औरंगजेब का जन्म 3 नवंबर, 1618 ई. को दोहद (उज्जैन के निकट) में हुआ। औरंगजेब की मां मुमताज महल थी। औरंगजेब के पिता का नाम शाहजहां था। शाहजहां के चार पुत्र और तीन पुत्रियां थी, शाहजहां के बिमार होने के कारण उसके सभी उत्तराधिकारियों के बीच मुग़ल साम्राज्य का शासक बनने के लिए संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। जिसे ‘उत्तराधिकार का युद्ध‘ नाम से जाना गया, जिसमें सबको हराकर औरंगजेब ने मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर अपना कब्ज़ा किया था और अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में शाहबुर्ज में बंदी बना दिया था।
औरंगजेब का विवाह 1637 ई. में फारस(ईरान) की राजकुमारी दिलरास बानो बेगम (रबिया बीबी) से हुआ। औरंगजेब ने उसे राबिया-उद-दौरानी की उपाधि प्रदान की थी।
औरंगजेब पहला मुगल शासक था जिसका 2 बार राज्याभिषेक हुआ।
औरंगजेब ने जनता के आर्थिक कष्टों को दूर करने के लिए राहदारी (आंतरिक पारगमन शुल्क) तथा पानदारी ( व्यापारिक चुंगियों) आदि प्रमुख आबवाबों (स्थानीय करों )को समाप्त कर दिया।
औरंगजेब कुरान की नकलें तैयार करता था तथा टोपियां सीता था।
औरंगजेब ने सिजदे पर रोक लगा दी तथ सिक्कों पर कलमा गोदने की मनाही कर दी।
नौरोज का त्यौहार एवं दरबार में संगीत बंद करवा दिया परन्तु वाद्य संगीत एवं नौबत (शाही बैंड) को जारी रखा गया।
औरंगजेब वीणा का अच्छा वादक था।
औरंगजेब ने झरोखा दर्शन, तुलादान, ज्योतिषियों से जंत्री बनवाना समाप्त कर दिया।
होली एवं मुहर्रम सार्वजनिक रूप से मनाने पर रोक लगा दी।
दरबारियों के रेशमी वस्त्र पहनने पर रोक लगा दी।
औरंगजेब ने गुजरात में कई मंदिरों को नष्ट करवाया जिसमें सोमनाथ मंदिर भी शामिल था।
औरंगजेब ने बनारस के प्रसिद्ध विश्वनाथ मंदिर और जहांगीर काल में वीर सिंह बुन्देला द्वारा बनवाया मथुरा के केशव राय मंदिर जैसे कई मंदिरों को नष्ट किया तथा मस्जिदों का निर्माण करवाया।
औरंगजेब ने हिन्दुओं पर तीर्थयात्रा कर लगाया।
1679 ई. में औरंगजेब ने हिन्दुओं पर ‘जजिया‘ कर की फिर से शुरुआत की थी। जिसे औरंगजेब के परदादा अकबर ने अपने शासन काल में बंद करवा दिया था। इससे स्त्रियों, मानसिक रूग्ण व्यक्तियों, सरकारी नौकरों तथा मुफलिस (संपत्ति विहीन) लोगों को छूट प्रदान की। जज़िया एक प्रकार का धार्मिक कर था। इसे मुस्लिम राज्य में रहने वाली गैर मुस्लिम जनता से बसूल किया जाता था। जजिया कर वसूल करने के लिए अमीन नियुक्त किए गए। अंत में 1712 ई. में असद खां एवं जुल्फिकार अली खां के कहने पर समाप्त कर दिया।
औरंगजेब को जिन्दापीर कहा जाता था।
मुहतसिब: औरंगजेब शासन काल में सभी सुबों में मुहतसिब नामक अधिकारियों को नियुक्त किया गया। इनका कार्य यह सुनिश्चित करना था कि लोग शरियत के अनुसार जीवन जिए। सार्वजनिक स्थानों पर शराब और भांग जैसे मादक द्रव्यों का सेवन न करें। वेश्यालयों, जुआघरों में नियमों का पालन करवाना तथा माप-तौल के पैमानों की जांच करना भी इनके कार्यों में शामिल था।
औरंगजेब की कट्टर नीतियों के कारण उसके शासन काल में कई विद्रोह भी हुये जिनमें 1667-72 के मध्य अफगानों का विद्रोह, 1669-1881 तक मथुरा के जाटों का विद्रोह, 1672 में सतनामी विद्रोह, 1686 में अंग्रेजों का विद्रोह, 1679-1709 के मध्य राजपूतों का विद्रोह और 1675-1707 के मध्य पंजाब के सिक्खों का विद्रोह प्रमुख थे।
1667 ई. में युसुफजई कबीले के सरदार ‘भागू’ ने स्वंय को राजा घोषित कर दिया। इस विद्रोह का उद्देश्य पृथक अफगान राज्य की स्थापना करना था। अमीर खां के नेतृत्व में यह विद्रोह दबा दिया गया परन्तु बाद में अकमल खां के नेतृत्व में पुनः विद्रोह हुआ जिसे स्वयं औरंगजेब ने जाकर शांत किया।
यह आगरा एवं दिल्ली के आसपास के किसानों, काश्तकारों व जमीदारों ने शुरू किया। नेतृत्व जमीदारों के हाथ में था। सर्वप्रथम गोकुल नाम के हिन्दु जमींदार के नेतृत्व में हुआ। बाद में राजाराम ने पुनः विद्रोह किया। छापामार हमला एवं लूटपाट की। राजाराम सिकन्दरा में अकबर की कब्र से उसकी अस्थियां निकाल ले गया एवं जला दी। राजाराम के बाद चूरामन जाट ने नेतृत्व किया। चूरामन जाट ने ही भरतपुर नामक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।
यह नारनौल नामक स्थान पर सतनामी संप्रदाय वालों ने शुरू किया। सतनामी लोग वैरागी थे जो शुद्ध अद्धैतवाद में विश्वास करते थे। विद्रोह की शुरूआत एक मुगल सैनिक व एक सतनामी के परस्पर झगड़े से हुई।
यह औरंगजेब के काल का एकमात्र विद्रोह था जो धार्मिक कारणों से हुआ।
औरंगजेब के विरूद्ध प्रत्यक्ष सिक्ख विद्रोह औरंगजेब द्वारा गुरू तेग बहादुर जी को मृत्यु दण्ड दिए जाने के बाद हुआ।
गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र गुरु गोविन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की शुरूआत की।
बुन्देला विद्रोह: यह ओरछा के शासक चम्पतराय के नेतृत्व में हुआ था। बाद में छत्रसाल जुड़ा।
अकबर का विद्रोह: मेवाड़ व मारवाड़ से सहायता का आश्वासन पाकर औरंगजेब के शहजादे अकबर ने विद्रोह किया। पराजित होकर फारस भाग गया।
पुर्तगालियों का विद्रोह: 1686 ई. में औरंगजेब ने अंग्रेजों को हुगली में परास्त कर बाहर खदेडा था।
1661 ई. में औरंगजेब ने आसाम विजय हेतु बंगाल के सूबेदार मीर जुमला को भेजा।
मीर जुमला ने 1662 ई. में आसाम पर अधिकार कर उसे मुगल सल्तनत में सामिल कर लिया।
1686 ई. में औरंगजेब ने बीजापुर के शासक को अली आदिल शाह II के पुत्र सिकन्दर आदिल शाह को पराजित कर बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
1687 ई. में औरंगजेब के पुत्र शाहजादा शाह आलम ने गोलकुण्डा के शासक अबुल हसन को मुगल साम्राज्य के अधीन रहने की सलाह दी।
अबुल हसन ने उसकी सलाह को अस्वीकार कर दिया तो 1687 ई. में गोलकुण्डा के शासक अबुल हसन को पराजित कर औरंगजेब ने गोलकुण्डा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
यह मकबरा महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले में दौलताबाद के निकट खुल्दाबाद में बनवाया गया था।
इस मकबरे को राबिया-उद-दौरानी का मकबरा या द्वितीय ताजमहल भी कहा जाता है।
यह काले पत्थरों से 1678 ई. में औरंगजेब द्वारा बनवाया गया।
इसे काला ताजमहल, दक्षिण का ताजमहल या फूहड़ ताजमहल भी कहा जाता है।
यह मस्जिद औरंगजेब द्वारा लाहौर में बनवायी गयी, यह मस्जिद शाहजहां द्वारा बनवायी गयी नई दिल्ली की जामा मस्जिद की हुबहु नकल है।
दिल्ली में लाल किले के अन्दर मोती मस्जिद का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था।
जबकि आगर के किले के अन्दर की मोती मस्जिद का निर्माण शाहजहां ने करवाया था।
अपने अंतिम समय में औरंगजेब दक्षिण के विद्रोह को दबाने के लिए गया था उसी समय महाराष्ट्र प्रान्त के अहमदनगर जिले में 3 मार्च 1707 ई. में उसका देहान्त हो गया।
उसके शव को दौलताबाद स्थित खुलदाबाद नामक स्थान पर ले जाकर प्रसिद्ध सूफी शेख बुरहानुद्दीन के मकबरे मं दफना दिया गया।
इसके बाद मुगल वंश का पतन शुरू हो गया। ब्रिटिश सत्ता ने अपने शक्ति मजबूत कर ली। औरंगजेब के बाद आये सभी मुगल शासक अयोग्य तथा कमजोर थे।
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