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वन्य जीव अभ्यारण्य

वन्य जीवों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य

23 अप्रैल 1951 को राजस्थान वन्य-पक्षी संरक्षण अधिनियम 1951 लागु किया गया।

भारत सरकार द्वारा 9 सितम्बर 1972 को वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम 1972 लागु किया गया। इसे राजस्थान में 1 सितम्बर, 1973 को लागु किया गया।

रेड डाटा बुक में संकटग्रत व विलुप्त जन्तुओं व वनस्पतियों के नाम प्रविष्ट किये जाते हैं।

भारत में बाघ संरक्षण योजना के निर्माता कैलाश सांखला थे। अन्हें Tiger man of india भी कहते हैं। इन्होंने Tiger and return of tiger पुस्तकें भी लिखी।

राष्ट्रीय उद्यान - 3

रणथम्भौर

यह सवाईमाधोपुर जिले में स्थित है और लगभग 392 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका पुराना नाम रण स्तम्भपुर हैं। ये सवांईमाधोपुर के शासकों का आखेट क्षेत्र था। जिसे सन् 1955 में अभयारण्य घोषित कर दिया गया। वन्य जीव सरंक्षण अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत सन् 1973 में इसे टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल किया गया हैं। राजस्थान का पहला टाईगर प्रोजेक्ट था। 1 नवम्बर 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। यह भारत का सबसे छोटा टाइगर जिरर्व प्रोजक्ट है। इसे Land of tiger भी कहते हैं। बाद्यों के अलावा घड़ीयाल, चीतल, नीलगाय, सांभर, रीछ, जरख अन्य जीव इसमें मिलते हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान अरावली और विन्ध्याचल पर्वतमालाओं के बीच में स्थित है। इस राष्ट्रीय उद्यान में रणथम्भौर दुर्ग, जोगीमहल, गिलाई सागर, त्रिनेत्र गणेश, बकौला, राज बाग खंडहर, पदम तलाओ/तालाब, लकरदा और अनंतपुर, काचिदा घाटी मन्दिर दर्शनिय स्थल हैं ।

इस राष्ट्रीय उद्यान में विश्व बैंक के सहयोग से वन्य जीवों के संरक्षण हेतु 1998 से 2004 तक 6 वर्ष के लिए india eco. dev. project चलाया गया था।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

यह भरतपुर में है। इसे घाना पक्ष्ी बिहार भी कहते हैं इसे पक्षियों का स्वर्ग कहते हैं। यह एशिया की सबसे बड़ी पक्षी प्रजनन स्थली है।इसे सन् 1956 में अभयारण्य घोषित किया गया था। 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया 1985 में इसे युनेस्को ने विश्व प्राकृतिक धरोहर सूची में डाला। साथ ही इसे रामसर कन्वेशन के तहत रामसर कन्वेशन वैट लैण्ट में भी शामिल किया जा चुका है। पानी अजान बांध से प्राप्त होता है। यहां पक्षियों की अनेक प्रजातियां मिलती है। जिसमें से कुछ प्रवासी भी है। प्रवासियों पक्षियों में सबसे प्रमुख साइबेरियन क्रेन(सारस) है। जो यूरोप के साइबेरिया प्रान्त से शीतकाल में यहां आता है। और गीष्म काल में प्रजनन के बाद लौट जाता है। यहां सुर्खाव, अजगर, लाल गरदन वाले तोते आदि मिलते हैं। यहां के पाईथन प्वांइट पर अजगर देखे जा सकते है। झील में जलमानुष (उदबिलाव) भी निवास करते हैं। यह रा. उ. प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक सलीम अली की कर्मस्थली रहा है। रा. उ. गंभीरी और बाणगंगा के संगम पर है। साथ ही यह भारत के प्रमुख पर्यटक परिपथ सुनहरा त्रिकोण (दिल्ली-आगरा-जयपुर) पर अवस्थित है।

बोमा तकनीक

राजस्थान के भरतपुर ज़िले के ‘केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान’ में अफ्रीका की ‘बोमा तकनीक’ का प्रयोग किया गया। इसका प्रयोग चीतल या चित्तीदार हिरणों को पकड़ने और उन्हें मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिज़र्व में पहुँचाने के लिये किया गया था, ताकि शिकार के आधार में सुधार किया जा सके। चीतल की IUCN रेड लिस्ट स्थिति ‘कम चिंतनीय’ (Least Concern) है। बोमा कैप्चरिंग तकनीक अफ्रीका में काफी लोकप्रिय है। इसमें फनल जैसी बाड़ के माध्यम से जानवरों का पीछा करके उन्हें एक बाड़े में में पहुँचाया जाता है। यह फनल एक पशु चयन-सह-लोडिंग संरचना का रूप ले लेता है और इसे जानवरों के लिये अपारदर्शी बनाने के लिये घास की चटाई और हरे रंग के जाल से ढका जाता है, इसमें जानवरों को दूसरे स्थान पर उनके परिवहन के लिये एक बड़े वाहन में रखा जाता है। इस पुरानी तकनीक का उपयोग पहले जंगली हाथियों को पकड़ने हेतु प्रशिक्षण और सेवा के लिये किया जाता था। इस स्थानांतरण अभ्यास को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा अनुमोदित किया गया है। शाकाहारी जीवों के स्थानांतरण से बाघ अभयारण्यों के आसपास ग्रामीण मवेशियों, भेड़ों और बकरियों का शिकार कम होगा।

मुकुन्दरा हिल्स अभ्यारण्य

यह अभयारण्य कोटा, चितौड़गढ़ ,बूंदी व झालावाड़ में है। पहले इसका नाम दर्रा था। बाद में 2003 में दर्रा एवं चम्बल घड़ियाल (जवाहर सागर) अभयारण्य को मिलाकर राजीव गांधी नेशलन पार्क बनाने की घोषण की गई। 2006 में इसका नाम बदलकर दर्रा राष्ट्रीय अभयारण्य रखा गया, जिसे हाड़ौती के प्रकृति प्रेमी शासक मुकंदसिंह के नाम पर मुकंदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान रखने का निर्णय लिया गया। इसी अभ्यारण्य में मुकुन्दवाड़ा की पहाड़ीया स्थित है। मुकुंदरा हिल्स में आदिमानव के शैलाश्रय एवं उनके द्वारा चित्रांकित शैल चित्र मिलते हैं। 1955 में इसकी स्थापना हुई। 9 जनवरी 2012 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। मुकुन्दरा हिल्स को 9 अप्रेल 2013 को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। यह अभयारण्य घडीयाल,सारस, गागरोनी(हीरामन) तोते के लिए प्रसिद्ध है। यहां जीव जन्तुओं को देखने के लिए अवलोकन स्तम्भ बने हुए हैं। जिसे औदिया कहते है। राज्या में सर्वाधिक जीव इसी अभ्यारण्य में है।

नोट - गागरोन दुर्ग, अबली मीणी महल, रावठा महल, गुप्त कालीन मंदिर(भीम चौरी) के खण्डर इसी अभयारण्य में है।

नोट - डा. हरि मोहन सक्सेना की राजस्थान का भूगोल (राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी) के अनुसार राजस्थान में पांच राष्ट्रीय उद्यान - रणथम्भौर, केवलादेव, सरिस्का, राष्ट्रीय मरू उद्यान एवं मुकन्दरा हैं।

वन्य जीव अभ्यारण्य

1. सारिस्का वन्य जीव अभ्यारण्य

यह अभयारण्य अलवर जिले में स्थित है। 1900 में इसकी स्थापना की गई। 1955 में इसे वन्य जीव अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया। 1978-79 में यहां टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट शुरू किया गया। यह राजस्थान का दुसरा टाइगर रिजर्व प्रोजेक्ट है। यह अभयारण्य हरे कबूतरों के लिए प्रसिद्ध है।

इस अभ्यारण्य में क्रासका व कांकनबाड़ी पठार, भृतहरि, नीलकठ महादेव मन्दिर, पाण्डुपोल, तालवृक्ष, नेडा की छतरियां, नारायणी माता मन्दिर सरिस्का पैलेस होटल, RTDC का टाइगर डेन होटल स्थित है।

2. सरिस्का अ, अलवर - सबसे छोटा अभयारण्य

3. राष्ट्रीय मरू उद्यान

यह जैसलमेर और बाड़मेर में स्थित है। यह क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा अभ्यारण्य है। इसकी स्थापना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अर्न्तगत सन् 1980-81 में की गई। इस अभयारण्य में करोड़ों वर्ष पुराने काष्ठ काष्ठावशेष, डायनोसोर के अण्डे के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इन अवशेष को सुरक्षित रखने के लिए अभयारण्य के भीतर अकाल गांव में ‘फॉसिल्स पार्क’ स्थापित किया गया हैं । यह अभयारण्य आकल वुड फॉसिल्स पार्क के कारण प्रसिद्ध हैं। गोडावन, चिंगारा, काले हिरण, लोमड़ी, एण्डरसन्स टाॅड, गोह, मरू बिल्ली पीवणा, कोबरा, रसलवाईपर आदि इसमें मिलते हैं। जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया (GSI) के वैज्ञानिकों ने जैसलमेर के जेठवाई गांव की पहाड़ियों में दुनिया के सबसे पुराने शाकाहारी डायनासोर के जीवाश्म खोजे। इन जीवाश्मों को थारोसोरस इंडिकस यानि भारत के थार का डायनासोर नाम दिया गया है।

4.सीतामाता अभ्यारण्य

यह चितौड़गढ़, प्रतापगढ़ और उदयपुर में स्थित है। 1971 में इसकी स्थापना हुई। यह अभयारण्य उड़न गिलहरी लिए प्रसिद्ध है। इस अभयारण्य में स्थित लव-कुश जलस्त्रोंतों से अनंत काल से ठण्डी व गर्म जल धाराएं प्रवाहीत हो रही हैं। जाखम बांध इसी अभ्यारण्य में स्थित है।

5. कुम्भलगढ़- अभयारण्य

यह उदयपुर, पाली, राजसमंद जिले में है। 1971 में इसकी स्थापना की गई। यह अभयारण्य भेडीये के लिए देश भर में प्रसिद्ध है। यहां भेडि़या, रीछ, मुर्गे, चैसिंगा(घटेल) मिलते हैं। इस अभ्यारण्य में चंदन के वृक्ष भी मिलते हैं। रणकपुर के जैन मन्दिर इसी अभयारण्य है।

6. चंबल घड़ीयाल-अभयारण्य

यह अभयारण्य चंबल नदी में बनाया गया है जो राणाप्रताप सागर से यमुना नदी तक विस्तृत(कोटा, बूंदी, स. माधोपुर, धौलपुर, करौली) है। यह एकमात्र अन्र्तराज्जीय(राज., म. प्रदेश, उ. प्रदेश) अभयारण्य है। चंबल देश की एकमात्र नदी सेन्चुरी है। इसे घड़ीयालों का संसार भी कहते हैं । चम्बल नदी में डाल्फिन मछली भी पाई जाती हैं। जिसे ‘गांगेय सूस’ कहते हें। भारत में मगरमच्छों की तीन प्रजातियाँ हैं अर्थात्:

  • घड़ियाल (गेवियलिस गैंगेटिकस): IUCN रेड लिस्ट- गंभीर रूप से संकटग्रस्त
  • मगर (Crocodylus Palustris): IUCN- सुभेद्य।
  • खारे पानी का मगरमच्छ (Crocodylus Porosus): IUCN- कम चिंतनीय।

7.तालछापर अभ्यारण्य - चुरू

इस अभ्यारण्य में काले हिरणों को संरक्षण दिया है। तालछापर अभ्यारण्य को प्रवासी पक्षी “कुंरजा” की शरण स्थली कहा जाता है।

8. भैंसरोडगढ़, चितौडगढ

घड़ीयालों के लिए प्रसिद्ध

9. बस्सी, चितौड़गढ़

10. माऊण्ट आबू अभयारण्य - सिरोही

जंगली मुर्गे के लिए प्रसिद्ध, गुरूशिखर इसी अभयारण्य में है।

11. सवाई मानसिंह, सवाई माधोपुर

12. कैला दैवी

यह करौल में स्थित हैं। यहां देववन (ओरण) भी हैं।

13. फुलवारी की नाल, उदयपुर

सोम का उद्गम, टीक के वृक्ष का प्रथम Human Anatomy park.

14. टाडगगढ़ रावली

यह अजमेर,पाली व राजसमन्द में फैला हुआ हैं। यहां एक किला भी हैं, जिसे टाड़गढ़ का किला कहते हैं, जो अजमेर में हैं। इस किले का निर्माण कर्नल जेम्स टॉड ने करवाया था। यहां स्वंतत्रता आंदोलन के समय राजनैतिक कैदियों को कैद रखा जाता था। विजयसिंह पथिक उर्फ भूपसिंह को इसमें कैद रखा गया था।

15. रामगढ़ विषधारी, बूंदी

रामगढ़ विषधारी अभयारण्य को भारत के 52वें बाघ अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया। रणथम्भौर, सरिस्का और मुकुंदरा के बाद राजस्थान में यह चौथा बाघ अभयारण्य है। रामगढ़ विषधारी बाघ अभयारण्य में भारतीय भेड़िया, तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, भालू, सुनहरा सियार, चिंकारा, नीलगाय और लोमड़ी जैसे जंगली जानवर देखे जा सकते हैं। मेज नदी निकलती है,यह बूंदी के शासकों का आखेट क्षेत्र था।

16. जमवा रामगढ़, जयपुर

17. बंधबरैठा अभयारण्य

यह भरतपुर में स्थित हैं। यह केवलादेव अभयारण्य का हिस्सा हैं। इसमें बया पक्षी सर्वांधिक पाया जाता हैं। बारैठा झील, परिन्दों का घर

18. जवाहर सागर

यह अभयारण्य कोटा,चितौड़गढ़,बूंदी में है। घड़ीयालों का प्रजनन केन्द्र, मगरमच्छ, गैपरनाथ मन्दिर, गडरिया महादेव, कोटा बांध इसी में है।

19. शेरगढ़ अभयारण्य

यह बांरा में स्थित हैं। परवन नदी गजरती है, शेरगढ़ दुर्ग, सांपों की संरक्षण स्थली, चिरौजी के वृक्ष मिलते है। यहां पर सर्प उद्यान भी हैं।

20. जयसमंद, उदयपुर

बघेरों के लिए प्रसिद्ध, इसे जलचरों की बस्ती कहते हैं। रूठी रानी का महल इसी में है।

21. नाहरगढ़, जयपुर

22. रामसागर, धौलपुर

23. केसरबाग, धौलपुर

24. वनविहार, धौलपुर - सांभर, सारस

25. दर्रा वन्य जीव अभ्यारण्य -कोटा, झालावाड़

26. सज्जनगढ़, उदयपुर

राजस्थान में टाइगर रिजर्व

राजस्थान में पाँच टाइगर रिजर्व हैं:

  1. सवाई माधोपुर में रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान
  2. अलवर में सरिस्का टाइगर रिजर्व
  3. कोटा में मुकुंदरा हिल टाइगर रिजर्व
  4. बूंदी में रामगढ़ विषधारी(चौथा)
  5. धौलपुर-करौली में धौलपुर-करौली टाइगर रिज़र्व (पाँचवाँ)

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) ने राजस्थान में धौलपुर-करौली टाइगर रिज़र्व की स्थापना को मंज़ूरी दे दी है। यह मुकुंदरा हिल्स, रामगढ़ विषधारी, रणथंभौर और सरिस्का के बाद राजस्थान में पाँचवाँ और भारत का 54वाँ बाघ अभयारण्य/टाइगर रिज़र्व है।

जैविक उद्यान

प्रदेश के पहले बायोलाॅजिकल पार्क सज्जनगढ जैविक उद्यान, उदयपुर को दिनांक 12.04.2015 को पर्यटकों के लिए खोला गया था।

नाहरगढ जैविक उद्यान, जयपुर को दिनांक 04.06.2016 को पर्यटको के लिए खोला गया था ।

माचिया जैविक उद्यान, जोधपुर को पर्यटकों के लिए 20.01.2016 को खोला गया था।

अभेड़ा जैविक उद्यान, कोटा का माननीय मुख्यमंत्री महोदय, राजस्थान सरकार द्वारा दिनांक 18. 12.2021 को लोकार्पण किया गया तथा कोटा जन्तुआलय के वन्यजीवों को इसमें स्थानान्तरित कर दिनांक 01.01.2022 से अभेड़ा बायोलोजिकल पार्क को आमजन के लिए खोला गया।

बीकानेर में मरूधरा जैविक उद्यानअजमेर में पुष्कर में जैविक उद्यान बनाये जा रहे है ।

बर्ड पार्क

उदयपुर स्थित राज्य के पहले बर्ड पार्क को दिनांक 12.05.2022 से आमजन के लिये खोला गया।

मृगवन - 7

राजस्थान राज्य में निम्नलिखित मृग वन हैं -

अशोक विहार मृगवन - जयपुर शहर के अशोक विहार के बीच 12 हैक्टेयर के एक भूखण्ड को अशोक विहार मृगवन के नाम से विकसित किया है।

माचिया सफारी पार्क - जोधपुर के कायलाना झील के पास यह 1985 में शुरू किया गया था। इसका क्षेत्रफल 600 हैक्टेयर के लगभग है। इसमें भेड़िया, लंगूर, सेही, मरु बिल्ली, नीलगाय, काला हिरण, चिंकारा नामक वन्य जीव तथा अनेक पक्षी देखे जा सकते हैं। यहां राज्य का तीसरा जैविक पार्क स्थापित किया गय है।

चित्तौड़गढ़ मृगवन - प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ दुर्ग के दक्षिणी किनारे पर इस मृग वन को 1969 में स्थापित (राज्य का प्रथम) किया गया था, जिसमें नीलगाय, चीतल, चिंकारा एवं काला हिरण आदि वन्य जीव रखे गए हैं।

पुष्कर मुगवन - पावन तीर्थस्थल पुष्कर के पास प्राचीन पंचकुण्ड के निकट पहाड़ी क्षेत्र में यह मृगवन विकसित किया गया है। विकास के बाद 1985 में इसमें कुछ हिरण छोड़े गए थे, जिनको आज भी सुविधापूर्वक देखा जा सकता है।

संजय उद्यान मृगवन - लगभग 10 हैक्टेयर क्षेत्रफल में शाहपुरा (जिला जयपुर) के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग पर यह उद्यान विकसित किया गया है। इसको ग्रामीण चेतना केन्द्र के रूप में विकसित किया गया है। इसमें चिंकारा, नीलगाय, चीतल आदि वन्य जीव रहते हैं।

सज्जनगढ़ मृगवन - यह उदयपुर के सज्जनगढ़ दुर्ग के पहाड़ी क्षेत्र में विस्तृत है।

अमृतादेवी मृगवन - यह खेजड़ली (जोधपुर जिला) में है। यह 1998 में शुरू किया गया था। यह राज्य का सबसे बड़ा मृगवन है।

जन्तुआलय - 4

जयपुर(1876) - सबसे पुराना, रामनिवास बाग में स्थित रामसिंह द्वारा स्थापित, मगरमच्छ और बाघ प्रजनन केन्द्र

उदयपुर(1878) - गुलाब बाग, बाघ, बघेरा, भालु

जोधपुर(1936) - उम्मेद बाग, पक्षियों के लिए प्रसिद्ध गोडावन का कृत्रिम प्रजनन केन्द्र

कोटा - 1954 में स्थापित

बीकानेर(1922) - सार्वजनिक उद्यान, वर्तमान में बंद

कन्जर्वेशन रिजर्व - 27

क्र.स.कंजर्वेशन रिजर्व जिला वर्ष
1. बीसलपुर टोंक 2008
2. जोहड़बीड-गढ़वाल बीकानेर 2008
3. सुंधामाता जालौर व सिरोही 2008
4. गुढ़ा विश्नोई जोधपुर 2011
5. शाकम्भरी सीकर व झुंझुनू 2012
6. गोगेलाव नागौर 2012
7. बीड़ झुंझूनू झुंझुनू 2012
8. रोटू नागौर 2012
9. उम्मेद गंज पक्षी विहार कोटा 2012
10. जवाई बांध लेपर्ड पाली 2013
11. बसियांल-खेतड़ी झुंझूनू 2017
12. बांसियाल-खेतड़ी बागोर - झुंझूनू 2018
13. जवाई बांध लैपर्ड - II पाली 2018
14. मनसा माता झुंझुनु 2019
15. शाहबाद के जंगल बारां 2021
16. रणखार जालौर 2022
17. शाहाबाद तलहटीबारां01 सितम्बर 2022
18. बीड घास फुलियाखुर्दभीलवाड़ा27 सितम्बर 2022
19. बाघदड़ा क्रोकोडाइलउदयपुर30 नवमबर 2022
20. वाडाखेड़ासिरोही27 दिसम्बर 2022
21. झालाना व आमागढ़ लेपर्ड रिजर्वजयपुर27 फ़रवरी 2023
22. रामगढ़ कुंजी सुनवासबारा03 मार्च 2023
23. अखर गांव अजमेर 2023
24. सोरसन बारां 2023
25. हमीरगढ़ भीलवाड़ा2023
26. खींचन गांव जोधपुर2023
27. बांझ आमली बारां 2023(सबसे नवीनतम)
कुल संरक्षण रिजर्व क्षेत्र___

शाहबाद संरक्षण रिजर्व(189.39 वर्ग किमी) का क्षेत्रफल सबसे अधिक है। वहीं रोटू संरक्षण रिजर्व (0.7286 वर्ग किमी) का क्षेत्रफल सबसे कम है।

आखेट निषेध क्षेत्र - 33

आखेट निषेध क्षेत्रजिला
बागदड़ाउदयपुर
बज्जुबीकानेर
रानीपुराटोंक
देशनोकबीकानेर
दीयात्राबीकानेर
जोड़ावीरबीकानेर
मुकामबीकानेर
डेचुंजोधपुर
डोलीजोधपुर (काले हिरण)
गुढ़ा-बिश्नोईजोधपुर
जम्भेश्वरजोधपुर
लोहावटजोधपुर
साथीनजोधपुर
फिटकाशनीजोधपुर
बरदोदअलवर
जौड़ीयाअलवर
धोरीमन्नाबाड़मेर
जरोंदानागौर
रोतूनागौर
गंगवानाअजमेर
सौंखलियाअजमेर (गोडावण)
तिलोराअजमेर
सोरसनबारां(गोडावण)
संवत्सर-कोटसर चुरू
सांचैरजालौर
रामदेवराजैसलमेर
कंवाल जीसा. माधोपुर
मेनालचितौड़गढ़
महलांजयपुर
कनक सागरबूंदी (जलमुर्गो)
जवाई बांधपाली
संथाल सागरजयपुर
उज्जलाजैसलमेर

वन्य जीव संरक्षण हेतु प्रयास

प्रोजेक्ट बस्टर्ड

Critically Endangered राज्य पक्षी गोडावण के संरक्षण हेतु भारत सरकार, भारतीय वन्यजीव संस्थान एवं राज्य सरकार में हुए त्रिपक्षीय करार के अनुसार सम में गोडवाण का कृत्रिम प्रजनन आरम्भ कर दिया गया है । गोडावण के कृत्रिम प्रजनन कार्यक्रम के अन्तर्गत गोडवण पक्षी के 21 चूजों का पालन पोषण हो रहा हैं। खरमोर पक्षी (Lesser Florican) के संरक्षण के प्रयास भी आरंभ किये जाकर 8 चूजों का पालन पोषण हो रहा हैं । हरित मुनिया का संरक्षण प्रजनन उदयपुर, पक्षी उद्यान में किया जाना आरम्भ हुआ है ।

प्रोजेक्ट लेपर्ड

राज्य में पेन्थर की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके कारण इनका प्रबंधन आवश्यक है । पैंथर संरक्षण के लिये "प्रोजेक्ट लैपर्ड " के तहत सर्वप्रथम झालाना जयपुर को चयनित किया जाकर इसमें लेपर्ड सफारी प्रारम्भ की गई। वर्तमान में झालाना आमागढ़, कुम्भलगढ़, रावली टाडगढ़, जयसमन्द, शेरगढ़ (बारां), माउण्ट आबू, खेतडी बांसियाल, जवाई बांध एवं बस्सी व सीतामाता अभयारण्य क्षेत्रों को प्रोजेक्ट लैपर्ड में सम्मिलित किया जाकर विशेष प्रबंधन किया जा रहा है। इनके विकास के लिये स्टेट कैम्पा / केन्द्रीय सहायता / राज्य योजना मद से उपलब्ध संसाधन के अनुरूप ग्रास लेण्ड विकसित करने, चारदीवारी निर्माण विलायती बबूल को हटाना, पर्यावास सुधार एवं पानी की व्यवस्था इत्यादि गतिविधियां कराई जा रही है।

इन्टीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ वाईल्ड लाईफ हैबिटाट्स

भारत सरकार द्वारा इस योजना का फंडिंग पैटर्न वर्ष 2015-16 से परिवर्तित कर 60% हिस्सा केन्द्र का एवं 40% राज्य हिस्सा किया गया है। इस योजना के अन्तर्गत वन्य जीव संरक्षण के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, हैबिटाट डेवलपमेंट, वाटर पॉईन्टस, फायर लाईन्स दीवार निर्माण इत्यादि कार्य करवाये जाते है ।

प्रोजक्ट टाईगर

राज्य में स्थित संरक्षित क्षेत्रों का वित्त पोषित केन्द्र प्रवर्तित योजना “Project Tiger " के तहत वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा किया जा रहा है।

राजस्थान एक्स सीटू कन्जर्वेशन ऑथोरिटी (RESCA)

राज्य में स्थित चिडियाघरों, जैविक उद्यानों (Zoological Park - Zoo ), संरक्षित क्षेत्रों के बाहर स्थित सफारी, कृत्रिम प्रजनन केन्द्रों एवं रेस्क्यू सेन्टर पर वन्यजीवों के संरक्षण एवं संवर्धन में सहायता के लिये राजस्थान सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1958 के अन्तर्गत राजस्थान एक्स सीटू कन्जर्वेशन ऑथोरिटी (RESCA) का गठन किया गया हैं तथा राज्य में आमजन, संस्था, कार्पोरेट, वन्यजीव प्रेमी इत्यादि द्वारा जैविक उद्यानों (Zoological Park - Zoo) में वास कर रहे वन्यजीवों को गोद लेने के लिए Captive Animal Sponosorship Scheme लागू की गई हैं। जिसका क्रियान्वयन राजस्थान एक्स सीटू कन्जर्वेशन ऑथोरिटी (RESCA) के माध्यम से किया जा रहा हैं।

वेटलैंड एक्स-सीटू कंज़र्वेशन इस्टैब्लिशमेंट

राजस्थान सरकार ने आर्द्रभूमि प्रजातियों को प्रदर्शित करने हेतु भरतपुर पक्षी अभयारण्य के रूप में लोकप्रिय विश्व धरोहर स्थल केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के अंदर एक चिड़ियाघर बनाने का प्रस्ताव किया है। वेटलैंड एक्स-सीटू कंज़र्वेशन इस्टैब्लिशमेंट (Wetland ex-situ Conservation Establishment- WESCE) कहे जाने वाले इस चिड़ियाघर का उद्देश्य गैंडों, जल भैंसों, मगरमच्छों, डॉल्फिन और विदेशी प्रजातियों सहित आर्द्रभूमि प्रजातियों की एक शृंखला को प्रदर्शित करना है। WESCE का उद्देश्य केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की जैव विविधता को पुनर्जीवित करना है ताकि इसके उत्कृष्ट सार्व भौमिक मूल्यों को बढ़ावा मिले। WESCE योजना महत्त्वाकांक्षी राजस्थान वानिकी और जैवविविधता विकास परियोजना (Rajasthan Forestry and Biodiversity Development Project- RFBDP) का हिस्सा है, जिसके लिये फ्राँस सरकार की विदेशी विकास शाखा (Agence Française de Développement- AFD) ने आठ वर्षों में 12 करोड़ रुपए की धनराशि देने पर सहमति जताई है।

तथ्य

राजस्थान में भालूओं का पहला संरक्षित क्षेत्र सुन्धामाता संरक्षित क्षेत्र है

राजस्थान के जालौर और सिरोही जिलों में भालू अभ्यारण्य बनाया जाएगा। यह प्रदेश का पहला और देश का चौथा भालू अभ्यारण्य होगा । भालू अभ्यारण्य सिरोही जिले की माउंट आबू संरक्षित क्षेत्र के 326 वर्ग किलोमीटर और जालौर के संधु माता कंजरवेशन रिजर्व के 117.49 वर्ग किलोमीटर के जंगल को मिलाकर बनाया जाएगा।

राजस्थान में प्रोजेक्ट टाइगर का आरंभ रणथम्भोर वन्यजीव क्षेत्र से किया गया था

तथ्य

खींचन, जोधपुर का एक गांव है जहां शती काल में रूस व यूक्रेन से प्रवासी पक्षी कुरंजा आता है। कुरंजा एक विरह गीत भी है।

राज्य सरकार इनके नाम से कैलाश सांखला वन्य जीव पुरसकार देती है।

गजनेर(बीकारने), बटबड़ या रेज का तीतर (इंपीरियल सेन्डगाउज) के लिए प्रसिद्ध है।

डोलीधावा जोधपुर का एक गांव है। जो काले मृगों के लिए संरक्षित है।

उतर भारत का प्रथम सर्प उद्यान, कोटा।

गोडावण - ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सोहन चिडि़या, हुकना, गुधनमेर क्रायोटीस नाइगीसैप्स(विज्ञान) कहते है। यह जैसलमेर, सांखलिया(अजमेर), सोरसन(बारा) में मिलता है। 1981 में इसे राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया।

राष्ट्रीय स्तर पर 94 राष्ट्रीय उद्यान, 501 अभयारण्य, 14 बायोस्फीयर रिजर्व है।

भारत में सर्वप्रथम 1887 में वन्य पक्षी सुरक्षा अधिनियम बनाया गया।

दश् में बाघों के लिए अप्रैल 1973 में बाघ परियोजना शुरू की गई।

दशे में अब तक 28 बाघ अभयारण्य है। राजस्थान में दो(रणथम्भौर, सरिस्का), सर्वाधिक मध्यप्रदेश में है।

हरे कबूतर सरिस्का, अजमेर, तिलोरा गांव पुष्कर, थावंला गांव नागौर में मिलते है।

गेेडवेल - जीय बतख है जो रूस चन और यरोप से शीतकाल में अजमेर के आस-पास आती है।

ताली अभ्यारण्य करौली और बीसलपुर अभ्यारण्य टोंक में स्थापित किये जा रहे है।

सर्वाधिक वन्य जीव अभ्यारण्य उदयपुर में सर्वाधिक आखेट निषेध क्षेत्र, जोधपुर में है।

राजस्थान बजट घोषणा 2013 के अन्तर्गत पक्षी अभ्यारण्य स्थापित किया जायेगा - "बड़ोपल पक्षी अभ्यारण्य " - हनुमानगढ़ जिले की पीलीबंगा तहसील के गांव बड़ोपल में। बड़ोपल गांव विदेशीपक्षियों की शरण स्थली के रूप में प्रसिद्ध है।

किस जिले में सर्वाधिक वन्य जीव अभयारण्य है ? - उदयपुर

किस जिले में सर्वाधिक आखेट निषिद्ध क्षेत्र है ? - जोधपुर

राजस्थानका प्रथम राष्ट्रीय उद्यान - रणथंबौर राष्ट्रीय उद्यान (1 नवम्बर 1980)

राजस्थानका दूसरा राष्ट्रीय उद्यान - केवलादेव घना (1981)

विश्व धरोहर के रूप में घोषित अभयारण्य - केवलादेव घना पक्षी विहार (1985)

राजस्थानका पहला बाघ परियोजना क्षेत्र/टाईगर प्रोजेक्ट - रणथंभौर (1974)

राजस्थान का दूसरा बाघ परियोजना क्षेत्र/टाईगर प्रोजेक्ट - सरिस्का (1978)

एशिया की सबसे बड़ी पक्षी प्रजनन स्थली - केवलादेव घना पक्षी विहार

राजस्थान के 2 राष्ट्रीय उद्यान - रणथंभौर व केवलादेव घना

राजस्थान के 2 बाघ परियोजना क्षेत्र/टाईगर प्रोजेक्ट - रणथंभौर व सरिस्का

राज्यपक्षी गोडावन के संरक्षण हेतु प्रसिद्ध दो आखेट निषिद्ध क्षेत्र - सोरसन (बारां),सोंखलिया (अजमेर)

सबसे बड़ा आखेट निषिद्ध क्षेत्र - संवत्सर-कोटसर (बीकानेर)

सबसे छोटा आखेट निषिद्ध क्षेत्र -सैथलसागर (दौसा)

साथीन व ढेंचू है - जोधपुर जिले में स्थित आखेट निषिद्ध क्षेत्र

आकल वुड फाॅसिल पार्क/आकल जीवाश्म क्षेत्र ? जैसलमेर

अभयारण्य - स्थापना - क्षेत्रफल (वर्ग किमी)

सरिस्का - 7 नवंबर 1955 - 860रणथंभौर - 1 नवंबर 1960 - 392सीतामाता - 1979 - 423राष्ट्रीय मरू उद्यान - 8 मई 1981 -3162

केवलादेव घना पक्षी विहार/केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल है - 28.73 वर्ग किमी

सीतामाता अभयारण्य में पाईजाने वाली प्रमुख वृक्ष प्रजातियां - सागवान-बांस-महुआ

रणथंभौर को वर्ष 1974 में तथा सरिस्का को वर्ष 1978 में राष्ट्रीय बाघ परियोजना में शामिल किया गया/टाईगर रिजर्व घोषित किया गया।

टाईगर प्रोजेक्ट में शामिल भारत की सबसे छोटी बाघ परियोजना है ? - रणथंभौर

सीतामाता अभयारण्य किन दो जिलों में विस्तृत है - प्रतापगढव उदयपुर

सीतामाताअभयारण्य का अधिकांशक्षेत्र प्रतापगढ जिले में आता है।

जलीय पक्षियों की प्रजनन स्थली के रूप में प्रसिद्ध अभयारण्य है - चंबल अभयारण्य

राजस्थान में वन्य जीवों के संरक्षण की शुरूआत कब हुई - 7 नवम्बर 1955 को

राजस्थान में सर्वप्रथम 7 नवम्बर 1955 को घोषित वन्य जीव आरक्षित क्षेत्र - वन विहार, सरिस्का व दर्रा

राजस्थान के कितने प्रतिशत क्षेत्र पर राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीव अभयारण्य विस्तृत है - 2.67 प्रतिशत

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972राजस्थान में कब लागू हुआ - 1973 को

भारत में बाघ परियोजना के जनक माने जाते है - कैलाश सांखला

वन्य जीवों की संख्या की दृष्टि से राजस्थान का देश में स्थान है ? दूसरा

राज्य पशु चिंकारा (चैसिंगा) की सर्वाधिक संख्या - सीतामाता अभयारण्य

सागवानवनों की अधिकता ? सीतामाताअभयारण्य

राज्य पक्षी गोडावन - राष्ट्रीय मरू उद्यान

उड़न गिलहरी - सीतामाता अभयारण्य

जंगली मुर्गे - मा. आबू अभयारण्य

आकल काष्ठ जीवाश्म पार्क - राष्ट्रीय मरू उद्यान

क्षेत्रफलानुसार सबसे बड़ा - राष्ट्रीय मरू उद्यान (3162 वर्गकिमी)

कृष्ण मृग एवं कुरजां पक्षी- तालछापर अभयारण्य

भारतीयबाघों का घर ? रणथंभौर

सर्वाधिक वन्य जीव- रणथंभौर

मोर का सर्वाधिक घनत्व ? सरिस्का

दुर्लभ औषधीय वन क्षेत्र - सीतामाता अभयारण्य

हरे कबूतर ?सरिस्का

चंदन के वृक्ष - कुंभलगढ अभयारण्य

बटबड़ पक्षी/इंपिरीयल सेंट ग्राउज - गजनेर अभयारण्य

सांपों का संरक्षणस्थल - शेरगढ अभयारण्य

सर्वाधिक जैव विविधता - दर्रा वन्य जीव अभयारण्य

धोंकड़ा वन - दर्रा व रामगढ विषधारी

भेडि़याव जंगली धूसर मुर्गे - कुंभलगढ अभयारण्य

गागरोनी तोते - दर्रा वन्य जीव अभयारण्य

चीतल की मातृभूमि - सीतामाता अभयारण्य

खस नामक घास - जमुवा रामगढ अभयारण्य

मोथियाघास व लाना झाडि़यों हेतु प्रसिद्ध - तालछापर अभयारण्य

क्षेत्रफल कीदृष्टि से राष्ट्रीय मरू उद्यान के बाद राजस्थन के तीन सबसे बड़े अभयारण्य (क्रमशः)- सरिस्का-कैलादेवी-कुंभलगढ

क्षेत्रफल की दृष्टि से दो सबसे छोटे अभयारण्य - तालछापर-सज्जनगढ

रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान मेंक्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय स्थापित किया गया है।

गंगानगर-हनुमानगढ-सीकर-झुंझुनू-डूंगरपुर-बांसवाड़ा-भीलवाड़ा आदि जिलों में कोई भी अभयारण्य या आखेट निषिद्ध क्षेत्र नहीं है।

रणथंभौर व सरिस्का के अलावा किस अभयारण्य में बाघ विचरण करते है - रामगढ विषधारी अभयारण्य बूंदी में

राजस्थान का सबसे पहला व सबसे प्राचीन जंतुआलय - जयपुर जंतुआलय (1876)

कौनसा जंतुआलय अपनी पक्षी शाला के लिए प्रसिद्ध है - जोधपुर

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