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राजस्थान की जलवायु

राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपआर्द्र मानसूनी जलवायु है अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर निम्न आर्द्रता तथा तीव्रहवाओं युक्त जलवायु है। दुसरी और अरावली के पुर्व में अर्द्रशुष्क एवं उपआर्द्र जलवायु है।

जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक - अक्षांशीय स्थिती, समुद्रतल से दुरी, समुद्र तल से ऊंचाई, अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि।

राजस्थान की जलवायु कि प्रमुख विशेषताएं -

  1. शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानता
  2. अपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षा
  3. वर्षा का अनायस वितरण
  4. अधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक
  5. वर्षा की परिर्वतनशीलता एवं न्यूनता के कारण सुखा एवं अकाल कि स्थिती अधिक होना।

राजस्थान कर्क रेखा के उत्तर दिशा में स्थित है। अतः राज्य उपोष्ण कटिबंध में स्थित है। केवल डुंगरपुर और बांसवाड़ा जिले का कुछ हिस्सा उष्ण कटिबंध में स्थित है।

अरावली पर्वत श्रेणीयों ने जलवायु कि दृष्टि से राजस्थान को दो भागों में विभक्त कर दिया है। अरावली पर्वत श्रेणीयां मानसुनी हवाओं के चलने कि दिशाओं के अनुरूप होने के कारण मार्ग में बाधक नहीं बन पाती अतः मानसुनी पवनें सीधी निकल जाती है और वर्षा नहीं करा पाती। इस प्रकार पश्चिमी क्षेत्र अरावली का दृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण अल्प वर्षा प्राप्त करताह है।

जब कर्क रेखा पर सुर्य सीधा चमकता है तो इसकी किरणें बांसवाड़ा पर सीधी व गंगानगर जिले पर तिरछी पड़ती है। राजस्थान का औसतन वार्षिक तापमान 37 डिग्री से 38 डिग्री सेंटीग्रेड है।

राजस्थान को जलवायु की दृष्टि से पांच भागों में बांटा है।

  1. शुष्क जलवायु प्रदेश(0-20 सेमी.)
  2. अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश(20-40 सेमी.)
  3. उपआर्द्र जलवायु प्रदेश(40-60 सेमी.)
  4. आर्द्र जलवायु प्रदेश(60-80 सेमी.)
  5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश(80-100 सेमी.)
राजस्थान की जलवायु

1. शुष्क प्रदेश

क्षेत्र - जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, फलौदी, दक्षिणी गंगानगर, अनूपगढ़ तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग।

औसत वर्षा - 0-20 सेमी.।

2. अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - चुरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, द. बाड़मेर, बालोतरा, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालौर, सीकर,नागौर, डीडवाना कुचामन व झुझुनू का पश्चिमी भाग।

औसत वर्षा - 20-40 सेमी.।

3. उपआर्द्ध जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर, नागौर, डीडवाना कुचामन व झुझुनू का पूर्वी भाग तथा डीग, दौसा, टोंक, केकड़ी, भीलवाड़ा व सिरोही का उत्तरी-पश्चिमी भाग।

औसत वर्षा - 40-60 सेमी.।

4. आर्द्र जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - डीग का दक्षिण पूर्वी भाग, भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बुंदी, सवाईमाधोपुर, उदयपुर,उ.पू. सलूम्‍बर, द.पू. टोंक तथा चित्तौड़गढ़।

औसत वर्षा - 60-80 सेमी.।

5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - द.पू. कोटा, बारां, झालावाड़, बांसवाडा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, द.पू. सलूम्‍बर तथा माउण्ट आबू क्षेत्र।

औसत वर्षा - 60-80 सेमी.।

तथ्य

राजस्थान के सबसे गर्म महिने मई - जुन है तथा ठण्डे महिने दिसम्बर - जनवरी है।

राजस्थान का सबसे गर्म व ठण्डा जिला - चुरू

राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर पश्चिमी क्षेत्र में रहता है।

राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला जिला -जैसलमेर

राजस्थान में वर्षा का औसत 57 सेमी. है जिसका वितरण 10 से 100 सेमी. के बीच होता है। वर्षा का असमान वितरण अपर्याप्त और अनिश्चित मात्रा ही राजस्थान में हर वर्ष सुखे व अकाल का कारण बनती है।

राजस्थान में वर्षा की मात्रा दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर घटती है। अरब सागरीय मानसुन हवाओं से राज्य के दक्षिण व दक्षिण पूर्वी जिलों में पर्याप्त वर्षा हो जाती है।

राज्य में होने वाली वर्षा की कुल मात्रा का 34 प्रतिशत जुलाई माह में, 33 प्रतिशत अगस्त माह में होती है।

जिला स्तर पर सर्वाधिक वर्षा - झालावाड़(100 सेमी.)

जिला स्तर पर न्यूनतम वर्षा - जैसलमेर(10 सेमी.)

राजस्थान में वर्षा होने वाले दिनों की औसत संख्या 29 है।

वर्षा के दिनों की सर्वाधिक संख्या - झालावाड़(40 दिन), बांसवाड़ा(38 दिन)

वर्षा के दिनों की न्यूनतम संख्या - जैसलमेर(5 दिन)

राजस्थान का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान - माउण्ट आबु(120-140 सेमी.) है यहीं पर वर्षा के सर्वाधिक दिन(48 दिन) मिलते हैं।

वर्षा के दिनों की संख्या उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ती है।

राजस्थान में सबसे कम आर्द्रता - अप्रैल माह में

राजस्थान मे सबसे अधिक आर्द्रता - अगस्त माह में

राजस्थान में सबसे सम तापमान - अक्टुबर माह में रहता है।

सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर) 5 सेमी.

राजस्थान को 50 सेमी. रेखा दो भागों में बांटती है। 50 सेमी. वर्षा रेखा की उत्तर-पश्चिम में कम होती है। जबकि दक्षिण पूर्व में वर्षा अधिक होती है।

यह 50 सेमी. मानक रेखा अरावली पर्वत माला को माना जाता है।

राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला जिला झालावाड़ तथा न्यूनतम जिला जैसलमेर है। राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला स्थान माउण्ट आबू तथा कम आर्द्रता फलौदी(जोधपुर) है।

राजस्थान में सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला महिना मार्च-अप्रैल है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में होती है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला जिला जयपुर है।

राजस्थान में हवाऐं पाय पश्चिम व दक्षिण पश्चिम की ओर चलती है।

हवाओं की सर्वाधिक गति - जून माह

हवाओं की मंद गति - नवम्बर माह

ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम क्षेत्र क्षेत्र का वायुदाब पूर्वी क्षेत्र से कम होता है।

ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की तरफ से गर्म हवाऐं चलती है जिन्हें लू कहते है। इस लू के कारण यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब की पूर्ती हेतु दुसरे क्षेत्र से (उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से) तेजी से हवा उठकर आती है जो अपने साथ धुल व मिट्टी उठाकर ले आती है इसे ही आंधी कहते हैं।

आंधियों की सर्वाधिक संख्या - श्रीगंगानगर(27 दिन)

आंधियों की न्यूनतम संख्या - झालावाड़ (3 दिन)

राजस्थान के उत्तरी भागों में धुल भरी आधियां जुन माह में और दक्षिणी भागों में मई माह में आति है।

राजस्थान में पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में तुफान(आंधी + वर्षा) अधिक आते है।

आर्द्रता

वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते है। आपेक्षिक आर्द्रता मार्च-अप्रैल में सबसे कम व जुलाई-अगस्त में सर्वाधिक होती है।

लू

मरूस्थलीय भाग में चलने वाली शुष्क व अति गर्म हवाएं लू कहलाती है।

समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है। इसके घटने की यह सामान्य दर 165 मी. की ऊंचाई पर 1 डिग्री से.ग्रे. है।

राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी भाग से दक्षिणी-पुर्वी की ओर तापमान में कमी दृष्टि गोचर होती है।

डा.ब्लादीमीर कोपेन, थार्नेवेट, ट्रिवार्था के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार जलवायु प्रदेश

कोपेन, थार्नवेट, ट्रिवार्था जैसे विद्वानों ने विश्व को जलवायु प्रदेशों में विभक्‍त किया और उनकी विशेषताओं को संकेताक्षरों के माध्यम से व्यक्त किया। यद्यपि उनक वर्गीकरण राजस्थान जैसे राज्यों हेतु पूर्ण सार्थक नहीं है, किन्तु उनका विभाजन एवं सामान्य आधार बनाता है। अतः जलवायुगत समानताओं के आधार पर राजस्थान के विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभक्त किया जाता है।

कोपेन के अनुसार जलवायु प्रदेश

डा.ब्लादीमीर कोपेन जर्मनी के वैज्ञानिक थे, जिन्होंने सर्वप्रथम 1918 में विश्व की जलवायु का वर्गीकरण किया। कोपेन के अनुसार स्थानीय वनस्पति ही मौसम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है, हालांकी कोपेन ने जलवायु वर्गीकरण के लिए वर्षा एवं तापमान को भी महत्व दिया है क्योंकि परोक्ष रूप से वनस्पति वर्षा और तापमान पर निर्भर होती है अत: कोपेन ने राजस्थान की जलवायु को वनस्पति के आधार पर चार सांकेतिक शब्दो में वर्णीत किया है।

कोपेन ने अपने वर्गीकरण में जलवायु को पाँच समूहों-उष्णकटिबंधीय, शुष्क जलवायु, उष्ण शीतोष्ण, महाद्वीपीय, ध्रुवीय या शीत जलवायु समूह में विभाजित किया है।

  1. Aw उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश - डूंगरपुर, सलूम्बर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा व दक्षिणी चित्तौड़ तथा झालावाड़
  2. Bshw अर्द्ध शुष्क कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश - अरावली के पश्चिम का क्षेत्र
  3. Bwhw उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश - जैसलमेर, फलौदी, बीकानेर, अनुपगढ़, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ तथा चूरू जिले का कुछ क्षेत्र
  4. Cwg उप आर्द्र जलवायु प्रदेश - पूर्वी और मध्य राजस्थान का अरावली से पूर्व का भाग
कोपेन के अनुसार जलवायु प्रदेश

थार्नेवेट के अनुसार जलवायु प्रदेश

थार्नवेट ने जलवायु वर्गीकरण के लिए वाष्पोत्सर्जन, वनस्पति, वाष्पीकरण मात्रा, वर्षा व तापमान को आधार लिया। राजस्थान में थार्नवेट का जलवायु वर्गीकरण अधिक मान्य है।

  1. CA’w या उपआर्द्र जलवायु प्रदेश
  2. DA’ w या उष्ण आर्द्र जलवायु प्रदेश
  3. DB’w या अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
  4. EA’d या उष्ण शुष्क कटिबन्धीय मरुस्थलीय जलवायु
थार्नवेट के अनुसार जलवायु प्रदेश

ट्रिवार्था के अनुसार जलवायु प्रदेश

प्रो. ट्रिवार्थी ने उक्त कोपेन के वर्गीकरण में संशोधन कर अधिक बोधगम्य, सरल, सुग्राह्य एव संगत वर्गीकरण प्रस्तुत किया जो निम्नानुसार है।

  1. Aw उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु प्रदेश
  2. Bsh उष्ण एवं अर्द्ध उष्ण कटिबंधीय स्टेपी तुल्य जलवायु प्रदेश
  3. Bwh मरुस्थली या शुष्क जलवायु प्रदेश
  4. Caw अर्द्ध उष्ण आर्द्र जलवायु प्रदेश
ट्रिवार्था के अनुसार जलवायु प्रदेश

राजस्थान को कृषि की दृष्टि से निम्न लिखित दस जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है।

  1. शुष्क पश्चिमी मैदानी
  2. सिंचित उत्तरी पश्चिमी मैदानी
  3. शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदानी
  4. अंन्त प्रवाही
  5. लुनी बेसिन
  6. पूर्वी मैदानी(भरतपुर, धौलपुर, करौली जिले)
  7. अर्द्र शुष्क जलवायु प्रदेश
  8. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
  9. आर्द्र जलवायु प्रदेश
  10. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश

कृषि जलवायु प्रदेश

ऋतुएं

राजस्थान में जलवायु का अध्ययन करने पर तीन प्रकार की ऋतुएं पाई जाती हैः-

  1. ग्रीष्म ऋतु: (मार्च से मध्य जून तक)
  2. वर्षा ऋतु : (मध्य जून से सितम्बर तक)
  3. शीत ऋतु : (नवम्बर से फरवरी तक)

ग्रीष्म ऋतु

राजस्थान में मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु होती है। इसमें मई व जून के महीने में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है। अधिक गर्मी के वायु मे नमी समाप्त हो जाती है। परिणाम स्वरूप वायु हल्की होकर उपर चली जाती है। अतः राजस्थान में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है परिणामस्वरूप उच्च वायुदाब से वायु निम्न वायुदाब की और तेजगति से आती है इससे गर्मियों में आंधियों का प्रवाह बना रहता है।

वर्षा ऋतु

राजस्थान में मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है।

राजस्थान में 3 प्रकार के मानसूनों से वर्षा होती है।

1. बंगाल की खाड़ी का मानसून

यह मानसून राजस्थान में पूर्वी दिशा से प्रवेश करता है। पूर्वी दिशा से प्रवेश करने के कारण मानसूनी हवाओं को पूरवइयां के नाम से जाना जाता है यह मानसून राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा करवाता है इस मानसून से राजस्थान के उत्तरी, उत्तरी-पूर्वी, दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में वर्षा होती है।

2. अरब सागर का मानसून

यह मानसून राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है यह मानसून राजस्थान में अधिक वर्षा नहीं कर पाता क्योंकि यह अरावली पर्वतमाला के समान्तर निकल जाता है। राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व कि ओर है यदि राज्य में अरावली का विस्तार उत्तरी-पश्चिमी से दक्षिणी-पूर्व कि ओर होता तो राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में वर्षा होती।

राजस्थान में सर्वप्रथम अरबसागर का मानसून प्रवेश करता है

3. भूमध्यसागरीय मानसून

यह मानसून राजस्थान में पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है। पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने के कारण इस मानसून को पश्चिमी विक्षोभों का मानसून के उपनाम से जाना जाता है। इस मानसून से राजस्थान में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में वर्षा होती है। यह मानसून मुख्यतः सर्दीयों में वर्षा करता है सर्दियों में होने वाली वर्षा को स्थानीय भाषा में मावठ कहते हैं यह वर्षा गेहुं की फसल के लिए सर्वाधिक लाभदायक होती है। इन वर्षा कि बूदों को गोल्डन ड्रोप्स या सोने कि बुंद के उप नाम से जाना जाता है।

शीत ऋतु

राजस्थान में नम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इन चार महीनों में जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है।शीत ऋतु में भूमध्यसागर में उठने वाले चक्रवातों के कारण राजस्थान के उतरी पश्चिमी भाग में वर्षा होती है। जिसे "मावट/मावठ" कहा जाता है। यह वर्षा माघ महीने में होती है। शीतकालीन वर्षा मावट को - गोल्डन ड्रोप (अमृत बूदे) भी कहा जाता है। यह रवि की फसल के लिए लाभदायक है।

राज्य में हवाएं प्राय पश्चिम और उतर-पश्चिम की ओर चलती है।

वर्षा

राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून हवाओं से होती है तथा दुसरा स्थान बंगाल की खाड़ी का मानसून, तीसरा स्थान अरबसागर के मानसून, अन्तिम स्थान भूमध्यसागर के मानसून का है।

आंधियों के नाम

उत्तर की ओर से आने वाली - उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ

दक्षिण की ओर से आने वाली - लकाऊ

पूर्व की ओर से आने वाली - पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुणी

पश्चिम की ओर से आने वाली - पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।

अन्य

उत्तर-पूर्व के मध्य से - संजेरी

पूर्व-दक्षिण के मध्य से - चीर/चील

दक्षिण-पश्चिम के मध्य से - समंदरी/समुन्द्री

उत्तर-पश्चिम के मध्य से - सूर्या

सूखा

सूखा एक असामान्य व लंबा शुष्क मौसम होता है जो किसी क्षेत्र विशेष में स्पष्ट जलीय असंतुलन पैदा करता है। सूखा के लिये मानसून की अनिश्चितता के अतिरिक्त कृषि का अवैज्ञानिक प्रबंधन भी उत्तरदायी कारक हो सकते हैं। ‘सूखे’ की तीन स्थितियाँ होती हैं-
(i) मौसमी सूखाः किसी बड़े क्षेत्र में अपेक्षा से 75% कम वर्षा होने पर उत्पन्न हुई स्थिति। वर्षा की कमी (RD) के आधार पर इसे आगे तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
RD > 50% - भयंकर सूखा
25% ≤ RD ≤ 50% - मध्यम सूखा
RD < 25% - सूखा
(ii) जलीय सूखाः जब ‘मौसम विज्ञानी सूखे’ की अवधि अधिक लंबी हो जाती है तो नदियों, तालाब, झीलों जैसे जल क्षेत्र सूखने से यह स्थिति बनती है।
(iii) कृषिगत सूखाः इस स्थिति में फसल के लिये अपेक्षित वर्षा से काफी कम वर्षा होने पर मिट्टी की नमी फसल विकास के लिये अपर्याप्त होती है।

दैनिक गति/घुर्णन गति

पृथ्वी अपने अक्ष पर 23 1/2 डिग्री झुकी हुई है। यह अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व 1610 किमी./घण्टा की चाल से 23 घण्टे 56 मिनट और 4 सेकण्ड में एक चक्र पुरा करती है। इस गति को घुर्णन गति या दैनिक गति कहते हैं इसी के कारण दिन रात होते हैं।

वार्षिक गति/परिक्रमण गति

पृथ्वी को सूर्य कि परिक्रमा करने में 365 दिन 5 घण्टे 48 मिनट 46 सैकण्ड लगते हैं इसे पृथ्वी की वार्षिक गति या परिक्रमण गति कहते हैं। इसमें लगने वाले समय को सौर वर्ष कहा जाता है। पृथ्वी पर ऋतु परिर्वतन, इसकी अक्ष पर झुके होने के कारण तथा सूर्य के सापेक्ष इसकी स्थिति में परिवर्तन यानि वार्षिक गति के कारण होती है। वार्षिक गति के कारण पृथ्वी पर दिन रात छोटे बड़े होते हैं।

पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 मार्च एवम् 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं फलस्वरूप सम्पूर्ण पृथ्वी पर रात-दिन की अवधि बराबर होती है।

घुर्णन गति&परिक्रमण गति

विषुव

जब सुर्य की किरणें भुमध्य रेखा प सीधी पड़ती है तो इस स्थिति को विषुव कहा जाता है। वर्ष में दो विषुव होते हैं।

21 मार्च को बसन्त विषुव तथा 23 सितम्बर को शरद विषुव होते हैं

आयन

23 1/20 उत्तरी अक्षांश से 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश के मध्य का भु-भाग जहां वर्ष में कभी न कभी सुर्य की किरणें सीधी चमकती है आयन कहलाता है यह दो होते हैं।

उत्तरी आयन(उत्तरायण) - 0 अक्षांश से 23 1/20 उत्तरी अक्षांश के मध्य।

दक्षीण आयन(दक्षिणायन) - 0 अक्षांश से 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश के मध्य।

आयनान्त

जहां आयन का अन्त होता है। यह दो होते हैं

उत्तरीआयन का अन्त(उत्तरयणान्त) - 23 1/20 उत्तरी अक्षांश/कर्क रेखा पर 21 जुन को उत्तरी आयन का अन्त होता है।

दक्षिणी आयन का अन्त - 23 1/20 दक्षिणी अक्षांश/मकर रेखा पर 22 दिसम्बर को दक्षिणाअन्त होता है।

पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् रहती है फलस्वरूप उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े व रातें छोटी एवम् ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में सुर्य की किरणें तीरछी पड़ने के कारण दिन छोटे रातें बड़ी व शरद ऋतु होती है।

तथ्य

उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 21 जुन

दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 21 जुन

उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 21 जुन

दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 21 जुन

पृथ्वी के परिक्रमण काल में 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर सुर्य की किरणें लम्बवत् रहती है फलस्वरूप दक्षिण गोलार्द्ध में दिन बड़े, रातें छोटी एवम् ग्रीष्म ऋतु होती है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में सुर्य कि किरणें तीरछी पड़ने के कारण दिन छोटे, रातें बड़ी व शरद ऋतु होती है।

तथ्य

दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 22 दिसम्बर

उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 22 दिसम्बर

दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 22 दिसम्बर

उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 22 दिसम्बर

कटिबन्ध

कोई भी दो अक्षांश के मध्य का भु-भाग कटिबंध कहलाता है।

गोर

कोई भी दो देशान्तर के मध्य का भु-भाग गोर कहलाता है।

भारत दो कटिबन्धों में स्थित है।

उष्ण कटिबंध और शीतोष्ण कटिबंध

राजस्थान उष्ण कटिबंध के निकट वास्तव में उपोष्ण कटिबंध में स्थित है।

मानसून

मानसून शब्द की उत्पति अरबी भाषा के मौसिन शब्द से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ ऋतु विशेष में हवाओं की दिशाएं होता है।

गीष्मकालीन/दक्षिणी पश्चिमी मानसून

गर्मियों में जब उत्तरी गोलार्द्ध में सूय्र की किरणें सीधी पड़ती है। तो यहां निम्न वायुदाब क्षेत्र बनता है। जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में सुर्य की किरणें तीरछी पड़ने के कारण शीत ऋतु होती है और वायुदाब उच्च रहता है। इसलिए हवाऐं दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध की ओर चलती है।

भारत की स्थिति प्रायद्वीपीय होने के कारण दक्षिण पश्चिम से आने वाली यह मानसूनी पवनें दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है।

1. अरब सागरीय शाखा 2. बंगाल की खाड़ी शाखा

भारत में सर्वप्रथम मानसून की अरब सागरीय शाखा सक्रिय होती है। औसतन 1 जुन को मालाबार तट केरल पर ग्रीष्म कालीन मानसून की अरब सागरीय शाखा सक्रिय होती है।

नोट

भारत में ग्रीष्म कालीन मानसून सर्वप्रथम अण्डमान निकोबार द्वीपसमुह(ग्रेट निकोबार, इंदिरा प्वांइट) पर सक्रिय होता है।

राजस्थान में सर्वप्रथम ग्रीष्मकालीन मानसून की अरब सागरीय शाखा ही सक्रिय होती है।

भारत एवम् राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा से होती है।

शीतकालीन मानसून से कोरोमण्डल तट तमिलनाडू में हि वर्षा होती है। शीतकालीन मानसून से सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला देश - चीन।

तथ्य

विश्व का सबसे गर्म स्थान - अल-अजीजिया(लिबिया) सहारा मरूस्थल

भारत का सबसे गर्म राज्य - राजस्थान

भारत का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)

राजस्थान का सबसे गर्म जिला - चुरू

राजस्थान का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)

विश्व का सबसे ठण्डा स्थान - बखोयांस(रूस)

भारत का सबसे ठण्डा राज्य - जम्मू-कश्मीर

भारता का सबसे ठण्डा स्थान - लोह(-46)

राजस्थान का सबसे ठण्डा जिला - चुरू

राजस्थान का सबसे ठण्डा स्थान - माउण्ट आबू(सिरोही)

विश्व का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय) भारत

भारत का सबसे आर्द्र राज्य - केरल

भारत का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय)

राजस्थान का सबसे आर्द्र जिला - झालावाड़

राजस्थान का सबसे आर्द्र स्थान - माउण्ट आबु

विश्व का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)

भारत का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)

भारत का सबसे वर्षा वाला राज्य - केरल

राजस्थान का सबसे वर्षा वाल स्थान - माउण्ट आबू

राजस्थान का सबसे वर्षा वाला जिला - झालावाड़

विश्व का सबसे शुष्क स्थान - वखौयांस

भारत का सबसे शुष्क राज्य - राजस्थान

भारत का सबसे शुष्क स्थान - लेह(जम्मु-कश्मीर)

राजस्थान का सबसे शुष्क जिला - जैसलमेर

राजस्थान का सबसे शुष्क स्थान - सम(जैसलमेर) और फलौद(जोधपुर)

विश्व में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - बखौयांस

भारत में सबसे कम वर्षा वाला राज्य - पंजाब

भारत में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - लेह

राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला जिला - जैसलमेर

राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर)

भारत का सर्वाधिक तापान्तर वाला राज्य - राजस्थान

राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(वार्षिक) - चुरू

राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(दैनिक) - जैसलमेर

राजस्थान का वनस्पति रहित क्षेत्र - सम(जैसलमेर)

साइबेरिया ठण्डी हवा एवं हिमालय हिमपात के कारण राजस्थान में जो शीत लहर चलती है वह कहलाती है - जाड़ा

गर्मीयों में थार के मरूस्थल में चलने वाली गर्म पवनें - लू

राजस्थान में सर्वाधिक धुल भरी आधियां चलती है - गंगानर में

राजस्थान में पाला - दक्षिणी तथा दक्षिणी पूर्वी भागों में अधिक ठण्ड के कारण पाला पड़ता है।

दक्षिण राजस्थान में तेज हवाओं के साथ जो मुसलाधार वर्षा होती है - चक्रवाती वर्षा

राजस्थान में मानसून का प्रवेश द्वार - झालावाड़ और बांसवाड़ा

राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा की विषमता वाला जिला - बाड़मेर और जैसलमेर

राजस्थान में वर्षा की सबसे कम विषमता वाला जिला -बांसवाड़ा

21 जून को राजस्थान के किस जिले में सूर्य की किरणे सीधी पड़ती है

22 दिसम्बर को राजस्थान के किस जिले को सुर्य की किरणें तीरछी पड़ती है - श्री गंगानगर

राजस्थान की जलवायु है - उपोष्ण कटिबंधीय

मावठ

सर्दीयों में पश्चिमी विक्षोभ/भुमध्य सागरिय विक्षोप के कारण भारत में उतरी मैदानी क्षेत्र में जो वर्षा होती है उसे मावठ कहते हैं।

मावठ का प्रमुख कारण - जेटस्ट्रीम

जेटस्ट्रीम - सम्पूर्ण पृथ्वी पर पश्चिम से पूर्व कि ओर क्षोभमण्डल में चलने वाली पवनें

मावठ रबी की फसल के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। इसलिए इसे गोल्डन ड्राप्स या स्वर्णीम बुंदें कहा जाता है।

महत्वपुर्ण तथ्य

नाॅर्वेस्टर - छोटा नागपुर का पठार पर ग्रीष्म काल में चलने वाली पवनें नाॅर्वेस्टर कहलाती है। यह बिहार एवं झारखण्ड राज्य को प्रभावित करती है।

जब नाॅर्वेस्टर पवनें पूर्व की ओर आगे बढ़ कर पश्चिम बंगाल राज्य में पहुंचती है तो इन्हें काल वैशाली कहा जाता है। तथा जब यही पवनें पूर्व की ओर आगे पहुंच कर असम राज्य में पहुंचती है तो यहां 50 सेमी. वर्षा होती है। यह वर्षा चाय की खेती के लिए अत्यंत उपयोगी होती है इसलिए इसे चाय वर्षा या टी. शावर कहा जाता है।

मैंगो शावर - तमिलनाडू, केरल एवम् आन्ध्रप्रदेश राज्यों में मानसुन पूर्व जो वर्षा होती है जिससे यहां की आम की फसलें पकती है वह वर्षा मैंगो शाॅवर कहलाती है।

चैरी ब्लाॅस्म - कर्नाटक राज्य में मानसून पूर्व जो वर्षा होती है जो कि यहां की कहवा की फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है चैरी ब्लाॅस्म या फुलों की बौछार कहलाती है।

मानसून की विभंगता - मानसून के द्वारा किसी एक स्थान पर वर्षा हो जाने तथा उसी स्थान पर होने वाली अगली वर्षा के मध्य का समय अनिश्चित होता है उसे ही मानसून की विभंगता कहा जाता है।

मानसून का फटना - दक्षिण भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान केरल के मालाबार तट पर तेज हवाओं एवम् बिजली की चमक के साथ बादल की तेज गर्जना के साथ जो मानसून की प्रथम मुसलाधार वर्षा होती है उसे मानसून का फटना कहा जाता है।

वृष्टि प्रदेश एवं वृष्टि छाया प्रदेश वृष्टि प्रदेश एवं वृष्टि छाया प्रदेश

अल-नीनो - यह एक मर्ग जल धारा है जो कि दक्षिण अमेरिका महाद्विप के पश्चिम में प्रशान्त महासागर में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान सक्रिय होती है इससे भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है। और भारत एवम् पड़ौसी देशों में अल्पवृष्टि एवम् सुखा की स्थिति पैदा हो जाती है।

ला-नीनो - यह एक ठण्डी जल धारा है जो कि आस्टेªलिया यह महाद्वीप के उत्तर-पूर्व में अल-नीनों के विपरित उत्पन्न होती है इससे भारतीय मानसून की शक्ति बढ़ जाती है और भारत तथा पड़ौसी देशों में अतिवृष्टि की स्थिति पैदा हो जाती है।

उपसौर और अपसौर

उपसौर - सुर्य और पृथ्वी की बीच न्युन्तम दुरी(1470 लाख किमी.) की घटना 3 जनवरी को होती है उसे उपसौर कहते हैं।

उपसौर और अपसौर

अपसौर - सुर्य और पृथ्वी के बीच की अधिकतम दुरी(1510 लाख किमी.) की घटना जो 4 जुलाई को होती है उसे अपसौर कहते हैं।

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