राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3 लाख 42 हजार 2 सौ 39 वर्ग कि.मी. है। जो की देश का 10.41 प्रतिशत है। राजस्थान में देश का 11 प्रतिशत क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है और राज्य में 50 प्रतिशत सकल सिंचित क्षेत्र है जबकि 30 प्रतिशत शुद्ध सिंचित क्षेत्र है।
राजस्थान का 60 प्रतिशत क्षेत्र मरूस्थल और 10 प्रतिशत क्षेत्र पर्वतीय है। अतः कृषि कार्य संपन्न नहीं हो पाता है और मरूस्थलीय भूमि सिंचाई के साधनों का अभाव पाया जाता है। अधिकांश खेती राज्य में वर्षा पर निर्भर होने के कारण राज्य में कृषि को मानसून का जुआ कहा जाता है।
मानपुरा, झालावाड़ से हुकुमचंद पाटीदार और अजीतगढ़, सीकर के जगदीश प्रसाद पारिख को जैविक खेती का उपयोग करने और बढ़ावा देने के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। इन दोनों किसानों ने कभी रासायनिक उर्वरक की एक बूंद का उपयोग नहीं किया और अब राज्य के अन्य किसानों के लिए उदाहरण बन गए हैं।
रबी की फसल | अक्टूबर, नवम्बर व जनवरी -फरवरी |
खरीफ की फसल | जून, जुलाई व सितम्बर-अक्टूबर |
जायद की फसल | मार्च-अपे्रल व जून-जुलाई |
रवि को उनालु कहा जाता है।
खरीफ को स्यालु/सावणु कहा जाता है।
रवि - गेहूं जौ, चना, सरसो, मसूर, मटर, अलसी, तारामिरा, सूरजमुखी।
खरीफ - बाजरा, ज्वार, मूंगफली, कपास, मक्का, गन्ना, सोयाबीन, चांवल आदि।
जायद - खरबूजे, तरबूज ककडी
खाद्यान्न फसले (57 प्रतिशत) | नकदी/व्यापारिक फसले (43 प्रतिशत) |
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गेहूं,जो,ज्वार, मक्का | गन्ना, कपास, तम्बाकू |
बाजरा,चावंल,दहलने | तिलहन, सरसों, राई |
मोड,मंूग,अरहर उड्द | तारामिरा, अरण्डी, मूंग |
मसूर चांवल इत्यादि | तिल, सोयाबीन, (जोजोबा) |
नोट- राज्य में कृषि जोत का औसत आकार 3.96 हैक्टेयर है। जो देश में सर्वाधिक है। कुल क्षेत्र का 2/3 भाग (65 प्रतिशत) खरीफ के मौसम में बोया जाता है।
राजस्थान में सर्वाधिक खाया जाने वाला और सर्वाधिक उत्पन्न होने वाला खाद्यान्न गेहंू है। देश में गेहूं का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर-प्रदेश में होता है। राजस्थान का गेहूं उत्पादन में देश में चौथा स्थान है। राजस्थान का पूर्वी भाग गेहूं उत्पादन में अग्रणी स्थान रखता है। जबकि श्रीगंगानगर जिला राज्य में गेहंू उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। गेहंू के अधिक उत्पादन के कारण गंगानगर को राज्य का अन्न भंण्डार और कमाऊपूत कहा जाता है। राजस्थान में गेहूं की प्रमुख किस्में सोना-कल्याण, सोनेरा, शरबती, कोहिनूर, और मैक्सिन बोयी जाती है।
देश में जौ का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। यू.पी. के पश्चात् राजस्थान जौ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। राजस्थान के पूर्वी क्षेत्र में जौ सर्वाधिक होता है और जयपुर जिला जौ उत्पादन में राज्य का प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में जौ कि प्रमुख किस्मों में ज्योति राजकिरण और आर.एस.-6 प्रमुख है। जौ माल्ट बनाने में उपयोगी है।
ज्वार को खाद्यान्न के रूप में प्रयोग किया जाता है। देश में सर्वाधिक ज्वार महाराष्ट्र में होता है। जबकि राजस्थान में देश में चौथा स्थान रखता है। राजस्थान में मध्य भाग में ज्वार का सर्वाधिक उत्पादन होता है। जबकि अजमेर जिला ज्वार उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। ज्वार की राज्य में प्रमुख किस्म पी.वी.-96 है।
राजस्थान में ज्वार अनुसंधान केन्द्र वल्लभनगर उदयपुर में स्थापित किया गया है।
दक्षिणी राजस्थान का प्रमुख खाद्यान्न मक्का है। देश में सर्वाधिक मक्का का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। जबकि राजस्थान का मक्का के उत्पादन मे देश में आठवां स्थान है। राजस्थान का चित्तौडगढ़ जिला मक्का उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में मक्के की डब्ल्यू -126 किस्म बोई जाती है जबकि कृषि अनुसंधान केन्द्र बांसवाडा द्वारा मक्का की माही कंचन व माही घवल किस्म तैयार की गई है।
देश में सर्वाधिक खाया जाने वाला खाद्यान्न चावंल है। देश में इसका सर्वाधिक उत्पादन पश्चिमी बंगाल में है। राजस्थान में चावंल का उत्पादन नाममात्र का आधा प्रतिशत से भी कम है। राजस्थान में हुनमानगढ़ जिले के घग्घर नदी बहाव क्षेत्र (नाली बैल्ट) में "गरडा वासमती" नामक चावंल उत्पन्न किया जाता है। जबकि कृषि अनुसंधान केन्द्र बासवांडा ने चावंल की माही सुगंधा किस्म विकसित की है।
चांवन के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सीयस तापमान व 200 संेटी मीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। जो कि राजस्थान में उपलब्ध नहीं है। अतः यहां जापानी पद्वति से चांवन उत्पन्न किया जाता है। देश में प्रति हैक्टेयर अधिक उत्पादन में पंजाब राज्य का प्रथम स्थान रखता है।
यह एक उष्णकटिबधिय पौधा है। इसके लिए मिट्टी की आवश्यकता होती है। देश में उत्तर-प्रदेश के पश्चात् राजस्थान चना उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। राजस्थान में चुरू जिला चने के उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है। गेहूं और जो के साथ चने को बोने पर उसे गोचनी या बेझड़ कहा जाता है।
चने के पश्चात् विभिन्न प्रकार की दालो में मोठ का प्रथम स्थान राजस्थान का पश्चिमी भाग दालों में अग्रणी स्थान रखता है। राजस्थान का नागौर जिला उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में कुल कृषि भूमि का 18 प्रतिशत दाले बोयी जाती है। उड्द की दाल भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में सहायक है। पौधों को नाइट्रोजन नाइट्रेट के रूप में प्राप्त होती है। जबकि राइजोबियम नामक बैक्टीरिया नाइट्रोजन को नाइट्रेट के रूप में परिवर्तित करता है।
देश में सर्वाधिक बाजरे का उत्पादन राजस्थान में होता है। राजस्थान में सर्वाधिक बोया जाने वाला खाद्यान्न बाजरा है। राजस्थान का पश्चिमी भाग बाजरा उत्पादन हेतु प्रसिद्ध है जबकि जयपुर जिला बाजरा उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं राजस्थान में बाजरे की साधारण किस्म के अतिरिक्त Raj-171 प्रमुख किस्म है। राजस्थान के पूर्वी भाग में संकर बाजरा होता है। उसे सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है। राजस्थान में बाजरा अनुसंधान केन्द्र बाडमेर में स्थित है।
भारतीय मूल का पौधा(Indian Origine) है। अर्थात् विश्व में सर्वप्रथम गन्ने का उत्पादन भारत में ही हुआ। दक्षिणी भारत में सर्वप्रथम गन्ने की खेती आरम्भ हुई। वर्तमान में विश्व में गन्ने का सर्वाधिक उत्पादन भारत में ही होता है। भारत में उत्तर प्रदेश राज्य गन्ना उत्पादन में प्रथम स्थान पर है (देश का 40 प्रतिशत)। राजस्थान में गन्ने का उत्पादन नाम मात्र का होता है (0.5 प्रतिशत)। राजस्थान में बूंदी जिला गन्ना उत्पादन में अग्रणी स्थान रखता है। गन्ने का कम उत्पादन होने के कारण राजस्थान में मात्र तीन सुगर मिले है|
1. | दा मेवाड शुगर मिल | भूपाल सागर (चित्तौड़) 1932 निजी |
2. | गंगानगर शुगर मिल | गंगानगर (1937 निजी -1956 में सार्वजनिक) |
3. | द केशोरायपाटन शुगर मिल | केशोरायपाटन (बूंदी) 1965 सहकारी |
कपास भारतीय मूल का पौधा है। विश्व में सर्वप्रथम कपास का उत्पादन सिंधु घाटी सभ्यता में हुआ। वर्तमान में विश्व में सर्वाधिक कपास भारत में उत्पन्न होती है। जबकी भारत में गुजरात राज्य कपास में प्रथम स्थान रखता है। राजस्थान देश में चैथे स्थान पर है। राजस्थान में कपास तीन प्रकार की होती है।
वर्तमान में राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला कपास उत्पादन में अग्रणी स्थान रखता है। जबकि जैसलमेर व चरू में कपास का उत्पादन नाम मात्र का होता है। कपास को "बणीया" कहा जाता है। कपास से बिनौला निकाला जाता है उससे खल बनाई जाती है। कपास की एक गांठ 170 किलो की होती है।
भारतीय मूल का पौधा नही। पूर्तगाली 1508 ईं. में इसको भारत लेकर आये थे। मुगल शासक जहांगीर ने सर्वप्रथम भारत में 1608 ई. में इसकी खेती की शुरूआत की किन्तु कुछ समय पश्चात् इसके जब दुशपरीणाम आने लगे तब जहांगीर ने ही इसे बंद करवा दिया। वर्तमान में भारत का आंधप्रदेश राज्य तम्बाकू उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में पूर्व भाग में तम्बाकू का सर्वाधिक उत्पादन होता है। अलवर जिला तम्बाकू उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान में तम्बाकू की दो किस्में बोयी जाती है।
(अ) निकोटिना टेबुकम
(ब) निकोटिना रास्टिका
सरसो, राई, तारामीरा, तिल, मूंगफली, अरण्डी, सोयाबीन, होहोबा राजस्थान में उत्पन्न होने वाली प्रमुख तिलहन फसले है। तिलहन उत्पादन में राजस्थान का तीसरा स्थान है। तिलहन उत्पादन में उत्तर प्रदेश प्रथम है। किन्तु सरसों व राई के उत्पादन में राजस्थान प्रथम स्थान रखता है।
राजस्थान का भरतपुर जिला सरसों के उत्पादन में राज्य में प्रथम स्थान पर है। केन्द्रीय सरसों अनुसंधान केन्द्र सेवर भरतपुर की स्थापना 1983 में की गयी।
विश्व में मूंगफली का सर्वाधिक उत्पादन भारत में होता है। देश में गुजरात मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। उसके बाद राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल आते हैं। मूंगफली की फसल खरीफ और रबी, दोनों मौसमों में होती है। कुल पैदावर में खरीफ मौसम का हिस्सा 75 प्रतिशत से अधिक है। राज्य का जयपुर जिला मूंगफली के उत्पादन में प्रथम स्थान रखता है। बीकानेर का लूणकरणसर क्षेत्र उत्तम मंूगफली के लिए प्रसिद्ध है अतः उसे राजस्थान का राजकोट भी कहा जाता है।
राज्य में तिल पाली जिले में अरण्डी जालौर जिले में, सोयाबीन झालावाड़ में उत्पन्न होती है। सोयाबीन राजस्थान राज्य के दक्षिणी-पूर्वी भाग (हडौती) में होती है। इसमें सर्वाधिक प्रोटीन होती है। भारत में सर्वाधिक सोयाबीन मध्यप्रदेश में होता है।
यह एक प्रकार का तिलहन है इसे भारत में इजराइल से मगाया गया। इसका जन्म स्थान एरिजोना का मरूस्थल है। भारत में इसकी खेती की शुरूआत सर्वप्रथम सी.ए.जे.आर.आई संस्थान जोधपुर द्वारा की गयी। इसकी खेती इन क्षेत्रों में की जाती है जहां सिचाई के साधनों का अभाव पाया जाता है। इसके तेल का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनों, बडी-2 मशीनरियो व हवाई जहाजों में लुब्रिकेण्टस के रूप में किया जाता है।
राजस्थान में होहोबा के तीन फार्म है -
आस्टेªलिया व यूनेस्कों के सहयोग से TITUTE (केन्द्रिय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान केन्द्र) स्थापना 1959 इसका मुख्यालय जोधपुर मे है। काजरी का प्रमुख कार्य मरूस्थलीय प्रसार को रोकना, वृक्षा रोपण को बढावा देना और मरूस्थलीय क्षेत्र की समस्याओं का निवारण करना है। इसके 5 उपकेन्द्र - बीकानेर, जैसलमेर, पाली, भुज, लदाख।
नोट- 1998 में राजस्थान के सभी जिलों में काजरी संस्थान में ही विज्ञान सेवा केन्द्रो की स्थापना की गयी।
1 | हरित क्रांति | खाद्यान्न |
2 | श्वेत क्रांति | दुग्ध |
3 | पीली क्रांति | तिलहन (सरसों) |
4 | नीली क्रांति | मत्स्य |
5 | गुलाबी क्रांति | झींगा |
6 | काली (कृष्ण) | पेट्रोलियम (पैट्रोल, डीजल, केरोसीन) |
7 | लाल क्रांति | टमाटर |
8 | सुनहरी क्रांति | देसी अण्डा |
9 | रजत क्रांति | फार्मी अण्डा |
10 | भूरी क्रांति | खाद्य प्रसंस्करण |
11 | बादामी क्रांति | मसाला उत्पादन |
12 | स्लेटी क्रांति | सीमेण्ट |
13 | गोल क्रांति | आलू |
14 | इन्द्रधनुष क्रांति | सभी कृषि उत्पादन |
सवाई माधोपुर, भरतपुर, टोंक
विश्व में मसाला उत्पादन में भारत प्रथम स्थान रखता है। भारत में राजस्थान मसाला उत्पादन में प्रथम है। किन्तु गरम मसालों के लिए केरल राज्य प्रथम स्थान पर है। केरल को भारत का स्पाइस पार्क भी कहा जाता है। राज्य में दक्षिण-पूर्व का बांरा जिला राज्य में मसाला उत्पादन में प्रथम स्थान पर है। राजस्थान का प्रथम मसाला पार्क -झालावाड़ में है।
मसाले | सर्वाधिक उत्पादक जिला |
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मिर्च | जोधुपर |
धनियां | बांरा |
सोंफ | कोटा |
जिरा, इसबगोल | जालौर |
हल्दी, अदरक | उदयपुर |
मैथी | नागौर |
लहसून | चित्तैडगढ़ |
फल उत्पादन | गंगानगर |
फल | सर्वाधिक उत्पादक जिला |
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अंगूर | श्री गंगानगर |
कीन्नू | श्री गंगानगर |
माल्टा | श्री गंगानगर |
मौसमी | श्री गंगानगर |
संतरा | झालावाड़(राजस्थान का नागपुर) |
चीकू | सिरोही |
सेब | माउन्ट आबू (सिरोही) |
नींबू | धौलपुर |
आम | भरतपुर |
केला | बांसवाडा |
नाशपति | जयपुर |
मतीरा | टोंक/बीकानेर |
पपीता/खरबूजा | टोंक |
केन्द्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान -दुर्गापुरा (जयपुर)
सूरतगढ़ यांत्रिक कृषि फार्म - गंगानगर
क्षेत्रफल -12410 वर्ग हैक्टेयर
स्थापना- 15 अगस्त 1956
एशिया का सबसे बड़ा यांत्रिक कृषि फार्म है। सोवियत संघ के सहयोग से स्थापित किया। इसका मुख्य कार्य कृषि क्षेत्र में यंत्रों को बढ़ावा देना, अच्छी नस्ल के पशुओं का कृषि कार्य में उपयोग करना है।
जैतसर यांत्रिक कृषि फार्म - श्रीगंगानगर
स्थापना -26 जनवरी 1962 (कनाडा)
क्षेत्रफल -12140 वर्ग हेक्टेयर
एशिया का दूसरा सबसे बडा यांत्रिक फार्म
फसल | केंद्र |
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खजूर | सगरा भोजका, जैसलमेर |
अनार | बस्सी, जयपुर |
सीताफल | चित्तोडगढ़ |
फूल | सवाई माधोपुर |
सिट्रिक (नींबू वर्गीय फल) | नांता, कोटा |
सब्जी फसल | बूंदी |
अमरूद | देवडावास, टोंक |
आम | खेमरी, धौलपुर |
संतरा | झालावाड़ |
मंडी नाम | क्षेत्र |
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जीरा मंडी | मेडता सिटी (नागौर) |
सतरा मंडी | भवानी मंडी (झालावाड) |
कीन्नू व माल्टा मंडी | गंगानगर |
प्याज मंडी | अलवर |
अमरूद मंडी | सवाई माधोपुर |
ईसबगोल (घोडाजीरा) मंडी | भीनमाल (जालौर) |
मूंगफली मंडी | बीकानेर |
धनिया मंडी | रामगंज (कोटा) |
फूल मंडी | अजमेर |
मेहंदी मंडी | सोजत (पाली) |
लहसून मंडी | छीपा बाडौद (बांरा) |
अखगंधा मंडी | झालरापाटन (झालावाड) |
टमाटर मंडी | बस्सी (जयपुर) |
मिर्च मंडी | टोंक |
मटर (बसेडी) | बसेड़ी (जयपुर) |
टिण्डा मंडी | शाहपुरा (जयपुर) |
सोनामुखी मंडी | सोजत (पाली) |
आंवला मंडी | चोमू (जयपुर) |
राजस्थान में प्रथम निजी क्षेत्र की कृषि मण्डी कैथून (कोटा) में आस्टेªलिया की ए.डब्लू.पी. कंपनी द्वारा स्थापित की गई है।
राजस्थान में सर्वाधिक गुलाब का उत्पादन पुष्कर (अजमेर) में होता है। वहां का ROSE INDIA गुलाब अत्यधिक प्रसिद्ध है। राजस्थान मे चेती या दशमक गुलाब की खेती खमनौगर (राजसमंद) में होती है।
रतनजोत- सिरोही, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाडा
अफीम- चित्तौडगढ़, कोटा, झालावाड
सोयाबीन - झालावाड़, कोटा, बांरा
नारमन. ए. बोरलोग नामक कृषि वैज्ञानिक ने शुरू की 1966 में भारत में इसकी शुरूआत एम.एस. स्वामीनाथन ने की।
भारत में इसकी शुरूआत वर्गीज कुरियन द्वारा 1970 में की गई। इस क्रांति को "आॅपरेशन फ्लड" भी कहते है। डाॅ वर्गीज कुरियन अमूल डेयरी के संस्थापक भी है। जिसका मुख्यालय गुजरात को आनंद जिला है।
राज्य में संविदा खेती 11 जून 2004 में प्रारम्भ हुई
जालौर -समग्र मादक पदार्थो उत्पादन की दृष्टि से प्रथम स्थान पर है।
कृषि के प्रकार
ऐसी कृषि जो रेगिस्तानी भागों में जहां सिचाई का अभाव हो शुष्क कृषि की जाती है। इसमें भूमि मेे नमी का संरक्षण किया जात है।
(अ) फ्वारा पद्धति
(ब) ड्रिप सिस्टम
इजराइल के सहयोग से। शुष्क कृषि में इसका उपयोग किया जाता है।
जहां सिचाई के साधन पूर्णतया उपलब्ध है। उन फसलों को बोया जाता है जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता होती है।
जब कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है तो उसे मिश्रित कृषि कहा जाता है।
जब दो या दो से अधिक फसले एक साथ बोई जाये तो उसे मिश्रित खेती कहते है।
इस प्रकार की कृषि में वृक्षों को जलाकर उसकी राख को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। राजस्थान में इस प्रकार की खेती को वालरा कहा जाता है। भील जनजाति द्वारा पहाडी क्षेत्रों में इसे "चिमाता" व मैदानी में "दजिया" कहा जाता है। इस प्रकार की खेती से पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान पहुंचता है। राजस्थान में उदयपुर, डूंगरपुर, बांरा में वालरा कृषि की जाती है।
राज्य को जलवायु के आधार पर 10 कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिनमें बोई जाने वाली मुख्य फसलों का विवरण है:
क्र. स. | जलवायु क्षेत्र | सम्मिलित जिले | मुख्य फसलें | |
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खरीफ | रबी | |||
1 | शुष्क पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (I-A) | जोधपुर, जोधपुर ग्रामीण, फलौदी, बाड़मेर एवं बालोतरा | बाजरा, मोठ एवं तिल | गेहूं, सरसों एवं जीरा |
2 | उत्तरी पश्चिमी सिंचित मैदानी क्षेत्र (I-B) | श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ एवं अनूपगढ़ | कपास एवं ग्वार | गेहूं, सरसों एवं चना |
3 | अति शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (I-C) | बीकानेर, जैसलमेर एवं चुरू | बाजरा, मोठ एवं ग्वार | गेहूं, सरसों एवं चना |
4 | अन्तः स्थलीय जलोत्सरण के अन्तवर्ती मैदानी क्षेत्र (II-A) | सीकर, नीम का थाना, चुरू, झुन्झुनू, नागौर, डीडवाना एवं कुचामन | बाजरा, ग्वार एवं दलहन | सरसों एवं चना |
5 | लूनी नदी का अन्तवर्ती मैदानी क्षेत्र (II-B) | जालोर, सांचौर, सिरोही , पाली, ब्यावर | बाजरा, ग्वार एवं तिल | गेहूं एवं सरसों |
6 | अर्द्ध शुष्क पूर्वी मैदानी क्षेत्र (III-A) | अजमेर, ब्यावर, जयपुर, जयपुर ग्रामीण, दौसा, टोंक, दूदू, केकड़ी, खैरथल, तिजारा, कोटपूतली, बहरोड़ | बाजरा, ग्वार एवं ज्वार | गेहूं, सरसों एवं चना |
7 | बाढ सम्भाव्य पूर्वी मैदानी क्षेत्र (III-B) | अलवर, डीग, भरतपुर, धौलपुर, करौली, गंगापुर सिटी एवं सवाईमाधोपुर | बाजरा, ग्वार एवं मूंगफली | गेहूं, जौ, सरसों एवं चना |
8 | अर्द्ध आर्द्र दक्षिणी मैदानी क्षेत्र (IV-A) | उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, शाहपुरा, सिरोही | मक्का, दलहन एवं ज्वार | गेहूं एवं चना |
9 | आर्द्र दक्षिणी मैदानी क्षेत्र (IV-B) | बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, सलूम्बर एवं चित्तौड़गढ़ | मक्का, धान, ज्वार एवं उड़द | गेहूं एवं चना |
10 | आर्द्र दक्षिणी पूर्वी मैदानी क्षेत्र (V) | कोटा, बारां, बूंदी एवं झालावाड़ | ज्वार एवं सोयाबीन | गेहूं एवं सरसों |
इस योजना का प्रमुख उद्देश्य कृषकों द्वारा स्वयं के खेतों में अच्छी किस्म के बीज उत्पादन को बढ़ावा देना है। प्रारम्भ में इस योजना का क्रियान्वयन राज्य के तीन कृषि जलवायुविक खण्डों यथा- कोटा, भीलवाड़ा तथा उदयपुर में किया गया। वर्ष 2018-19 से योजना राज्य के समस्त 10 कृषि जलवायुविक खण्डों में क्रियान्वित की जा रही है। इस योजनान्तर्गत गेहूं, जौ, चना, ज्वार, सोयाबीन, सरसों, मूंग, मोठ मूंगफली एवं उड़द की 10 वर्ष से कम अवधि तक की पुरानी किस्मों के बीज उत्पादन को शामिल किया गया है।
लड़कियों को औपचारिक रूप से कृषि का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा उच्च माध्यमिक (कृषि) के लिए प्रति वर्ष ₹15,000 प्रति छात्रा, स्नातक (कृषि) एवं स्नातकोत्तर (कृषि) के लिए प्रति वर्ष ₹25,000 प्रति छात्रा और पीएचडी के लिए प्रति वर्ष ₹40,000 प्रति छात्रा को प्रोत्साहन राशि प्रदान की जा रही है।
“देखकर विश्वास करने” के कृषि के सिद्धान्त पर कृषि तकनीक को प्रसारित करने हेतु कृषकों के खेतों पर फसल प्रदर्शन आयोजित किये जा रहे हैं।
कृषकों के मध्य विभिन्न फसलों की नवीन किस्मों को लोकप्रिय करने के लिए महिला कृषकों को निःशुल्क बीज मिनिकिट उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
फसल उत्पादन बढ़ाने के लिये सूक्ष्म पोषक तत्वों के उपयोग को बढ़ाने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्ड/पी.ओ.पी. की अनुशंषा पर किसानों को 90 प्रतिशत अनुदान पर सूक्ष्म पोषक तत्व मिनिकिट उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
कृषकों द्वारा बोई गई फसलों में नीलगाय, जंगली जानवरों व निराश्रित पशुओं से वृहत स्तर पर नुकसान को रोकने/कम करने हेतु वर्ष 2017-18 से राष्ट्रीय तिलहन मिशन एवं पाम ऑयल मिशन के फलेक्सी फण्ड के तहत तारबन्दी कार्यक्रम चालू किया गया है। वर्ष 2022-23 से इस कार्यक्रम को दो वर्षों के लिए ‘राजस्थान फसल सुरक्षा मिशन’ के तहत लिया गया है। इस कार्यक्रम को 2023-24 से सामुदायिक आधार के रूप में भी लिया गया है।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत छोटे सीमांत किसानों को इकाई लागत का 50 प्रतिशत या ₹100 प्रति मीटर या ₹40,000 (जो भी कम हो) अनुदान, सीमांत किसानों को इकाई लागत का 60 प्रतिशत या ₹120 प्रति मीटर या ₹48,000 प्रति किसान (जो भी कम हो) अनुदान, कम से कम 10 किसानों का समूह जिनके पास कम से कम 5 हैक्टेयर भूमि हो को इकाई लागत का 70 प्रतिशत या ₹140 प्रति मीटर या ₹56,000 प्रति किसान (जो भी कम हो) को 400 रनिंग मीटर तक अनुदान प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण (डी.बी.टी.) के माध्यम से इनके खाते में ट्रांसफर किया जाता है।
2007-08 से गेहूं एवं दलहन पर शुरू
केन्द्रांश एवं राज्यांश का वित्त पोषण पैटर्न का अनुपात 60:40
उद्देश्य : प्रमाणित बीज का वितरण एवं उत्पादन, उत्पादन तकनीक में सुधार, जैव उर्वरकों को बढ़ावा देना, सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग, समन्वित कीट प्रबंधन, कृषक प्रशिक्षण।
2018-19 से शुरू
उद्देश्य : प्रमाणित बीज का वितरण एवं उत्पादन, उत्पादन तकनीक में सुधार का प्रदर्शन, जैव उर्वरकों को बढ़ावा देना, सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग, समन्वित कीट प्रबन्धन और फसल प्रदर्शन पर किसानों को प्रशिक्षण
ट्री बोर्न तिलहन (टी.बी.ओज.) : जैतून, महुआ, नीम, जोजोबा, करूंजा एवं जटरोपा
केन्द्रांश एवं राज्यांश का वित्त पोषण पैटर्न का अनुपात 60:40
उद्देश्य : आधारभूत एवं प्रमाणित बीज का उत्पादन, विशेष कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रमाणित बीज का वितरण व फसल प्रदर्शन, समन्वित जीवनाशी प्रबन्धन, पौध संरक्षण रसायन, पौध संरक्षण उपकरण वितरण, जैव उर्वरक, जिप्सम, जल संवहन के लिए पाइप लाइन, कृषक प्रशिक्षण, कृषि उपकरण, तारबंदी, बीज मिनी किट वितरण तथा बीज आधारभूत विकास।
इस मिशन का उद्देश्य कृषकों की सक्रिय भागीदारी के साथ 'रणनीतिक अनुसंधान और विस्तार योजना' बनाना और संसाधनों के आवंटन में ब्लॉक स्तर पर सभी हितधारकों के बीच कार्यक्रम समन्वय और एकीकरण को बढ़ाना है ताकि कृषि प्रणालियों में नवाचार को बढ़ावा दिया जा सके।
“राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं तकनीकी मिशन” के अन्तर्गत 3 उप-मिशन सम्मिलित किए गए हैं -
पूर्व में संचालित योजनाओं- राष्ट्रीय सूक्ष्म सिंचाई मिशन, राष्ट्रीय जैविक खती परियोजना, राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता प्रबन्ध परियोजना तथा वर्षा आधारित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, जलवायु परिवर्तन को सम्मिलित करते हुए पुनर्गठन कर एक नया कार्यक्रम राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन क्रियान्वित किया जा रहा है। केन्द्रांश एवं राज्यांश का वित्त पोषण पैटर्न का अनुपात 60:40 है। राष्ट्रीय टिकाऊ खेती मिशन के अन्तर्गत 3 सब-मिशन सम्मिलित किए गए हैं :
जैविक खेती में पर्यावरण अनुकूल न्यूनतम लागत तकनीकों के प्रयोग से रसायनों एवं कीटनाशकों का प्रयोग कम करते हुए कृषि उत्पादन किया जाता है। परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत क्लस्टर एवं पी.जी.एस. प्रमाणन के माध्यम से जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाता है।
कृषि और सम्बद्ध क्षेत्रों में निवेश में लगातार कमी को देखते हुए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2007-08 के दौरान कृषि जलवायु, प्राकृतिक संसाधन के मुद्दों और प्रौद्योगिकी को दृष्टिगत रखते हुए कृषि क्षेत्र की योजनाओं को अधिक व्यापक रूप से तैयार करने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की शुरुआत की।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ, 2016 से प्रारम्भ की गई है। इस योजना में खाद्यान्न फसलों (अनाज, मोटा अनाज और दालें), तिलहन और वाणिज्यिक/बागवानी फसलों को शामिल किया गया है। कृषक से प्रीमियम राशि के अन्तर्गत खरीफ फसल में 2 प्रतिशत, रबी में 1.5 प्रतिशत एवं वाणिज्यिक/बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत लेकर फसल का बीमा किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा जारी संशोधित निर्देशानुसार खरीफ 2020 से असिंचित क्षेत्रों के लिये 30 प्रतिशत एवं सिंचित क्षेत्रों के लिये 25 प्रतिशत की अधिकतम प्रीमियम पर अनुदान भारत सरकार द्वारा वहन किया जायेगा। फसल कटाई प्रयोग करने वाले प्राथमिक कार्मिकों को प्रीमियम अनुदान एवं प्रोत्साहन राशि के भुगतान हेतु राज्य निधि योजना चल रही है।
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