग्नि प्रवण है।
वर्ष 2030 तक भारत में 45-64% वन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान से प्रभावित होंगे।
सभी राज्यों (असम, मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड को छोड़कर) में वन अत्यधिक संवेदनशील जलवायु वाले हॉटस्पॉट होंगे। लद्दाख (वनावरण 0.1-0.2%) के सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है।
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) 1990 से प्रत्येक 5 वर्ष में इस रिपोर्ट को जारी करता है। इस रिपोर्ट में सदस्य देशों के वन, उनकी हालत और उनके प्रबंधन की रिपोर्ट का आकलन किया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, विश्व का कुल वन क्षेत्र 4.06 बिलियन हेक्टेयर (BHA) है, जो कि कुल भूमि क्षेत्र का तकरीबन 31 प्रतिशत है। ध्यातव्य है कि यह क्षेत्र प्रति व्यक्ति 0.52 हेक्टेयर के समान है। विश्व के वनों का सबसे बड़ा अनुपात उष्णकटिबंधीय (45 प्रतिशत) वनों का है।
विश्व के 54 प्रतिशत से अधिक वन केवल पाँच देशों (रूस, ब्राज़ील, कनाडा, अमेरिका और चीन) में ही मौजूद हैं।
GFRA-2020 के अनुसार वन क्षेत्र की दृष्टि से भारत 10वें स्थान पर रहा था।
1. रुस | 2. ब्राजील |
3. कनाडा | 4. संयुक्त राज्य अमेरिका |
5. चीन | 6. ऑस्ट्रेलिया |
7. कॉंगो गणराज्य | 8. इंडोनेशिया |
9. पेरू | 10. भारत |
सर्वाधिक वार्षिक वन क्षेत्र की वृद्धि के आधार पर भारत का 8वां स्थान है।
GFRA-2020 के अनुसार पिछले 10 वर्षों में वन क्षेत्र बढ़ाने के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है।
भारत में हर साल वन क्षेत्र में 0.38% की वृद्धि हुई है।
2010-20 के दौरान जिन 10 देशों के वन क्षेत्र में औसतन बढ़ोतरी हुई है, उनमें चीन, ऑस्ट्रेलिया, भारत, चिली, वियतनाम, तुर्की, अमेरिका, फ्रांस, इटली और रोमानिया शामिल है।
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