राजस्थान में यदुवंश की 2 रियासते थी।
जैसलमेर का भाटी और करौली का जादौन वंश।
भाटी भगवान श्री कृष्ण के वंशज होते है इसलिए इन्हें छत्राला यादव पति कहा जाता है।
भाटियों को ‘उत्तर भड़ किवाड़’ कहा जाता था।
285 ई. में भटनेर को अपनी राजधानी बनाता है।
मंगलराव भाटी को गजनी के डुण्डी ने पराजित कर भटनेर से निकाल दिया, तत्पश्चात् इसने तनोट को राजधानी बनाया।
इसने लोद्रवा को राजधानी बनाया।
परमारों को हराकर लोद्रवा जीत लिया था।
गूमल-महेन्द्र की प्रेम कहानी में मूमल लोद्रवा की राजकुमारी तथा महेन्द्र अमरकोट का राजकुमार था।
रावल जैसल ने 1155 ई. में जैसलमेर बसाकर जैसलमेर को राजधानी बनाया।
रावल जैसल ने ही जैसलमेर के स्वर्ण गिरि (सोनगढ़) किले का निर्माण प्रारम्भ करवाया था जिसे उसके पुत्र शालिवाहन द्वितीय ने पूर्ण करवाया।
जैसलमेर के किले में चूने का प्रयोग नहीं किया गया बल्कि यह पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया है।
मूलराज प्रथम के समय अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316 ई.) ने जैसलमेर पर आक्रमण किया। इसी समय जैसलमेर का प्रथम साका हुआ।
रावल दूदा/दुर्जनसाल के समय 1352 में फिरोजशाह तुगलक (1351-1388 ई.) ने आक्रमण किया, परिणामतः जैसलमेर का दूसरा साका हुआ।
जैसलमेर के रावल लूणकरण ने अपनी पुत्री ऊमादे (रूठी रानी) का विवाह राव मालदेव से किया था।
1550 में कंधार के अमीर अली ने आक्रमण किया। इस समय यहाँ पर केसरिया तो किया गया, लेकिन जौहर नहीं हुआ इसलिए इसे आधा साका कहा जाता है।
रावल हरराय ने 1570 ई. में नागौर दरबार में अकबर की अधीनता स्वीकार कर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये।
रावल अमरसिंह ने सिन्धु नदी का पानी जैसलमेर लाने के लिए ‘अमरप्रकाश’ नामक नाले का निर्माण करवाया था।
अखैसिंह ने अखैशाही मुद्रा तथा जैसलमेर रियासत में तोलने हेतु नवीन बाँटों का प्रचलन किया था। जैसलमेर रियासत में कर प्रणाली को निश्चित व नियमित करने का श्रेय अखैसिंह को दिया जाता है।
12 दिसम्बर, 1818 ई. को अंग्रेजों से अधीनस्थ सन्धि की।
महारावल गजसिंह ने अफगान युद्ध (1878 ई.) में अंग्रेजों को सहायता दी थी।
आधुनिक जैसलमेर का निर्माता।
जैसलमेर में विण्डम पुस्तकालय का निर्माण करवाया।
इनके समय ही प्रसिद्ध क्रान्तिकारी सागरमल गोपा को 4 अप्रैल, 1946 को तेल डालकर जीवित जला दिया गया था।
सागरमल गोपा की मृत्यु के कारणों की जाँच करने के लिए ‘गोपाल स्वरूप पाठक आयोग’ गठित किया गया जिसने इस घटना को आत्महत्या बताया।
सागरमल गोपा द्वारा लिखी गई पुस्तकें
उनकी जनसेवा तथा स्वतंत्रता संबंधी गतिविधियों को देखते हुए उनके जैसलमेर और हैदराबाद में प्रवेश पर शासन ने प्रतिबंध लगा दिया था।
एकीकरण के समय जवाहरसिंह ने जोधपुर महाराजा हनुवंतसिंह के साथ मिलकर पाकिस्तान में शामिल होने का प्रयास किया था।
करौली में यदुवंश की जादौन शाखा का शासन था।
करौली के यादव राजवंश की स्थापना 1040 ई. में विजयपाल ने की। वह मथुरा के यादव वंश से सम्बन्धित था।
विजयपाल ने बयाना को राजधानी बनाया। बयाना के विजयमन्दिरगढ़ किले का निर्माण विजयपाल ने करवाया था।
अर्जुनपाल ने 1348 ई. में कल्याणपुर (वर्तमान करौली) नगर की स्थापना की।
इसने 1650 ई. में करौली को राजधानी बनाया।
करौली में मदनमोहन का मीन्दिर बनवाया जो गौड़ीय सम्प्रदाय का मन्दिर है।
9 नवम्बर, 1817 ई. को अंग्रेजों से सन्धि की। करौली राजस्थान की प्रथम रियासत थी जिसने अंग्रेजों से अधीनस्थ सन्धि की।
1857 की क्रांति में कोटा के राजा रामसिंह-II की मदद की।
अंग्रेजो ने इसे 17 तोपों की सलामी दी थी।
स्वामी दयानन्द सरस्वती 1865 में राजस्थान में पहली बार मदनपाल के समय करौली आये थे।
राजस्थान में जाट राजवंश की 2 रियासते थी- भरतपुर, धौलपुर
1669 में गोकुल ने मथुरा के आस-पास के जाट किसानों के साथ औरंगजेब के खिलाक विद्रोह कर दिया। औरंगजेब ने इस विद्रोह को दबा दिया।
1670 ई. में गोकुल की हत्या के बाद 1685 ई. में सिनसिनी के जमींदार राजाराम जाट ने विद्रोह का नेतृत्व किया। राजाराम ने 1687 ई. में सिकन्दरा (आगरा के समीप) में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा तथा अस्थियों को जला दिया।
1688 ई. में राजाराम की हत्या के बाद उसके भतीजे चूड़ामन ने जाट विद्रोह की कमान संभाली, उसने स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना कर थूण को राजधानी बनाया तथा थूण के किले का निर्माण करवाया।
चूड़ामन की मृत्यु के बाद उसके पुत्र मोहकमसिंह के विरुद्ध चूड़ामन के भाई भावसिंह का पुत्र बदनसिंह सवाई जयसिंह से मिल गया।
सवाई जयसिंह की सहायता से 1722 ई. में बदनसिंह जाट शासक बन गया। सवाई जयसिंह ने उसे ‘ब्रजराज’ की उपाधि और डीग की जागीर प्रदान की। बदनसिंह स्वयं को सवाई जयसिंह का सामन्त मानता था।
बादशाह मोहम्मदशाह ने बदनसिंह को ‘राजा’ की उपाधि प्रदान की थी।
बदनसिंह को भरतपुर के जाट राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
बदनसिंह ने डीग के किले का निर्माण करवाया तथा डीग को राजधानी बनाया। डीग के जलमहलों का निर्माण बदनसिंह के समय प्रारम्भ हुआ था।
बदनसिंह के पुत्र सूरजमल को ‘जाटों का अफलातून’ और ‘प्लेटो’ कहा जाता है।
सूरजमल ने भरतपुर के प्रसिद्ध लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण 1733 से 1741 ई. के मध्य करवाया था।
सूरजमल ने डीग के जलमहलों का निर्माण पूरा करवाया और भरतपुर को राजधानी बनाया।
दिल्ली पर आक्रमण किया तथा वहाँ से नूरजहाँ का झूला लेकर आये तथा इसे डीग के मेहलों में लगवाया।
पनीपत के तीसरे युद्ध से भागते मराठा सैनिकों को भरतपुर में शरण दी थी।
प्रशासन का आधार योग्यता को बना भरतपुर में प्रशासनिक सुधार किये।
भरतपुर में आर्थिक सुधार करवाये।
इस समय भरतपुर राज्य की आय 17.5 लाख रूपये वार्षिक थी।
दिल्ली पर आक्रमण क्रिया तथा वहाँ से अष्ट धातु के दरवाजे लेकर आये और उन्हें भरतपुर के किले में लगवाये। ये दरवाजे मूलरूप से चित्तौड़ किले के थे।
जीत की याद में भरतपुर किले में जवाहर बुर्ज का निर्माण करवाया।
जवाहर बुर्ज में भरतपुर के राजाओं का राजतिलक किया जाता था।
सितम्बर, 1803 ई. में रणजीतसिंह ने अंग्रेजों से मैत्री सन्धि की। यह राजपूताने में अंग्रेजों की प्रथम मैत्री सन्धि थी। (दूसरी सन्धि दिसम्बर, 1803 ई. में अलवर राज्य के साथ)।
दूसरे अंग्रेज-मराठा युद्ध (1803-06) के दौरान मराठा सेनापति जसवन्त राव होल्कर को शरण दी।
जसवन्तराव होल्कर को शरण देने के कारण अंग्रेज सेनापति लॉर्ड लेक ने भरतपुर पर 5 आक्रमण किये थे लेकिन भरतपुर को जीत नहीं पाया इसलिए भरतपुर के किले को लोहागढ़ कहा जाता है।
इस जीत की याद में भरतपुर किले में फतेह बुर्ज का निर्माण करवाया।
1818 ई. में रणधीरसिंह ने अंग्रेजों से सन्धि कर अधीनता स्वीकार कर ली।
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