लोदी वंश की स्थापना, सैयद वंश के अंतिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह द्वारा राज्य त्यागने के पश्चात् बहलोल लोदी ने की।
लोदी अफगानी थे। ये मुख्यतः व्यापारियों के रूप में भारत आए इन्होंने दिल्ली सल्तनत में सेवाएं एवं प्रशासनिक पदों पर कार्य किया जब सल्तनत की शक्ति कम हुई तो लोदियों ने अपने वंश की स्थापना की।
बहलोल लोदी राजदरबार में सिंहासन पर न बैठकर, दरबारियों के बीच बैठता था।
बहलोल लोदी अपने सरदारों को ‘मकसद-ए-अली’ कहकर पुकारता था।
लोदी वंश, सल्तनत पर शासन करने वाला पहला अफगान वंश था।
बहलोल लोदी ने जौनपुर के शासक हुसैन शाह को पराजित किया एवं अपने पुत्र बारबक शाह को जौनपुर का शासक बनाया।
बहलोल लोदी ने ग्वालियर के शासक मानसिंह को हराया और वहीं से लौटते समय उसकी मृत्यु हो गयी।
सिकन्दर लोदी, बहलोल का उत्तराधिकारी था। इसका नाम निजाम खां था।
सिकन्दर लोदी ने भूमि मापन हेतु, ‘गज-ए-सिकंदरी’ पैमाना बनवाया।
सिकन्दर लोदी ने 1504 ई. में आगरा नगर की स्थापना की एवं 1506 ई. में आगरा को राजधानी बनाया।
वह गुलरुखी के उपनाम से फारसी में कविताएं लिखता था।
उसने आयुर्वेद पे लिखे गये ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाकर फरहंग-ए-सिकन्दरी नाम दिया तथा संगीत पर लिखे ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद करवाकर उसका नाम लज्जत-ए-सिकन्दरी रखा था।
सिकन्दर लोदी ने कुतुबमीनार की मरम्मत करवायी।
सिकन्दर लोदी ने मुहर्रम एवं ताजिए निकालना बंद कर दिया।
सिकन्दर लोदी के बाद इब्राइहिम लोदी सल्तनत का सुल्तान बना।
यह लोदीवंश का अंतिम शासक था।
गृहयुद्ध से बचने के लिए अफगान अमीरों ने सिकन्दर लोदी के राज्य को दो पुत्रों में विभाजित कर दिया।
जलाल खां को इब्राहिम लोदी ने जहर देकर मरवा दिया जिससे अब जौनपुर भी इब्राहिम लोदी का हो गया।
इब्राहिम लोदी ने ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को पराजित कर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया तथा विक्रमजीत सिंह को आगरा दरबार में रखा।
1517-18 में मेवाड़ के शासक राणा संग्राम सिंह और इब्राहिम लोदी के बीच ग्वालियर के समीप घटोली नामक स्थान पर लड़ा गया। इस युद्ध में राणा संग्राम सिंह/राणा सांगा की विजय हुई।
राणा सांगा के शरीर पर सौ घाव लगे थे तथा वे सौ युद्धों के विजेता भी थे।
यह युद्ध बाबर एवं इब्राहीम लोदी के मध्य हुआ।
इब्राहीम युद्ध में मारा गया। इब्राहिम लोदी दिल्ली का प्रथम सुल्तान था, जो युद्धभूमि में मारा गया।
इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत का अंतिम सुल्तान था।
इसी के साथ ही दिल्ली सल्तन का 300 वर्षों का शासन समाप्त हो गया।
इब्राहिम के पास सेना अधिक थी परन्तु सुसंगठित नहीं थी।
बाबर के पास तोपखाना था एवं कुशल तोपची उस्ताद अली और मुस्तफा भी बाबर के साथ थे।
बाबर ने तुलुगमा पद्धति एवं उस्मानी विधि/रूमि विधि(तोपों को सजाने) का प्रयोग किया।
सिकन्दर लोदी की सेना में हाथियों पर सैनिक अधिक थे जबकि बाबर के पास घुड़सवार अधिक थे।
इब्राहिम लोदी एक कुशल सेनानायक/पराक्रमी नहीं था।
इब्राहिम लोदी ने हमला न करके इंतजार किया एवं बाबर ने रात में आक्रमण किया।
तुलुगमा पद्धति एक छल नीति है। इसमें सेना को कई टुकड़ों में बांटा दिया जाता है और विपक्षी सेना पर सामने एवं पीछे से घेरकर आक्रमण किया जाता है। बाबर ने यह पद्धति उजबेगों से सीखी।
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