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खिलजी वंश(1290-1320ई.)

फखरूद्धीन लिखित ‘तारीख-ए-फखरूदीन मुबारकशाही’ के अनुसार खिलजी वंश के सुल्तानों के पूर्वज तुर्की थे। अफगानिस्तान के हेलमन्द नदी की घाटी के प्रदेश को ‘खलजी’ के नाम से पुकारा जाता था। जो जातियां उस प्रदेश में बस गई उन्हें खलजी पुकारा जाने लगा। जलालुद्दीन के वंशज 200 वर्षो से भी अधिक उस प्रदेश में रहे उनके रहन सहन, रीति-रिवाज अफगानों की भांति हो गये और भारत में उन्हें अफगान समझा जाने लगा परन्तु खिलजी वंश के सुल्तान मूल रूप से तुर्की ही थे। खिलजी महमूद गजनवी एवं मुहम्मद गोरी के समय भारत आए तथा दिल्ली के सुल्तानों के समय सेना एवं अन्य प्रशासनिक पदों पर नौकरी करने लगे तथा सल्तनत काल की अव्यवस्था का फायदा उठाकर सल्तनत के स्वामी बन बैठे। भारत के खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी था।

जलालुद्दीन खिलजी(1290-1296ई.)

जलालुद्दीन फिरोजशाह खलजी बलबन का सर-ए-बहौदार(शाही अंगरक्षक) तथा कैकुबाद के शासन काल में आरिज-ए-मुमालिक(सेना मंत्री) तथा सेनापति के पद पर पहुंच गया था। 1290 में फिरोजशाह खलजी ने कैकुवाद द्वारा बनवाऐ गए अपूर्ण किलोखरी(कूलागढ़ी) के महल में अपना राज्यभिषेक करवाया। जलालुद्दीन एक वृद्ध शासक था अतः उसने अपने दुश्मनों के विरूद्ध दुर्बल नीति अपनायी।

सिद्धि मौला बाबा जो ईरान का रहने वाला था तथा जलालुद्दीन खिलजी के समय उनके प्रशंसकों और अनुयायियों की संख्या बड़ गई। जिससे षड़यंत्र का खतरा और विद्रोही गतिविधियों में संलिप्त होने के कारण बेटे अर्कली खां को आदेश देकर मौला बाबा को हाथियों के पैरों से कुचलवाकर मरवा दिया।

अगस्त 1290 में बलबन के भतीजे और कड़ा मानिकपुर(इलाहाबाद) के सूबेदार मलिक छज्जू ने विद्रोह कर दिया। दिल्ली पर अधिकार करने हेतु जब वह बढ़ा तो सुल्तान के पुत्र अर्कली खां द्वारा बदांयू में वह पराजित हो गया। जललुद्दीन ने मलिक छज्जू को अर्कली खां की देखरेख में मुल्तान भेज दिया परन्तु सुल्तान के भतीजे अलाउद्दीन खिलजी ने इसका विरोध किया। सुल्तान ने कड़ा मानिकपुर का सूबेदार बना दिया।

1292 ई. में हलाकू(मंगोल नेता) के पौत्र अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण हुआ परन्तु मंगोल पराजित हुए उनमें से कुछ मंगोलों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया तथा दिल्ली के मुगलपुरा में बस गए ये नवमुसलमान कहलाये।

अलाउद्दीन खिलजी ने 1292/93 में मालवा में स्थित भिलसा के किले पर आक्रमण करके बहुत सारा धन लूटा तथा उसने धन का 1/5 भाग सुल्तान के पास भिजवा दिया जिससे सुल्तान ने खुश हो कर अलाउद्दीन को अवध का भी सूबेदार बना दिया।

अलाउद्दीन खिलजी ने 1296 में महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले में स्थित देवगिरि के यादव वंशी शासक रामचन्द्र देव के पुत्र शकंर देव(सिघल देव) को पराजित किया तथा काफी धन प्राप्त किया। अलाउद्दीन ने लुटे हुए धन का कोई हिस्सा सुल्तान को नहीं भेजा बल्कि सुल्तान को मानिकपुर बुलाकर स्वागत करने तथा धन देने की इच्छा प्रकट की।

सुल्तान जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी मानिकपुर गंगा पार करके अलाउद्दीन से मिला एक षड़यंत्र के द्वारा सैनिक मो. सलीम ने अलाउद्दीन के इसारे पर सुल्तान को घायल किया और सैनिक इख्तियारूद्दीन हुद के द्वारा सुल्तान की हत्या कर दी गई।

जलालुद्दीन को मारने में उलूग खां(अलाउद्दीन का भाई) भी शामिल था।

रूकनुद्दीन इब्राहिम शाह(1296ई.)

सुल्तान जलालुद्दीन फिरोजशाह की मृत्यु के बाद विधवा मलिका-ए-जहान ने अपने छोटे बेटे कद्र खां को रूकनुद्दीन इब्राहिम शाह के नाम से सुल्तान बनाया। इससे उसका बड़ा पुत्र अर्कली खां नाराज हो गया। उल्लाउद्दीन ने इसका फायदा उठाकर इब्राहिम शाह को पराजित कर दिया तथा इब्राहिम शाह सपरिवार मुल्तान में अर्कली खां के यहां चला गया। अलाउद्दीन ने बलबन के लाल महल पहुंचकर अपना राज्यभिषेक करवाया।

अलाउद्दीन खिलजी(1296-1316ई.)

अलाउद्दीन खिलजी के पिता का नाम शिहाबुद्दीन खिलजी था जो जलालुद्दीन खिलजी का भाई था। जलालुद्दीन खिलजी ने अपनी पुत्री का विवाह अलाउद्दीन खिलजी से किया।

भिलसा, चन्देरी एवं देवगिरी पर सफल अभियानों से अलाउद्दीन खिलजी को अपार धन प्राप्त हुआ।

अलाउद्दीन खिलजी को कड़ा मानकपुर में सुल्तान घोषित किया गया एवं राज्यभिषेक दिल्ली में बलबन के लाल महल में हुआ।

खिलजी का राजत्व सिद्धांत

अमीर खुसरो ने अलाउद्दीन के लिए राजत्व के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। अलाउद्दीन को जिल्ले-इलाही माना गया परन्तु यह सिद्धांत ‘शरीयत’ के सिद्धांत पर आधारित नहीं था। इसमें इस्लामी सिद्धांतों का सहारा नहीं लिया गया। धर्म को राजनीति से अलग रखा।

अलाउद्दीन खिलजी ने उलेमा वर्ग(इस्लाम धर्म के कट्टर व्याख्याकार) को अपने प्रशासन में महत्वहीन कर दिया था। अलाउद्दीन ने खलीफा की सत्ता को मान्यता दी लेकिन प्रशासन में उनके हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया। उसने इस्लाम, उलेमा, खलीफा किसी का सहारा नहीं लिया वह निरंकुश राजतंत्र में विश्वास करता था।अलाउद्दीन ने बलबन की जातीय उच्चतावादी नीति को त्याग दिया और योग्यता के आधार पर पदों का वितरण किया।

खिलजी के समय विद्रोह एवं उनके दमन के लिए जारी अध्यादेश

विद्रोह

गुजरात विजय के पश्चात लूट के माल को लेकर नव मुसलमानों ने विद्रोह किया और ये रणथम्भौर के शासक हम्मीर देव से जा मिले।

अकत खां का विद्रोह(अवध का गवर्नर) का विद्रोह

दिल्ली में हाजी मौला का विद्रोह

मलिक उमर(बदायुं का गवर्नर) एवं मंगू खां

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने राज्य में हुए विद्रोह के लिए अधिकारियों की सभा(मजलिस-ए-खास) बुलायी और विद्रोहों के कारणों की समीक्षा की। इसके आधार पर अध्यादेश जारी किये -

अध्यादेश

अमीर वर्ग की भूमि/संपित्त जब्त, क्योंकि अधिक धन जमा हो जाने से अमीरों को विद्रोह करने का प्रोत्साहन मिलता है।

गुप्तचर प्रणाली का गठन, सभी नगरों एवं गावों में गुप्तचरों का जाल बिछा दिया गया जिससे अमीरों की सभी सूचनाएं सुल्तान को मिल सके।

दिल्ली में शराब बंद कर दी, अधिकारियों के शराबी होने के कारण लोग भय रहित होकर षड्यन्त्रों की योजना बनाते हैं।

अमीरों के मेल मिलाप(भोज) पर प्रतिबन्ध, सामाजिक उत्सवों में अमीर और मलिक एक-दूसरे के घनिष्ठ हो जाते और सुल्तान के विरूद्ध संगठित होते हैं।

इस प्रकार इन आदेशों से वे इतने निर्धन तथा आतंकित हो गए थे कि उनमें विद्रोह का साहस और शक्ति नहीं रही।

खिलजी साम्राज्यवाद

उत्तर भारत पर किए गए अभियान

1. गुजरात अभियान

अलाउद्दीन का प्रथम सैन्य अभियान 1298ई. में गुजरात के विरूद्ध था। इस अभियान का नेतृत्व उलुग खां और नुसरत खां ने किया। इसमें गुजरात का बघेल राजपूत रायकरन(कर्णदेव-3) पराजित हुआ। गुजरात मार्ग में जैसलमेर विजित किया। गुजरात अभियान से ही मलिक काफूर को लाया गया। मलिक काफूर को 1000 दीनार में खरीदा गया था इसी कारण उसे हजार दीनारी भी कहा जाता था।

2. रणथम्भौर अभियान

1301 ई. में उलुग खां एवं नुसरत खां के नेतृत्व में रणथम्भौर पर आक्रमण किया। पहले रणथम्भौर के राणा हम्मीर देव ने आक्रमण विफल किया तथा नुसरत खां मारा गया। इसके बाद स्वंय अलाउद्दीन खिलजी ने कमान संभाली। राणा हम्मीर देव के प्रधानमंत्री रणमल ने धोखा किया। हम्मरी देव पराजित हुए एवं वीरगति को प्राप्त हुए।

हम्मीर काव्य के अनुसार, रतिपाल एवं कृष्णपाल इस पराजय के प्रमुख कारण थे।

हम्मीर देव की मृत्यु के बाद हम्मीर देव की पत्नि रंगदेवीऔर रणथम्भौर की राजपूत महिलाओं ने जल जौहर किया। राजस्थान में जौहर का यह प्रथम साक्ष्य था।

जौहर

जौहर के दौरान एक अग्निकुण्ड बनाया जाता था। यदि युद्ध में राजा मारा जाता तो रानी एवं अन्य स्त्रियां अपने स्वाभिमान एवं इज्जत की रक्षा के लिए उस अग्नि कुण्ड में कूदकर जान दे देती थी। एवं अपने गौरव, सतीत्व की रक्षा करती थी। पुरूषों द्वारा युद्ध में जाते समय केसरिया वस्त्र धारण किए जाते थे यह केसरिया करना कहा जाता था।

3. चित्तौड़गढ़ पर अभियान

चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण 1303 ई. में किया गया। इस आक्रमण का नेतृत्व अलाउद्दीन खिलजी ने किया। इससे पूर्व यह किसी सुल्तान ने नहीं जीता था। मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत् के अनुसार चित्तौड़ के राजा रतनसिंह की रानी पद्मिनी(पद्मावती) को प्राप्त करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया।

लेकिन चित्तौड़गढ़ का किला सामरिक महत्व का था जो अलाउद्दीन के दक्षिण भारत के अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता।

इस युद्ध में रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुए एवं रानी पद्मिनी ने जौहर किया। इस युद्ध में चित्तौड़गढ़ के दो वीर सैनिक गोरा एवं बादल वीरगति को प्राप्त हुए। चित्तौड़गढ़ पर अधिकार कर, चित्तौड़गढ़ को अपने पुत्र खिज्रखां को सौंप दिया गया एवं इसका नाम खिज्राबाद कर दिया गया।

इस अभियान में अमीर खुसरो अलाउद्दीन खिलजी के साथ था परन्तु अमीर खुसरो ने पद्मावती की घटना का कोई उल्लेख नहीं किया।

4. मालवा पर अभियान

इस अभियान का नेतृत्व आइनुलमुल्क मुल्तानी ने किया। मालवा का शासक महलक देव भाग गया एवं मालवा भी सल्तनत का हिस्सा बन गया।

5. सिवाना पर अभियान

सिवाना के शासक सातलदेव एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य युद्ध हुआ। इस युद्ध का नेतृत्व कमालुद्दीन कुर्ग ने किया। युद्ध में सातलदेव वीरगति को प्राप्त हुए एवं राजपूत स्त्रियों ने जौहर किया। अलाउद्दीन ने इस दुर्ग का नाम खैराबाद रख दिया। कमालुद्दीन कुर्ग को किले का संरक्षक नियुक्त किया।

6. जालौर पर अभियान

जालौर के शासक कान्हदेव सोनगरा एवं अलाउद्दीन खिलजी के मध्य युद्ध हुआ जिसका नेतृत्व भी कमालुद्दीन कुर्ग ने किया। कान्हदेव वीरगति को प्राप्त हुआ।

दक्षिण भारत पर किए गए अभियान

1. देवगिरी अभियान

अलाउद्दीन के आक्रमण के समय देवगिरी(राजधानी: देवगिरी) में सेना नहीं थी रामचन्द्र का पुत्र सिंघण देव अपनी सेना दक्षिण अभियान के लिए ले गया था। रामचन्द्र देवगिरी के किले में अन्दर चला गया। अलाउद्दीन ने जनता को जी भरकर लूटा। रामचन्द्र ने संधि प्रस्ताव भेजा परन्तु सिंघण देव ने युद्ध करने का निश्चय किया परन्तु सिंघण की सैना मैदान छोड़कर भाग गयी। यह देख सिंघण देव ने पुनः संधि की मांग पेश की। अलाउद्दीन ने कठोर शर्तों के साथ संधि स्वीकार की। रामचन्द्र एवं सिंघण देव ने प्रतिवर्ष कर देने का वचन दिया। देवगिरी अभियान से अलाउद्दीन ने अपार धन प्राप्त किया।

देवगिरी का द्वितीय अभियान

देवगिरी के शासकों ने 2-3 वर्ष तक अलाउद्दीन को कर देना बन्द कर दिया था। इस कारण देवगिरि पर पुनः आक्रमण किया। इस आक्रमण के बाद खिलजी ने रामचन्द्र को ‘रायरायने की उपाधि’ प्रदान की एवं गुजरात में ‘नवसारी’ की जागीर और एक लाख सोने के टंके भेंट किए। इसका उद्देश्य अलाउद्दीन दक्षिण भारत पर विजय के लिए एक भरोसेमंद साथी चाहता था।

2. तेलंगाना अभियान

इस अभियान का नेतृत्व मलिक काफूर ने किया एवं देवगिरी के शासक रामचन्द्र ने मलिक काफूर का पूरा सहयोग किया। वारंगल के शासक ने बिना युद्ध किए अधीनता स्वीकार कर ली एवं प्रतीक के रूप में सोने की एक मुर्ति जिसके गले में सोने की जंजीर थी भेजी। वारंगल के शासक प्रताप रूद्र देव ने हाथी, घोड़े, रत्न, सौना, चांदी आदि दिए कोहिनूर हीरा यहीं से मलिक काफूर ने प्राप्त किया।

कोहिनूर

कोहिनूर हीरा भारत के आंध्रप्रदेश राज्य के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदानों से प्राप्त हुआ था। इसे कोह-ए-नूर नाम नादिरशाह ने दिया। इस वक्त कोहिनूर हीरा ब्रिटेन के राजपरिवार के पास है। लंदन टॉवर, ब्रिटेन की राजधानी लंदन के केंद्र में टेम्स नदी के किनारे बना एक भव्य किला है जिसे सन् 1078 में विलियम द कॉकरर ने बनवाया था। राजपरिवार इस किले में नहीं रहता है और शाही जवाहरात इसमें सुरक्षित हैं जिनमें कोहिनूर हीरा भी शामिल है।

3. होयसल अभियान

होयसल राज्य(राजधानी: द्वारसमुद्र) पर बल्लाल-3 का शासन था। इस अभियान का नेतृत्व मलिक काफूर ने किया। देवगिरी शासक रामचंद्र ने काफूर की सहायता की। बल्लाल ने प्रतिवर्ष कर अदा करने की संधि की तथा बहुत अधिक मात्रा में सोना, चांदी, हीरे, मोती आदि दिए। बल्लाल को अपने अगले अभियान में सहायता करने के लिए विवश किया।

4. पाण्ड्य अभियान

द्वारसमुद्र के बाद मलिक काफूर पाण्ड्य राज्य(राजधानी: पाण्ड्य) की ओर बढ़ा। इस अभियान में बल्लाल-3 ने मलिक की मदद की। पाण्ड्य शासक के दो पुत्र सुन्दर पाण्ड्य और वीर पाण्ड्य(अवैध पुत्र) के बीच सिंहासन को लेकर गृहयुद्ध चल रहा था। मलिक काफूर ने सुन्दर पाण्ड्य का पक्ष लिया परन्तु मलिक काफूर न तो वीर पाण्ड्य को हरा सका और न ही कोई शर्त लाद सका। गृहयुद्ध में वीर पाण्ड्य जीता एवं सुन्दर पाण्ड्य को बाहर निकाल दिया। इस अभियान में मलिक काफूर ने नगरों, भवनों एवं मन्दिरों को लूटा परन्तु वीर पाण्ड्य ने न जीत सका।

बल्लाल-3 को दिल्ली बुलाया गया एवं उसकी सहायता से प्रसन्न होकर अलाउद्दीन ने उपहार स्वरूप खिलत, एक मुकुट और छत्र तथा 10 लाख टंका मुद्राएं प्रदान की। यह विजय राजनीतिक दृष्ट से महत्वहीन परन्तु आर्थिक दृष्टि से महान विजय थी।

5. देवगिरी पर तृतीय आक्रमण

रामचंद्र देव के पुत्र सिंघण देव ने सिंहासन पर बैठते ही सल्तनत की अधीनता के सब लक्षणों को समाप्त कर दिया एवं स्वतंत्र शासक की भांति कार्य करने लगा। मलिक काफूर को आक्रमण के लिए भेजा गया तथा सिंघण देव की पराजय हुई तथा सिंघण देव युद्ध में मारा गया। रामचंद्र के दामाद हरपाल देव को गद्दी पर बिठाया गया।

दक्षिण भारत पर अभियान का क्रम

क्रम देवगिरी तेलंगाना होयसल मदुरा
राजधानी देवगिरी बारंगल द्वारसमुद्र मदुरा
समकालीन शासक रामचन्द्र प्रतापरूद्र देव बल्लान तृतीय कुलशेखर

सुल्तान अलाउद्दीन ने अपने अल्पवयस्क पुत्र शिहाबुद्दीन उमर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 5 जनवरी 1316 को अलाउद्दीन की मृत्यु हो गई।

अलाउद्दीन खिलजी द्वारा किए गए कार्य

प्रशासन

दीवान-ए-वजारत: इसका प्रमुख वजीर होता था। इसका मुख्य विभाग वित्त विभाग था। वजीर राजस्व के एकत्रीकरण और प्रांतीय सरकारों के दीवानी पक्ष के प्रशासन में सुल्तान के प्रति उत्तरदायी था।

दीवान-ए-आरिज: यह सैन्य मंत्री होता था। सेना की भर्ती, वेतना बांटना, सेना का हुलिया एवं सैनिकों की नामावली रखता था।

दीवान-ए-इंशा: इसका कार्य शाही आदेशों एंव पत्रों का प्रारूप तैयार करना तथा स्थानीय अधिकारियों से पत्र व्यवहार करना।

दीवान-ए-रसालत: पड़ोसी राज्यों में भेजे जाने वाले पत्रों का प्रारूप तैयार करना एवं विदेशी राजदूतों से संपर्क रखना।

दीवान-ए-रियासत: अलाउद्दीन ने यह नया मंत्रालय स्थापित किया था। इसका कार्य राजधानी के आर्थिक मामलों की देखभाल करना था। व्यापारी वर्ग पर नियंत्रण रखता था।

अन्य अधिकारी

मुहतासिब: बाजारों पर नियंत्रण एवं नाप-तौल का निरीक्षण।

बरीद-ए-मुमालिक: गुप्तचर विभाग का प्रमुख अधिकारी।

तथ्य

अलाउद्दीन एक नया धर्म शुरू करना चाहता था तथा सिकन्दर के समान विश्व विजेता बनना चाहता था परन्तु काजी अताउल्मुल्क के परामर्श से ये दोनों योजनाएं त्याग दी।

अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सिक्कों पर स्वंय को दूसरा सिकन्दर घोषित किया तथा सिकन्दर-ए-सानी का खिताब प्राप्त किया।

अलाउद्दीन ने स्वंय को यस्मिन-उल-खिलाफत-नासिरी-अमीर-उल-मुनिजीन घोषित किया।

खिलजी ने घोड़ों को दागने की प्रथा, सैनिकों का हुलिया रखने की प्रथा एवं सेना को नकद वेतन देने की शुरूआत की।

दुबश्प - जो सैनिक दो घोड़े रखता था उसे दुबस्प कहा जाता था।

अलाउद्दीन खिलजी ने शराब तथा भांग पर रोक लगा दी।

अलाउद्दीन ने भूमि को बिस्वा(वफा-ए-बिस्वा) में मापने की प्रथा शुरू की।

गृहकर ‘घडी’ एवं चराई कर ‘चरी’ नए कर लगाए गए।

सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमत निर्धारित(राशनिंग) की गयी।

चार अलग-अलग बाजार स्थापित किए गए -

गल्ला बाजार: यह खाद्यान्न चीजों का बाजार था।

सराय-ए-अदल: यह निर्मित वस्तुओं तथा बाहर से आने वाले माल का बाजार था।

घोड़े, दास, मवेशियों का बाजार।

दरबारी कवि

अमीर खुसरो, हसन दहलवी

दीवन-ए-मुख्तखराज - अलाउद्दीन ने भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए इस नए विभाग की स्थापना की थी।

शिहाबुद्दीन उमर(1316ई.)

शिहाबुद्दीन उमर का प्रथम संरक्षक मलिक काफूर था। मलिक काफूर ने अलाउद्दीन के तीसरे पुत्र कुतुबुद्दीन खां को मारने के लिए कुछ सैनिकों को भेजा किन्तु उन सैनिकों ने कुतुबुद्दीन खां के विश्वास में आकर मलिक काफूर की ही हत्या कर दी। इस प्रकार मलिक काफूर केवल 35 दिनों तक ही सत्ता का सुख भोग पाया शिहाबुद्दीन का संरक्षक कुतुबुद्दीन खां हुआ।

कुतुबुद्दीन, शिहाबुद्दीन की हत्या करके स्वंय सुल्तान बन गया।

कुतुबुद्दीन मुबाकर शाह खिलजी(1316-1320ई.)

यह अलाउद्दीन खिलजी का पुत्र था। खुसरो खां एक हिन्दु था जो बाद में मुसलमान बना था। जिसका मुबारक शाह पर काफी प्रभाव था उसने सुल्तान से 40,000 अश्वरोही सैनिकों को संगठित करने की अनुमति ले ली। और बाद में मुबारक शाह की हत्या कर दी। और स्वंय सुल्तान बन नासिरूद्दीन खुसरो शाह की उपाधि धारण की।

नासिरूद्दीन खुसरो शाह(1320ई.)

खुसरो ने अलाउद्दीन और मुबारक शाह के काल के उन खिलजी अमीरों को मार डाला जिनकी निष्ठा पर उसे सन्देह था। खुसरो ने अपने सगे सम्बन्धियों को उच्च पद प्रदान किये। उसने मुक्त हस्त होकर धार्मिक नेताओं को धन दिया। उसने बहुत सारा धन सूफी संत निजामुद्दीन औलिया को प्रदान किया। निजामुद्दीन औलिया नासिरूद्दीन खुसरो के गुरू थे। गाजी मलिक मुबारक शाह खिलजी के शासन काल में उत्तर-पश्चिम सीमाप्रांप्त(पंजाब) का गर्वनर था। गाजी मलिक एवं अन्य कुछ अमीरों ने खुसरो द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। 5 सितंबर 1320ई. को गाजी मलिक और खुसरो शाह में युद्ध हुआ। जिसमें खुसरो की हार हुई और वह मारा गया। दूसरे दिन गाजी मलिक ने सीरी महल में प्रवेश किया। अगले दिन 8 सितंबर 1320ई. को सुल्तान बना। इस प्रकार गाजी मलिक, गयासुद्दीन तुगलक नाम से दिल्ली का सुल्तान बना एवं दिल्ली में तुगलक वंश की स्थापना हुई।

नोट - खिलजी वंश का अन्तिम शासक नासिरूद्दीन सुसरो शाह था। खिलजी वंश में कुल 5 शासकों ने शासन किया।

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