मुगल, मंगोल एवं तुर्की वंश के मिश्रण से उत्पन्न वंश था। माता की ओर से ये मंगोलवंशी चंगेज खान से संबंध रखते थे तथा पिता की ओर से ये तुर्क शासक तैमूर के वंशज थे। मुगलों ने स्वयं को तिमूर वंशी माना है।
बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 ई. को अफगानिस्तान के फरगाना प्रांत में हुआ। बाबर का पिता उमर शेख मिर्जा फरगना का एक तुर्क शासक था। 1494 ई. में बाबर का पिता एक छज्जे पर खड़ा होकर कबूतर उडा रहा था और छज्जा टूट जाने से उसकी मृत्यु हो गयी इस प्रकार बाबर महज 12 वर्ष की उम्र में फरगना की राजगद्दी पर बैठा।
भारत आने से पूर्व मध्य एशिया में बाबर का जीवन
तैमूरी साम्राज्य के विघटन के बाद मध्य तथा पश्चिमी एशिया में तीन शक्तिशाली साम्राज्य उदित हुए -
उज्बेक | सफवी | उस्मानली(आॅटोमन) |
ट्रांसआक्सियाना/मावरा-उन-नहर पर शासन | ईरान पर शासन | आधुनिक तुर्की तथा सीरिया पर शासन |
आॅटोमन साम्राज्य एवं सफवियों के बीच संघर्ष : बगदाद, ईरान एवं अजरबैजान के प्रभुत्व को लेकर एवं शिया व सुन्नी का आपसी झगड़ा।
तैमूर एवं उज्बेकों के मध्य संघर्ष : इनका संघर्ष कजाकिस्तान में उज्बेक खानों की रियासत की स्थापना के बाद मंगोल एवं तुर्क के साथ था।
सफवी → | ट्रांसआक्सियान | ← आॅटोमन |
↑ तिमूरवंश |
इन सभी प्रतिद्वंदियों की आंख ट्रांसआक्सियाना पर लगी रहती थी।
ट्रांसआक्सियाना के लिए चलने वाले संघर्ष का केन्द्र - बिन्दु समरकन्द का नियंत्रण था।
बाबर ने समरकन्द को दो बार जीता और उस पर कुछ-कुछ समय काबिज रहने के बाद दोनों बार उसे खो दिया।
पहली बार समरकंद विजय: 1497 ई. में बाबर ने समरकंद को जीता परन्तु शीघ्र ही उसने नगर त्याग दिया क्योंकि वहां पैसा, रसद, लूट का सामान में कुछ भी नहीं मिला।
जब बाबर फरगना के लिए लौटता इससे पहले ही कुछ बेगों ने उसके सौतेले भाई जहांगीर मिर्जा को फरगना की गद्दी पर बैठा दिया। इस प्रकार बाबर समरकन्द के साथ अपना राज्य(फरगना) भी खो बैठा।
समरकंद पर दूसरी विजय: 1501 ई. में बाबर ने समरकन्द पर एक बार विजय प्राप्त की। क्योंकि समरकंद के तैमूरी सल्तान की मां ने उजबेक के शैबानी खान से सौदा करके समरकन्द शैबानी खान को दे दिया एवं शैबानी खान से विवाह कर लिया था।
सर-ए-पुल का युद्ध: यह युद्ध 1502 ई. में बाबर एवं उजबेक शासक शैबानी खान के मध्य हुआ। इस युद्ध में ही उज्बेकों ने तुलुगमा पद्धति का प्रयोग कर बाबर को बुरी तरह हराया था। बाद में इसी पद्धति का उपयोग बाबर ने पानीपत के युद्ध में किया एवं इब्राहिम लोदी को हराया था।
बाबर की काबुल विजय: बार-बार असफलताओं के बाद बाबर को लगने लगा था कि उस क्षेत्र में उसका टिका रहना असंभव है। इसी स्थिति में बाबर ने काबुल एवं गजनी(1504 ई.) पर आक्रमण कर काबुल व गजनी का शासक बन गया।
काबुल विजय से बाबर को दो प्रमुख लाभ हुए पहला, बाबर को उज्बेकों से चैन मिला। दूसरा, काबुल में बैठकर बाबर अब हिन्दुस्तान एवं खुरासान दोनों पर नजर रख सकता था।
सन् 1519 ई. में बाबर ने अपना आक्रमण बाजौर पर किया और बाजौर एवं भीरा को जीत लिया। यह भारत विजय के लिए किया गया पहला आक्रमण था। इसी युद्ध में बाबर ने सर्वप्रथम बारूद एवं तोपखाने का प्रयोग किया।
बाजौर एवं भीरा पर कब्जा करने के बाद बाबर उन प्रदेशों पर अपना अधिकार जताने लगा जो तैमूर ने जीते थे। इसी क्रम में बाबर ने इब्राहिम लोदी के पास एक दूत भेजकर कहलवाना चाहा कि वह जो इलाके तैमूर के थे उन्हें बाबर को वापस कर दे। परन्तु लाहौर के सूबेदार दौलत खां लोदी ने उस दूत को इब्राहिम लोदी के पास नहीं जाने दिया।
दौलत खां लोदी ने अपनी आय का हिस्सा इब्राहिम को नहीं पहुंचाया था इस कारण सुल्तान की कार्यवाही के डर से अपने बेटे दिलावर खां को बाबर के पास भेजा एवं भारत पर आक्रमण करने का न्यौता दिया। इब्राहिम लोदी से पराजित होकर बहलोल लोदी का बेटा आलम खां लोदी भी बाबर के पास काबुल पहुंचा गया। ठीक इसी समय राणा सांगा का एक दुत भी बाबर के पास पहुंचा एवं बाबर को दिल्ली पर आक्रमण के लिए न्यौता दिया और कहा जिस समय बाबर दिल्ली पर आक्रमण करेगा उसी समय राणा सांगा आगरा पर आक्रमण करेगा।
उपरोक्त घटनाओं के बाद बाबर को आभास हो गया कि भारत को जीतना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा और इसी महत्वाकांक्षा के साथ बाबर ने पानीपत के युद्ध को लड़ा एवं विजय प्राप्त की।
1525 ई. में बाबर ने भारत विजय के लिए काबुल से कूच किया। उसके पास लगभग 1200 सैनिकों की फौज थी। बाबर पहले स्यालकोट पहुंचा और बाद में लाहौर पहंुचा।
लाहौर को दौलत खां लोदी ने घेर रखा था परन्तु बाबर की फौज को देख कर दौलत खां की सेना भाग गयी एवं दौलत खां ने बाबर के सामने आत्म समर्पण कर दिया। बाबर ने लाहौर पर कब्ज किया एवं आगे बढ़ गया।
पंजाब को जीतकर बाबर दिल्ली की ओर बढ़ा। बाबर एवं इब्राहिम लोदी की सेना पानीपत में आमने सामने हुई। बाबर के अनुसार इब्राहिम लोदी की सेना में 1 लाख लोग एवं 1000 हाथी थे परन्तु अफगान स्त्रोतों के अनुसार बाबर की सेना लोदी की सेना से बहुत कम थी लोदी की सेना में 50,000 लोग थे।
बाबर ने युद्ध क्षेत्र में तुलुगमा पद्धति का प्रयोग कर इब्राहिम लोदी की सेना को घेर लिया एवं रूमी पद्धति(तोपों को सजाने की पद्धति) के प्रयोग से तोपों को सजाया तथा तोपची उस्ताद अली एवं मुस्तफा की सहायता से भरपूर गोलाबारी की।
पानीपत के युद्ध स्थल पर ही इब्राहिम लोदी एवं ग्वालियर का शासक विक्रमजीत मारा गया। बाबर ने इस निर्णायक युद्ध में विजय प्राप्त की।
पानीपत का युद्ध राजनीतिक दृष्टि से इतना निर्णायक नहीं था जितना सैनिक दृष्टि से था परन्तु राजनैतिक रूप में भी इस युद्ध ने अहम भूमिका निभायी तथा उत्तर भारत में एक नयी शक्ति का उदय हुआ।
लोदियों का सूर्य सदा के लिए अस्त हो गया तथा सल्तनत की सत्ता अब मुगलों के हाथ में आ गयी।
लोदी सल्तानों द्वारा संचित किया गया कोष अब बाबर के पास आ गया जिससे बाबर की वित्तिय कठिनाइयां दूर हो गयी।
बाबर ने तुलुगमा पद्धति को उज्बेकों से सीखा था।
बाबर ने 1506 ई. में फैसला लिया किस उसके सभी अनुगामी बाबर को बादशाह कहें।
बाबर का भारत पर पहला आक्रमण बाजौर-भीरा(1519) पर था।
इब्राहिम लोदी पर किया गया आक्रमण बाबर का पांचवां आक्रमण था।
बाबर का पूरा नाम जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर था।
रूमि पद्धति/उस्मानी पद्धति: दो गाड़ियों के बीच तोप को सजाना था।
हुमायुं ने बाबर को कोहिनूर हीरा दिया था। हुमायुं ने यह हीरा ग्वालियर के राजा विक्रमादित्य/विक्रमाजीत से प्राप्त किया था।
बाबर को कलन्दर कहा जाता था। पानीपत युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी गुरु नानक देव जी थे।
बाबर ने राणा सांगा पर समझौता भंग करने का आरोप लगाया और कहा कि समझौते के अनुसार मैंने दिल्ली पर आक्रमण किया परन्तु राणा सांगा ने आगरा पर आक्रमण नहीं किया। दूसरी ओर राणा सांगा ने पहले सोचा था कि बाबर भारत में स्थायी रूप से राज नहीं करेगा परन्तु पानीपत की जीत एवं बाबर के स्थायी साम्राज्य निर्माण को देख राणा सांगा ने एक मह गठजोड बनाकर बाबर को भारत से बाहर कर पुनः लोदी शासन स्थापित करने की योजना बनायी।
16 मार्च 1527 ई. खानवा नामक स्थान पर बाबर एवं राणा सांगा के मध्य युद्ध हुआ।
शामिल पक्ष | |
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बाबर की सेना | राणा सांगा एवं गठबंधन - लगभग सभी राजपूत राजा, मालवा का मेदिनी राय, महमूद लोदी, हसन खां मेवाती, आलम खां लोदी शामिल थे |
बाबर ने इस युद्ध में सैनिक मनोबल बढ़ाने के लिए जिहाद का नारा दिया एवं मुसलमानों पर लगने वाले तमगा नामक कर को समाप्त करने की घोषणा की।
बाबर ने खानवा का युद्ध जीतने के बाद गाजी की उपाधि धारण की।
चंदेरी का युद्ध बाबर एवं मालवा शासक मेदिनी राय के बीच हुआ। इस युद्ध में बाबर विजयी रहा एवं मेदिनी राय मारा गया।
इस युद्ध में भी बाबर ने जिहाद का नारा दिया था।
चन्देरी एवं खानवा के युद्ध में बाबर ने राजपूतों की खोपड़ियों के बुर्ज एवं मीनार बनाने के आदेश दिए थे।
घाघरा का युद्ध बाबर एवं अफगानों के बीच बिहार में घाघरा नदी के तट पर लड़ा गया। इसमें बाबर की विजय हुई।
यह बाबर द्वारा लड़ा गया अंतिम युद्ध था।
इस युद्ध में बाबर का भारत पर स्थायी रूप से अधिकार हो गया एवं बाबर के साम्राज्य की सीमा सिंधु से लेकर बिहार एवं हिमालय से ग्वालियर तक फैल गयी।
बाबर की मृत्यु 26 दिसम्बर, 1530 ई. को आगरा में हुई। बाबर को आगरा के आराम बाग में दफनाया गया था किन्तु बाद में काबुल में दफनाया गया था।
बाबर ने ‘तुजुक-ए-बाबरी(बाबर नामा)’ नामक आत्मकथा तुर्की भाषा में लिखी।
बाबर ने काबुल में शाहरूख एवं कंधार में बाबरी नामक सिक्के चलाए।
बाबर ने ‘सुल्तान’ की परंपरा को तोड़ा एवं खुद को ‘बादशाह’ घोषित किया।
बाबर ने नापने के लिए गज-ए-बाबरी नामक माप का प्रयोग किया।
बाबर ने मुबईयान नामक पद्य शैली का विकास किया।
बाबर के चार पुत्र थे - 1-हुमायूॅ 2-कानरान 3-असकरी 4-हिन्दाल।
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