देश में पशुधन गणना वर्ष 1919-20 से ही समय-समय पर की जाती रही है। पशुधन गणना में सभी पालतू जानवरों और उनकी संख्या को कवर किया जाता है।
प्रत्येक 5 वर्ष में पशु गणना की जाती है।
स्वतंत्रता के पश्चात् पहली पशु गणना 1951 में की गई।
20वीं पशुधन गणना सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की भागीदारी से आयोजित की गई। यह गणना ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में की गई। पशुओं (मवेशी, भैंस, मिथुन, याक, भेड़, बकरी, सुअर, घोड़ा, टट्टू, खच्चर, गधा ऊंट, कुत्ता, खरगोश और हाथी) के विभिन्न नस्लों और घरों, घरेलू उद्यमों/गैर-घरेलू उद्यमों और संस्थानों में मौजूद पोल्ट्री पक्षियों (मुर्गी, बतख, एमु, टर्की, बटेर और अन्य पोल्ट्री पक्षियों) की गणना संबंधित स्थलों पर ही की गई है।
20वीं पशुधन गणना के तहत टैबलेट कंप्यूटरों के जरिये डेटा संग्रह पर विशेष बल दिया गया है। 20वीं पशुधन गणना को निश्चित तौर पर एक अनूठा प्रयास इसलिए माना जाना चाहिए क्योंकि पहली बार संबंधित क्षेत्र से ऑनलाइन संप्रेषण के जरिये घरेलू स्तर के आंकड़ों के डिजिटलीकरण के लिए इस तरह की बड़ी पहल की गई है।
20वीं पशुधन गणना में 27 करोड़ से भी अधिक घरेलू एवं गैर-घरेलू मवेशी के आंकड़ों का संग्रह किया गया है, ताकि देश में पशुधन और पोल्ट्री की कुल संख्या का सटीक आकलन किया जा सके।
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने अक्टूबर 2019 में, 20 वीं पशुधन गणना 2019 के लिए अनंतिम परिणाम जारी किए।
देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन (53 करोड़ 57 लाख) है जो पशुधन गणना- 2012 की तुलना में 4.6 प्रतिशत अधिक है।
20 वीं पशुगणना के अनुसार राजस्थान में कुल पशुधन 56.8 मिलियन(5.68 करोड़) है। जो कि 2012 की 57.7 मिलियन(5.77 करोड़) था। इस प्रकार 2019 में कुल पशुओं की संख्या में 1.66 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
राजस्थान 56.8 मिलियन पशुओं के साथ भारत में दूसरे स्थान पर है। पहला स्थान उत्तर प्रदेश का है।
राजस्थान गोवंश के मामले में 2012 के 13.3 मिलियन की तुलना में 2019 में 13.9 मिलियन पशुओं के साथ छठे स्थान पर हैं। गोवंश में 4.41% की वृद्धि हुई है।
राजस्थान भैंसो के मामले में 2012 के 13.0 मिलियन की तुलना में 2019 में 13.7 मिलियन पशुओं के साथ दूसरे स्थान पर हैं। भैंसों में 5.53% की वृद्धि हुई है।
राजस्थान भेड़ की संख्या के मामले में 2012 के 9.1 मिलियन की तुलना में 2019 में 7.9 मिलियन पशुओं के साथ चौथे स्थान पर हैं। भेड़ में 12.95% की कमी हुई है।
राजस्थान बकरी के मामले में 2012 के 21.67 मिलियन की तुलना में 2019 में 20.84 मिलियन पशुओं के साथ पहले स्थान पर हैं। बकरियों की संख्या में 3.81% की कमी हुई है।
राजस्थान ऊंट के मामले में 2012 के 3.26 मिलियन की तुलना में 2019 में 2.13 मिलियन पशुओं के साथ पहले स्थान पर हैं। ऊंटों की संख्या में 34.69% की कमी हुई है।
राजस्थान घोड़ों के मामले में 2012 के 0.38 मिलियन की तुलना में 2019 में 0.34 मिलियन पशुओं के साथ तीसरे स्थान पर हैं। घोड़ों की संख्या में में 10.85% की कमी हुई है।
राजस्थान गधों के मामले में 2012 के 0.81 मिलियन की तुलना में 2019 में 0.23 मिलियन पशुओं के साथ पहले स्थान पर हैं। गधों में 71.31% की कमी हुई है।
पशु | कुल संख्या(मिलियन) | देश मे राज्य का स्थान | देश मे प्रथम | राज्य मे सर्वाधिक | राज्य में न्यूनतम |
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बकरी | 20.84 | प्रथम | राजस्थान | बाड़मेर | धौलपुर |
गाय | 13.9 | छठा | पश्चिम बंगाल | उदयपुर | धौलपुर |
भैंस | 13.7 | दूसरा | उत्तर प्रदेश | जयपुर | जैसलमेर |
भेड़ | 7.9 | चौथा | तेलंगाना | बाड़मेर | बाँसवाड़ा |
ऊँट | 2.13 | प्रथम | राजस्थान | जैसलमेर | प्रतापगढ़ |
घोड़े | 0.34 | तीसरा | उत्तर प्रदेश | बीकानेर | डूंगरपुर |
गधे | 0.23 | पहला | राजस्थान | बाड़मेर | टोंक |
सूअर | ... | ... | असम | भरतपुर | डूंगरपुर |
राजस्थान में सर्वाधिक पशु मेले आयोजित होने वाले जिले - नागौर(3 मेले), झालावाड़(2 मेले)।
पशु मेला नाम | जिला |
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वीर तेजाजी पशु मेला | परबतसर(नागौर) |
बलदेव पशु मेला | मेड़ता शहर(नागौर) |
रामदेव पशु मेला | नागौर |
चन्द्रभागा पशु मेला | झालावाड़ |
गोमती सागर पशु मेला | झालावाड़ |
मल्लीनाथ पशु मेला | तिलवाड़ा(बाड़मेर) |
गोगामेड़ी पशु मेला | गोगामेड़ी(नोहर) |
कार्तिक पशु मेला | पुष्कर(अजमेर) |
जसवन्त पशु मेला | भरतपुर |
महाशिवरात्री पशु मेला | करौली |
राजस्थान में सबसे बड़ा पशुधन बकरियां है। 20 वीं पशु गणना के अनुसार इनकी कुल संख्या 20.84 मिलियन थी। बकरी पालन में राजस्थान का देश में प्रथम स्थान है। भारत की समस्त बकरियों (148. 88 मिलियन) का 13.99 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है। तथा राजस्थान की कुल पशु-सम्पदा में बकरियों की संख्या 36. 69 प्रतिशत है।केन्द्रीय बकरी अनुसंधान केन्द्र अविकानगर, टोंक में स्थित है।
अन्य बकरी की नस्ल - परबतसरी, सिरोही व मारवाड़ी।
भारत की समस्त गायों (192.49 मिलियन) का 6.98 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है। तथा राजस्थान की कुल पशु-सम्पदा में गौ-वंश की संख्या 24.47 प्रतिशत है।
1. गिर गाय
उद्गम - गिर प्रदेश(गुजरात)।
इसे राजस्थान में रैण्डा व अजमेरी, काठियावाड़ी, देसान भी कहते हैं।
इस नस्ल की गायें अजमेर, भीलवाड़ा, पाली व चित्तौड़गढ़ जिलों में पायी जाती है।
2. राठी
लालसिंधी एवं साहिवाल की मिश्रण नस्ल।
सर्वाधिक दुध देने वाली गाय की श्रेष्ठ नस्ल। इस कारण इसे राजस्थान की कामधेनु कहा जाता है।
यह राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भागों में बीकानेर, श्रीगंगानगर, जैसलमेर व चूरू के कुछ भागों में पाली जाती है।
3. थारपारकर
उद्गम - बाड़मेर का मालाणी प्रदेश।
दुसरी सर्वाधिक दुध देने वाली गाय।
स्थानीय भागों में “मालाणी नस्ल” के नाम से जाना जाता है।
उत्तरी - पश्चिमी सीमावर्ती जिले - जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर व जालौर में इस नस्ल की गाय अधिक संख्या में पायी जाती है।।
4. नागौरी
उद्गम - नागौरी का सुहालक प्रदेश।
इसका बैल चुस्त व मजबुत कद काठी का होता है।
इस नस्ल की गाये नागौर, जोधपुर के उत्तरी-पूर्वी भाग व नोखा (बीकानेर) में प्रमुखता से पायी जाती है।
5. कांकरेज
उद्गम - कच्छ का रन।
इस नस्ल के बैल अच्छे भार वाहक होते हैं। इसी कारण इस नस्ल के गौ-वंश को “द्वि-परियोजनीय नस्ल” कहते है।
इस नस्ल की गाये राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों बाड़मेर, सिरोही, जालौर तथा जोधपुर के कुछ क्षेत्रों में पाली जाती है।
6. सांचौरी - इस नस्ल की गाये जालौर जिले के सांचौर, सिरोही एवं उदयपुर जिलों में पाई जाती है।
7. मेवाती/कोठी - अलवर, भरतपुर,कोठी(धौलपुर)।
8. मालवी - मध्यप्रदेश की सीमा वाले जिले (झालावाड़, बाँरा, कोटा व चित्तौड़गढ़)।
9. हरियाणवी - हरियाणा के सीमा वाले जिले (सीकर, झुन्झुनूं, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ, अलवर व भरतपुर)।
भैंस पालन में राजस्थान देश में दूसरे स्थान पर आता हैं। भारत की समस्त भैंसों (109.85 मिलियन) का लगभग 12.47 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है। तथा राजस्थान की कुल पशु-सम्पदा में भैंस की संख्या लगभग 24.11 प्रतिशत है।
1. मुर्रा(कुन्नी)
अन्य नाम – खुंडी, काली
सर्वाधिक दुध देने वाली भैंस की नस्ल।
जयपुर, अलवर।
2. बदावरी
इसके दुध में सर्वाधिक वसा होती है।
भरतपुर, सवाई माधोपुर, अलवर।
3. जाफाराबादी
भैंस की श्रेष्ठ नस्ल।
कोटा, बांरा, झालावाड़।
4.सूरती
अन्य नाम – डेक्कानि, गुजराती, तलब्दा, चरतोर व नदि आदि
राजस्थान में यह नस्ल उदयपुर के आसपास व दक्षिण भाग में पाई जाती हैं।
अन्य नस्ल - नागपुरी, मेहसाना।
भेड़ पालन में राजस्थान का देश में चौथा स्थान है। भारत की समस्त भेड़ों (74.26 मिलियन) का लगभग 10.63 प्रतिशत भाग यानि 79.04 लाख भेड़ें राजस्थान में पाया जाता है। तथा राजस्थान की कुल पशु-सम्पदा में भेड़ की संख्या लगभग 13.90 प्रतिशत है।
1. चोकला(शेखावटी)
इसका ऊन श्रेष्ठ किस्म का होता है इसे भारत की मेरिनों कहते है।
क्षेत्र -चुरू, सीकर, झुन्झुनू।
2. जैसलमेरी
सर्वाधिक ऊन देने वाली भेड़ की नस्ल।
क्षेत्र - जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर।
3. नाली
इसका ऊन लम्बे रेशे का होता है, जिसका उपयोग कालीन बनाने में किया जाता है।
क्षेत्र - गंगानगर, बीकानेर, चुरू, झुन्झुनू।
4. मगरा
सर्वाधिक मांस देने वाली नस्ल।
क्षेत्र - जैसलमेर, बीकानेर, चुरू, नागौर।
5. मारवाड़ी
राजस्थान की कुल भेड़ों में सर्वाधिक भेड़ें मारवाड़ी नस्ल (लगभग 45 प्रतिशत) की है।
इसमें सर्वाधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है।
क्षेत्र - जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर।
6. सोनाड़ी/चनोथर
लम्बे कान वाली नस्ल।
क्षेत्र - उदयपुर, डुंगरपुर, बांसवाड़ा।
7. पूगल
इनका उत्पत्ति स्थान बीकानेर की तहसील “पूगल” होने के कारण इस का नाम पूगल हो गया।
इस नस्ल को मटन और कालीन ऊन प्राप्ति के लिए पाला जाता है।
8. मालपुरी/अविका नगरी
इसे “देशी नस्ल” भी कहा जाता है।
टोंक, बुंदी, जयपुर।
9. खेरी नस्ल
यह सफेद ऊन के लिए काफी प्रसिद्ध है।
इस नस्ल की भेड़ें जोधपुर, पाली एवं नागौर के घुमक्कड़ रेवड़ों में पाई जाती है।
एशिया की सबसे बड़ी ऊन मंडी बीकानेर में है जहां 250-300 ऊन धागे की फैक्ट्रियां है।
राजस्थान ऊन उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है।
राजस्थान में सर्वाधिक ऊन उत्पादन जोधपुर, बीकानेर, नागौर में व न्यूनतम ऊन उत्पादन झालावाड़ में होता है।
केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड जोधपुर में स्थित है।
केन्द्रीय ऊन विश्लेषण प्रयोगशाला बीकानेर में स्थित है।
राजस्थान की भेड़ों से अन्य राज्यों के मुकाबले तीन गुना अधिक ऊन का उत्पादन होता है।
यहां भेड़ों की चोकला, मगरा और नाली नस्लों की ऊन विश्व के बेजोड़ गलीचे और नमदा बनाने के लिए श्रेष्ठ है।
मालपुरा, जैसलमेरी और मारवाडी नस्लों की ऊन दरियां बनाने में उत्तम हैं।
मालपुरा, जैसलमेरी, मारवाड़ी, नाली नस्लें मांस के लिए उपयुक्त है।
भेड़ों की मिंगणी की खाद उत्तम मानी जाती है।
अन्य पशुधन में ऊंटों की संख्या सर्वाधिक है। ‘रेगिस्तान का जहाज’ के नाम से प्रसिद्ध इस पशु ने अपनी अनूठी जैव-भौतिकीय विशेषताओं के कारण यह शुष्क एवं उर्द्ध शुष्क क्षेत्रों की विषमताओं में जीवनयापन की अनुकूलनता का प्रतीक बन गया है। भारत के समस्त ऊंटों (2.5 लाख) का 85.2 प्रतिशत भाग राजस्थान में पाया जाता है। तथा राजस्थान की कुल पशु-सम्पदा में ऊँटों की संख्या 0.36 प्रतिशत है।
1. नांचना
यह ऊँट सबसे सुन्दर ऊँट माना जाता है।
सवारी व तेज दौड़ने की दृष्टि से महत्वपूर्ण ऊंट।
BSF जवानो के पास यही ऊँट मिलता है।
राजस्थान में नाचना ऊँट सर्वाधिक जैसलमेर में पाया जाता है।
2. गोमठ
भारवाहक के रूप में प्रसिद्ध ऊंट।
गोमठ ऊंट सर्वाधिक जोधपुर की फलोदी तहसिल में पाया जाता है।
3. बीकानेर
श्रेष्ठ भारवहन क्षमता के लिए जाना जाता है ।
यह नस्ल राजस्थान के श्री गंगानगर, चुरू, झूंझनू, सीकर एवं नागौर तथा सीमा से लगे हरियाणा एवं पंजाब राज्यों में भी पायी जाती है।
4. जैसलमेरी
जैसलमेरी ऊँट स्वभाव से फुर्तीले एवं पूर्ण ऊँचाई व पतली टांगों वाले होते हैं।
जैसलमेरी ऊंट मतवाली चाल के लिए प्रसिद्ध।
प्रमुख क्षेत्र – यह नस्ल रेतीले धोरे वाले क्षेत्रों जैसलमेर, बाड़मेर एवं जोधपुर जिले में पाए जाते है।
5. मेवाड़ी ऊँट
ऊँट की यह नस्ल अपनी दुग्ध उत्पादन क्षमता के लिए प्रसिद्ध है।
इस नस्ल का प्रमुख निवास क्षेत्र राजस्थान के उदयपुर, चित्तौडगढ़, राजसमन्द जिले हैं। किन्तु यह भीलवाड़ा, बांसवाड़ा, डूंगरपूर जिलों तथा राजस्थान के हाड़ौती में भी देखे जा सकते हैं ।
अन्य नस्ल - अलवरी, बाड़मेरी, कच्छी ऊंट, सिन्धी ऊंट।
राजस्थान सरकार ने 30 जून 2014 को ऊँट को राजस्थान के राज्य पशु का दर्जा दिया था। जिसकी घोषणा 19 सितम्बर 2014 को बीकानेर में की गई।
राजस्थान में सर्वाधिक ऊँटों वाला जिला बाड़मेर तथा सबसे कम ऊँटों वाला जिला प्रतापगढ़ है।
रेबारी ऊंट पालक जाती है।
पाबू जी राठौड को ऊंटों का देवता भी कहा जाता है।
ऊँट की खाल पर की जाने वाली कलाकारी को उस्ता कला तथा ऊंट की खाल से बनाये जाने वाले ठण्डे पानी के जलपात्रों को काॅपी कहा जाता है।
ऊंटनी के दूध में भरपुर मात्रा में Vitamin-C पाया जाता है। बीकानेर में स्थित उरमूल डेयरी भारत की एकमात्र ऊँटनी के दूध की डेयरी है।
गोरबंद राजस्थान का ऊँट श्रृंगार का गीत है।
ऊँट के नाक में डाले जाने वाला लकड़ी का बना आभूषण गिरबाण कहलाता है।
गंगासिंह ने पहले विश्वयुद्ध में ‘गंगा रिसाला’ नाम से ऊंटों की एक सेना बनाई थी जिसके पराक्रम को (पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में) देखते हुए बाद में इसे बीएसएफ में शामिल कर लिया गया। आजकल उष्ट्र कोर भारतीय अर्द्ध सैनिक बल के अन्तर्गत सीमा सुरक्षा बल का एक महत्वपूर्ण भाग है।
ऊंटों में सर्रा नामक रोग पाया जाता है।
केन्द्रीय ऊंट प्रजनन केन्द्र जोडबीड (बीकानेर) में है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा इस केन्द्र की स्थापना (5 जुलाई 1984) की गई है।
विश्व में सर्वाधिक ऊंट आस्ट्रेलिया में है।
सर्वाधिक कुक्कुट अजमेर में व देशी कुक्कुट बांसवाडा जिले में है।
अजमेर में मुर्गी पालन प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई है। अण्डों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रजत व सुनहरी क्रांतियां आरम्भ की गई है।
“हाॅप एण्ड मिलियम जोब प्रोग्राम” अण्डो के विपणन हेतु आरम्भ की गई है।
रानी खेत व बर्डफ्लू मुर्गे व मुर्गियों में पाये जाने वाली प्रमुख बिमारियां है।
राजकीय कुक्कुटशाला - जयपुर।
डुंगरपुर व बांसवाड़ा में दो बतख व चूजा पालन केन्द्र स्थापित किये हैं, जो आदिवासीयों को बतख व कुक्कुट चूजे उपलब्ध करवाता है।
मालाणी - बाड़मेरी, जोधपुर।
मारवाड़ी - जोधपुर, बाड़मेर, पाली, जालौर।
“अश्व विकास कार्यक्रम” पशुपालन विभाग द्वारा संचालित -मालाणी घोडे नस्ल सुधार हेतु।
केन्द्रीय अश्व उत्पादन परिसर- बीकानेर के जोडबीड स्थित इस संस्था में चेतक घोडे के वंशज तैयार किये जाएंगे।
राजस्थान में विकास कार्यक्रम गुजरात के ‘अमुल डेयरी‘ के सहकारिता के सिद्धान्त पर संचालित किया जा रहा है।
इनका ढांचा त्रिस्तरीय है।(डेयरी संयंत्रों का)
राजस्थान में संख्या - 12600
राजस्थान में संख्या - 21
स्थापना - 1977
मुख्यालय - जयपुर
राजस्थान में प्रथम डेयरी - पदमा डेयरी(अजमेर)।
राजस्थान में औसत दुग्ध संग्रहण - 18 लाख लीटर प्रतिदिन।
राजस्थान में अवशीतन् केन्द्र(कोल्ड स्टोरेज) - 30।
राजस्थान में सहकारी पशु आहार केन्द्र - 4
जोधपुर, झोटवाड़ा(जयपुर), नदबई(भरतपुर), तबीजी(अजमेर)।
जालौर के रानीवाड़ा में सबसे बडी डेयरी है।
गंगमूल डेयरी -हनुमानगढ़
उरमूल डेयरी -बीकानेर
वरमूल डेयरी -जोधपुर
टेट्रापैक दूध - 90 दिनो तक सुरक्षित रह सकने वाला दूध जिसे विशेष तौर पर सेना हेतु तैयार किया गया है।
1957 में जयपुर में पशुपालन विभाग की स्थापना की गई।
1975 में राजस्थान में डेयरी विकास कार्यक्रम आरम्भ किया गया राजस्थान की सर्वाधिक प्राचीन डेयरी अजमेर की पद्मा डेयरी है।
राज्य सरकार का 'पशु पालन व डेयरी विकास विभाग' का नाम 'पशु पालन विभाग' कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री पशुधन निःशुल्क दवा योजना - 15 अगस्त 2012, पशु स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवश्यक दवा का निःशुल्क वितरण योजना प्रारम्भ की।
राज्य की पहली एडवांस मिल्क टेस्टिंग व रिसर्च लैब मानसरोवर जयपुर में 7 अक्टुबर 2014 को उद्घाटन किया जिसमें दुध में होने वाली रसायनिक मिलावट व हानिकारक तत्वों की जांच की जायेगी।
मुख्यमंत्री मोबाइल वेटरनरी यूनिट(पशुधन आरोग्य चल इकाई) - 15 सितम्बर 2013
शुक्र विकास कार्यक्रम - अलवर व भरतपुर जिलों में।
राजस्थान पशु चिकित्सा व पशु विज्ञान विश्वविद्यालय - 13 मई 2010 को बिकानेर में स्थापना की गई। यह राज्य का एकमात्र वेटनरी विश्वविद्यालय है।
अपोलो काॅलेज आॅफ वेटरनरी मेडीसन जयपुर, देश का पहला वेटनरी काॅलेज जो पीपीपी माॅडल पर आधारित है।
मत्स्य प्रशिक्षण विद्यालय - उदयपुर।
मत्स्य सर्वेक्षण एवं अनुसंधान कार्यालय उदयपुर।
राष्ट्रीय मत्स्य बीज उत्पादन फार्म - कासिमपुर कोटा व भीमपुरा बांसवाड़ा।
पहला मत्स्य अभ्यारण्य - बड़ी तालाब उदयपुर।
राजस्थान में सर्वाधिक गधे बाडमेंर में है और राज्य का एक मात्र गधों का मेला लुणियाबास (जयपुर) में भरता है।
राजस्थान में सर्वाधिक खच्चर हनुमानगढ़ में तथा सर्वाधिक घोडे़ चित्तौडगढ़ जिले में है।
राजस्थान में सर्वाधिक प्रसिद्ध घोडे की नस्ल मलाणी है जो बाडमेंर जिले के गुढायलाणी क्षेत्र में पाई जाती है।
श्रीमल्लीनाथ जी पशु मेला तिलवाडा(बाडमेर) में भरता है। जो घोडों की बिक्री के लिए प्रसिद्ध है।
राजस्थान में सर्वाधिक पशुमेले नागौर मे भरते है और राज्य का सबसे बड़ा पशुमेला वीरतेजा जी पशु मेला परबतसर नागौर मे भरता है।
देश का सबसे बडा पशु मेला सोनपुर (बिहार) में भरता है।
राजस्थान में सर्वाधिक सुअर अलवर जिले में है। वहीं सुअर पालन प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना भी की गई है।
ऊंटनी के दूध की एकमात्र डेयरी बीकानेर में है।
2012 में 2007 की तुलना में राज्य की पश्ुासम्पदा में 143 लाख की कमी हुई है।
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