तैमूर के आक्रमण ने सल्तनत की शक्ति को क्षीण कर दिया एवं खिज्र खां ने सैयद वंश की स्थापना की।
खिज्र खां ने सैयद वंश की स्थापना की।
सैयद वंश स्वंय को पैगम्बर मुहम्मद का वंशज मानते हैं।
खिज्र खां ने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की, उसने ‘रैयत-ए-आला’ की उपाधि ली।
खिज्र खां तैमूर लग का सेनापति था वह नियमित रूप से तैमूर के बेटे शाहरूख को कर भेजा करता था।
खिज्र खां के बाद उसका पुत्र मुबारक शाह गद्दी पर बैठा।
मुबारक शाह ने विख्यात इतिहासकार वाहिया-बिन-अहमद सरहिंदी को आश्रय दिया। सरहिन्दी ने तारीख-ए-मुबारकशाही पुस्तक की रचना की। यह सैयद काल में लिखी एक मात्र पुस्तक थी। इससे सैयद वंश के विषय में जानकरी मिलती है।
मुबारक शाह ने शाह की उपाधि धारण की एवं अपने नाम का खुतवा पढ़ाया एवं अपने नाम के सिक्के जारी किए।
मुबारक शाह ने तैमूर के पुत्र व ईरान के शाह शाहरूख को कर देना बंद कर दिया।
मुबारक शाह के बाद उसका दत्तक पुत्र मुहम्मद शाह गद्दी पर बैठा।
मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अलाउद्दीन आलम शाह सुल्तान बना।
अलाउद्दीन आलम शाह मुहम्मद शाह का पुत्र था।
यह सैयद वंश का अंतिम शासक था।
इसके समय दिल्ली सल्तनत के शासन की बागडोर सैयदों से निकलकर लोदियों के हाथ में चली गयी।
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