भारत में 1972 ई. में ‘वाइल्ड लाइफ एक्ट’ पारित किया गया। जिसके अन्तर्गत नेशनल पार्कों तथा वन्य जीव अभ्यारणों की स्थापना हुई। वन्य जीव अभ्यारण्यों (वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी) का गठन किसी एक प्रजाति अथवा कुछ विशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण के लिए किया जाता है अर्थात् ये ‘विशिष्ट प्रजाति आधारित संरक्षित क्षेत्र’ होते हैं। इसके विपरित राष्ट्रीय उद्यानों (नेशनल पार्कों) का गठन विशेष प्रकार की शरणस्थली के संरक्षण के लिए किया जाता है अर्थात् ये ‘हैबिटेट ओरियेन्टेड’ होते हैं। इनके अंतर्गत एक विशेष प्रकार के शरण क्षेत्र में रहने वाले सभी जीवों का संरक्षण किया जाता है।
भारत में सर्वाधिक वन्यजीव अभ्यारण अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में है। इसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक का स्थान है।
भारत में 566 मौजूदा (दिसंबर 2020) वन्यजीव अभयारण्य हैं जो 122420 किमी 2 के क्षेत्र को कवर करते हैं, जो कि देश के भौगोलिक क्षेत्र का 3.72% है (राष्ट्रीय वन्यजीव डेटाबेस, दिसंबर 2020)। संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क रिपोर्ट में 16,829 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करते हुए 218 अन्य अभयारण्य प्रस्तावित हैं।
वन व वन्य जीवों को संविधान की समवर्ती सूची (42 वां संविधान संशोधन) में रखा गया है।
वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत वर्ष 2003 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड का गठन किया गया था।
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड वन्य पारस्थितिकी से संबंधित मामलों में सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।
यह निकाय वन्य जीवन से जुड़े मामलों तथा राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के आस-पास निर्माण या अन्य परियोजनाओं की समीक्षा करता है।
राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
भारत में 106 मौजूदा (दिसंबर 2020) राष्ट्रीय उद्यान हैं जो 44,378 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करते हैं, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 1.35% है (राष्ट्रीय वन्यजीव डेटाबेस, दिसंबर 2020)। उपरोक्त के अलावा 16,608 किमी 2 के क्षेत्र को कवर करने वाले 75 राष्ट्रीय उद्यान संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क रिपोर्ट (रॉजर्स एंड पंवार, 1988) में प्रस्तावित हैं। उपरोक्त रिपोर्ट के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद पार्कों का नेटवर्क 176 हो जाएगा।
भारत का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान लद्दाख में है जिसका नाम ‘हेमिस हाई’ है। देश का सबसे छोटा राष्ट्रीय उद्यान अण्डमान-निकोबार में ‘साउथबटन’ (0.03 वर्ग किमी) है। भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान हेली नेशनल पार्क था जिसे अब जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान के रूप में जाना जाता है इसकी स्थापना 1936 में हुई थी।
भारत के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान की सूची
मध्य प्रदेश (12 राष्ट्रीय उद्यान) और अंडमान (9 राष्ट्रीय उद्यान) के बाद असम(7) में सबसे अधिक वन्य राष्ट्रीय उद्यान मौजूद हैं।
सुल्तानपुर लेक बर्ड सेंक्चुरी(राष्ट्रीय उद्यान), हरियाणा प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सलिम अली को समर्पित है।
असम का देहिंग पटकाई भारत का नवीनतम(जुन 2021) राष्ट्रीय उद्यान है।
पंजाब में कोई राष्ट्रीय उद्यान नहीं है।
1969 ई. में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संघटन संरक्षण संघ के 10वें अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि बाघों को संपूर्ण सुरक्षा दी जाए। भारत में पहली बार बाघ गणना वर्ष 1972 में की गई थी।
भारत में मध्य प्रदेश को ‘टाइगर राज्य’ के नाम से जाना जाता है।
मध्य प्रदेश के ‘वनविहार नेशनल पार्क’ में सफेद बाघ का संरक्षण किया जा रहा है।
मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों में हर वर्ष नवम्बर माह में ‘मोगली महोत्सव’ मनाया जाता है, जिसका मकसद बच्चों में प्रकृति के प्रति अपनत्व की भावना विकसित करना है।
वर्ष 2010 को भारत सरकार द्वारा ‘बाघ वर्ष’ के रूप में मनाया गया था।
4 सितम्बर, 2006 को बाघ संरक्षण के प्रयासों की सफलता का आकलन करने और बाघों की संख्या तथा उनके परितंत्र पर नजर रखने के उद्देश्य से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) का गठन किया गया, जो प्रत्येक चार वर्ष के अंतराल पर बाघों की स्थिति एवं उनके प्राकृतिक आवास के ‘राष्ट्रीय आंकलन’ का कार्य संचालित करता है।
पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India) ने देश भर के टाइगर रिज़र्व, राष्ट्रीय उद्यान (National Park) तथा अभयारण्यों में बाघों की गिनती की।
अप्रैल 2023 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाघों की संख्या बढ़कर तीन हजार एक सौ सड़सठ हो गई है जो 2018 में दो हजार नौ सौ सड़सठ थी। 29 जुलाई, 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में एक टाइगर समिट के दौरान दुनिया भर के बाघों की घटती संख्या के संदर्भ में एक समझौता किया गया था। समझौते के अंतर्गत वर्ष 2022 तक विश्व में बाघों की आबादी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था। भारत ने बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को चार साल पहले (वर्ष 2018 में) ही प्राप्त कर लिया है।
भारत में सर्वाधिक टाइगर रिजर्व वाले राज्य मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व कर्नाटक हैं।
भारत की पहली बाद्य परियोजना का प्रारम्भ अप्रैल, 1973 में जिमकार्बेट राष्ट्रीय उद्यान में हुआ।
वर्तमान में, 53 बाघ अभयारण्य, प्रोजेक्ट टाइगर के दायरे में आते हैं, यह परियोजना टाइगर रेंज वाले 18 राज्यों में विस्तारित है, जो हमारे देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.3% है।
M-STrIPES (Monitoring System for Tigers - Intensive Protection and Ecological Status) यानी बाघों के लिये निगरानी प्रणाली - गहन सुरक्षा और पारिस्थितिक स्थिति, एक एप आधारित निगरानी प्रणाली है, जिसे वर्ष 2010 में NTCA द्वारा भारतीय बाघ अभयारण्यों में लॉन्च किया गया था।
6 जून, 2007 को वन्य जीवों के अवैध व्यापार को रोकने के लिए वन्य जीवन अपराध नियंत्रण ब्यूरो(बाघ एवं अन्य संकटापन्न प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो) को गठन किया गया।
रानीपुर टाइगर रिज़र्व (उत्तर प्रदेश) भारत का 53वाँ बाघ रिज़र्व बन गया है।।
प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को वैश्विक बाघ दिवस (Global Tiger Day) मनाया जाता है जो कि बाघ संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये चिह्नित एक वार्षिक कार्यक्रम है।
वर्ष 1992 में पद्मश्री से अलंकृत राजस्थान के कैलाश सांखला भारत में बाघों पर किए गए अपने कार्यों के लिए टाइगर मैन आॅफ इंडिया के नाम से जाने जाते हैं। वर्ष 1973 में शुरू किए गए प्रोजेक्ट टाइगर का नेतृत्व सांखला ने ही किया था।
बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, चीता, जगुआर और प्यूमा सहित सात बड़ी बिल्ली प्रजातियों के संरक्षण के लिए भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 9 अप्रैल, 2023 को इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA) की शुरुआत की गई थी।
गठबंधन का लक्ष्य इन बड़ी बिल्लियों के प्राकृतिक आवासों को कवर करने वाले 97 रेंज देशों तक पहुंचना और उनके संरक्षण के लिए वैश्विक सहयोग और प्रयासों को मजबूत करना है।
भूटान, बांग्लादेश, कंबोडिया, केन्या, नेपाल, इथियोपिया और मलेशिया के मंत्रियों ने गठबंधन और संरक्षण में भारत के प्रयासों के लिए अपना समर्थन दिया।
प्रोजेक्ट एलिफेंट एक केंद्र प्रायोजित योजना है और इसे फरवरी, 1992 में हाथियों के आवास एवं गलियारों की सुरक्षा के लिये लॉन्च किया गया था।
हाथियों का प्राकृति आवास सुनिश्चित करने के लिए 1992 ई. में ‘गजतमे’ नाम से हाथी संरक्षण परियोजना चलाई गई।
भारत में हाथियों के संरक्षण हेतु एक देशव्यापी जागरूकता अभियान ‘हाथी मेरे साथी’ की शुरूआत की गई।
हाथियों की अवैध हत्या की निगरानी हेतु कार्यक्रम (Monitoring the Illegal Killing of Elephants- MIKE)।
हाथी गलियारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये 'गज यात्रा' आरंभ करने की योजना बनाई जा रही है।
देश का पहला हाथी पुनर्वास केन्द्र हरियाणा में खोला गया।
1974 ई. में मगरमच्छ के संरक्षण के लिए परियोजना बनाई गई। इस परियोजना के तहत 1978 ई. तक कुल 16 मगरमच्छ प्रजनन केन्द्र स्थापित किए गए।
मगरमच्छ अभ्यारण्यों की सर्वाधिक संख्या आंध्र प्रदेश में है।
हैदराबाद में केंद्रीय मगरमच्छ प्रजनन एवं प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई है।
ओडिशा के ‘भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान’ में लवणयुक्त पानी मेें रहने वाले मगरमच्छों की संख्या सर्वाधिक है।
1970 ई. में शुरू की गई ‘भागवतपुर मगरमच्छ परियोजना’ का उद्देश्य खारे पानी में मगरमच्छों की संख्या में वृद्धि करना था।
यह सुंदरवन की मुख्य भूमि से दूर ‘लोथियन द्वीप’ (पश्चिम बंगाल) के पास स्थित है।
गिद्ध संरक्षण लिए हरियाणा वन विभाग तथा बाॅम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के बीच 2006 में एक समझौता हुआ। इसमें कहा गया की भारत में अधिकांश गिद्धों की मृत्यु पशुओं को दी जाने वाली ‘डायक्लोफेनेक, नानस्टीरोइडल एण्टीइनफ्लेमेटरी ड्रग’ के उपयोग के कारण होती है।
एशिया से समाप्त हो रहे गिद्धों के संरक्षण के लिए ‘सेव’ Saving Asia's Vultures from Extinction (SAVE) नामक कार्यक्रम को आरंभ किया गया।
इस कार्यक्रम के तहत ‘डायक्लोफेनेक’ पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
भारत में पिंजौर (हरियाणा), राजभटखावा (पश्चिम बंगाल) तथा रानी (असम) में गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र है।
गिर सिंह परियोजना - इसे ‘एशियाई सिंहों का घर’ कहे जाने वाले ‘गिर अभ्यारण’, गुजरात (जूनागढ़ जिला) में प्रारंभ की गई।
हंगुल परियोजना - हंगुल यूरोपियन प्रजाति का हिरण है। यह केवल कश्मीर के दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान में ही पाया जाता है। इनके संरक्षण के लिए 1970 में हंगुल परियोजना का शुभारंभ किया गया।
कस्तूरी मृग परियोजना - कस्तूर केवल नर मृग में पाई जाती है। कस्तूरी मृग परियोजना उत्तराखंड के केदारनाथ अभ्यारण में 1970 के दशक में आरंभ की गई।
कस्तूरी मृग के लिए हिमाचल प्रदेश का शिकारी देवी अभ्यारण्य तथा उत्तराखंड का बद्रीनाथ अभ्यारण्य प्रसिद्ध है।
लाल पांडा परियोजना - लाल पांडा भारत में पूर्वी हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है। अरूणाचल प्रदेश में इसे कैट बीयर के नाम से भी जाना जाता है। सन् 1996 में विश्व प्रकृति निधि के सहयोग से पद्मजानायडू हिमालयन जन्तु पार्क ने लाल पांडा परियोजना का शुभारंभ किया।
कछुआ संरक्षण परियोजना - ओलिव रिडले कछुए भारत में ओडिशा के समुद्री तट पर मिलते हैं। ओडिशा सरकार ने इनके संरक्षण के लिए 1975 में कटक जिले के भीतरकनिका अभ्यारण में योजना शुरू की। इस कछुए का प्रजनन स्थल गहिरमाथा इसी अभ्यारण में है।
गैंडा परियोजना - एक सींग वाले गैंडे केवल भारत में पाए जाते हैं। इनके संरक्षण के लिए 1987 में गैंडा परियोजना आरंभ की गई। गैंडों की मुख्य शरणस्थली असम का मानस अभ्यारण्य व काजीरंगा उद्यान तथा पश्चिम बंगाल का जाल्दा पारा अभ्यारण्य है।
वल्र्ड वाइड फण्ड-इण्डिया (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ), अन्तर्राष्ट्रीय राइनो फाउण्डेशन तथा असम वन विभाग ने ‘भारतीय गैंडा दृष्टिकोण-2020’ 28 मार्च 2014 को आरंभ किया। इसका उद्देश्य वर्ष 2020 तक गैंण्डों की संख्या को 3,000 करना था।
हिम तेंदुआ परियोजना - इस परियोजना की शुरूआत 20 जनवरी 2009 को हिमालयी राज्यों जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश और सिक्किम में की गई।
‘गंगा डाॅल्फिन’ (सूंस) को 5 अक्टूबर, 2009 को ‘राष्ट्रीय जलीय जीव’ घोषित किया गया। यह भारत में गहन संकट ग्रस्त प्रजातियों के तहत वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अनुसूची-1 में शामिल है।
बिहार के भागलपुर जिले में सुल्तानगंज से कहलगांव तक गंगा नदी क्षेत्र में ‘विक्रमशिला गंगा डाॅल्फिन अभ्यारण्य’ की स्थापना की गई है, जो एशिया में डाॅल्फिन का एकमात्र सुरक्षित आवास है।
भारत ने 3 मई, 2013 को जलीय जीव ‘डाॅल्फिन’ को ‘नाॅन-ह्यूमन पर्सन’ का दर्जा दिया है। ऐसा करने वाला भारत चौथा देश है।
प्रजाति | वर्तमान स्थिति |
---|---|
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड | अति संकटग्रस्त |
कस्तूरी मृग | संकटग्रस्त |
लाल पांडा | संकटग्रस्त |
एशियाई जंगली गधा | संकट के नज़दीक |
कश्मीरी हंगुल | कम चिंतनीय |
चीतल | कम चिंतनीय |
नीलगाय | कम चिंतनीय |
हिम तेंदुआ | संवेदनशील |
रीसस बंदर | कम चिंतनीय |
सारस (क्रेन) | संवेदनशील |
शेर जैसी पूँछ वाला बंदर | संकटग्रस्त |
हनुमान लंगूर | कम चिंतनीय |
आर्द्रभूमि, दलदली या पानी वाले क्षेत्र हैं, जहां लगभग सालभर मीठा या खारा पानी हो जिसकी गहराई 6 मी. से अधिक नहीं हो।
अधिकांश आद्रभूमि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, कावेरी, ताप्ती, गोदावरी आदि बड़ी नदियों से जुड़ी हैं।
1971 ई. में आर्द्रभूमि के संरक्षण के लिए बहुउद्देश्य समझौता हुआ, जिसे रामसर सम्मेलन (ईरान) के नाम से जाना जाता है।
भारत इसमें 1982 ई. में शामिल हुआ।
भारत के सर्वप्रथम घोषित रामसर स्थल, चिल्का झील, उड़ीसा और केवलादेव नेशनल पार्क, राजस्थान है।
भारत में अब (December 2021) कुल 47 रामसर स्थल हैं।
यह आनुवंशिक विविधता बनाए रखने वाले ऐसे बहुउद्देशीय संरक्षित क्षेत्र हैं, जहां पौधों, जीव-जंतुओं व सूक्ष्म जीवों को उनके प्राकृति परिवेश में संरक्षित करने का प्रयास किया जाता है।
यह बायोस्फीयर रिज़र्व का सबसे संरक्षित क्षेत्र है। इसमें स्थानिक पौधे और जानवर हो सकते हैं।
इस क्षेत्र में अनुसंधान प्रक्रियाएँ, जो प्राकृतिक क्रियाओं एवं वन्यजीवों को प्रभावित न करें, की जा सकती हैं।
एक कोर क्षेत्र एक ऐसा संरक्षित क्षेत्र होता है, जिसमें ज्यादातर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित/विनियमित राष्ट्रीय उद्यान या अभयारण्य शामिल होते हैं। इस क्षेत्र में सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों को छोड़करअन्य सभी का प्रव्रेश वर्जित है।
बफर क्षेत्र, कोर क्षेत्र के चारों ओर का क्षेत्र है। इस क्षेत्र का प्रयोग ऐसे कार्यों के लिये किया जाता है जो पूर्णतया नियंत्रित व गैर-विध्वंशक हों।
इसमें सीमित पर्यटन, मछली पकड़ना, चराई आदि शामिल हैं। इस क्षेत्र में मानव का प्रवेश कोर क्षेत्र की तुलना में अधिक एवं संक्रमण क्षेत्र की तुलना में कम होता है।
अनुसंधान और शैक्षिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता है।
यह बायोस्फीयर रिज़र्व का सबसे बाहरी हिस्सा होता है। यह सहयोग का क्षेत्र है जहाँ मानव उद्यम और संरक्षण सद्भाव से किये जाते हैं।
इसमें बस्तियाँ, फसलें, प्रबंधित जंगल और मनोरंजन के लिये क्षेत्र तथा अन्य आर्थिक उपयोग क्षेत्र शामिल हैं।
वर्ष 1971 में शुरू किया गया यूनेस्को का मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम (MAB) एक अंतर-सरकारी वैज्ञानिक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य लोगों और उनके वातावरण के बीच संबंधों में सुधार के लिये वैज्ञानिक आधार स्थापित करना है।
यह आर्थिक विकास के लिये नवाचारी दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है जो सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण से उचित तथा पर्यावरणीय रूप से धारणीय है।
भारत में कुल 12 बायोस्फीयर रिज़र्व हैं जिन्हें मैन एंड बायोस्फीयर रिज़र्व प्रोग्राम के तहत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी गई है:
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