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तुगलक वंश

गयासुद्दीन तुगलक

गयासुद्दीन तुगलक का वास्तविक नाम गाजी मलिक था। यह तुगलक वंश का संस्थापक था।

गाजी मलिक ने मंगोलों को बार-बार पराजित किया इस कारण वह मलिक-उल-गाजी नाम से प्रसिद्ध था।

गियासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली में तुगलकाबाद नामक शहर की नींव ढाली और तुगलकाबाद शहर को ही अपनी राजधानी बनाया।

वह पहला सुल्तान था, जो मानता था कि राजकीय आय में वृद्धि भू-राजस्व में वृद्धि द्वारा नहीं अपितु उत्पादन में वृद्धि द्वारा की जानी चाहिए। इसके लिए उसने नहर निर्माण को प्रोत्साहन दिया। नहर निर्माण करने वाला वह प्रथम सुल्तान था।

गयासुद्दीन तुगलक ने सड़कों की मरम्मत करवायी एवं पुल निर्माण करवाये।

गयासुद्दीन तुगलक के काल में डाक व्यवस्था श्रेष्ठ थी।

अमीर खुसरो के अनुसार ‘सैकड़ों पण्डितों की पगड़ी अपने मुकुट के पीछे छुपाए रहता था अर्थात वह बहुत विद्वान था’।

गयासुद्दीन तुगलक का सूफी संत निजामुद्दीन औलिया से मनमुटाव था जब सुल्तान औलिया को दण्डित करने के लिए बंगाल से वापस लौट रहा था तो औलिया ने कहा था - ‘हुनोज दिल्ली दूरस्त’ अर्थात दिल्ली अभी दूर है।

1321 ई. में उसने अपने पुत्र जूना खां(मु. बिन तुगलक/उलुग खां) को तेलंगाना पर आक्रमण के लिए भेजा। तेलंगाना को सुल्तान ने सल्तनत में मिला लिया एवं वारंगल का नाम सुल्तानपुर रख दिया।

राजमंुद्री अभिलेख में जूना खां(मु. बिन तुगलक) को विश्व का खान कहा है।

जूना खां ने गयासुद्दीन तुगलक के लिए अफगानपुर के निकट लकड़ी का महल बनवाया था। इसी महल के गिरने से गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु हुई थी।

इस लकड़ी के महल का शिल्पकार आयाज का पुत्र अहमद था।

तथ्य

इब्नबतूता, वरनी, अबुफजल, बदायुंनी एवं निजामुद्दीन ने गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु का कारण जूना खां का षड़यंत्र के तहत निर्मित महल माना है।

मोहम्मद बिन तुगलक

अपने पिता गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु के पश्चात् जूना खां, मोहम्मद बिन तुगलक के नाम से 1325 ई. में सुल्तान बना।

इसे इतिहास में एक बुद्धिमान मूर्ख शासक के रूप में जाना जाता है।

इसका मूल नाम जूना खां(जौना खां) था इसे उलूग खां की उपाधि दी गयी थी।

इसके शासन काल में अफ्रीकी यात्री इब्न-बतूता आया। इब्ने-बतूता को दिल्ली का काजी नियुक्त किया एवं राजदूत बनाकर चीन भेजा।

वरनी के अनुसार : मोहम्मद बिन तुगलक ने 5 परियोजनाएं शुरू की -

  1. राजधानी परिवर्तन
  2. सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन
  3. खुरासान अभियान
  4. कराचिल अभियान
  5. दो आब क्षेत्र में कर वृद्धि

संभवतः इसी क्रम में।

राजधानी परिवर्तन(1326-27)

मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी का नाम बदलकर दौलताबाद कर दिया एवं इसे अपनी राजधानी बनाया।

विद्रोहों के कारण शीघ्र ही दक्षिणी क्षेत्र सल्तनत से बाहर हो गये और देवगिरी को राजधानि बनाए जाने का औचित्य समाप्त हो गया।

1335 ई. में दिल्ली पुनः राजधानी बनी।

सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन

मोहम्मद बिन तुगलक ने चांदी की कमी के कारण तांबे एवं कांसे के सिक्के चलाए। इन सिक्कों का मूल्य चांदी के सिक्कों के बराबर घोषित किया गया।

जनता ने इस परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। बहुत अधिक मात्रा में नकली सिक्के बनने लगे। इसके बदले सुल्तान को खजाने से असली सिक्के देने पड़े जिससे खजाना खाली हो गया एवं योजना विफल हो गयी।

खुरासान अभियान

सुल्तान ने मध्य एशिया में स्थित खुरासान राज्य की अव्यवस्था का लाभ उठाकर वहां कब्जा करना चाहा। इसके लिए 3 लाख 70 हजार लोगों की एक विशाल सैना तैयार की तथा 1 वर्ष का वेतन पहले ही दे दिया परन्तु खुरासान में स्थिति सामान्य हो गयी एवं यह योजना भी विफल हो गयी।

कराचिल अभियान

यह अभियान खुरासान के तुरंत बाद कुल्लू/कांगड़ा अथवा कुमाऊं पहाड़ी में स्थित कराचिल के शासक के विरूद्ध था इसमें सुल्तान को जन-धन की हानि हुई परन्तु कराचिल के शासक ने शासक ने सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर ली।

दो आब में कर वृद्धि

मोहम्मद बिन तुगलक के असफल योजनाओं से राजकीय कोष में आर्थिक हानि हुई इसकी पूर्ति के लिए दोआब क्षेत्र की उपजाऊ भूमि पर कर में वृद्धि कर दी। दुर्भाग्य से इसी वर्ष इस क्षेत्र में अकाल पड़ गया। किसान एवं जमींदारों से कर वसूल करने में सख्ती बरती गयी। इस स्थिति में किसानों ने कृषि कार्य छोड़ दिया एवं उपज को आग लगा दी एवं शक्तिशाली जमींदारों ने विद्रोह कर दिया। इतिहास में संभवतः यह पहली बार हुआ था जब किसानों ने खेती बन्द कर दी। इस प्रकार सुल्तान की यह योजना भी विफल रही।

अन्य तथ्य

मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि के विकास के लिए दीवान-ए-कोही नामक विभाग की स्थापना की। इसका प्रधान अमीर-ए-कोही होता था।

इसके काल में दिल्ली में प्लेग(ब्लैक डेथ) नामक महामारी फैल गयी। इस कारण सुल्तान कुछ वर्ष स्वर्गद्वारी(कनौज के निकट) जाकर रहा।

इब्ने-बतूता ने समकालीन पुस्तक ‘सफरनामा(रेहला)’ लिखी। इब्ने-बतूता मोरक्को का यात्री था।

मोहम्मद बिन तुगलक पहला सुल्तान था जिसने होली का त्यौहार मनाया।

मोहम्मद बिन तुगलक ने जैन विद्वान राजशेखर को संरक्षण दिया।

मोहम्मद बिन तुगलक के समय दक्षिण भारत में हिन्दु राज्य विजयनगर एवं मुस्लिम राज्य बहमनी स्थापित हुए।

मोहम्मद बिन तुगलक ने कृषि भूमि के आकलन के लिए एक रजिस्टर तैयार करवाया तथा अकाल पीड़ितों के लिए ‘अकाल संहिता’ तैयार करवायी।

मोहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में सर्वाधिक विद्रोह हुए।

अंततः 1351 ई. में सिंध के विद्रोह को दबाते हुए सुल्तान की मृत्यु हो गयी।

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु पर अब्दुल कादिर बदायुंनी ने लिखा है, ‘सुल्तान को अपनी प्रजा से तथा प्रजा को सुल्तान से मुक्ति मिल गयी’।

फिरोज शाह तुगलक

मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोज शाह तुगलक सुल्तान बना। इसका राज्यभिषेक थट्टा(सिंध) में हुआ।

इसने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया।

जजिया कर

यह एक गैर धार्मिक कर था। भारत में जजिया कर सर्वप्रथम मुहम्मद बिन कासिम ने लगाया। फिरोजशाह तुगलक ने ब्राह्मणों पर भी जजिया कर लगाया। अकबर-1 ने जजिया कर को समाप्त कर दिया था परन्तु औरंगजेब ने पुनः जजिया कर लगाया। फर्रूखसियार ने एक बार जजिया कर को समाप्त कर दिया था। परन्तु पुनः फर्रूखसियार ने जजिया कर लगाया। बाद में मुहम्मद शाह ने जजिया कर को बंद कर दिया था।

फिरोजशाह तुगलक ने अनेक मंदिरों को तोड़ एवं मरम्मत पर पाबन्दी लगा दी थी।

फिरोजशाह तुगलक ने खराज(लगान), खुम्स(लूट का सामान), जजिया(गैर-मुसलमानों पर लगने वाला कर) और जकात(मुस्लिम आय से कर जो मुस्लिमों पर ही खर्च किया जाता था) को छोड़कर अन्य सभी कर समाप्त कर दिए।

किसानों पर शुर्ब(सिंचाई कर) लगाया गया।

फिरोजशाह को आर्थिक एवं प्रशासनिक सुधारों के कारण सल्तनत काल का अकबर कहा जाता है।(हेनरी दलिएट और एलिफिंस्टन ने कहा)

फिरोजशाह तुगलक ने हिसार, फिरोजाबाद, फतेहबाद, जौनपुर नगरों की स्थापना की एवं दिल्ली में फिरोज शाह कोटला नगर बसाया

फिरोजशाह तुगलकर ने कुतुबमीनार की चौथी मंजिल की मरम्मत करवायी एवं पांचवीं मंजिल का निर्माण करवाया

वह मेरठ एवं टोपरा स्थित अशोक स्तंभों को दिल्ली लेकर आया।

फिरोज शाह ने दासों के लिए दीवान-ए-बंदगान विभाग की स्थापना की।

उसने महिलाओं एवं बच्चों की आर्थिक सहायता के लिए दीवान-ए-खैरात दान विभाग की स्थापना की।

उसने खैराती अस्पताल दारूल-सफा की स्थापना की।

फिरोज शाह तुगलक ने मैरिज ब्यूरो, लोक निर्माण विभाग एवं रोजगार कार्यालय की स्थापना की।

फिरोजशाह तुगलक ने जगन्नाथ मंदिर(पुरी) को हानि पहुंचायी।

फिरोजशाह ने दो नए सिक्के अधा(जीतल का आधा) तथा बिख(जीतल का 1/4) चलाए। फिरोजशाह ने शशगानी(6 जीतल का) सिक्का भी चलाया।

फिरोजशाह ने 5 नहरों का निर्माण करवाया जिनमें अलूगखनी नहर एवं रजबाह नहर प्रमुख हैं।

फिरोजशाह के उत्तराधिकारी

तुगलकशाह-2 , अबू वक्र, मुहम्मद शाह, हुमायुं खां, महमूद शाह।

महमूद शाह के शासन काल में मंगोल तैमूर लंग ने आक्रमण किया था।

तैमूर का भारत पर आक्रमण

तैमूर लंग

तैमूर उज्बेकिस्तान में जन्मा एक कट्टर तुर्क मुसलमान था। तैमूर ने तैमूरी राजवंश की स्थापना की। तैमूर, चंगेज खां की तरह समस्त संसार को अपनी शक्ति से रौंदना एवं सिकन्दर की तरह विश्व विजय की कामना रखता था। तैमूर विश्व के महानतम निष्ठुर एवं रक्त पिपासु आक्रमणकारियों में से एक था। तैमूर ने समरकंद के मंगोल शासक के मरने के बाद उसके समरकंद की गद्दी पर कब्जा कर लिया। अब तैमूर ने अपना विजय अभियान शुरू किया।

1380 ई. से 1387 ई. के बीच उसने खुरासान, सीस्तान, फारस, अफगानिस्तान, अजरबैजान और कुर्दिस्तान को अधीन कर लिया तथा बगदाद से लेकर मेसोपोटामिया पर आधिपत्य कर लिया। अब भारत पर आक्रमण करने का निश्चय किया। एक दुर्घटना में वह लंगडा हो गया था इसलिए लंग नाम के साथ जुड़ा।

भारत पर आक्रमण के कारण

  1. मूर्तिपूजकों को एवं मूर्तिपूजा को विध्वंस करना तथा इस्लाम का प्रचार करना
  2. भारत की सम्पत्ति को लूटना
  3. लूटपाट एवं विश्व को अपनी शक्ति से रौंदना

तैमूर का आक्रमण

भारत पर तैमूर का आक्रमण 1398 ई. में सुल्तान नासिरूद्दीन ममहमूद के समय में हुआ।

तैमूर के आक्रमण के समय खिज्र खां ने तैमूर की सहायता की।

तैमर उत्तर पश्चिम से होते हुए पंजाब, हरियाणा को लूटता हुआ दिल्ली तक पहुंचा। तैमूर दिल्ली में 15 दिन रहा एवं दिल्ली को लूटा एवं स्त्री, शिल्पियों को अपने साथ ले गया।

दिल्ली में भयंकर कत्लेआम किया हजारों-लाखों लोगों को काट दिया गया। मंदिर एवं मूर्ति तोड़े गए, लूटा गया।

चंगेज खां एवं तैमूर के सिद्धांतों में अन्तर

तैमूर एवं चंगेज खां के आक्रमण में इतना अंतर था कि चंगेज खां जहां पूरी दुनिया को एक ही साम्राज्य से बांधना चाहता था परंतु तैमूर का इरादा सिर्फ लोगों को लूटना, धौंस जमाना, मारकाट था।

चंगेज के कानून में सिपाहियों को खुली लूट-पाट की मनाही थी लेकिन तैमूर सेना को लूट-पाट एवं कत्लेआम की खुली छूट थी।

तैमूर को क्यों माना जाता है दरिन्दा

तैमूर ने असपन्दी नाम के गांव लूटा एवं सभी हिन्दुओं का कत्लेआम किया। वहां से तुगलकपुर पहुंचा एवं यजदीयों(पारसी) के घर जला डाले और पकड़-पकड़ कर मार डाला। यहां से पानीपत की ओर गया।

पंजाब के समाना कस्बे एवं हरियाणा के कैथल में कत्लेआम किया।

पानीपत पहुंचकर तैमूर ने शहर को तहसनस कर दिया एवं रास्ते में लोनी के किले के राजपूतों को रौंदा एवं कत्लेआम किया। अब तक तैमूर के पास लगभग एक लाख हिन्दु बन्दी थे दिल्ली पर चढ़ाई करने से पहले तैमूर ने सैनिकों को सभी बन्दिओं का कत्ल करने का हुक्म दिया और जो सैनिक कत्ल न करे उसका कत्ल करने का हुक्म दिया गया।

दिल्ली का सुल्तान दिल्ली छोड़कर भाग गया। दिल्ली में तैमूर 15 दिन रहा यहां दिल्ली में तैमूर ने हिन्दुओं को ढूंढ़-ढूंढ़ कर कत्ल किया गया। दिल्ली शहर को खून से रंख दिया गया।

जब तैमूर दिल्ली छोड़कर उज्बेकिस्तान की तरफ रवाना हुआ तो रास्ते में मेरठ में 30,000 हिन्दुओं का कत्ल किया।

यही कारण था कि तैमूर जैसे दरिन्दे का नाम करीना कपूर खान द्वारा अपने बेटे का नाम रखने पर विरोध हुआ। वैसे तिमूर का अर्थ लोहा होता है।

तैमूर आक्रमण का प्रभाव

तैमूर के आक्रमण ने तुगलक वंश का अंत कर दिया।

सल्तनत की शक्ति का समाप्त करने एवं सल्तनत के विघटन में अहम भूमिका निभायी।

विजित प्रदेशों पर तैमूर ने खिज्र खां को राज्यपाल नियुक्त किया। इसी खिज्र खां ने सल्तनत में सैयद वंश की स्थापना की।

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