14वीं शताब्दी के प्रथम चरण में द्वारसमुद्र के होयसलों के अतिरिक्त लगभग संपूर्ण दक्षिण भारत को दिल्ली-सल्तनत में शामिल किया जा चुका था परन्तु मुहम्मद बिन तुगलक के काल में दक्षिण भारत में सर्वाधिक विद्रोह हुए। इन विद्रोहों के दमन के लिए एवं सत्ता की मजबूती के लिए राजधानी दौलताबाद बनायी एवं विजित प्रदेशों को प्रांतों में विभाजित किया।
1325 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई बहाउद्दीन गुर्शस्प ने कर्नाटक में विद्रोह कर दिया जिसे स्वयं मुहम्मद बिन तुगलक ने दक्षिण जाकर दबाया परन्तु बहाउद्दीन भाग कर कंपिलि के शासक के पास पहुंच गया। मुहम्मद बिन तुगलक ने कंपिलि को जीतकर सल्तनत में शामिल कर लिया। कंपिलि विजय अभियान में ही मुहम्मद बिन तुगलक कंपिलि राज्य से हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों को बंदी बनाकर लाया था।
कंपिलि विजय के कुछ समय बाद दक्षिण भारत में अनेक विद्रोह हुए जैसे आंध्र में प्रोलाय एवं कपाय नायक नामक दो भाइयों ने विद्रोह कर दिया। मदुरा के तुगलक सूबेदार जलालुद्दीन अहसान ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। होयसलों ने भी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इसी स्थिति का लाभ उठाकर कंपिलि ने भी विद्रोह कर दिया। आंध्र, तमिलनाडु, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र सभी जगह विद्रोह भड़क उठा।
दक्षिण भारत के विद्रोहों को दबाने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक ने हरिहर एवं बुक्का को मुक्त कर सेनापति बनाकर दक्षिण के अभियान पर भेजा। हरिहर एवं बुक्का ने कंपिलि के विद्रोह को दबाया। इसी बीच में हरिहर एवं बुक्का विधारण्य नामक नामक संत के संपर्क में आए। विधारण्य ने अपने गुरू विधातीर्थ की अनुमति से हरिहर एवं बुक्का पुनः हिन्दु धर्म में दीक्षित किया।
1336 ई. में हरिहर ने हम्पी हस्तिनावती राज्य की नींव रखी। इसी वर्ष उसने अनेगोण्डी के निकट विधारण्य एवं सायण की प्रेरणा से विजयनगर शहर की स्थापना एवं संगम वंश की स्थापना की।
विजयनगर को विद्यानगर या जीत का शहर भी कहा जाता है। यह वर्तमान में कर्नाटक राज्य के हम्पी में स्थित था। विजयनगर साम्राज्य के खण्डहर तुंगभद्रा नदी पर स्थित है।
विजयनगर साम्राज्य(1336-1565ई.) | ||||
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वंश | संगम वंश | सालुव वंश | तुलुव वंश | आरावीडु वंश |
संस्थापक | हरिहर एवं बुक्का-1 | नरसिंह सालुव | वीरनरसिंह | तिरूमल्क |
संगम वंश की स्थापना हरिहर एवं बुक्का ने की।
संगम वंश का प्रथम शासक हरिहर-1 एवं अंतिम शासक विरूपाक्ष-2 था।
संगम वंश का प्रथम शासक था। इसने पहली राजधानी अनेगोण्डी को बनाया तथा बाद में विजय नगर को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
हरिहर-1 ने होयसल राज्य को अपने राज्य में मिलाया।
इसके शासन काल में बहमनी व विजयनगर के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हुआ। संघर्ष का प्रारंभ बहमनी शासक अलाउद्दीन हसन बहमन शाह द्वारा रायचूर के किले पर अधिकार करने के बाद प्रारंभ हुआ।
हरिहर के बाद उसका भाई बुक्का-1 शासक बना।
अभिलेखों में इसे पूर्वी, पश्चिमी व दक्षिणी सागरों का स्वामी कहा गया है।
बुक्का प्रथम ने मदुरा को विजय नगर साम्राज्य में शामिल किया।
बुक्का प्रथम ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक की उपाधि धारण की।
यह विजयनगर का प्रथम शासक था जिसने राजाधिराज और राजपरमेश्वर की उपाधि धारण की।
हरिहर द्वितीय को राजव्यास(राजवाल्मीकी) की उपाधि प्रदान की गयी।
देवराय-1 ने तुंगभद्रा नदी पर बांध बनाकर नहरें निकाली।
इटली के यात्री निकाॅल कोंटी ने इसके शासन काल में विजयनगर की यात्रा की।
देवराय प्रथम ने तेलुगु कवि श्री नाथ को संरक्षण प्रदान किया। श्री नाथ ने हरविलास नामक ग्रंथ की रचना की।
उपाधि - गजवेटकर
देवराय-2 ने कोंडबिन्दु का दमन किया एवं वेलेम के शासक को विजयनगर की प्रभुसत्ता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
देवराय-2 ने अपनी सेनाा में मुसलमानों की भर्ती करना प्रारंभ किया एवं 2000 तुर्की धनुर्धरों को सेना में भर्ती किया।
देवराय-2 के समय फारस(ईरान) का राजदूत अब्दुर्रज्जाक विजय नगर आया था।
देवराय-2 ने कवि श्रीनाथ को कवि सार्वभौम की उपाधि दी।
उपाधि - गजवेटकर
इसके शासन काल में विजयनगर साम्राज्य का पतन प्रारंभ हो गया था।
इसे प्रौढ़ देवराय भी कहा जाता है।
इसने बहमनी शासक अलाउद्दीन-1 एवं उड़ीसा के गजपति शासक कपिलेश्वर के संयुक्त आक्रमण को विफल किया था।
इसके शासनकाल में चीनी यात्री माहुयान विजयनगर आया था।
यह विजयनगर साम्राज्य में संगम वंश का अंतिम शासक था।
इसके शासन काल में बहमनी साम्राज्य द्वारा विजय नगर साम्राज्य पर प्रथम विजय प्राप्त की।
सालुव वंश का संस्थापक सालुव नरसिंह था।
इसके सिंहासन पर बैठने के कुछ समय बाद ही उड़ीसा के शासक पुरूषोत्तम गजपति ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया तथा सालुव नरसिंह को बंदी बना लिया। बाद में नरसिंह द्वारा मुक्ति की याचना पर इसे छोड़ा गया। उदयगिरी पर गजपतियों का अधिकार हो गया।
सालुव नरसिंह ने अरब व्यापारियों से अधिक से अधिक घोड़े आयात करने को प्रोत्साहन दिया।
यह सालुव नरसिंह का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। यह अल्पायु का था अतः सालुव नरसिंह का सेनानायक इसका संरक्षक बना।
अवसर पाकर सेना नायक नरसा नायक ने सत्ता हथिया ली एवं स्वंय शासक बन बैठा।
नरसा नायक ने चोल, चेर एवं पाण्ड्य शासकों से अपनी अधीनता स्वीकार करवायी।
नरसा नायक के पुत्र वीर नरसिंह ने इम्मादि नरसिंह की हत्या कर दी। इस प्रकार सालुव वंश समाप्त हो गया।
वीर नरसिंह ने विजयनगर के तीसरे राजवंश तुलुव वंश की स्थापना की।
तुलुव वंश का संस्थापक वीर नरसिंह था एवं अंतिम शासक तिरूमल था।
वीर नरसिंह ने भुजबल की उपाधि धारण की।
कृष्ण देवराय 1509 ई. में गद्दी पर बैठा वह विजयनगर साम्राज्य का महानतम शासक था।
बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबर नामा में कृष्ण देवराय को तत्कालीन भारत का सबसे शक्तिशाली शासक कहा है।
1510 ई. में अल्बुकर्क ने फादर लुई को कालीकट के जमोरिन के विरूद्ध युद्ध संबंधि समझौता और मत्कल एवं मंगलौर के मध्य एक कारखाना स्थापित करने की अनुमति मांगने के लिए विजयनगर भेजा। कृष्ण देवराय ने पुर्तगाली दूत को स्पष्ट उत्तर देकर वापस भेज दिया।
अदोनी का युद्ध - 1509-10 ई. में बीदर के सुल्तान महमूद शाह ने विजयनगर पर आक्रमण किया। कृष्णा देवराय ने महमूद शाह की सेना को अदोनी के निकट बुरी तरह पराजित किया। इस युद्ध में बीजापुर का सुल्तान युसुफ आदिल मारा गया। युसुफ आदिल की मृत्यु के बाद उसका अल्पवयस्क उत्तराधिकारी इस्माइल गद्दी पर बैठा।
इस स्थिति का लाभ उठाकर कृष्ण देवराय ने रायचूर एवं गुलबर्गा पर अधिकार कर लिया एवं बीदर पर आक्रमण करके बहमनी शासक महमूद शाह को कासिम बरीद के अधिकार से निकाल कर पुनः सिंहासन पर बैठाया। इस उपलक्ष्य में ‘यवनराज्य स्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की।
अष्ट दिग्गज - कृष्णा देवराय का शासनकाल तेलुगू साहित्य का स्वर्णकाल माना जाता है। कृष्ण देवराय के राजदरबार में तेलुगू के 8 महान विद्वान एवं कवि थे इन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता है। इनमें पेड्डाना सर्वप्रमुख थे। ये तेलुगू एवं संस्कृत दोनों भाषाओं के विद्वान थे।
कृष्ण देवराय के शासन काल में पुर्तगाली यात्री डुआर्ट बारबोसा एवं डोमिंगो पायस ने विजयनगर की यात्रा की।
कृष्ण देव राय को आन्ध्र भोज भी कहा जाता है।
कृष्ण देवराय ने हजारा मंदिर, विट्ठल स्वामी मंदिर एवं चिदम्बरम मंदिर का निर्माण करवाया था।
1520 ई. तक कृष्ण देवराय ने विजयनगर के सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया था।
मृत्यु से पूर्व कृष्ण देवराय ने अच्युत देवराय को उत्तराधिकारी नामजद किया था। परन्तु कृष्ण देवराय के जामाता राम राय अपने साले सदाशिव को शासक बनाना चाहता था। इससे गृहयुद्ध की स्थिति पैदा हो गयी। इस गृहयुद्ध के संकट से रक्षा करने के लिए अच्युत देव राय ने राम राय को शासन में सहभागी बनाया।
इसी समय उड़ीसा के गजपति शासक प्रतापरूद्र गजपति एवं बाजीपुर के शासक इस्माइल आदिल ने विजयनगर पर आक्रमण किया। अच्युत ने गजपति के शासक का आक्रमण विफल कर दिया परन्तु इस्माइल आदिल ने रायचुर एवं मुद्गल पर अधिकार कर लिया। इसके बाद गोलकुण्डा के शासक ने भी आक्रमण कर दिया। अच्युत ने गोलकुण्डा को भी पराजित कर दिया।
अच्युत ने बीजापुर को हराकर रायचुर एवं मुद्गल को पुनः जीत लिया किन्तु राजधानी वापस लौटने पर रामराय ने अच्युत को बंदी बना लिया एवं स्वयं को शासक घोषित कर दिया। परन्तु जब रामराय दक्षिण में एक अभियान पर गया तो अच्युत अपने साले तिस्मल की सहायता से कारागार से भाग निकला एवं स्वयं को शासक घोषित कर दिया।
बाद में इब्राहिम आदिल शाह ने अच्युत एवं राम राय के मध्य समझौता करवाया।
अच्युत की मृत्यु के बाद सत्ता उसके साले सलकराज तिस्मल के हाथ में आ गयी। बाद में राम राय ने इब्राहिम आदिल के साथ मिलकर सलकराज तिस्मल को पराजित कर अच्युत के भतीजे सदाशिव को गद्दी पर बैठा दिया।
सदाशिव के शासन काल में सत्ता राम राय के हाथ में रही।
रामराय ने बड़ी संख्या में मुसलमानों की भरती प्रारंभ की।
रामराय ने समकालीन दक्षिण की मुस्लिम सल्तनतों की अन्तर्राज्यीय राजनीति में हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था।
विजयनगर की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर दक्षिण की मुस्लिम सल्तनतें इतनी आशंकित हो गयी कि उन्होंने आपसी झगड़ों को समाप्त कर एक संघ बना कर विजयनगर की शक्ति को समाप्त करने का निर्णय लिया। युद्ध के समय वियजनगर का शासक सदाशिव था।
युद्ध में एक पक्ष विजयनगर था और दूसरा पक्ष अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा, बीदर का था। बरार इस संघ में शामिल नहीं था।
विजयनगर के प्रति दक्षिणी सल्तनतों की समान ईष्र्या व घृणा।
राम राय द्वारा किया गया राज्यों की अन्तर्राज्यीय राजनीति में हस्तक्षेप।
राम राय के अहमदनगर आक्रमण के दौरान इस्लाम धर्म का अपमान व मस्जिदों को नष्ट करना(इसके प्रमाण नहीं, फरिश्ता के अनुसार)।
महासंघ की तैयारी पूर्ण होते ही अलीआदिल शाह ने शुरूआत करते हुए रामराय से रायचुर, मुद्गल एवं अदोनी किले वापस मांगे किन्तु राम राय ने मना कर दिया। इसके बाद 23 जनवरी, 1565 ई. को युद्ध प्रारंभ हुआ।
प्रारंभ में राम राय ने मुस्लिम सेनाओं को पराजित कर दिया परन्तु संघ की तोपों ने राम राय की सेना में तबाही मचा दी। राम राय की सेना के मुस्लिम सैनिक विपक्ष से जा मिले। राम राय मारा गया। संघ सेना ने विजयनगर को खूब लूटा।
तालीकोटा के युद्ध के बाद विजयनगर का वैभव एवं शक्ति नष्ट हो गयी। तिरूमल ने सदाशिव को लेकर पेनुकोंडा(वैनुकोण्डा) को राजधानी बनाया।
1570 ई. में तुलुववंश के अंतिम शासक सदाशिव को अपदस्थ कर आरवीडु वंश की स्थापना की।
वेकंट-2 ने 1598 ई. में अपने दरबार में ईसाई पादरियों का स्वागत किया तथा उन्हें अपने साम्राज्य में धर्मप्रचार व गिरिराजघर बनवाने की स्वतंत्रता प्रदान की।
श्री रंग-3 अरावीडु वंश एवं विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक था।
विजयनगर साम्राज्य का शासन राजतंत्रात्मक था राजा को राय कहा जाता था वह ईश्वर के समतुल्य माना जाता था।
प्राचीन काल की भांति राज्य की सप्तांग विचारधारा पर जोर दिया गया।
विजयनगर नरेश अपने जीवन काल में ही उत्तराधिकारियों को नामजद कर देते थे।
विजयनगर शासकों ने धर्म के मामले में धर्म निरपेक्ष नीति अपनायी।
राजपरिषद - यह राजा की शक्ति पर नियंत्रण की सबसे शक्तिशाली संस्था थी। राजा, राज्य के समस्त मामलों एवं नीतियों के संबंध में इससे परामर्श लेता था। राजपरिषद में प्रांतों के नायक, सामन्त शासक, प्रमुख धर्माचार्यों, विद्वानों, संगीतकारों, कलाकारों, व्यापारियों यहां तक की विदेशी राज्यों के राजदूतों को शामिल किया जाता था।
मंत्रिपरिषद - राजपरिषद के बाद मंत्रिपरिषद नामक संस्था थी। इसका प्रमुख अधिकारी ‘प्रधानी’ या ‘महाप्रधानी’ होता था।
राजा एवं युवराज के बाद केन्द्र का सबसे प्रधान अधिकारी प्रधानी होता था जिसकी तुलना हम मराठा कालीन पेशवा से कर सकते हैं।
रायसम - यह सचिव होता था जो राजा के मौखिक आदेशों को लिपिबद्ध करता था।
कर्णिकम - यह लेखाधिकारी होता था।
प्रान्त - विजयनगर साम्राज्य प्रांतों में बंटा था
मण्डल(कमिश्नरी) - प्रांत मण्डलों में बंटा था
कोट्टम/वलनाडु(जिले) - मण्डल, कोट्टमों में बंटा था
नाडु(तहसील) - कोट्टम, नाडुओं में बंटा था
मेलाग्राम(ग्रामों का समूह) - नाडु, मेलाग्रामों में बंटा था
उर/ग्राम(प्रशासन की सबसे छोटी इकाई) - मेलाग्राम, उर एवं ग्रामों से मिलकर बना था
इस व्यवस्था के अंतर्गत विजयनगर नरेश सैनिक एवं असैनिक अधिकारियों को उनकी विशेष सेवाओं के बदले भू-क्षेत्र विशेष प्रदान कर देते थे। यह भूमि अमरम कहलाती थी। इसे ग्रहण करने वाले अमर नायक कहलाते थे। प्रारंभ में यह व्यवस्था सेवा शर्तों पर आधारित थी जो बाद में आनुवांशिक हो गयी।
उंबलि पद्धति - ग्राम में कुछ विशेष सेवाओं के बदले लगान मुक्त भूमि दी जाती थी यह उंबलि कही जाती थी।
रत्त(खत्त) कोडगे - युद्ध में शौर्य प्रदर्शन करने वालों या युद्ध में अनुचित रूप से मृत लोगों के परिवार को दी गयी भूमि रत्त(खत्त) कोडगे कहलाती थी।
कुट्टगि - ब्राह्मण, मंदिर, बड़े भू-स्वामी जो स्वंय खेती नहीं करते थे, वे इस भूमि को अन्य किसानों को पट्टे पर देते थे यह भूमि कुट्टगि कहलाती थी।
कुदि - खेती में लगे किसान-मजदूर को कुदि कहा जाता था।
भण्डारवाद ग्राम - ऐसे ग्राम जिनकी भूमि राज्य के प्रत्यक्ष नियंत्रण में थी। इन ग्रामों के किसान राज्य को कर देते थे।
इस काल में सभा, महासभा, उर एवं महाजन नामक ग्रामीण संस्थाएं थी।
गांव की सार्वजनिक जमीन को बेचने का अधिकार था ये ग्राम सभाएं राजकीय करों को भी एकत्रित करती थी।
ब्रहादेय ग्रामों की सभाओं को चतुर्वेदि मंगलम कहा गया है।
नाडु - यह गांव से एक बड़ी राजनीतिक ईकाई थी। इसी संस्था को नाडु एवं इसके सदस्यों को ‘नात्तवार’ कहा जाता था।
विजयनगर साम्राज्य में आयगार व्यवस्था स्थानीय प्रदेशों के शासन की व्यवस्था प्रचलित थी।
इस व्यवस्था के अनुसार, एक स्वतंत्र इकाई के रूप में प्रत्येक ग्राम को संगठित किया गया। इसके प्रशासन के लिए बारह शासकीय व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था। इस बारह शासकीय व्यक्तियों के समूह को आयगार कहा जाता था। इनकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी। ये पद आनुवांशिक था। आयगारों को वेतन रूप में लगान एवं कर मुक्त भूमि प्रदान की जाती थी।
विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख कर - कदमई, मगमाई, कनिक्कई, कत्तनम, वरम्, भोगम्, वारि, पत्तम, इराई और कत्तायम्।
विजयनगर साम्राज्य में विवाह कर भी लिया जाता था।
विजयनगर साम्राज्य में वेश्याओं से प्राप्त कर से पुलिश को वेतन दिया जाता।
‘शिष्ट’ नामक कर राज्य की आय का प्रमुख स्त्रोत था।
सोने के सिक्के - वराह(सर्वाधिक प्रसिद्ध) अन्य नाम: हूण या पगोडा कहा जाता था। अन्य सिक्के: प्रताप एवं फणम्।
चांदी के सिक्के - तार
विजयनगर साम्राज्य में समाज शास्त्रीय परम्पराओं पर आधारित था।
विजय नगर साम्राज्य वर्ण व्यवस्था पर आधारित था।
ब्राह्मणों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे ब्राह्मणों को मृत्युदण्ड नहीं दिया जा सकता था।
सतशूद्र - ये वे शूद्र थे जिन्होंने ऊंची जाति के लोगों के विशेषाधिकारों को हड़प लिया था।
दासप्रथा - विजनगर में दास प्रथा प्रचलित थी। मनुष्यों के क्रय-विक्रय को बेसवाग कहा जाता था।
स्त्रियों की दसा - विजयनगर में स्त्रियों की स्थिति सम्मान जनक थी। स्त्रियां मल्लयोद्धा, ज्योतिषी, भविष्यवक्ता, अंगरक्षिकाएं, सुरक्षाकर्मी, लेखाधिकारी, लिपिक एवं संगीतकार होती थी।
विजय नगर साम्राज्य एकमात्र साम्राज्य था जिसने विशाल संख्या में स्त्रियों को विभिन्न पदों पर नियुक्त किया।
विजय नगर साम्राज्य में देवदासी प्रथा प्रचलित थी। देव दासियों को मंदिरों में देव पूजा के लिए रखा जाता था। इन्हें वेतन भी दिया जाता था।
समाज में पर्दाप्रथा प्रचलित नहीं थी।
विधवाओं की स्थिति दयनीय थी।
सतीप्रथा - विजय नगर साम्राज्य में सती प्रथा प्रचलित थी। लिंगायत सम्प्रदाय की विधवाओं को जीवित दफना दिया जाता था।
गंडपेन्द्र - यह पैर में पहने जाने वाला कडा था। यह युद्ध में वीरता का प्रतीक था।
विजयनगर साम्राज्य का प्रमुख त्यौहार महानवमी था।
विजयनगर साम्राज्य काल में यक्षज्ञान नृत्य का विकास हुआ।
लिपाक्षी कला - यह विजयनगर साम्राल्य की स्वतंत्र चित्रकला शैली थी।
यक्षणी शैली - यह विजयनगर साम्राज्य में नृत्य एवं संगीत की मिश्रित शैली थी।
विजय नगर साम्राज्य में बाल विवाह प्रचलित था।
कुलीन एवं राजाओं में बहु विवाह प्रचलित था।
विजयनगर में वृहत स्तर पर वेश्यावृत्ति प्रचलित थी। यह संगठित थी।
विजय नगर साम्राज्य में नन्दिनागढ़ी लिपि का प्रयोग होता था।
1367 ई. की लड़ाई में पहली बार विजयनगर (बुक्का-1) तथा बाहमनी (मुहम्मद शाह-1) के बीच युद्ध में बहमनी शासक ने पहली बार तोप का प्रयोग किया।
सोनार की बेटी का युद्ध - यह युद्ध विजयनगर शासक देवराय तथा बहमनी शासक फिरोजशाह के बीच हुआ था।
कृष्ण देवराय की रचनाएं
विरूपाक्ष ने संस्कृत में नारायण विलास नामक पुस्तक लिखी।
कृष्ण देवराय के अष्टदिग्गजों में से पेड्डाना को आन्ध्र कविता का पितामह कहलाता है।
विजयनगर साम्राज्य में कालीकट प्रमुख बन्दरगाह था।
नन्दी तिम्म ने परिजात हरण की रचना की थी।
नन्नया ने महाभारत का तेलुगू भाषा में अनुवाद प्रारंभ किया था परन्तु पूर्ण नहीं कर सका।
वीर भद्र ने कालीदास रचित अभिज्ञान शाकुन्तलम का तेलुगु भाषा में अनुवाद किया।
हरिहर के स्वर्ण वाराह सिक्कों पर हनुमान एवं गरूड़ की आकृति का अंकन हुआ था।
सदाशिव राय के सिक्कों पर लक्ष्मी नारायण की आकृतियों का अंकन हुआ था।
तुलुव वंश के सिक्कों पर बैल, गरूड़, उमा महेश्वर, वेंकटेश और बालकृष्ण की आकृतियों का अंकन हुआ था।
विजयनगर साम्राज्य में सबसे अधिक निर्यात काली मिर्च का एवं सबसे अधिक आयात घोड़ों का होता था।
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